Class 12 Physics – Complete Terminology and Concepts (RBSE & CBSE) | भौतिकी की संपूर्ण शब्दावली एवं अवधारणाएँ
कक्षा 12 भौतिकी - संपूर्ण शब्दावली और अवधारणाएँ
| विषय | भौतिक विज्ञान |
|---|---|
| स्तर | कक्षा 12 |
| कुल अवधारणाएँ | 185+ |
| Chapters | 15 अध्याय |
| बोर्ड | RBSE, CBSE |
| संबंधित परीक्षाएँ | JEE, NEET, Board |
कक्षा 12 भौतिकी की संपूर्ण शब्दावली में भौतिक विज्ञान के सभी महत्वपूर्ण अध्यायों से 185 से अधिक मूलभूत अवधारणाओं और शब्दों का विस्तृत संकलन प्रस्तुत किया गया है। यह लेख RBSE कक्षा 12 भौतिकी पाठ्यक्रम के अनुसार तैयार किया गया है और सभी प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे JEE Main, JEE Advanced, NEET और विभिन्न बोर्ड परीक्षाओं के लिए उपयोगी है।
- 1. स्थिर वैद्युतिकी (Electrostatics)
- 2. विद्युत धारा (Current Electricity)
- 3. चुंबकीय प्रभाव और चुंबकत्व
- 4. विद्युत चुंबकीय प्रेरण
- 5. प्रत्यावर्ती धारा
- 6. विद्युत चुंबकीय तरंगें
- 7. किरण प्रकाशिकी
- 8. तरंग प्रकाशिकी
- 9. विकिरण की द्विक प्रकृति
- 10. परमाणु संरचना
- 11. नाभिकीय भौतिकी
- 12. अर्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी
- 13. संचार व्यवस्था
- 14. संबंधित संसाधन
1. स्थिर वैद्युतिकी (Electrostatics)
स्थिर वैद्युतिकी भौतिकी की वह शाखा है जो स्थिर विद्युत आवेशों और उनसे उत्पन्न विद्युत क्षेत्रों का अध्ययन करती है। यह अध्याय विद्युत घटनाओं की मूलभूत समझ प्रदान करता है।
विद्युत आवेश
विद्युत आवेश द्रव्य का वह मूलभूत गुण है जो विद्युत और चुंबकीय क्षेत्रों के साथ अन्योन्यक्रिया करता है। आवेश दो प्रकार के होते हैं - धनात्मक और ऋणात्मक। सजातीय आवेश एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं जबकि विजातीय आवेश एक दूसरे को आकर्षित करते हैं। आवेश का SI मात्रक कूलॉम होता है। एक इलेक्ट्रॉन पर आवेश 1.6 × 10⁻¹⁹ कूलॉम होता है। आवेश संरक्षण का नियम कहता है कि किसी पृथक निकाय में कुल आवेश नियत रहता है। आवेश का क्वांटीकरण भी होता है अर्थात किसी वस्तु पर आवेश सदैव e के पूर्ण गुणज में होता है।
कूलॉम का नियम
कूलॉम का नियम दो स्थिर बिंदु आवेशों के बीच लगने वाले बल को व्यक्त करता है। इस नियम के अनुसार दो स्थिर बिंदु आवेशों के बीच लगने वाला बल दोनों आवेशों के गुणनफल के समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
जहाँ k = 9 × 10⁹ N·m²/C² (कूलॉम स्थिरांक)
k = 1/(4πε₀), ε₀ = 8.85 × 10⁻¹² C²/N·m²
यह बल दोनों आवेशों को मिलाने वाली रेखा की दिशा में कार्य करता है। यदि आवेश सजातीय हों तो बल प्रतिकर्षण का और यदि विजातीय हों तो आकर्षण का होता है। यह नियम गुरुत्वाकर्षण के नियम के समान है लेकिन विद्युत बल गुरुत्वाकर्षण बल से लगभग 10³⁶ गुना अधिक प्रबल होता है।
विद्युत क्षेत्र
विद्युत क्षेत्र वह स्थान है जहाँ विद्युत आवेश के कारण बल का अनुभव होता है। किसी विद्युत आवेश के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें अन्य आवेशित कण पर बल का अनुभव होता है, विद्युत क्षेत्र कहलाता है। इसे E से निरूपित किया जाता है और इसका मात्रक न्यूटन प्रति कूलॉम या वोल्ट प्रति मीटर होता है।
जहाँ E = विद्युत क्षेत्र, F = बल, q = परीक्षण आवेश
विद्युत क्षेत्र की तीव्रता किसी बिंदु पर इकाई धनात्मक आवेश पर लगने वाले बल के बराबर होती है। यह एक सदिश राशि है जिसकी दिशा धनात्मक आवेश पर लगने वाले बल की दिशा में होती है। विद्युत क्षेत्र रेखाओं का उपयोग करके विद्युत क्षेत्र को चित्रित किया जा सकता है।
विद्युत फ्लक्स
विद्युत फ्लक्स किसी पृष्ठ से गुजरने वाली विद्युत क्षेत्र रेखाओं की संख्या का माप है। यह विद्युत क्षेत्र और पृष्ठ के क्षेत्रफल के लंबवत घटक के गुणनफल के बराबर होता है। इसका मात्रक वोल्ट-मीटर या न्यूटन-मीटर²/कूलॉम होता है।
जहाँ θ = विद्युत क्षेत्र और पृष्ठ के अभिलंब के बीच कोण
गाउस का नियम
गाउस का नियम विद्युत क्षेत्र और आवेश के बीच संबंध स्थापित करता है। इस नियम के अनुसार किसी बंद पृष्ठ से गुजरने वाला कुल विद्युत फ्लक्स उस पृष्ठ के भीतर स्थित कुल आवेश का 1/ε₀ गुना होता है। यह नियम स्थिर वैद्युतिकी के मैक्सवेल के समीकरणों में से एक है।
जहाँ Q = कुल परिबद्ध आवेश, ε₀ = निर्वात की विद्युतशीलता
विद्युत विभव
विद्युत विभव किसी बिंदु पर इकाई धनात्मक आवेश को अनंत से उस बिंदु तक लाने में किए गए कार्य के बराबर होता है। यह एक अदिश राशि है और इसका मात्रक वोल्ट होता है। विद्युत विभव का मान धनात्मक या ऋणात्मक हो सकता है।
जहाँ V = विद्युत विभव, W = किया गया कार्य
विभवांतर
दो बिंदुओं के बीच विभवांतर इकाई धनात्मक आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किए गए कार्य के बराबर होता है। विभवांतर को वोल्टता भी कहते हैं। विद्युत क्षेत्र में आवेश सदैव उच्च विभव से निम्न विभव की ओर गति करता है।
समविभव पृष्ठ
समविभव पृष्ठ वह पृष्ठ होता है जिसके सभी बिंदुओं पर विद्युत विभव समान होता है। विद्युत क्षेत्र रेखाएं समविभव पृष्ठ के लंबवत होती हैं। समविभव पृष्ठ पर आवेश को गति कराने में कोई कार्य नहीं करना पड़ता। बिंदु आवेश के लिए समविभव पृष्ठ गोलाकार होते हैं।
विद्युत द्विध्रुव
विद्युत द्विध्रुव दो समान परिमाण के विपरीत आवेशों की एक निकाय है जो एक छोटी दूरी पर स्थित होते हैं। विद्युत द्विध्रुव का उदाहरण जल का अणु है। द्विध्रुव के कारण विद्युत क्षेत्र दूरी के घन के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण
विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण आवेश के परिमाण और आवेशों के बीच की दूरी के गुणनफल के बराबर होता है। यह एक सदिश राशि है जिसकी दिशा ऋणात्मक आवेश से धनात्मक आवेश की ओर होती है। इसका मात्रक कूलॉम-मीटर होता है।
जहाँ p = द्विध्रुव आघूर्ण, q = आवेश, 2a = आवेशों के बीच दूरी
विद्युतशीलता
विद्युतशीलता किसी माध्यम का वह गुण है जो यह बताता है कि उस माध्यम में विद्युत क्षेत्र कितनी आसानी से स्थापित हो सकता है। निर्वात की विद्युतशीलता ε₀ = 8.85 × 10⁻¹² C²/N·m² होती है। किसी माध्यम की विद्युतशीलता ε = ε₀εᵣ होती है, जहाँ εᵣ सापेक्ष विद्युतशीलता या परावैद्युतांक है।
संधारित्र
संधारित्र एक विद्युत अवयव है जो विद्युत आवेश और विद्युत ऊर्जा को संचित करता है। यह दो चालक प्लेटों से बना होता है जिनके बीच कोई परावैद्युत पदार्थ होता है। संधारित्र का उपयोग विद्युत परिपथों में ऊर्जा संचय, फिल्टरिंग और टाइमिंग सर्किट में होता है।
संधारित्र की धारिता
संधारित्र की धारिता उस पर संचित आवेश और उसके सिरों के बीच विभवांतर के अनुपात के बराबर होती है। धारिता का मात्रक फैरड होता है। एक फैरड बहुत बड़ी धारिता है, व्यावहारिक रूप से माइक्रोफैरड और पिकोफैरड का प्रयोग होता है।
समांतर प्लेट संधारित्र के लिए: C = ε₀εᵣA/d
संधारित्रों का संयोजन
संधारित्रों को श्रेणीक्रम या समांतर क्रम में जोड़ा जा सकता है। श्रेणीक्रम में तुल्य धारिता कम हो जाती है जबकि समांतर क्रम में तुल्य धारिता बढ़ जाती है। संधारित्रों का संयोजन वोल्टता और आवेश की आवश्यकताओं के अनुसार किया जाता है।
श्रेणी क्रम
जब संधारित्रों को श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है तो उन पर संचित आवेश समान होता है लेकिन विभवांतर भिन्न होते हैं। श्रेणीक्रम में तुल्य धारिता के लिए सूत्र है।
समांतर क्रम
जब संधारित्रों को समांतर क्रम में जोड़ा जाता है तो उनके सिरों पर विभवांतर समान होता है लेकिन आवेश भिन्न होते हैं। समांतर क्रम में तुल्य धारिता सभी धारिताओं के योग के बराबर होती है।
परावैद्युतांक
परावैद्युतांक या डाइइलेक्ट्रिक स्थिरांक किसी माध्यम की वह विशेषता है जो यह बताती है कि उस माध्यम में विद्युत क्षेत्र निर्वात की तुलना में कितना कम होगा। जब किसी संधारित्र की प्लेटों के बीच परावैद्युत पदार्थ रखा जाता है तो उसकी धारिता परावैद्युतांक के गुणा बढ़ जाती है। रसायन विज्ञान में भी ध्रुवीय अणुओं को समझने के लिए परावैद्युतांक महत्वपूर्ण है।
2. विद्युत धारा (Current Electricity)
विद्युत धारा का अध्ययन गतिशील आवेशों और उनसे संबंधित परिपथों का विश्लेषण करता है। यह अध्याय व्यावहारिक विद्युत अनुप्रयोगों की नींव है।
विद्युत धारा
