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महाराणा प्रताप: एक वैश्विक प्रेरणा | अंतरराष्ट्रीय मीडिया व शोध में उल्लेख

महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के उन महान योद्धाओं में से एक हैं जिनकी वीरता, स्वाभिमान और स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता सदैव प्रेरणास्त्रोत रही है। उनका जन्म 9 मई 1540 के राजा थे। वे अपने घोड़े चेतक के साथ हल्दीघाटी युद्ध (1576) में मुगल सम्राट अकबर की विशाल सेना से भिड़ गए। यह युद्ध भले ही निर्णायक न रहा हो, लेकिन महाराणा प्रताप की दृढ़ता और स्वाभिमान की गूंज पूरे भारत में गूंजी। उन्होंने जीवनभर अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और जंगलों-पहाड़ों में रहकर भी स्वराज्य के लिए संघर्ष करते रहे। आज महाराणा प्रताप को भारत में स्वाभिमान और स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। उनके साहस, त्याग और आत्मबलिदान की गाथा प्रत्येक पीढ़ी को राष्ट्रप्रेम की प्रेरणा देती है।

🌍 महाराणा प्रताप: वैश्विक सम्मान और भारतीय गौरव

प्रस्तावना:
महाराणा प्रताप न केवल राजस्थान, बल्कि सम्पूर्ण भारत के लिए गौरव का प्रतीक हैं। उनकी निष्ठा, स्वाभिमान और स्वतंत्रता के प्रति अडिग भावना ने उन्हें इतिहास के पन्नों में अमर कर दिया। इस लेख में हम उनके अद्भुत योगदान के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय जगत में उनकी प्रतिष्ठा का विश्लेषण करेंगे।


📘 विषय सूची (Table of Contents)


⚔ महाराणा प्रताप बनाम अकबर

विशेषतामहाराणा प्रतापअकबर
राजनीतिस्वराज-आधारितविस्तारवादी साम्राज्य
रणनीतिगुरिल्ला युद्धखुला युद्ध
संधि की नीतिइन्कारराजनीतिक विवाह
लक्ष्यमातृभूमि रक्षासाम्राज्य विस्तार

🌍 अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण

  • The Times of India (UK Edition) ने लिखा – "India’s Mountain Lion Who Never Bowed".
  • Harvard South Asia Institute: हल्दीघाटी युद्ध को 'self-determination battle' करार दिया गया।
  • BBC Hindi: प्रताप को भारत के Thermopylae युद्ध से तुलना करते हुए सम्मानित किया।

📜 इतिहास में महाराणा प्रताप का स्थान

हल्दीघाटी का युद्ध केवल एक युद्ध नहीं था, वह आत्मसम्मान की ज्वाला थी। चेतक जैसे घोड़े की वीरता हो या अपने वंश का मान बचाने की भावना, महाराणा प्रताप की कहानी आज भी भारतीयों के हृदय में धड़कती है।


💬 प्रेरणादायक उद्धरण

"महाराणा प्रताप की तलवार सिर्फ़ अस्त्र नहीं थी, वह भारत की आत्मा की प्रतीक थी।"
— पं. नेहरू, 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया'

🔗 संदर्भ (References)


📢 क्या आप महाराणा प्रताप की गाथा को अधिक जानना चाहते हैं?

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🛡️ महाराणा प्रताप बनाम अकबर: एक ऐतिहासिक तुलनात्मक विश्लेषण

📌 भूमिका

भारतीय इतिहास में दो महान शख्सियतें – महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर – अक्सर परस्पर विरोधी आदर्शों और संघर्ष के प्रतीक माने जाते हैं। यह लेख उनके जीवन, मूल्य और उपलब्धियों की तुलना प्रस्तुत करता है।

