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शुंग और कण्व वंश – ब्राह्मणवादी पुनरुत्थान और प्राचीन भारत पर प्रभाव

शुंग और कण्व वंश – ब्राह्मणवादी पुनरुत्थान

परिचय

शुंग और कण्व वंश, मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने वाले शासक वंश थे। शुंग वंश (185 ईसा पूर्व – 73 ईसा पूर्व) ने मगध और मध्य भारत पर शासन किया, जबकि कण्व वंश (73 ईसा पूर्व – 30 ईसा पूर्व) ने शुंगों का उत्तराधिकार संभाला। इन दोनों वंशों के शासनकाल में ब्राह्मणवादी परंपराओं का पुनरुत्थान हुआ, जो बौद्ध और जैन प्रभाव को कमजोर करने की दिशा में एक बड़ा कदम था।


शुंग वंश (185 ईसा पूर्व – 73 ईसा पूर्व)

स्थापना और प्रमुख शासक

  • शुंग वंश की स्थापना पुष्यमित्र शुंग ने 185 ईसा पूर्व में अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ मौर्य की हत्या कर की थी।
  • पुष्यमित्र शुंग एक ब्राह्मण सेनापति था, जिसने बौद्ध धर्म के संरक्षण की नीति को पलटकर ब्राह्मणवाद को पुनः स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू की।
  • शुंग राजवंश के प्रमुख शासक:
    • पुष्यमित्र शुंग (185-149 ईसा पूर्व) – इसने कई यज्ञ किए, जैसे अश्वमेध यज्ञ, और वैदिक परंपराओं को पुनर्जीवित किया।
    • अग्निमित्र शुंग (149-141 ईसा पूर्व) – यह पुष्यमित्र का पुत्र था, जिसके शासन में सांस्कृतिक विकास हुआ।
    • भगभद्र शुंग – इसने भारत पर यूनानी आक्रमणों को रोका।

प्रमुख विशेषताएँ

  • ब्राह्मणवाद का पुनरुत्थान – पुष्यमित्र शुंग ने बौद्ध धर्म के प्रभाव को कम करने और वैदिक परंपराओं को फिर से स्थापित करने के लिए कई धार्मिक अनुष्ठान कराए।
  • संस्कृति और कला का उत्थान – इस काल में वैदिक धर्म से जुड़ी मूर्तिकला और स्थापत्य कला का विकास हुआ।
  • संघर्ष और विस्तार – शुंगों ने यूनानियों, शक, और आंध्र राजाओं के साथ युद्ध किए और उत्तर भारत में अपनी सत्ता मजबूत की।
  • पटलिपुत्र और विदिशा केंद्र – शुंगों की राजधानी पटलिपुत्र थी और उन्होंने विदिशा को भी एक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित किया।

शुंग काल की प्रमुख उपलब्धियाँ

  1. संस्कृत साहित्य – इस युग में संस्कृत भाषा का पुनर्जागरण हुआ और महाकाव्यों की रचना शुरू हुई।
  2. वैदिक अनुष्ठानों की पुनर्स्थापना – राजा पुष्यमित्र शुंग ने कई वैदिक अनुष्ठान करवाए, जिनमें अश्वमेध यज्ञ भी शामिल था।
  3. बौद्ध प्रभाव में कमी – बौद्ध धर्म के अनुयायियों पर प्रतिबंध लगाए गए और बौद्ध मठों पर हमले किए गए।
  4. कला और स्थापत्य – इस काल में साँची स्तूप का पुनर्निर्माण हुआ और कई हिंदू मंदिर बनाए गए।

कण्व वंश (73 ईसा पूर्व – 30 ईसा पूर्व)

स्थापना और प्रमुख शासक

  • कण्व वंश की स्थापना शुंगों के अंतिम शासक देवभूति शुंग की हत्या के बाद वासुदेव कण्व ने की थी।
  • कण्व वंश के शासक:
    • वासुदेव कण्व (73-64 ईसा पूर्व) – शुंग वंश को समाप्त कर कण्व वंश की नींव रखी।
    • भौमिवर्मन कण्व (64-40 ईसा पूर्व) – जिसने दक्षिण भारत तक कण्वों के प्रभाव को बढ़ाया।
    • नारायण कण्व (40-30 ईसा पूर्व) – अंतिम कण्व शासक, जिसकी हार के बाद कण्व वंश समाप्त हो गया।

प्रमुख विशेषताएँ

  • शुंगों की नीतियों का अनुसरण – कण्वों ने ब्राह्मणवाद के उत्थान को जारी रखा और शुंगों द्वारा स्थापित नीतियों को आगे बढ़ाया।
  • संस्कृति और साहित्य – इस काल में संस्कृत ग्रंथों का पुनरुद्धार हुआ और महाकाव्यों की रचना को बढ़ावा मिला।
  • दक्षिण भारत से संबंध – कण्व वंश के शासकों ने दक्षिण भारतीय राज्यों के साथ संबंध बनाए और व्यापार को बढ़ावा दिया।

कण्व काल की प्रमुख उपलब्धियाँ

  1. धार्मिक अनुष्ठान और यज्ञों का आयोजन
  2. ब्राह्मणवादी व्यवस्था का संरक्षण और विस्तार
  3. वैदिक शिक्षाओं का प्रचार और गुरुकुल प्रणाली का पुनर्निर्माण
  4. मौर्य प्रशासन प्रणाली का संरक्षण और न्यायिक व्यवस्था में सुधार

ब्राह्मणवादी पुनरुत्थान के प्रभाव

  • बौद्ध धर्म के प्रभाव में कमी – शुंग और कण्व वंश के दौरान बौद्ध धर्म का प्रभाव उत्तरी भारत में कम हुआ।
  • वर्ण व्यवस्था का पुनर्स्थापन – समाज में पुनः चार वर्णों का सख्ती से पालन होने लगा।
  • वैदिक रीति-रिवाजों का पुनरुद्धार – मंदिर निर्माण, यज्ञ और अन्य वैदिक परंपराएँ पुनः शुरू हुईं।
  • हिंदू धर्म का पुनर्जागरण – मंदिर निर्माण, मूर्ति पूजा और शास्त्रीय ग्रंथों की पुनरावृत्ति हुई।

निष्कर्ष

शुंग और कण्व वंश का शासनकाल भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने मौर्य साम्राज्य के बौद्ध प्रभाव के बाद ब्राह्मणवाद को पुनः स्थापित किया। इस दौरान वैदिक परंपराओं को पुनर्जीवित किया गया, संस्कृत साहित्य को बढ़ावा मिला और समाज में वर्ण व्यवस्था को पुनः सुदृढ़ किया गया। हालांकि, बौद्ध धर्म पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ, लेकिन उसकी स्थिति अपेक्षाकृत कमजोर हो गई।


प्रमुख स्रोत और संदर्भ

  1. रोमिला थापर – अर्ली इंडिया: फ्रॉम द ओरिजिंस टू एडी 1300
  2. डी.एन. झा – एंशिएंट इंडिया
  3. उपिंदर सिंह – अ हिस्ट्री ऑफ एंशिएंट एंड अर्ली मिडिवल इंडिया
  4. ए.एल. बाशम – द वंडर दैट वाज़ इंडिया

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