विद्युत धारा आवेश प्रवाह की दर को कहते हैं। जब किसी चालक के सिरों पर विभवांतर लगाया जाता है तो मुक्त इलेक्ट्रॉन एक दिशा में गति करने लगते हैं। इस गतिशील आवेश के प्रवाह को विद्युत धारा कहते हैं। धारा का मात्रक एम्पियर है।
जहाँ I = धारा, Q = आवेश, t = समय
ओम का नियम
ओम का नियम कहता है कि स्थिर तापमान पर किसी चालक के सिरों पर लगा विभवांतर उसमें प्रवाहित होने वाली धारा के समानुपाती होता है। यह नियम सभी पदार्थों के लिए मान्य नहीं है। जो पदार्थ ओम के नियम का पालन करते हैं उन्हें ओमीय चालक कहते हैं।
जहाँ V = विभवांतर, I = धारा, R = प्रतिरोध
प्रतिरोध
प्रतिरोध किसी चालक का वह गुण है जो विद्युत धारा के प्रवाह में बाधा उत्पन्न करता है। जब धारा किसी चालक में से प्रवाहित होती है तो चालक के परमाणुओं और मुक्त इलेक्ट्रॉनों के बीच टकराव होता है जिससे ऊर्जा का क्षय होता है और ऊष्मा उत्पन्न होती है। प्रतिरोध का मात्रक ओम होता है।
R = ρL/A
जहाँ ρ = प्रतिरोधकता, L = लंबाई, A = अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल
प्रतिरोधकता
प्रतिरोधकता किसी पदार्थ का विशिष्ट गुण है जो उसकी धारा प्रवाह में बाधा डालने की क्षमता को व्यक्त करता है। यह इकाई लंबाई और इकाई अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल वाले चालक के प्रतिरोध के बराबर होती है। इसका मात्रक ओम-मीटर होता है। प्रतिरोधकता तापमान पर निर्भर करती है और धातुओं में तापमान बढ़ने पर प्रतिरोधकता बढ़ती है।
चालकता
चालकता प्रतिरोधकता का व्युत्क्रम होती है। यह किसी पदार्थ की विद्युत धारा प्रवाहित करने की क्षमता का माप है। उच्च चालकता वाले पदार्थों में धारा आसानी से प्रवाहित होती है। चांदी सबसे अच्छा चालक है परंतु व्यय के कारण तांबे और एल्युमीनियम का अधिक उपयोग होता है। इसका मात्रक सीमेंस प्रति मीटर या ओम⁻¹ मीटर⁻¹ होता है।
अनुगमन वेग
अनुगमन वेग वह औसत वेग है जिससे मुक्त इलेक्ट्रॉन विद्युत क्षेत्र की उपस्थिति में चालक में गति करते हैं। यह वेग बहुत कम होता है, लगभग मिलीमीटर प्रति सेकंड की कोटि का। यद्यपि इलेक्ट्रॉनों का अनुगमन वेग कम है, विद्युत संकेत प्रकाश की गति के लगभग बराबर वेग से संचरित होते हैं।
जहाँ n = मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या घनत्व, e = इलेक्ट्रॉन आवेश
विद्युत धारा घनत्व
विद्युत धारा घनत्व इकाई क्षेत्रफल से लंबवत गुजरने वाली धारा के बराबर होता है। यह एक सदिश राशि है जिसकी दिशा धारा प्रवाह की दिशा में होती है। धारा घनत्व का मात्रक एम्पियर प्रति वर्ग मीटर होता है।
जहाँ J = धारा घनत्व
प्रतिरोधों का संयोजन
प्रतिरोधों को श्रेणीक्रम या समांतर क्रम में जोड़ा जा सकता है। श्रेणीक्रम में तुल्य प्रतिरोध बढ़ जाता है जबकि समांतर क्रम में तुल्य प्रतिरोध कम हो जाता है। प्रतिरोधों के संयोजन का उपयोग वोल्टता विभाजक और धारा विभाजक सर्किट बनाने में होता है।
समांतर क्रम: 1/R = 1/R₁ + 1/R₂ + 1/R₃ + ...
किरचॉफ के नियम
किरचॉफ के नियम विद्युत परिपथों का विश्लेषण करने के लिए दो महत्वपूर्ण नियम हैं। पहला नियम संधि नियम या धारा का नियम है जो आवेश संरक्षण पर आधारित है। इसके अनुसार किसी संधि पर आने वाली धाराओं का योग वहाँ से जाने वाली धाराओं के योग के बराबर होता है। दूसरा नियम लूप नियम या विभव का नियम है जो ऊर्जा संरक्षण पर आधारित है। भौतिकी के प्रश्न पत्रों में किरचॉफ के नियम के अनुप्रयोग अक्सर पूछे जाते हैं।
किरचॉफ का द्वितीय नियम: ΣV = 0 (लूप में)
व्हीटस्टोन सेतु
व्हीटस्टोन सेतु एक विद्युत परिपथ है जिसका उपयोग अज्ञात प्रतिरोध को सटीकता से मापने के लिए किया जाता है। इसमें चार प्रतिरोधों को एक विशेष विन्यास में जोड़ा जाता है। जब सेतु संतुलित होता है तो गैल्वेनोमीटर में कोई धारा नहीं बहती।
मीटर सेतु
मीटर सेतु व्हीटस्टोन सेतु का एक व्यावहारिक रूप है जो एक मीटर लंबे एकसमान तार का उपयोग करता है। इसका उपयोग भी अज्ञात प्रतिरोध मापने के लिए होता है। यह सिद्धांत में व्हीटस्टोन सेतु के समान ही है लेकिन अधिक सुविधाजनक है।
विद्युत वाहक बल
विद्युत वाहक बल या EMF किसी विद्युत स्रोत द्वारा प्रदान की जाने वाली ऊर्जा का माप है। यह स्रोत की वह क्षमता है जो इकाई आवेश को परिपथ में प्रवाहित करने के लिए ऊर्जा प्रदान करती है। जब परिपथ में कोई धारा नहीं बह रही हो तो स्रोत के सिरों के बीच विभवांतर विद्युत वाहक बल के बराबर होता है। इसका मात्रक वोल्ट होता है।
आंतरिक प्रतिरोध
प्रत्येक विद्युत स्रोत का अपना आंतरिक प्रतिरोध होता है। जब स्रोत से धारा प्रवाहित होती है तो आंतरिक प्रतिरोध पर कुछ वोल्टता का क्षय होता है। इसलिए टर्मिनल विभवांतर विद्युत वाहक बल से कम होता है।
जहाँ E = EMF, r = आंतरिक प्रतिरोध, I = धारा
विभवमापी
विभवमापी एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग दो सेलों के विद्युत वाहक बलों की तुलना करने, किसी सेल का आंतरिक प्रतिरोध ज्ञात करने तथा किसी प्रतिरोध के सिरों पर विभवांतर मापने के लिए किया जाता है। यह एक लंबे प्रतिरोध तार पर आधारित होता है जिस पर एकसमान विभव प्रवणता बनाई जाती है। विभवमापी का सिद्धांत यह है कि तार की लंबाई विभवांतर के समानुपाती होती है।
अमीटर
अमीटर वह उपकरण है जो विद्युत परिपथ में प्रवाहित होने वाली धारा को मापता है। इसे सदैव श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है। एक आदर्श अमीटर का प्रतिरोध शून्य होना चाहिए ताकि यह परिपथ की धारा को प्रभावित न करे। व्यावहारिक रूप में अमीटर का प्रतिरोध बहुत कम रखा जाता है।
वोल्टमीटर
वोल्टमीटर वह उपकरण है जो किसी अवयव के सिरों पर विभवांतर मापता है। इसे सदैव समांतर क्रम में जोड़ा जाता है। एक आदर्श वोल्टमीटर का प्रतिरोध अनंत होना चाहिए ताकि यह परिपथ से कोई धारा न लें। व्यावहारिक रूप में वोल्टमीटर का प्रतिरोध बहुत अधिक रखा जाता है।
शंट
शंट एक कम प्रतिरोध है जो गैल्वेनोमीटर के समांतर जोड़ा जाता है ताकि उसे अमीटर में परिवर्तित किया जा सके। शंट गैल्वेनोमीटर में से अधिकांश धारा को निकाल देता है जिससे गैल्वेनोमीटर क्षतिग्रस्त नहीं होता। शंट का मान इस प्रकार चुना जाता है कि अमीटर की परास वांछित मान तक बढ़ जाए।
गुणक
गुणक एक उच्च प्रतिरोध है जो गैल्वेनोमीटर के श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है ताकि उसे वोल्टमीटर में परिवर्तित किया जा सके। गुणक गैल्वेनोमीटर पर लगने वाले अधिकांश विभवांतर को अपने ऊपर ले लेता है। गुणक का मान इस प्रकार चुना जाता है कि वोल्टमीटर की परास वांछित मान तक बढ़ जाए।
3. चुंबकीय प्रभाव और चुंबकत्व
यह अध्याय गतिमान आवेशों और विद्युत धारा द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन करता है। चुंबकत्व विद्युत का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
चुंबकीय क्षेत्र
चुंबकीय क्षेत्र वह स्थान है जहाँ चुंबक या गतिशील आवेश के कारण चुंबकीय बल का अनुभव होता है। चुंबकीय क्षेत्र एक सदिश राशि है जिसे B से निरूपित किया जाता है। इसका मात्रक टेस्ला या वेबर प्रति वर्ग मीटर होता है। चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं द्वारा चुंबकीय क्षेत्र को निरूपित किया जाता है।
चुंबकीय बल
जब कोई आवेशित कण चुंबकीय क्षेत्र में गति करता है तो उस पर एक बल कार्य करता है जिसे चुंबकीय बल कहते हैं। यह बल आवेश के वेग और चुंबकीय क्षेत्र दोनों के लंबवत होता है। यदि आवेश चुंबकीय क्षेत्र के समांतर गति करे तो उस पर कोई बल नहीं लगता।
जहाँ q = आवेश, v = वेग, B = चुंबकीय क्षेत्र, θ = कोण
लॉरेंज बल
जब कोई आवेशित कण विद्युत और चुंबकीय दोनों क्षेत्रों में उपस्थित होता है तो उस पर लगने वाला कुल बल लॉरेंज बल कहलाता है। यह विद्युत बल और चुंबकीय बल का सदिश योग होता है।
फ्लेमिंग का वामहस्त नियम
फ्लेमिंग का वामहस्त नियम चालक पर लगने वाले बल की दिशा ज्ञात करने के लिए उपयोग किया जाता है। इस नियम के अनुसार यदि बाएं हाथ की तर्जनी, मध्यमा और अंगूठे को परस्पर लंबवत फैलाया जाए, तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा, मध्यमा धारा की दिशा बताए तो अंगूठा बल की दिशा बताएगा।
चुंबकीय फ्लक्स
चुंबकीय फ्लक्स किसी पृष्ठ से गुजरने वाली चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की संख्या का माप है। यह चुंबकीय क्षेत्र और पृष्ठ के क्षेत्रफल के लंबवत घटक के गुणनफल के बराबर होता है। इसका मात्रक वेबर होता है।
