रविवार, 23 फ़रवरी 2025

भारत सरकार अधिनियम 1935: भारतीय संविधान की नींव और ब्रिटिश प्रशासन का अंतिम बड़ा कानून

1935 – भारत सरकार अधिनियम: भारत के संवैधानिक विकास का ऐतिहासिक दस्तावेज 

"भारत सरकार अधिनियम 1935 ब्रिटिश शासन के तहत भारत का सबसे विस्तृत संवैधानिक सुधार था। जानिए इसके प्रावधान, प्रभाव, आलोचना, और भारतीय संविधान पर इसके प्रभाव का विस्तृत विश्लेषण।"


🔥 प्रस्तावना

भारत सरकार अधिनियम 1935 (Government of India Act 1935) भारतीय इतिहास में सबसे बड़ा संवैधानिक सुधार था, जिसे ब्रिटिश सरकार ने भारत के प्रशासन में परिवर्तन लाने के उद्देश्य से लागू किया। यह अधिनियम भारतीय संविधान के लिए आधारशिला बना और इसमें पहली बार संघीय शासन प्रणाली, प्रांतीय स्वायत्तता और द्विसदनीय विधायिका को लागू करने की योजना बनाई गई। हालांकि, यह अधिनियम भारतीयों को पूर्ण स्वराज नहीं दे सका, जिससे स्वतंत्रता संग्राम और तेज़ हुआ।


📜 भारत सरकार अधिनियम 1935 के प्रमुख उद्देश्य

1️⃣ ब्रिटिश प्रशासन को विकेंद्रीकृत करना
2️⃣ प्रांतीय स्वायत्तता बढ़ाना और भारतीयों को प्रशासन में शामिल करना
3️⃣ भारतीय संविधान के लिए आधार तैयार करना
4️⃣ मुस्लिम लीग और अन्य अल्पसंख्यकों को संतुष्ट करना


📌 भारत सरकार अधिनियम 1935 के प्रमुख प्रावधान

🏛 1. संघीय शासन प्रणाली की स्थापना

  • पहली बार भारत को एक संघीय राज्य के रूप में परिभाषित किया गया।
  • केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया।
  • तीन सूचियों की स्थापना की गई:
    • संघ सूची (Federal List) – केवल केंद्र सरकार के अधिकार में।
    • प्रांतीय सूची (Provincial List) – केवल प्रांतीय सरकारों के अधिकार में।
    • संयुक्त सूची (Concurrent List) – केंद्र और प्रांतों दोनों के अधिकार में।

🏛 2. प्रांतीय स्वायत्तता की अवधारणा

  • पहली बार प्रांतीय सरकारों को स्वतंत्रता दी गई
  • गवर्नर का हस्तक्षेप सीमित किया गया, लेकिन उसे अभी भी व्यापक शक्तियाँ प्राप्त थीं।
  • भारतीय मंत्रियों को कार्यपालिका का नेतृत्व करने की अनुमति दी गई।

🏛 3. द्विसदनीय विधायिका (Bicameral Legislature)

  • केंद्र में द्विसदनीय विधानमंडल की स्थापना की गई।
  • लोकसभा और राज्यसभा जैसी संरचना प्रस्तावित हुई।

🏛 4. पृथक निर्वाचक मंडल (Separate Electorates)

  • मुस्लिम लीग की मांग पर मुसलमानों, सिखों, एंग्लो-इंडियंस और अन्य अल्पसंख्यकों को अलग निर्वाचन मंडल दिए गए।
  • इसने भारत में साम्प्रदायिक राजनीति को और बढ़ावा दिया

🏛 5. भारतीयों की सीमित राजनीतिक भागीदारी

  • प्रांतीय स्तर पर भारतीयों को सत्ता सौंपी गई, लेकिन केंद्र में अभी भी ब्रिटिश शासन का नियंत्रण बना रहा।
  • ब्रिटिश सरकार के गवर्नर जनरल को वीटो पावर प्राप्त थी।

🏛 6. संघीय न्यायपालिका की स्थापना

  • संघीय न्यायालय (Federal Court of India) की स्थापना की गई, जो वर्तमान में भारत का सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) बना।

📰 मीडिया रिपोर्ट और विशेषज्ञों की राय

🗞 भारतीय समाचार पत्रों की प्रतिक्रिया

  • The Tribune: "यह कानून भारतीयों को अधिकार देने का सिर्फ एक दिखावा है।"
  • The Amrita Bazar Patrika: "यह अधिनियम केवल अंग्रेजों की सत्ता बनाए रखने का एक नया तरीका है।"
  • Young India: "भारत को पूर्ण स्वतंत्रता की आवश्यकता है, न कि केवल आधे-अधूरे सुधारों की।"

🎙 ब्रिटिश मीडिया की प्रतिक्रिया

  • The Times (London): "भारत को अधिक स्वायत्तता की आवश्यकता थी, लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य को बरकरार रखना भी आवश्यक था।"
  • The Guardian: "यह अधिनियम भारत में अंग्रेजी प्रशासन को बनाए रखने के लिए एक रणनीति है।"

📅 भारत सरकार अधिनियम 1935 की टाइमलाइन

🔹 1930: गोलमेज सम्मेलन आयोजित हुए।
🔹 1932: सांप्रदायिक निर्णय लिया गया और पृथक निर्वाचक मंडल की घोषणा की गई।
🔹 1935: भारत सरकार अधिनियम पारित हुआ।
🔹 1937: इस अधिनियम के तहत प्रांतीय सरकारें बनीं।
🔹 1950: भारत का संविधान लागू हुआ और यह अधिनियम समाप्त हुआ।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न 1: भारत सरकार अधिनियम 1935 का मुख्य उद्देश्य क्या था?

  • उत्तर: ब्रिटिश प्रशासन को विकेंद्रीकृत करना और भारतीयों को सीमित स्वायत्तता देना।

प्रश्न 2: यह अधिनियम कब लागू हुआ?

  • उत्तर: 1935 में पारित हुआ और 1937 में लागू किया गया।

प्रश्न 3: इस अधिनियम का सबसे महत्वपूर्ण योगदान क्या था?

  • उत्तर: यह भारतीय संविधान के लिए आधार बना।

प्रश्न 4: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रतिक्रिया क्या थी?

  • उत्तर: कांग्रेस ने इसे 'अधूरी स्वतंत्रता' करार दिया और पूर्ण स्वराज की मांग जारी रखी।

निष्कर्ष

भारत सरकार अधिनियम 1935 भारतीय संविधान की नींव का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज था। इसने पहली बार संघीय शासन, प्रांतीय स्वायत्तता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की नींव रखी, लेकिन यह भारतीयों को पूर्ण स्वतंत्रता नहीं दे सका। यही कारण है कि इस अधिनियम को 'अधूरी स्वतंत्रता' कहा गया।


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