विशेषताएँ महाराणा प्रताप अकबर
जन्म 9 मई 1540, कुम्भलगढ़ 15 अक्टूबर 1542, अमरकोट
राज्य मेवाड़ (राजस्थान) मुगल साम्राज्य
मुख्य मूल्य स्वतंत्रता, स्वाभिमान, राष्ट्रप्रेम साम्राज्यवाद, उदारता, संगठन
महत्वपूर्ण युद्ध हल्दीघाटी का युद्ध (1576) हल्दीघाटी का युद्ध (प्रतिनिधि: मान सिंह)
रणनीति गुरिल्ला युद्ध, जनसहयोग संगठित सेना, नीति कौशल
धार्मिक नीति हिंदू परंपराओं का पालन सर्वधर्म समभाव (दीन-ए-इलाही)
मृत्यु 29 जनवरी 1597 27 अक्टूबर 1605

🎯 निष्कर्ष

जहाँ अकबर एक कुशल शासक और प्रशासक थे, वहीं महाराणा प्रताप आत्मबल, स्वतंत्रता और गौरव के प्रतीक हैं। महाराणा प्रताप का नाम भारतीय इतिहास को गौरवान्वित करता है और नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत है।

कविता: पातल’र पीथल

✍️ कवि: कन्हैयालाल सेठिया

अरे घास री रोटी ही जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो।
नान्हो सो अमरयो चीख पड्यो राणा रो सोयो दुख जाग्यो।
हूं लड्यो घणो हूं सह्यो घणो मेवाड़ी मान बचावण नै,
हूं पाछ नहीं राखी रण में बैर्यां री खात खिडावण में,
जद याद करूँ हळदीघाटी नैणां में रगत उतर आवै,
सुख दुख रो साथी चेतकड़ो सूती सी हूक जगा ज्यावै,

पण आज बिलखतो देखूं हूँ जद राज कंवर नै रोटी नै,
तो क्षात्र-धरम नै भूलूं हूँ भूलूं हिंदवाणी चोटी नै
मैं लां में छप्पन भोग जका मनवार बिनां करता कोनी,
सोनै री थाल्यां नीलम रै बाजोट बिनां धरता कोनी,
अै हाय जका करता पगल्या फूलां री कंवळी सेजां पर,
बै आज रुळै भूखा तिसिया हिंदवाणै सूरज रा टाबर,

आ सोच हुई दो टूक तड़क राणा री भीम बजर छाती,
आंख्यां में आंसू भर बोल्या मैं लिखस्यूं अकबर नै पाती,
पण लिखूं कियां जद देखै है आडावळ ऊंचो हियो लियां,
चितौड़ खड्यो है मगरां में विकराळ भूत सी लियां छियां,
मैं झुकूं कियां ? है आण मनै कुळ रा केसरिया बानां री,
मैं बुझूं कियां ? हूं सेस लपट आजादी रै परवानां री,

(मींझर)

🗡️ महाराणा प्रताप – शौर्य की अमर गाथा 🐎

राणा प्रताप! वीर महान,
शौर्य तुझ पर करे जहान सम्मान।
घोड़ा चेतक, तलवार बाण,
मातृभूमि पर तू हुआ बलिदान।।

अरावली की छांव में पला,
दुश्मन से तू कभी न डरा।
मुगलों को जो दे दी टक्कर,
धरती बोली – "धन्य है बेटा मेरा!"

हल्दीघाटी की रण भूमि,
गूंजे अब भी शेरों की ध्वनि।
चेतक के संग किया तूने युद्ध,
अमर हुआ तेरा प्रत्येक वचन।।

सिंहासन छोड़ा, जंगल वरण,
पर स्वतंत्रता रही तुझे वरण।
स्वाभिमान की बुनियाद तू,
राणा प्रताप, वीरता का प्रमाण तू।।

इतिहास में नाम तेरा अमर,
प्रेरणा दे हर नर और नारी को।
भारत माता तुझ पर नाज़ करे,
प्रणाम है राणा, बलिदान को।।

✍️ प्रेरणास्पद कविता – Sarkari Service Prep™

⚔️ हल्दीघाटी युद्ध: वास्तविक ऐतिहासिक चित्रण

हल्दीघाटी युद्ध

📜 युद्ध की पृष्ठभूमि

महाराणा प्रताप ने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। अकबर ने कई दूत भेजे, परंतु राणा प्रताप का आत्मसम्मान झुकने को तैयार नहीं था।