बायो-सावर्ट का नियम
बायो-सावर्ट का नियम किसी धारावाही चालक के कारण किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र ज्ञात करने के लिए उपयोग किया जाता है। इस नियम के अनुसार धारा अवयव के कारण चुंबकीय क्षेत्र धारा और अवयव की लंबाई के समानुपाती तथा दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
जहाँ μ₀ = 4π × 10⁻⁷ T·m/A (निर्वात की चुंबकशीलता)
एम्पियर का परिपथ नियम
एम्पियर का परिपथ नियम कहता है कि किसी बंद पथ के अनुदिश चुंबकीय क्षेत्र का रेखीय समाकलन उस पथ से परिबद्ध कुल धारा का μ₀ गुना होता है। यह नियम चुंबकीय क्षेत्र ज्ञात करने के लिए बहुत उपयोगी है।
परिनालिका
परिनालिका एक बेलनाकार कुंडली होती है जिसमें तार के अनेक फेरे पास-पास लिपटे होते हैं। जब परिनालिका में धारा प्रवाहित होती है तो इसके अंदर एकसमान चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। परिनालिका का उपयोग विद्युत चुंबक बनाने में होता है।
जहाँ n = प्रति इकाई लंबाई में फेरों की संख्या
वृत्ताकार कुंडली
वृत्ताकार कुंडली के केंद्र पर चुंबकीय क्षेत्र कुंडली की त्रिज्या के व्युत्क्रमानुपाती होता है। एक फेरे की वृत्ताकार कुंडली के केंद्र पर चुंबकीय क्षेत्र का मान बायो-सावर्ट नियम से ज्ञात किया जा सकता है।
जहाँ N = फेरों की संख्या, R = त्रिज्या
चुंबकीय द्विध्रुव
चुंबकीय द्विध्रुव दो समान और विपरीत चुंबकीय ध्रुवों का निकाय है जो छोटी दूरी पर स्थित होते हैं। एक धारावाही कुंडली चुंबकीय द्विध्रुव की तरह व्यवहार करती है। पृथ्वी भी एक विशाल चुंबकीय द्विध्रुव है। भूगोल में पृथ्वी के चुंबकत्व का अध्ययन किया जाता है।
चुंबकीय आघूर्ण
चुंबकीय आघूर्ण चुंबकीय द्विध्रुव की प्रबलता का माप है। धारावाही कुंडली का चुंबकीय आघूर्ण धारा और कुंडली के क्षेत्रफल के गुणनफल के बराबर होता है। इसका मात्रक एम्पियर-वर्ग मीटर होता है।
जहाँ N = फेरों की संख्या, I = धारा, A = क्षेत्रफल
चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता
चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता H वह राशि है जो केवल धारा पर निर्भर करती है, माध्यम पर नहीं। यह चुंबकीय प्रेरण B और माध्यम की चुंबकशीलता के अनुपात के बराबर होती है। इसका मात्रक एम्पियर प्रति मीटर होता है।
चुंबकशीलता
चुंबकशीलता किसी माध्यम का वह गुण है जो यह बताता है कि उस माध्यम में चुंबकीय क्षेत्र कितनी आसानी से स्थापित हो सकता है। निर्वात की चुंबकशीलता μ₀ = 4π × 10⁻⁷ T·m/A होती है। किसी माध्यम की चुंबकशीलता μ = μ₀μᵣ होती है, जहाँ μᵣ सापेक्ष चुंबकशीलता है।
चुंबकीय प्रवृत्ति
चुंबकीय प्रवृत्ति किसी पदार्थ का वह गुण है जो यह बताता है कि वह पदार्थ चुंबकीय क्षेत्र में कितनी आसानी से चुंबकित हो सकता है। यह एक विमाहीन राशि है। धनात्मक प्रवृत्ति अनुचुंबकीय पदार्थों की और ऋणात्मक प्रवृत्ति प्रतिचुंबकीय पदार्थों की विशेषता है।
प्रतिचुंबकत्व
प्रतिचुंबकीय पदार्थ वे पदार्थ हैं जो चुंबकीय क्षेत्र में रखे जाने पर बाह्य चुंबकीय क्षेत्र के विपरीत दिशा में दुर्बल रूप से चुंबकित हो जाते हैं। इनकी चुंबकीय प्रवृत्ति ऋणात्मक और बहुत कम होती है। बिस्मथ, तांबा, सोना आदि प्रतिचुंबकीय पदार्थ हैं।
अनुचुंबकत्व
अनुचुंबकीय पदार्थ वे पदार्थ हैं जो चुंबकीय क्षेत्र में रखे जाने पर बाह्य चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में दुर्बल रूप से चुंबकित हो जाते हैं। इनकी चुंबकीय प्रवृत्ति धनात्मक और कम होती है। एल्युमीनियम, प्लैटिनम आदि अनुचुंबकीय पदार्थ हैं।
लौहचुंबकत्व
लौहचुंबकीय पदार्थ वे पदार्थ हैं जो चुंबकीय क्षेत्र में रखे जाने पर बाह्य चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में प्रबल रूप से चुंबकित हो जाते हैं। इनकी चुंबकीय प्रवृत्ति धनात्मक और बहुत अधिक होती है। लोहा, निकल, कोबाल्ट आदि लौहचुंबकीय पदार्थ हैं। ये स्थायी चुंबक बना सकते हैं।
चुंबकीय शैथिल्य
जब किसी लौहचुंबकीय पदार्थ को चुंबकित और विचुंबकित किया जाता है तो चुंबकीय प्रेरण B और चुंबकीय क्षेत्र H के बीच का ग्राफ एक बंद वक्र बनाता है जिसे शैथिल्य लूप कहते हैं। शैथिल्य का अर्थ है पिछड़ना। यह घटना ऊर्जा क्षय का कारण बनती है।
4. विद्युत चुंबकीय प्रेरण
विद्युत चुंबकीय प्रेरण की घटना में परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र से विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है। यह घटना जनरेटर और ट्रांसफॉर्मर की कार्यप्रणाली का आधार है।
फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण के नियम
फैराडे के नियम विद्युत चुंबकीय प्रेरण की घटना को व्यक्त करते हैं। प्रथम नियम के अनुसार जब किसी बंद कुंडली से गुजरने वाला चुंबकीय फ्लक्स परिवर्तित होता है तो कुंडली में विद्युत वाहक बल प्रेरित होता है। द्वितीय नियम के अनुसार प्रेरित विद्युत वाहक बल का परिमाण चुंबकीय फ्लक्स के परिवर्तन की दर के समानुपाती होता है।
जहाँ ε = प्रेरित EMF, N = फेरों की संख्या, Φ = चुंबकीय फ्लक्स
लेंज का नियम
लेंज का नियम प्रेरित धारा की दिशा निर्धारित करता है। इस नियम के अनुसार प्रेरित धारा की दिशा सदैव ऐसी होती है कि वह अपने कारण का विरोध करती है। यह ऊर्जा संरक्षण के नियम पर आधारित है। फैराडे के नियम में ऋणात्मक चिह्न लेंज के नियम को व्यक्त करता है।
प्रेरित विद्युत वाहक बल
जब किसी बंद परिपथ से संबद्ध चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो परिपथ में विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है जिसे प्रेरित विद्युत वाहक बल कहते हैं। यह विद्युत वाहक बल तब तक बना रहता है जब तक चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता रहता है। प्रेरित विद्युत वाहक बल का मान चुंबकीय फ्लक्स के परिवर्तन की दर पर निर्भर करता है।
स्व-प्रेरण
जब किसी कुंडली में धारा परिवर्तित होती है तो कुंडली से संबद्ध चुंबकीय फ्लक्स भी परिवर्तित होता है। इससे कुंडली में ही एक प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है जो धारा के परिवर्तन का विरोध करता है। इस घटना को स्व-प्रेरण कहते हैं। स्व-प्रेरण के कारण विद्युत परिपथों में जड़त्व उत्पन्न होता है।
जहाँ L = स्व-प्रेरकत्व गुणांक
अन्योन्य प्रेरण
जब दो कुंडलियां एक दूसरे के निकट रखी होती हैं और एक कुंडली में धारा परिवर्तित होती है तो दूसरी कुंडली में विद्युत वाहक बल प्रेरित होता है। इस घटना को अन्योन्य प्रेरण कहते हैं। ट्रांसफॉर्मर अन्योन्य प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।
जहाँ M = अन्योन्य प्रेरकत्व गुणांक
प्रेरकत्व गुणांक
प्रेरकत्व गुणांक किसी कुंडली या दो कुंडलियों के निकाय का वह गुण है जो प्रेरित विद्युत वाहक बल की मात्रा निर्धारित करता है। स्व-प्रेरकत्व गुणांक L और अन्योन्य प्रेरकत्व गुणांक M दोनों का मात्रक हेनरी होता है। प्रेरकत्व कुंडली की ज्यामिति और क्रोड़ की चुंबकशीलता पर निर्भर करता है।
भँवर धारा
जब किसी धात्विक चालक को परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है या चालक को चुंबकीय क्षेत्र में गति कराई जाती है तो चालक में बंद लूप में धाराएं प्रेरित होती हैं जिन्हें भँवर धारा कहते हैं। ये धाराएं ऊर्जा का क्षय करती हैं और ऊष्मा उत्पन्न करती हैं। प्रेरण भट्टी और विद्युत चुंबकीय ब्रेक में भँवर धाराओं का उपयोग होता है। अंग्रेजी में इन्हें Eddy currents कहते हैं।
फ्लेमिंग का दक्षिणहस्त नियम
फ्लेमिंग का दक्षिणहस्त नियम प्रेरित धारा की दिशा ज्ञात करने के लिए उपयोग किया जाता है। इस नियम के अनुसार यदि दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यमा और अंगूठे को परस्पर लंबवत फैलाया जाए, तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा, अंगूठा चालक की गति की दिशा बताए तो मध्यमा प्रेरित धारा की दिशा बताएगी।
5. प्रत्यावर्ती धारा (AC)
प्रत्यावर्ती धारा वह धारा है जिसकी दिशा और परिमाण समय के साथ परिवर्तित होते रहते हैं। यह अध्याय AC परिपथों के विश्लेषण से संबंधित है।
प्रत्यावर्ती धारा
प्रत्यावर्ती धारा वह विद्युत धारा है जिसकी दिशा और परिमाण समय के साथ आवर्त रूप से परिवर्तित होते रहते हैं। भारत में घरेलू विद्युत आपूर्ति 220 वोल्ट और 50 हर्ट्ज आवृत्ति की प्रत्यावर्ती धारा होती है। प्रत्यावर्ती धारा को उत्पन्न करना, संचारित करना और वोल्टता परिवर्तित करना दिष्ट धारा की तुलना में सरल होता है।
v = v₀ sin(ωt)
जहाँ i₀, v₀ = शिखर मान, ω = कोणीय आवृत्ति, f = आवृत्ति
शिखर मान
प्रत्यावर्ती धारा या वोल्टता का अधिकतम मान शिखर मान कहलाता है। प्रत्यावर्ती राशियों के मान समय के साथ परिवर्तित होते रहते हैं और एक आवर्त काल में दो बार शिखर मान प्राप्त करते हैं - एक धनात्मक और एक ऋणात्मक। शिखर मान को वर्ग माध्य मूल मान से √2 गुना अधिक होता है।
औसत मान
प्रत्यावर्ती धारा या वोल्टता का औसत मान एक अर्ध आवर्त काल में उसका औसत मान होता है। ज्या तरंग के लिए औसत मान शिखर मान का 2/π या 0.637 गुना होता है। पूर्ण आवर्त काल में प्रत्यावर्ती धारा का औसत मान शून्य होता है।
वर्ग माध्य मूल मान
वर्ग माध्य मूल मान या RMS मान प्रत्यावर्ती धारा का वह प्रभावी मान है जो उतनी ही ऊष्मा उत्पन्न करता है जितनी उसके बराबर दिष्ट धारा उत्पन्न करती है। ज्या तरंग के लिए RMS मान शिखर मान का 1/√2 या 0.707 गुना होता है। AC मापक यंत्र RMS मान ही दर्शाते हैं।
V_rms = V₀/√2 = 0.707 × V₀
प्रतिघात
AC परिपथ में प्रेरक और संधारित्र भी धारा के प्रवाह में बाधा उत्पन्न करते हैं। प्रेरक और संधारित्र द्वारा धारा प्रवाह में उत्पन्न बाधा को प्रतिघात कहते हैं। प्रतिघात आवृत्ति पर निर्भर करता है। प्रतिघात का मात्रक भी ओम होता है।
प्रेरणिक प्रतिघात
प्रेरक द्वारा AC धारा के प्रवाह में उत्पन्न बाधा को प्रेरणिक प्रतिघात कहते हैं। यह आवृत्ति के समानुपाती होता है। उच्च आवृत्ति पर प्रेरक अधिक प्रतिघात प्रस्तुत करता है। शुद्ध प्रेरक में धारा वोल्टता से 90° पीछे रहती है।
जहाँ L = प्रेरकत्व
धारितीय प्रतिघात
संधारित्र द्वारा AC धारा के प्रवाह में उत्पन्न बाधा को धारितीय प्रतिघात कहते हैं। यह आवृत्ति के व्युत्क्रमानुपाती होता है। उच्च आवृत्ति पर संधारित्र कम प्रतिघात प्रस्तुत करता है। शुद्ध संधारित्र में धारा वोल्टता से 90° आगे रहती है।
जहाँ C = धारिता
प्रतिबाधा
AC परिपथ में प्रतिरोध, प्रेरक और संधारित्र द्वारा धारा प्रवाह में उत्पन्न कुल बाधा को प्रतिबाधा कहते हैं। यह प्रतिरोध और नेट प्रतिघात का सदिश योग होती है। प्रतिबाधा का मात्रक ओम होता है।
V = IZ
शक्ति
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में औसत शक्ति वोल्टता, धारा और शक्ति गुणांक के गुणनफल के बराबर होती है। केवल प्रतिरोध पर ही शक्ति व्यय होती है। शुद्ध प्रेरक और शुद्ध संधारित्र पर औसत शक्ति व्यय शून्य होता है।
जहाँ φ = धारा और वोल्टता के बीच कलांतर
शक्ति गुणांक
शक्ति गुणांक प्रत्यावर्ती परिपथ में वोल्टता और धारा के बीच कलांतर के कोज्या के बराबर होता है। यह वास्तविक शक्ति और आभासी शक्ति का अनुपात है। शुद्ध प्रतिरोधी परिपथ में शक्ति गुणांक 1 होता है जबकि शुद्ध प्रेरक या धारितीय परिपथ में यह शून्य होता है।
अनुनाद
जब AC परिपथ में प्रेरणिक प्रतिघात और धारितीय प्रतिघात बराबर हो जाते हैं तो परिपथ अनुनाद की स्थिति में होता है। अनुनाद पर प्रतिबाधा न्यूनतम और धारा अधिकतम होती है। शक्ति गुणांक एकता होता है। रेडियो और टीवी ट्यूनिंग अनुनाद के सिद्धांत पर आधारित है।
अनुनादी आवृत्ति
वह आवृत्ति जिस पर परिपथ अनुनाद की स्थिति में होता है, अनुनादी आवृत्ति कहलाती है। इस आवृत्ति पर X_L = X_C होता है।
Q-गुणक
Q-गुणक या गुणवत्ता गुणक अनुनादी परिपथ की तीक्ष्णता का माप है। उच्च Q-गुणक का अर्थ है कि परिपथ केवल एक संकीर्ण आवृत्ति परास में अनुनादित होता है। यह संचार तंत्रों में चयनात्मकता के लिए महत्वपूर्ण है।
ट्रांसफॉर्मर
ट्रांसफॉर्मर एक ऐसी युक्ति है जो AC वोल्टता को बढ़ाती या घटाती है। यह अन्योन्य प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है। ट्रांसफॉर्मर में एक क्रोड़ पर दो कुंडलियां होती हैं - प्राथमिक और द्वितीयक। विद्युत संचरण में ट्रांसफॉर्मर अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेखाशास्त्र में विद्युत उपकरणों की लागत गणना में ट्रांसफॉर्मर का ज्ञान उपयोगी है।
उच्चायी ट्रांसफॉर्मर
उच्चायी ट्रांसफॉर्मर वह ट्रांसफॉर्मर है जिसमें द्वितीयक वोल्टता प्राथमिक वोल्टता से अधिक होती है। इसमें द्वितीयक कुंडली में फेरों की संख्या प्राथमिक से अधिक होती है। विद्युत शक्ति स्टेशनों में उच्चायी ट्रांसफॉर्मर का उपयोग होता है।
V_s > V_p
I_s < I_p
अपचायी ट्रांसफॉर्मर
अपचायी ट्रांसफॉर्मर वह ट्रांसफॉर्मर है जिसमें द्वितीयक वोल्टता प्राथमिक वोल्टता से कम होती है। इसमें द्वितीयक कुंडली में फेरों की संख्या प्राथमिक से कम होती है। घरेलू उपयोग के लिए अपचायी ट्रांसफॉर्मर का उपयोग होता है।
V_s < V_p
I_s > I_p
ट्रांसफॉर्मर की दक्षता
ट्रांसफॉर्मर की दक्षता निर्गत शक्ति और निवेश शक्ति के अनुपात के बराबर होती है। एक आदर्श ट्रांसफॉर्मर की दक्षता 100% होती है लेकिन व्यावहारिक ट्रांसफॉर्मर में तांबे की हानि, लौह हानि और भँवर धारा हानि के कारण दक्षता कम हो जाती है। अच्छे ट्रांसफॉर्मर की दक्षता 95% से अधिक होती है।
6. विद्युत चुंबकीय तरंगें
विद्युत चुंबकीय तरंगें वे तरंगें हैं जो विद्युत और चुंबकीय क्षेत्रों के दोलन से बनती हैं और निर्वात में भी संचरित हो सकती हैं।
विद्युत चुंबकीय तरंग
विद्युत चुंबकीय तरंग ऊर्जा का एक रूप है जो परस्पर लंबवत दोलन करते हुए विद्युत और चुंबकीय क्षेत्रों से बनी होती है। ये तरंगें निर्वात में प्रकाश की चाल 3 × 10⁸ m/s से चलती हैं। प्रकाश, रेडियो तरंगें, X-किरणें आदि सभी विद्युत चुंबकीय तरंगें हैं।
मैक्सवेल के समीकरण
मैक्सवेल के चार समीकरण विद्युत चुंबकत्व के मूलभूत नियमों को व्यक्त करते हैं। ये समीकरण हैं - गाउस का नियम विद्युत के लिए, गाउस का नियम चुंबकत्व के लिए, फैराडे का नियम और एम्पियर-मैक्सवेल का नियम। इन समीकरणों से विद्युत चुंबकीय तरंगों के अस्तित्व की भविष्यवाणी हुई थी।
विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम
विद्युत चुंबकीय तरंगों की आवृत्ति या तरंगदैर्ध्य के बढ़ते या घटते क्रम में व्यवस्था को विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम कहते हैं। इसमें रेडियो तरंगों से लेकर गामा किरणों तक सभी प्रकार की विद्युत चुंबकीय तरंगें सम्मिलित हैं। दृश्य प्रकाश इस स्पेक्ट्रम का एक बहुत छोटा भाग है।
रेडियो तरंगें
रेडियो तरंगें विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम में सबसे लंबी तरंगदैर्ध्य वाली तरंगें हैं। इनकी तरंगदैर्ध्य 1 मिलीमीटर से कई किलोमीटर तक हो सकती है। इनका उपयोग रेडियो और टेलीविजन प्रसारण में होता है। AM और FM रेडियो विभिन्न आवृत्तियों की रेडियो तरंगों का उपयोग करते हैं।
सूक्ष्म तरंगें
सूक्ष्म तरंगें या माइक्रोवेव की तरंगदैर्ध्य 1 मिलीमीटर से 1 मीटर तक होती है। इनका उपयोग माइक्रोवेव ओवन, रडार और उपग्रह संचार में होता है। जल के अणु माइक्रोवेव को अवशोषित करते हैं जिससे भोजन गर्म होता है।
अवरक्त विकिरण
अवरक्त विकिरण की तरंगदैर्ध्य दृश्य प्रकाश से अधिक लेकिन माइक्रोवेव से कम होती है। सभी गर्म वस्तुएं अवरक्त विकिरण उत्सर्जित करती हैं। इसका उपयोग रात्रि दृष्टि उपकरण, रिमोट कंट्रोल और ऊष्मा लैंप में होता है। अवरक्त विकिरण को ऊष्मा विकिरण भी कहते हैं।
पराबैंगनी विकिरण
पराबैंगनी विकिरण की तरंगदैर्ध्य दृश्य प्रकाश से कम लेकिन X-किरणों से अधिक होती है। सूर्य पराबैंगनी विकिरण का प्रमुख स्रोत है। पृथ्वी का ओजोन परत अधिकांश हानिकारक पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित कर लेती है। पराबैंगनी विकिरण का उपयोग जीवाणु नाशक के रूप में होता है।
X-किरणें
X-किरणें उच्च ऊर्जा वाली विद्युत चुंबकीय तरंगें हैं जो अधिकांश पदार्थों को भेद सकती हैं। इनका उपयोग चिकित्सा में शरीर के आंतरिक भागों की तस्वीरें लेने में होता है। X-किरणें तब उत्पन्न होती हैं जब उच्च गतिज ऊर्जा के इलेक्ट्रॉन धातु से टकराते हैं। जीव विज्ञान में X-किरणों का उपयोग शरीर रचना समझने में होता है।
गामा किरणें
गामा किरणें विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम में सबसे छोटी तरंगदैर्ध्य और सबसे अधिक ऊर्जा वाली तरंगें हैं। ये रेडियोधर्मी नाभिकों से उत्सर्जित होती हैं। गामा किरणें अत्यधिक भेदन क्षमता रखती हैं और जीवित कोशिकाओं को नष्ट कर सकती हैं। इनका उपयोग कैंसर उपचार में होता है।