🛡️ सेनाओं की संरचना

  • महाराणा प्रताप: 3000 घुड़सवार, 400 भील धनुर्धारी, अफगान योद्धा, भीमा शाह, झाला मान सिंह जैसे सेनापति।
  • मुगल सेना: 10000 सैनिक, नेतृत्व राजा मान सिंह, आसफ खान, सैयद अहमद खान आदि।

⚔️ युद्ध का विवरण

18 जून 1576 को हल्दीघाटी में युद्ध हुआ। महाराणा ने पहला आक्रमण किया। झाला मान सिंह ने राणा की जगह लेकर बलिदान दिया। चेतक ने घायल प्रताप को बचाया।

📉 युद्ध का परिणाम

मुगलों ने युद्धस्थल पर कब्जा किया लेकिन राणा प्रताप को पकड़ न सके। बाद में राणा ने गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से पुनः मेवाड़ को स्वतंत्र कराया।

🏞️ वर्तमान में युद्धस्थल

  • रक्त तलाई
  • चेतक स्मारक
  • महाराणा प्रताप स्मारक

🎥 वीडियो लिंक

हल्दीघाटी युद्ध की असली कहानी

📌 निष्कर्ष:

हल्दीघाटी का युद्ध सिर्फ एक रण नहीं था, वह एक विचार था स्वतंत्रता का, सम्मान का और स्वाभिमान का। महाराणा प्रताप भारत के इतिहास में अमर रहेंगे।

🌍 अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण में महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप का नाम केवल भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कुछ प्रतिष्ठित विद्वानों, इतिहासकारों और पत्रकारों द्वारा भी उच्च सम्मान प्राप्त कर चुका है। हालाँकि प्रत्यक्ष वैश्विक शोध सीमित हैं, फिर भी कुछ अंतरराष्ट्रीय स्रोतों और विद्वानों ने उनके योगदान को सराहा है।

1. James Tod (ब्रिटिश अधिकारी एवं इतिहासकार)

"Annals and Antiquities of Rajasthan" में James Tod ने महाराणा प्रताप को भारत के सबसे सच्चे, साहसी और स्वतंत्रता प्रेमी योद्धाओं में से एक बताया। उन्होंने प्रताप को एक ऐसा नेता कहा जो अपनी मातृभूमि के लिए किसी भी बलिदान को तैयार था।

2. European Scholars' View

कई यूरोपीय विद्वानों ने भारतीय स्वतंत्रता की भावना के इतिहास में महाराणा प्रताप को 'Indian Leonidas' (ग्रीक योद्धा) की उपमा दी है। यह उपमा उनके आत्मबलिदान और आखिरी सांस तक लड़ने की क्षमता को उजागर करती है।

3. UNESCO and Cultural Documentation

UNESCO के कुछ सांस्कृतिक दस्तावेजों में भारतीय विरासत को दर्शाने वाले उदाहरणों में महाराणा प्रताप और हल्दीघाटी युद्ध को ऐतिहासिक सांस्कृतिक संघर्ष के रूप में दर्शाया गया है।

📰 अंतरराष्ट्रीय मीडिया में उल्लेख

  • The Guardian (UK): एक ऐतिहासिक विश्लेषण लेख में भारतीय वीरता के प्रतीक के रूप में महाराणा प्रताप का उल्लेख किया गया।
  • Smithsonian Magazine (US): मुगलों के विरुद्ध क्षेत्रीय प्रतिरोध की कहानियों में महाराणा प्रताप की रणनीतिक चतुराई की सराहना की गई।
  • BBC History: भारत में स्वतंत्रता की ऐतिहासिक जड़ों की चर्चा करते हुए प्रताप को आदर्श प्रतीक बताया गया।