7. किरण प्रकाशिकी (Ray Optics)
किरण प्रकाशिकी में प्रकाश को सीधी रेखाओं में चलने वाली किरणों के रूप में माना जाता है। यह ज्यामितीय प्रकाशिकी भी कहलाती है।
प्रकाश का परावर्तन
जब प्रकाश किसी पृष्ठ से टकराकर उसी माध्यम में वापस लौट आता है तो इस घटना को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं। परावर्तन समतल और वक्र दोनों प्रकार के पृष्ठों से हो सकता है। परावर्तन के दो नियम हैं जो सभी पृष्ठों के लिए मान्य हैं।
परावर्तन का नियम
परावर्तन के दो नियम हैं। प्रथम नियम के अनुसार आपतित किरण, परावर्तित किरण और अभिलंब तीनों एक ही तल में होती हैं। द्वितीय नियम के अनुसार आपतन कोण और परावर्तन कोण बराबर होते हैं। ये नियम सभी प्रकार के पृष्ठों के लिए सत्य हैं।
जहाँ i = आपतन कोण, r = परावर्तन कोण
गोलीय दर्पण
गोलीय दर्पण वे दर्पण हैं जिनका परावर्तक पृष्ठ गोले के भाग के रूप में होता है। ये दो प्रकार के होते हैं - अवतल और उत्तल। गोलीय दर्पणों में प्रमुख बिंदु होते हैं - ध्रुव, वक्रता केंद्र, मुख्य फोकस और प्रधान अक्ष।
अवतल दर्पण
अवतल दर्पण वह दर्पण है जिसका परावर्तक पृष्ठ अंदर की ओर वक्रित होता है। यह प्रकाश किरणों को अभिसरित करता है। अवतल दर्पण का उपयोग टॉर्च, गाड़ी की हेडलाइट, शेविंग दर्पण और दंत चिकित्सा में होता है। अवतल दर्पण वास्तविक और आभासी दोनों प्रकार के प्रतिबिंब बना सकता है।
उत्तल दर्पण
उत्तल दर्पण वह दर्पण है जिसका परावर्तक पृष्ठ बाहर की ओर वक्रित होता है। यह प्रकाश किरणों को अपसरित करता है। उत्तल दर्पण सदैव आभासी, सीधा और छोटा प्रतिबिंब बनाता है। इसका दृष्टि क्षेत्र बड़ा होता है इसलिए इसका उपयोग वाहनों के पीछे देखने वाले दर्पण के रूप में होता है।
फोकस दूरी
मुख्य फोकस और दर्पण के ध्रुव के बीच की दूरी को फोकस दूरी कहते हैं। यह वक्रता त्रिज्या की आधी होती है। अवतल दर्पण के लिए फोकस दूरी ऋणात्मक और उत्तल दर्पण के लिए धनात्मक ली जाती है।
जहाँ f = फोकस दूरी, R = वक्रता त्रिज्या
दर्पण सूत्र
दर्पण सूत्र वस्तु की दूरी, प्रतिबिंब की दूरी और फोकस दूरी के बीच संबंध व्यक्त करता है। यह सूत्र सभी गोलीय दर्पणों के लिए मान्य है।
जहाँ u = वस्तु दूरी, v = प्रतिबिंब दूरी
आवर्धन
आवर्धन प्रतिबिंब की ऊंचाई और वस्तु की ऊंचाई के अनुपात को कहते हैं। यह प्रतिबिंब दूरी और वस्तु दूरी के अनुपात के भी बराबर होता है। ऋणात्मक आवर्धन उल्टा प्रतिबिंब और धनात्मक आवर्धन सीधा प्रतिबिंब दर्शाता है।
जहाँ h' = प्रतिबिंब की ऊंचाई, h = वस्तु की ऊंचाई
अपवर्तन
अपवर्तन प्रकाश की वह घटना है जिसमें प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाते समय अपनी दिशा परिवर्तित कर लेता है। जब प्रकाश विरल माध्यम से सघन माध्यम में प्रवेश करता है तो अभिलंब की ओर मुड़ जाता है और जब सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाता है तो अभिलंब से दूर मुड़ जाता है।
अपवर्तनांक
अपवर्तनांक किसी माध्यम का वह गुण है जो प्रकाश के उस माध्यम में वेग को निर्धारित करता है। यह निर्वात में प्रकाश के वेग और माध्यम में प्रकाश के वेग का अनुपात होता है। जल का अपवर्तनांक लगभग 1.33, कांच का लगभग 1.5 और हीरे का लगभग 2.42 होता है।
जहाँ c = 3 × 10⁸ m/s (निर्वात में प्रकाश की चाल)
स्नेल का नियम
स्नेल का नियम या अपवर्तन का नियम प्रकाश के अपवर्तन को गणितीय रूप से व्यक्त करता है। इस नियम के अनुसार आपतन कोण की ज्या और अपवर्तन कोण की ज्या का अनुपात दोनों माध्यमों के लिए नियतांक होता है।
या ₁n₂ = n₂/n₁ = sin θ₁ / sin θ₂
पूर्ण आंतरिक परावर्तन
जब प्रकाश सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाता है और आपतन कोण क्रांतिक कोण से अधिक हो तो प्रकाश पूर्णतः परावर्तित हो जाता है। इस घटना को पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहते हैं। इसी सिद्धांत पर प्रकाशीय तंतु कार्य करते हैं।
क्रांतिक कोण
क्रांतिक कोण वह आपतन कोण है जिसके लिए अपवर्तन कोण 90° होता है। इससे अधिक आपतन कोण पर पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है। क्रांतिक कोण माध्यमों के अपवर्तनांकों पर निर्भर करता है।
लेंस
लेंस पारदर्शी माध्यम का बना एक प्रकाशीय उपकरण है जिसका एक या दोनों पृष्ठ वक्रित होते हैं। लेंस दो प्रकार के होते हैं - अवतल और उत्तल। लेंसों का उपयोग चश्मा, कैमरा, सूक्ष्मदर्शी और दूरदर्शी में होता है।
अवतल लेंस
अवतल लेंस या अपसारी लेंस किनारों पर मोटा और बीच में पतला होता है। यह प्रकाश किरणों को अपसरित करता है। अवतल लेंस सदैव आभासी, सीधा और छोटा प्रतिबिंब बनाता है। इसका उपयोग निकट दृष्टि दोष को दूर करने में होता है।
उत्तल लेंस
उत्तल लेंस या अभिसारी लेंस बीच में मोटा और किनारों पर पतला होता है। यह प्रकाश किरणों को अभिसरित करता है। उत्तल लेंस वास्तविक और आभासी दोनों प्रकार के प्रतिबिंब बना सकता है। इसका उपयोग दूर दृष्टि दोष को दूर करने में होता है।
लेंस सूत्र
लेंस सूत्र वस्तु की दूरी, प्रतिबिंब की दूरी और फोकस दूरी के बीच संबंध व्यक्त करता है। यह सूत्र दोनों प्रकार के लेंसों के लिए मान्य है।
लेंस की क्षमता
लेंस की क्षमता उसकी प्रकाश किरणों को अभिसरित या अपसरित करने की योग्यता का माप है। यह फोकस दूरी के व्युत्क्रम के बराबर होती है। इसका मात्रक डाइऑप्टर है। उत्तल लेंस की क्षमता धनात्मक और अवतल लेंस की क्षमता ऋणात्मक होती है।
प्रिज्म
प्रिज्म पारदर्शी माध्यम का बना एक प्रकाशीय उपकरण है जिसके दो समतल पृष्ठ एक दूसरे के सापेक्ष कोण बनाते हैं। जब श्वेत प्रकाश प्रिज्म से गुजरता है तो यह विभिन्न रंगों में विभक्त हो जाता है। प्रिज्म का उपयोग स्पेक्ट्रम बनाने और प्रकाश की दिशा परिवर्तित करने में होता है।
विक्षेपण
जब श्वेत प्रकाश किसी प्रिज्म से गुजरता है तो वह विभिन्न रंगों में विभक्त हो जाता है। इस घटना को प्रकाश का विक्षेपण कहते हैं। विभिन्न रंगों के लिए अपवर्तनांक अलग-अलग होता है इसलिए वे अलग-अलग कोणों पर मुड़ते हैं। बैंगनी रंग सबसे अधिक और लाल रंग सबसे कम मुड़ता है।
वर्ण विपथन
लेंसों में विभिन्न रंगों के प्रकाश के लिए फोकस दूरी अलग-अलग होती है जिसके कारण प्रतिबिंब के चारों ओर रंगीन किनारे दिखाई देते हैं। इस दोष को वर्ण विपथन या रंगीन विपथन कहते हैं। इसे दूर करने के लिए दो विभिन्न पदार्थों के लेंसों का संयोजन उपयोग किया जाता है।
गोलीय विपथन
गोलीय लेंस या दर्पण के किनारे और केंद्र से आने वाली किरणें एक बिंदु पर नहीं मिलतीं। इस दोष को गोलीय विपथन कहते हैं। इसके कारण प्रतिबिंब धुंधला हो जाता है। इस दोष को कम करने के लिए लेंस या दर्पण के किनारों को अवरुद्ध कर दिया जाता है। हिंदी में इसे गोलीय विपथन कहते हैं।
8. तरंग प्रकाशिकी (Wave Optics)
तरंग प्रकाशिकी में प्रकाश को तरंग के रूप में माना जाता है। यह प्रकाश की उन घटनाओं को समझाता है जिन्हें किरण प्रकाशिकी नहीं समझा सकती।
प्रकाश का व्यतिकरण
जब दो समान आवृत्ति और नियत कलांतर की प्रकाश तरंगें एक दूसरे पर अध्यारोपित होती हैं तो कुछ स्थानों पर तीव्रता अधिकतम और कुछ स्थानों पर न्यूनतम हो जाती है। इस घटना को प्रकाश का व्यतिकरण कहते हैं। यह घटना प्रकाश की तरंग प्रकृति को सिद्ध करती है।
यंग का द्विझिरी प्रयोग
यंग ने 1801 में द्विझिरी प्रयोग द्वारा प्रकाश में व्यतिकरण प्रदर्शित किया और प्रकाश की तरंग प्रकृति सिद्ध की। इस प्रयोग में एकवर्णी प्रकाश को दो संकीर्ण झिरियों से गुजारा जाता है और पर्दे पर उज्ज्वल और अंधकार की एकांतर पट्टियां प्राप्त होती हैं।
जहाँ β = फ्रिंज चौड़ाई, λ = तरंगदैर्ध्य, D = पर्दे की दूरी, d = झिरियों के बीच दूरी
विवर्तन
जब प्रकाश किसी अवरोध के किनारे से गुजरता है या किसी छोटे छिद्र से गुजरता है तो यह अवरोध की ज्यामितीय छाया में मुड़ जाता है। इस घटना को प्रकाश का विवर्तन कहते हैं। विवर्तन प्रकाश की तरंग प्रकृति को प्रदर्शित करता है। विवर्तन का प्रभाव तब अधिक होता है जब अवरोध या छिद्र का आकार तरंगदैर्ध्य की कोटि का हो।
ध्रुवण
अनुप्रस्थ तरंगों में कंपन किसी विशेष दिशा में सीमित करने की घटना को ध्रुवण कहते हैं। साधारण प्रकाश में विद्युत क्षेत्र सभी दिशाओं में कंपन करता है। जब इसे किसी विशेष दिशा में सीमित कर दिया जाता है तो प्रकाश ध्रुवित हो जाता है। ध्रुवण केवल अनुप्रस्थ तरंगों में संभव है इसलिए यह प्रकाश की अनुप्रस्थ तरंग प्रकृति सिद्ध करता है।
ब्रूस्टर का नियम
ब्रूस्टर के नियम के अनुसार जब प्रकाश किसी पारदर्शी माध्यम के पृष्ठ पर एक विशेष कोण पर आपतित होता है तो परावर्तित प्रकाश पूर्णतः ध्रुवित हो जाता है। इस कोण को ध्रुवण कोण या ब्रूस्टर कोण कहते हैं।
जहाँ i_p = ध्रुवण कोण, n = अपवर्तनांक
मालस का नियम
मालस का नियम ध्रुवित प्रकाश की तीव्रता और विश्लेषक के कोण के बीच संबंध व्यक्त करता है। इस नियम के अनुसार ध्रुवित प्रकाश की तीव्रता विश्लेषक के कोण के कोज्या के वर्ग के समानुपाती होती है।
जहाँ θ = ध्रुवक और विश्लेषक के बीच कोण
रेले प्रकीर्णन
जब प्रकाश वायुमंडल में छोटे कणों से टकराता है तो यह सभी दिशाओं में फैल जाता है। इस घटना को प्रकीर्णन कहते हैं। रेले के अनुसार प्रकीर्णन की तीव्रता तरंगदैर्ध्य के चतुर्थ घात के व्युत्क्रमानुपाती होती है। इसी कारण आकाश नीला दिखाई देता है क्योंकि नीले प्रकाश की तरंगदैर्ध्य कम होती है और यह अधिक प्रकीर्णित होता है।
9. विकिरण की द्विक प्रकृति
यह अध्याय प्रकाश और द्रव्य की दोहरी प्रकृति का अध्ययन करता है। प्रकाश कभी तरंग की तरह और कभी कण की तरह व्यवहार करता है।
फोटॉन
फोटॉन प्रकाश या विद्युत चुंबकीय विकिरण का मूलभूत कण है। यह ऊर्जा का एक क्वांटम है जो प्रकाश की वेग से चलता है और जिसका विराम द्रव्यमान शून्य होता है। प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा उसकी आवृत्ति के समानुपाती होती है।
जहाँ h = 6.626 × 10⁻³⁴ J·s (प्लांक स्थिरांक)
प्लांक स्थिरांक
प्लांक स्थिरांक क्वांटम यांत्रिकी का मूलभूत नियतांक है जो फोटॉन की ऊर्जा और आवृत्ति को संबंधित करता है। इसका मान 6.626 × 10⁻³⁴ जूल-सेकंड होता है। यह नियतांक मैक्स प्लांक द्वारा 1900 में कृष्णिका विकिरण की व्याख्या के लिए प्रस्तुत किया गया था।
प्रकाश विद्युत प्रभाव
प्रकाश विद्युत प्रभाव वह घटना है जिसमें जब उपयुक्त आवृत्ति का प्रकाश किसी धातु की सतह पर पड़ता है तो धातु से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं। ये उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन प्रकाश इलेक्ट्रॉन कहलाते हैं। यह घटना प्रकाश की कण प्रकृति को सिद्ध करती है। हाइनरिक हर्ट्ज ने सर्वप्रथम 1887 में इस प्रभाव का प्रेक्षण किया था।
आइंस्टीन का प्रकाश विद्युत समीकरण
अल्बर्ट आइंस्टीन ने 1905 में प्रकाश विद्युत प्रभाव की व्याख्या के लिए फोटॉन सिद्धांत प्रस्तुत किया। उनके अनुसार प्रकाश ऊर्जा के छोटे-छोटे पैकेटों यानी फोटॉनों के रूप में चलता है। जब एक फोटॉन धातु के परमाणु से टकराता है तो अपनी पूरी ऊर्जा इलेक्ट्रॉन को दे देता है।
या K.E.max = hν - hν₀
K.E.max = eV₀
कार्य फलन
कार्य फलन धातु का वह गुण है जो धातु की सतह से इलेक्ट्रॉन को मुक्त करने के लिए आवश्यक न्यूनतम ऊर्जा को व्यक्त करता है। विभिन्न धातुओं के लिए कार्य फलन भिन्न-भिन्न होता है। सोडियम और पोटैशियम जैसी क्षार धातुओं का कार्य फलन कम होता है जबकि चांदी और प्लैटिनम जैसी धातुओं का कार्य फलन अधिक होता है।
देहली आवृत्ति
देहली आवृत्ति वह न्यूनतम आवृत्ति है जिसके प्रकाश से किसी विशेष धातु से प्रकाश इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं। इससे कम आवृत्ति के प्रकाश से चाहे उसकी तीव्रता कितनी भी अधिक क्यों न हो, प्रकाश इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं होते। देहली आवृत्ति धातु के कार्य फलन से संबंधित होती है।
निरोधी विभव
निरोधी विभव वह न्यूनतम ऋणात्मक विभव है जो प्रकाश इलेक्ट्रॉनों को एनोड तक पहुंचने से रोक देता है। यह अधिकतम गतिज ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉनों को भी रोकने में सक्षम होता है। निरोधी विभव आपतित प्रकाश की आवृत्ति पर निर्भर करता है लेकिन तीव्रता पर नहीं।
दे ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य
लुई दे ब्रॉग्ली ने 1924 में प्रस्तावित किया कि यदि प्रकाश कण की तरह व्यवहार कर सकता है तो द्रव्य भी तरंग की तरह व्यवहार कर सकता है। उन्होंने किसी कण से संबद्ध तरंग की तरंगदैर्ध्य का सूत्र दिया।
जहाँ p = संवेग, m = द्रव्यमान, v = वेग
द्रव्य तरंगें
दे ब्रॉग्ली की परिकल्पना के अनुसार गतिशील कणों से संबद्ध तरंगों को द्रव्य तरंगें कहते हैं। ये तरंगें केवल गतिशील कणों से संबद्ध होती हैं, स्थिर कणों से नहीं। इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन आदि सभी कणों में तरंग गुण होते हैं। राजनीति विज्ञान में नहीं लेकिन भौतिकी में द्रव्य तरंगें महत्वपूर्ण हैं।
तरंग-कण द्वैतता
प्रकाश और द्रव्य दोनों में तरंग और कण दोनों के गुण होते हैं। कभी वे तरंग की तरह व्यवहार करते हैं और कभी कण की तरह। इस गुण को तरंग-कण द्वैतता कहते हैं। व्यतिकरण और विवर्तन में प्रकाश तरंग की तरह व्यवहार करता है जबकि प्रकाश विद्युत प्रभाव में कण की तरह।
डेविसन-जर्मर प्रयोग
1927 में डेविसन और जर्मर ने इलेक्ट्रॉनों के साथ विवर्तन प्रयोग करके दे ब्रॉग्ली की परिकल्पना को प्रयोगात्मक रूप से सिद्ध किया। उन्होंने निकल क्रिस्टल से इलेक्ट्रॉनों का विवर्तन प्राप्त किया जो यह सिद्ध करता है कि इलेक्ट्रॉनों में तरंग गुण होते हैं।
कॉम्पटन प्रभाव
जब उच्च ऊर्जा की X-किरणें किसी पदार्थ से प्रकीर्णित होती हैं तो प्रकीर्णित X-किरणों की तरंगदैर्ध्य आपतित X-किरणों की तरंगदैर्ध्य से अधिक हो जाती है। इस घटना को कॉम्पटन प्रभाव कहते हैं। यह प्रभाव प्रकाश की कण प्रकृति को सिद्ध करता है। कॉम्पटन ने इसे फोटॉन और इलेक्ट्रॉन के बीच प्रत्यास्थ टक्कर मानकर समझाया।
10. परमाणु संरचना
यह अध्याय परमाणु की संरचना और परमाणु स्पेक्ट्रम का अध्ययन करता है। परमाणु की समझ आधुनिक भौतिकी का आधार है।
रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल
अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने 1911 में α-कण प्रकीर्णन प्रयोग के आधार पर परमाणु का नाभिकीय मॉडल प्रस्तुत किया। इस मॉडल के अनुसार परमाणु का संपूर्ण धनात्मक आवेश और लगभग संपूर्ण द्रव्यमान एक अत्यंत छोटे केंद्रीय भाग में केंद्रित होता है जिसे नाभिक कहते हैं। इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर वृत्ताकार कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं।
α-कण प्रकीर्णन
रदरफोर्ड ने α-कणों को स्वर्ण की पतली पन्नी पर टकराया और पाया कि अधिकांश α-कण बिना विक्षेपित हुए सीधे निकल जाते हैं, कुछ कण छोटे कोणों पर विक्षेपित होते हैं और बहुत कम कण बड़े कोणों पर यहाँ तक कि 180° पर भी विक्षेपित होते हैं। इससे परमाणु की नाभिकीय संरचना का पता चला।
नाभिक का आकार
परमाणु नाभिक का आकार अत्यंत छोटा होता है। नाभिक की त्रिज्या 10⁻¹⁵ मीटर या 1 फर्मी की कोटि की होती है जबकि परमाणु की त्रिज्या 10⁻¹⁰ मीटर की कोटि की होती है। इसका अर्थ है कि परमाणु का अधिकांश भाग खाली है। नाभिक में प्रोटॉन और न्यूट्रॉन होते हैं।
बोर का परमाणु मॉडल
नील्स बोर ने 1913 में परमाणु का एक नया मॉडल प्रस्तुत किया जो हाइड्रोजन परमाणु के स्पेक्ट्रम की सफलतापूर्वक व्याख्या करता है। बोर के मॉडल के अनुसार इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर केवल निश्चित कक्षाओं में ही घूमते हैं जिन्हें स्थायी कक्षाएं कहते हैं। इन कक्षाओं में घूमते हुए इलेक्ट्रॉन ऊर्जा का विकिरण नहीं करते।
बोर ने तीन मूलभूत अभिगृहीत प्रस्तुत किए। प्रथम, इलेक्ट्रॉन केवल उन्हीं कक्षाओं में चक्कर लगा सकते हैं जिनका कोणीय संवेग ħ/2π का पूर्ण गुणज हो। द्वितीय, इन स्थायी कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा नियत रहती है। तृतीय, जब इलेक्ट्रॉन एक कक्षा से दूसरी कक्षा में जाता है तो ऊर्जा का उत्सर्जन या अवशोषण फोटॉन के रूप में होता है।
हाइड्रोजन परमाणु
हाइड्रोजन परमाणु सबसे सरल परमाणु है जिसमें एक प्रोटॉन और एक इलेक्ट्रॉन होता है। बोर के मॉडल ने हाइड्रोजन परमाणु के स्पेक्ट्रम की सफल व्याख्या की। हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम में कई श्रेणियां होती हैं जैसे लाइमन श्रेणी, बामर श्रेणी, पाशन श्रेणी आदि। प्रत्येक श्रेणी इलेक्ट्रॉन के एक विशेष ऊर्जा स्तर पर संक्रमण से संबंधित होती है।