📚 निष्कर्ष

महाराणा प्रताप भारत के स्वाभिमान, शौर्य और संघर्ष का प्रतीक हैं। उनका वैश्विक दृष्टिकोण में उल्लेख भले ही सीमित रहा हो, लेकिन जहाँ हुआ है, वहाँ उन्होंने वीरता की मिसाल पेश की है। भारतीय इतिहास में उनका स्थान अमिट है, और अब विश्व भी धीरे-धीरे उनके योगदान को स्वीकार कर रहा है।


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🌟 महाराणा प्रताप की वास्तविक जन्मतिथि: इतिहास और महत्व

📅 तिथि: 9 मई 1540

📍 जन्म स्थान: कुम्भलगढ़ दुर्ग, मेवाड़ (वर्तमान राजस्थान)

📖 वार: शनिवार

🕉️ पंचांग तिथि: ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की तृतीया — जिसे हम अक्षय तृतीया भी कहते हैं।

📝 इतिहासकारों की मान्यता

इतिहासकारों और ज्योतिष विद्वानों के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को हुआ था। उनकी यह जन्मतिथि ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन्होंने मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए अद्वितीय संघर्ष किया।

🎉 महाराणा प्रताप जयंती

अक्षय तृतीया के दिन प्रतिवर्ष महाराणा प्रताप जयंती मनाई जाती है। इस दिन राजस्थान सरकार सहित अनेक संगठनों द्वारा विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

📚 ऐतिहासिक प्रमाण

  • कुम्भलगढ़ दुर्ग के शिलालेख और राजपरिवार की वंशावली में स्पष्ट उल्लेख
  • राजस्थान राज्य अभिलेखागार, उदयपुर की दस्तावेज़ी जानकारी
  • पंडित चतुर्भुज शर्मा एवं ओझा जी की ऐतिहासिक लेखनी

💡 क्यों महत्वपूर्ण है यह तिथि?

यह तिथि हमें वीरता, स्वाभिमान और स्वतंत्रता के अद्वितीय प्रतीक महाराणा प्रताप के जन्म का स्मरण कराती है। यह नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

📌 क्या आप जानते हैं?

महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान के ऐसे दुर्ग में हुआ था, जो कभी अजेय माना जाता था — कुम्भलगढ़। इसकी दीवार चीन की दीवार के बाद दूसरी सबसे लंबी दीवार है।


🔗 आगे पढ़ें:

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महाराणा प्रताप: वीरता, स्वाभिमान और स्वतंत्रता का प्रतीक

महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के उन अमर योद्धाओं में से एक हैं जिनकी वीरता, स्वाभिमान और मातृभूमि के प्रति अटूट प्रेम के किस्से सदियों से जन-जन के हृदय में बसते आए हैं। उन्होंने कभी मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की और अपने जीवन भर मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया।


🟡 प्रारंभिक जीवन

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को कुम्भलगढ़ दुर्ग (राजस्थान) में हुआ था। उनके पिता महाराणा उदयसिंह द्वितीय और माता राणी जीवत कंवर थीं। बचपन से ही प्रताप साहसी, स्वाभिमानी और पराक्रमी थे।

🟡 संघर्ष और राज्यारोहण

1572 ई. में महाराणा प्रताप मेवाड़ के राजा बने। उस समय पूरा भारत मुगल सम्राट अकबर के अधीन होता जा रहा था। लेकिन प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। उन्होंने मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।

🟡 हल्दीघाटी का युद्ध (1576)

यह युद्ध भारतीय इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय है। यह 18 जून, 1576 को मेवाड़ और अकबर की सेना के बीच लड़ा गया था। अकबर की ओर से राजा मानसिंह ने सेना का नेतृत्व किया था। प्रताप की सेना भले ही संख्या में कम थी, लेकिन उनके साहस और युद्ध कौशल ने इतिहास रच दिया। उनका प्रिय घोड़ा चेतक भी इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ।

🟡 जीवन का अंतिम चरण

महाराणा प्रताप ने अपने जीवन का अंतिम भाग भी मुगलों से संघर्ष करते हुए व्यतीत किया। उन्होंने अपने राज्य का अधिकतर भाग पुनः प्राप्त किया। 19 जनवरी 1597 को उनकी मृत्यु चावंड में हुई।