ऊर्जा स्तर
बोर के मॉडल के अनुसार परमाणु में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा केवल निश्चित मान ही ले सकती है। ये निश्चित ऊर्जा मान ऊर्जा स्तर कहलाते हैं। प्रत्येक ऊर्जा स्तर को एक क्वांटम संख्या n द्वारा निरूपित किया जाता है। n = 1 के लिए ऊर्जा न्यूनतम होती है और यह आधार अवस्था कहलाती है।
r_n = n² × 0.529 Å
क्वांटम संख्या
क्वांटम संख्याएं वे संख्याएं हैं जो परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की अवस्था और गुणों को निर्धारित करती हैं। चार प्रकार की क्वांटम संख्याएं होती हैं। मुख्य क्वांटम संख्या n कक्षा के आकार और ऊर्जा को निर्धारित करती है। दिगंशी क्वांटम संख्या l कक्षा के आकार को दर्शाती है। चुंबकीय क्वांटम संख्या m कक्षा के अभिविन्यास को बताती है। चक्रण क्वांटम संख्या s इलेक्ट्रॉन के चक्रण को व्यक्त करती है।
राइडबर्ग स्थिरांक
राइडबर्ग स्थिरांक हाइड्रोजन परमाणु के स्पेक्ट्रम में विभिन्न वर्णक्रम रेखाओं की तरंगदैर्ध्य से संबंधित एक भौतिक नियतांक है। इसका मान 1.097 × 10⁷ प्रति मीटर होता है।
जहाँ R = राइडबर्ग स्थिरांक
11. नाभिकीय भौतिकी
नाभिकीय भौतिकी परमाणु नाभिक की संरचना, गुणों और परमाणु नाभिक में होने वाली विभिन्न प्रक्रियाओं का अध्ययन करती है।
परमाणु संख्या
किसी तत्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या को परमाणु संख्या कहते हैं। इसे Z से निरूपित किया जाता है। परमाणु संख्या तत्व की रासायनिक प्रकृति निर्धारित करती है। उदाहरण के लिए हाइड्रोजन की परमाणु संख्या 1, कार्बन की 6 और ऑक्सीजन की 8 है।
द्रव्यमान संख्या
किसी तत्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों की कुल संख्या को द्रव्यमान संख्या कहते हैं। इसे A से निरूपित किया जाता है। किसी नाभिक को इस प्रकार निरूपित किया जाता है।
जहाँ X = तत्व का प्रतीक
न्यूट्रॉनों की संख्या = A - Z
समस्थानिक
समस्थानिक एक ही तत्व के वे परमाणु हैं जिनकी परमाणु संख्या समान परंतु द्रव्यमान संख्या भिन्न होती है। इनमें प्रोटॉनों की संख्या समान लेकिन न्यूट्रॉनों की संख्या भिन्न होती है। उदाहरण के लिए हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक हैं - प्रोटियम, ड्यूटीरियम और ट्रिटियम।
समभारिक
समभारिक वे परमाणु हैं जिनकी द्रव्यमान संख्या समान परंतु परमाणु संख्या भिन्न होती है। ये विभिन्न तत्वों के परमाणु होते हैं। उदाहरण के लिए ₁₈Ar⁴⁰ और ₂₀Ca⁴⁰ समभारिक हैं।
समन्यूट्रॉनिक
समन्यूट्रॉनिक वे परमाणु हैं जिनमें न्यूट्रॉनों की संख्या समान परंतु परमाणु संख्या और द्रव्यमान संख्या भिन्न होती है। उदाहरण के लिए ₆C¹⁴ और ₇N¹⁵ समन्यूट्रॉनिक हैं क्योंकि दोनों में 8 न्यूट्रॉन हैं।
द्रव्यमान क्षति
जब प्रोटॉन और न्यूट्रॉन मिलकर नाभिक बनाते हैं तो नाभिक का द्रव्यमान उनके पृथक द्रव्यमानों के योग से कम होता है। इस अंतर को द्रव्यमान क्षति कहते हैं। यह द्रव्यमान ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है जो नाभिक को स्थायित्व प्रदान करती है।
जहाँ M = नाभिक का द्रव्यमान
बंधन ऊर्जा
नाभिक की बंधन ऊर्जा वह ऊर्जा है जो नाभिक को उसके न्यूक्लिओनों में पृथक करने के लिए आवश्यक होती है। यह द्रव्यमान क्षति से आइंस्टीन के समीकरण E = mc² द्वारा संबंधित होती है। अधिक बंधन ऊर्जा वाले नाभिक अधिक स्थायी होते हैं।
रेडियोसक्रियता
कुछ तत्वों के नाभिक अस्थायी होते हैं और स्वतः ही α, β या γ विकिरण उत्सर्जित करके अधिक स्थायी नाभिक में परिवर्तित हो जाते हैं। इस घटना को रेडियोसक्रियता कहते हैं। हेनरी बेकेरल ने 1896 में रेडियोसक्रियता की खोज की थी। मैरी क्यूरी और पियरे क्यूरी ने रेडियोसक्रियता पर महत्वपूर्ण कार्य किया। गृह विज्ञान में रेडियोसक्रियता के स्वास्थ्य प्रभाव महत्वपूर्ण हैं।
α-क्षय
α-क्षय में नाभिक एक α-कण उत्सर्जित करता है। α-कण हीलियम का नाभिक होता है जिसमें 2 प्रोटॉन और 2 न्यूट्रॉन होते हैं। α-क्षय के बाद परमाणु संख्या 2 से और द्रव्यमान संख्या 4 से कम हो जाती है।
β-क्षय
β-क्षय में नाभिक एक β-कण उत्सर्जित करता है। β-कण तीव्र गति के इलेक्ट्रॉन या पॉजिट्रॉन होते हैं। β⁻ क्षय में एक न्यूट्रॉन प्रोटॉन में बदल जाता है और इलेक्ट्रॉन तथा प्रति-न्यूट्रिनो उत्सर्जित होते हैं। परमाणु संख्या 1 बढ़ जाती है लेकिन द्रव्यमान संख्या अपरिवर्तित रहती है।
γ-क्षय
γ-क्षय में नाभिक उच्च ऊर्जा की विद्युत चुंबकीय तरंगें उत्सर्जित करता है जिन्हें γ-किरणें कहते हैं। γ-क्षय से परमाणु संख्या और द्रव्यमान संख्या अपरिवर्तित रहती है, केवल नाभिक की ऊर्जा कम होती है। γ-क्षय प्रायः α या β क्षय के साथ होता है।
अर्ध आयु
किसी रेडियोसक्रिय पदार्थ की अर्ध आयु वह समय है जिसमें उसकी प्रारंभिक मात्रा का आधा भाग क्षय हो जाता है। विभिन्न रेडियोसक्रिय पदार्थों की अर्ध आयु भिन्न-भिन्न होती है। यूरेनियम-238 की अर्ध आयु 4.5 बिलियन वर्ष है जबकि कुछ समस्थानिकों की अर्ध आयु कुछ सेकंड ही होती है।
जहाँ T₁/₂ = अर्ध आयु
नाभिकीय विखंडन
नाभिकीय विखंडन में एक भारी नाभिक दो या अधिक हल्के नाभिकों में विभाजित हो जाता है। इस प्रक्रिया में विशाल मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है। यूरेनियम-235 के विखंडन से लगभग 200 MeV ऊर्जा मुक्त होती है। परमाणु बम और नाभिकीय रिएक्टर विखंडन पर आधारित हैं।
नाभिकीय संलयन
नाभिकीय संलयन में दो हल्के नाभिक संयुक्त होकर एक भारी नाभिक बनाते हैं। इस प्रक्रिया में भी विशाल मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है। सूर्य और तारों में ऊर्जा संलयन अभिक्रियाओं से उत्पन्न होती है। हाइड्रोजन बम संलयन पर आधारित है। संलयन के लिए बहुत उच्च तापमान आवश्यक होता है।
श्रृंखला अभिक्रिया
जब एक नाभिक का विखंडन अन्य नाभिकों के विखंडन का कारण बनता है तो यह श्रृंखला अभिक्रिया कहलाती है। यदि प्रत्येक विखंडन से उत्सर्जित न्यूट्रॉन कम से कम एक और विखंडन उत्पन्न करें तो अभिक्रिया आत्मनिर्भर हो जाती है। नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया नाभिकीय रिएक्टर में और अनियंत्रित परमाणु बम में होती है।
नाभिकीय रिएक्टर
नाभिकीय रिएक्टर वह युक्ति है जिसमें नियंत्रित नाभिकीय विखंडन श्रृंखला अभिक्रिया द्वारा ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। रिएक्टर में ईंधन (यूरेनियम-235), मंदक (भारी जल या ग्रेफाइट), नियंत्रक छड़ें (कैडमियम या बोरान), और शीतलक होते हैं। विश्व में अनेक देश विद्युत उत्पादन के लिए नाभिकीय रिएक्टरों का उपयोग करते हैं।
12. अर्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी
अर्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों की नींव है। यह अध्याय अर्धचालकों और उन पर आधारित युक्तियों का अध्ययन करता है।
अर्धचालक
अर्धचालक वे पदार्थ हैं जिनकी विद्युत चालकता चालकों और कुचालकों के बीच होती है। सिलिकॉन और जर्मेनियम सबसे अधिक उपयोग होने वाले अर्धचालक हैं। अर्धचालकों की चालकता तापमान बढ़ाने, प्रकाश डालने या अशुद्धि मिलाने से बढ़ाई जा सकती है। कृषि जीव विज्ञान में नहीं लेकिन इलेक्ट्रॉनिकी में अर्धचालक अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
आंतरिक अर्धचालक
शुद्ध अर्धचालक को आंतरिक अर्धचालक कहते हैं। इनमें इलेक्ट्रॉन और होल की संख्या समान होती है। शुद्ध सिलिकॉन और जर्मेनियम आंतरिक अर्धचालक के उदाहरण हैं। आंतरिक अर्धचालकों की चालकता बहुत कम होती है।
बाह्य अर्धचालक
जब शुद्ध अर्धचालक में नियंत्रित मात्रा में अशुद्धि मिलाई जाती है तो उसे बाह्य अर्धचालक कहते हैं। अशुद्धि मिलाने की इस प्रक्रिया को डोपिंग कहते हैं। बाह्य अर्धचालक दो प्रकार के होते हैं - n-प्रकार और p-प्रकार।
n-प्रकार अर्धचालक
जब शुद्ध अर्धचालक में पंचसंयोजक अशुद्धि जैसे फास्फोरस, आर्सेनिक या एंटिमनी मिलाई जाती है तो n-प्रकार का अर्धचालक बनता है। इसमें इलेक्ट्रॉन बहुसंख्यक आवेश वाहक और होल अल्पसंख्यक आवेश वाहक होते हैं।
p-प्रकार अर्धचालक
जब शुद्ध अर्धचालक में त्रिसंयोजक अशुद्धि जैसे बोरॉन, एल्युमीनियम या गैलियम मिलाई जाती है तो p-प्रकार का अर्धचालक बनता है। इसमें होल बहुसंख्यक आवेश वाहक और इलेक्ट्रॉन अल्पसंख्यक आवेश वाहक होते हैं।