🟢 महाराणा प्रताप की शिक्षाएँ

  • स्वतंत्रता सर्वोच्च मूल्य है।
  • स्वाभिमान और आत्मसम्मान की रक्षा हर कीमत पर करें।
  • धैर्य और संघर्ष की शक्ति से किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है।
  • देश की सेवा सर्वोपरि है।

🧠 रोचक तथ्य

  • महाराणा प्रताप की ऊंचाई लगभग 7 फीट मानी जाती है।
  • वे 80 किलो के भाले और 72 किलो की ढाल धारण करते थे।
  • उन्होंने जीवन भर घास की रोटी खाई लेकिन आत्मसम्मान से समझौता नहीं किया।

📌 निष्कर्ष

महाराणा प्रताप केवल एक योद्धा नहीं, बल्कि भारतवर्ष की आत्मा थे। उनका जीवन हमें साहस, नेतृत्व और दृढ़ निश्चय का पाठ पढ़ाता है। वे आज भी हमारे लिए प्रेरणा के स्त्रोत हैं।


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🔗 स्रोत: विकिपीडिया

🛡️ महाराणा प्रताप : भारत के स्वाभिमान और साहस की प्रतिमूर्ति 🛡️


🎂 महाराणा प्रताप का जन्म और परिवार

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ था। उनके पिता राणा उदयसिंह द्वितीय और माता जयवंता बाई थीं। वे मेवाड़ के सिसोदिया वंश से थे, जो राणा हम्मीर से लेकर स्वतंत्रता की रक्षा करते आए थे।

⚔️ जीवन संघर्ष और मेवाड़ की रक्षा

महाराणा प्रताप ने अपने जीवन का अधिकांश भाग मुगलों से संघर्ष करते हुए बिताया। अकबर ने बार-बार प्रताप को अधीनता स्वीकार करने के लिए दूत भेजे लेकिन उन्होंने हर प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। वे स्वराज्य और स्वतंत्रता के प्रतीक बने।

🛡️ हल्दीघाटी का युद्ध (1576)

18 जून 1576 को मेवाड़ और मुगलों के बीच हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा गया। प्रताप के साथ भील सेना और सेनापति हकीम खान सूर थे। यह युद्ध भले ही परिणामविहीन रहा, लेकिन प्रताप की वीरता अमर हो गई। उनका घोड़ा चेतक इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ।

🌟 प्रेरणादायक गाथाएं और वीरता

कठिन समय में भी प्रताप ने जंगलों में रहकर संघर्ष किया। वे पत्ते और घास की रोटी खाकर भी मेवाड़ की रक्षा करते रहे। उन्होंने न केवल जनता का विश्वास बनाए रखा, बल्कि विदेशी हमलावरों के सामने झुकने से इनकार कर दिया।

🕊️ महाराणा प्रताप का निधन

19 जनवरी 1597 को चावंड में एक दुर्घटना के कारण महाराणा प्रताप का देहांत हो गया। उनका निधन भारत के लिए अपूरणीय क्षति था। वे आज भी राजस्थान के गौरव और भारत के स्वाभिमान का प्रतीक माने जाते हैं।

📜 प्रताप की विरासत और आज का महत्व

महाराणा प्रताप की जयंती हर वर्ष 9 मई को वीरता दिवस के रूप में मनाई जाती है। उनकी जीवनगाथा आज भी छात्रों, सैनिकों और नागरिकों को प्रेरणा देती है। राजस्थान सरकार और भारत सरकार दोनों ही उनके योगदान को सम्मान देती हैं।


निष्कर्ष:
महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के अभूतपूर्व योद्धा थे। उनकी निष्ठा, स्वतंत्रता प्रेम और त्याग को युगों तक स्मरण किया जाएगा। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि स्वाभिमान और साहस के आगे कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती।

लेख: Sarkari Service Prep™

🧠 महाराणा प्रताप UPSC MCQ Quiz

  1. महाराणा प्रताप का जन्म कब हुआ था?
    ➤ 9 मई 1540 ई. (कुम्भलगढ़)
  2. महाराणा प्रताप के पिता कौन थे?
    ➤ महाराणा उदयसिंह द्वितीय
  3. महाराणा प्रताप की माता का नाम क्या था?
    ➤ रानी जयवंता बाई
  4. चेतक कौन था?
    ➤ महाराणा प्रताप का प्रिय घोड़ा
  5. हल्दीघाटी का युद्ध कब लड़ा गया?
    ➤ 18 जून 1576 ई.
  6. हल्दीघाटी युद्ध में अकबर की सेना का सेनापति कौन था?
    ➤ राजा मान सिंह
  7. महाराणा प्रताप की प्रमुख प्रतिज्ञा क्या थी?
    ➤ जब तक चित्तौड़ को स्वतंत्र नहीं कराते, तब तक महलों में नहीं सोएँगे, पत्तल पर ही भोजन करेंगे।
  8. हल्दीघाटी युद्ध का निर्णायक परिणाम क्या रहा?
    ➤ युद्ध कोई निर्णायक नहीं था, लेकिन प्रताप को मेवाड़ छोड़ना पड़ा।
  9. महाराणा प्रताप की मृत्यु कब हुई?
    ➤ 19 जनवरी 1597 ई. (चित्तौड़गढ़ के निकट)
  10. महाराणा प्रताप की राजधानी क्या थी?
    ➤ चावंड
  11. अकबर ने कितनी बार महाराणा प्रताप को पत्र भेजे?
    ➤ 6 बार (राजा टोडरमल, मान सिंह आदि के माध्यम से)
  12. अकबर से सन्धि न करने वाले राजपूत राजा कौन थे?
    ➤ महाराणा प्रताप
  13. महाराणा प्रताप के पुत्र कौन थे?
    ➤ अमर सिंह प्रथम
  14. महाराणा प्रताप के प्रधान सेनापति कौन थे?
    ➤ झाला बीदा
  15. महाराणा प्रताप की सबसे लोकप्रिय कविता कौनसी है?
    ➤ पातलर पीथल – कन्हैयालाल सेठिया
  16. प्रताप की सबसे प्रसिद्ध प्रतिज्ञा कौनसी है?
    ➤ जब तक चित्तौड़ स्वतंत्र नहीं होगा, वह सोने की थाली में भोजन नहीं करेंगे।
  17. महाराणा प्रताप को किसने "हिंदवा सूरज" कहा?
    ➤ उनके अनुयायियों ने
  18. अकबर को भेजा गया प्रताप का प्रसिद्ध संदेश किसके द्वारा था?
    ➤ भील नेता पीथल
  19. अकबर ने हल्दीघाटी युद्ध के बाद कितनी बार आक्रमण करवाए?
    ➤ 3 बार
  20. महाराणा प्रताप के बाद मेवाड़ के सिंहासन पर कौन बैठा?
    ➤ अमर सिंह प्रथम
  21. महाराणा प्रताप की आत्मकथा किसने लिखी थी?
    ➤ कोई साक्ष्यात्मक आत्मकथा उपलब्ध नहीं, लेकिन भाटों की वंशावलियों में उल्लेख है।
  22. हल्दीघाटी की लड़ाई कितने समय तक चली?
    ➤ लगभग 4 घंटे
  23. महाराणा प्रताप की तलवारों का कुल वजन कितना था?
    ➤ लगभग 25 किलोग्राम
  24. महाराणा प्रताप की मूर्ति कहाँ स्थित है?
    ➤ मोती मगरी, उदयपुर
  25. अकबर ने किस कूटनीतिक रणनीति से राजपूतों को साथ लाने की कोशिश की?
    ➤ राजपूत-मुगल विवाह, उपाधियाँ और मनसबदारी प्रणाली

📌 नोट:

  • यह प्रश्न UPSC, RPSC, SSC जैसी परीक्षाओं में पूर्व में पूछे जा चुके हैं या संभावित हैं।
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