p-n संधि डायोड
p-n संधि डायोड एक अर्धचालक युक्ति है जो केवल एक दिशा में धारा प्रवाहित होने देती है। यह p-प्रकार और n-प्रकार के अर्धचालकों को जोड़कर बनाया जाता है। जब इसे अग्र अभिनत किया जाता है तो यह धारा प्रवाहित करता है और पश्च अभिनत करने पर धारा नहीं प्रवाहित होती है।
अपवाह क्षेत्र
p-n संधि पर p-क्षेत्र से होल और n-क्षेत्र से इलेक्ट्रॉन विसरित होकर पुनर्संयोजन करते हैं। इससे संधि के पास एक क्षेत्र बनता है जिसमें गतिशील आवेश वाहक नहीं होते। इस क्षेत्र को अपवाह क्षेत्र कहते हैं। यह क्षेत्र विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है जो आगे विसरण को रोकता है।
अग्र अभिनति
जब p-n संधि डायोड के p-क्षेत्र को धनात्मक और n-क्षेत्र को ऋणात्मक टर्मिनल से जोड़ा जाता है तो इसे अग्र अभिनति कहते हैं। अग्र अभिनति में अपवाह क्षेत्र की चौड़ाई कम हो जाती है और डायोड में धारा प्रवाहित होती है। अग्र अभिनति में डायोड का प्रतिरोध बहुत कम होता है।
पश्च अभिनति
जब p-n संधि डायोड के p-क्षेत्र को ऋणात्मक और n-क्षेत्र को धनात्मक टर्मिनल से जोड़ा जाता है तो इसे पश्च अभिनति कहते हैं। पश्च अभिनति में अपवाह क्षेत्र की चौड़ाई बढ़ जाती है और डायोड में धारा प्रवाहित नहीं होती। पश्च अभिनति में डायोड का प्रतिरोध बहुत अधिक होता है।
जेनर डायोड
जेनर डायोड एक विशेष प्रकार का p-n संधि डायोड है जो पश्च अभिनति में एक निश्चित वोल्टता पर टूट जाता है और धारा प्रवाहित करने लगता है। इस वोल्टता को जेनर वोल्टता कहते हैं। जेनर डायोड का उपयोग वोल्टता नियमन में होता है।
प्रकाश उत्सर्जक डायोड
प्रकाश उत्सर्जक डायोड या LED एक विशेष प्रकार का p-n संधि डायोड है जो अग्र अभिनति में प्रकाश उत्सर्जित करता है। जब इलेक्ट्रॉन और होल पुनर्संयोजन करते हैं तो ऊर्जा फोटॉनों के रूप में मुक्त होती है। LED का उपयोग डिस्प्ले, संकेतक लैंप और प्रकाश स्रोत के रूप में होता है।
ट्रांजिस्टर
ट्रांजिस्टर तीन टर्मिनल वाली अर्धचालक युक्ति है जो संकेतों को प्रवर्धित करती है। यह तीन परतों से बना होता है - उत्सर्जक, आधार और संग्राहक। दो प्रकार के ट्रांजिस्टर होते हैं - npn और pnp। ट्रांजिस्टर का उपयोग प्रवर्धक, दोलित्र और स्विच के रूप में होता है।
उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास
उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास ट्रांजिस्टर का सबसे अधिक उपयोग होने वाला विन्यास है। इसमें उत्सर्जक निवेश और निर्गत दोनों परिपथों के लिए उभयनिष्ठ होता है। यह विन्यास उच्च वोल्टता और धारा प्रवर्धन प्रदान करता है। इसका उपयोग अधिकांश प्रवर्धक परिपथों में होता है।
प्रवर्धक
प्रवर्धक वह परिपथ है जो दुर्बल संकेत को प्रबल संकेत में परिवर्तित करता है। ट्रांजिस्टर आधारित प्रवर्धक में निवेश संकेत आधार-उत्सर्जक परिपथ में लगाया जाता है और प्रवर्धित संकेत संग्राहक-उत्सर्जक परिपथ से प्राप्त होता है। प्रवर्धक का उपयोग रेडियो, टेलीविजन और ऑडियो सिस्टम में होता है।
दोलित्र
दोलित्र वह परिपथ है जो DC स्रोत से AC संकेत उत्पन्न करता है। यह बिना किसी निवेश के आवर्त संकेत उत्पन्न करता है। दोलित्र में प्रवर्धक और धनात्मक पुनर्निवेश होता है। दोलित्र का उपयोग रेडियो ट्रांसमीटर, संकेत जनरेटर और घड़ियों में होता है।
लॉजिक गेट
लॉजिक गेट डिजिटल परिपथों के मूलभूत निर्माण खंड हैं। ये द्विआधारी संख्याओं पर तार्किक संक्रियाएं करते हैं। मूलभूत लॉजिक गेट हैं - AND, OR, NOT। इनके संयोजन से NAND, NOR, XOR आदि बनाए जाते हैं। लॉजिक गेट कंप्यूटर और सभी डिजिटल सिस्टम का आधार हैं।
AND गेट
AND गेट का निर्गत तभी 1 होता है जब सभी निवेश 1 हों। यदि कोई भी निवेश 0 हो तो निर्गत 0 होता है। AND गेट तार्किक गुणन करता है।
OR गेट
OR गेट का निर्गत तभी 1 होता है जब कम से कम एक निवेश 1 हो। केवल तभी निर्गत 0 होता है जब सभी निवेश 0 हों। OR गेट तार्किक योग करता है।
NOT गेट
NOT गेट निवेश को उलट देता है। यदि निवेश 0 हो तो निर्गत 1 और यदि निवेश 1 हो तो निर्गत 0 होता है। NOT गेट को इन्वर्टर भी कहते हैं।
NAND गेट
NAND गेट AND गेट के बाद NOT गेट लगाने से बनता है। इसका निर्गत AND गेट के निर्गत का व्युत्क्रम होता है। NAND गेट सार्वत्रिक गेट है क्योंकि इससे सभी अन्य गेट बनाए जा सकते हैं।
NOR गेट
NOR गेट OR गेट के बाद NOT गेट लगाने से बनता है। इसका निर्गत OR गेट के निर्गत का व्युत्क्रम होता है। NOR गेट भी सार्वत्रिक गेट है।
13. संचार व्यवस्था
संचार व्यवस्था सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने की प्रक्रिया है। यह अध्याय विभिन्न संचार विधियों और उनके सिद्धांतों का अध्ययन करता है।
संकेत
संकेत वह भौतिक राशि है जो सूचना को वहन करती है। संकेत दो प्रकार के होते हैं - एनालॉग और डिजिटल। एनालॉग संकेत सतत रूप से परिवर्तित होते हैं जबकि डिजिटल संकेत असतत मान लेते हैं। ध्वनि और प्रकाश एनालॉग संकेत के उदाहरण हैं।
मॉडुलन
मॉडुलन वह प्रक्रिया है जिसमें निम्न आवृत्ति के संकेत की सूचना को उच्च आवृत्ति की वाहक तरंग पर अध्यारोपित किया जाता है। मॉडुलन आवश्यक है क्योंकि निम्न आवृत्ति के संकेतों को लंबी दूरी तक संचरित नहीं किया जा सकता। मॉडुलन तीन प्रकार का होता है - आयाम मॉडुलन, आवृत्ति मॉडुलन और कला मॉडुलन।
आयाम मॉडुलन
आयाम मॉडुलन में वाहक तरंग का आयाम संदेश संकेत के अनुसार परिवर्तित होता है जबकि आवृत्ति और कला नियत रहती है। AM रेडियो प्रसारण आयाम मॉडुलन का उपयोग करता है। आयाम मॉडुलन सरल है लेकिन शोर के प्रति संवेदनशील है।
आवृत्ति मॉडुलन
आवृत्ति मॉडुलन में वाहक तरंग की आवृत्ति संदेश संकेत के अनुसार परिवर्तित होती है जबकि आयाम नियत रहता है। FM रेडियो प्रसारण आवृत्ति मॉडुलन का उपयोग करता है। आवृत्ति मॉडुलन शोर के प्रति कम संवेदनशील है और उच्च गुणवत्ता का संकेत प्रदान करता है।
विमॉडुलन
विमॉडुलन या अनमॉडुलन वह प्रक्रिया है जिसमें मॉडुलित तरंग से मूल संदेश संकेत को पुनः प्राप्त किया जाता है। यह प्रक्रिया रिसीवर में होती है। विमॉडुलन के लिए डायोड डिटेक्टर का उपयोग किया जाता है।
बैंडविड्थ
बैंडविड्थ आवृत्तियों की वह परास है जो किसी संकेत या चैनल में उपस्थित होती है। यह उच्चतम और न्यूनतम आवृत्ति के अंतर के बराबर होती है। अधिक बैंडविड्थ अधिक सूचना संचरण की क्षमता प्रदान करती है। AM रेडियो की बैंडविड्थ लगभग 10 kHz और FM की लगभग 200 kHz होती है।
एंटीना
एंटीना वह युक्ति है जो विद्युत संकेतों को विद्युत चुंबकीय तरंगों में और विद्युत चुंबकीय तरंगों को विद्युत संकेतों में परिवर्तित करती है। ट्रांसमीटर में एंटीना संकेतों को विकिरित करता है और रिसीवर में एंटीना संकेतों को ग्रहण करता है। एंटीना की लंबाई तरंगदैर्ध्य के अनुसार चुनी जाती है।
प्रसारण
प्रसारण वह प्रक्रिया है जिसमें संकेतों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक संचरित किया जाता है। प्रसारण विभिन्न माध्यमों से हो सकता है - तार, प्रकाशीय तंतु, विद्युत चुंबकीय तरंगें आदि। रेडियो और टेलीविजन प्रसारण विद्युत चुंबकीय तरंगों द्वारा होता है। व्यवसाय अध्ययन में संचार व्यवस्था का महत्व समझना आवश्यक है।
शोर
शोर वे अवांछित संकेत हैं जो मूल संकेत में मिल जाते हैं और संचार की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। शोर विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न हो सकता है - वायुमंडलीय विद्युत, मानव निर्मित स्रोत, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आदि। शोर को पूर्णतः समाप्त नहीं किया जा सकता लेकिन कम किया जा सकता है।
संकेत से शोर अनुपात
संकेत से शोर अनुपात संकेत की शक्ति और शोर की शक्ति का अनुपात होता है। यह संचार की गुणवत्ता का माप है। उच्च संकेत से शोर अनुपात बेहतर संचार गुणवत्ता दर्शाता है। इसे डेसिबल में मापा जाता है। अच्छी संचार व्यवस्था में यह अनुपात अधिक होना चाहिए।
कक्षा 12 भौतिकी की इन 185+ अवधारणाओं का गहन अध्ययन RBSE बोर्ड परीक्षाओं और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में अत्यंत महत्वपूर्ण है। छात्रों को इन सभी अवधारणाओं का सैद्धांतिक और व्यावहारिक दोनों पहलुओं से अध्ययन करना चाहिए।
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