ऑनलाइन विश्वसनीय जानकारी कैसे खोजें: गलत सूचना से बचें
ऑनलाइन विश्वसनीय जानकारी कैसे खोजें: गलत सूचना से बचें
सारांश
डिजिटल युग में, ऑनलाइन जानकारी हमारे दैनिक जीवन, निर्णय लेने और सामाजिक ताने-बाने का एक अभिन्न अंग बन गई है [1]। विश्वसनीय जानकारी तक पहुँच व्यक्तियों और समुदायों के सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सूचित निर्णय लेने, नए कौशल सीखने और दुनिया से जुड़े रहने में सहायता करती है। हालाँकि, गलत सूचना (misinformation) और दुष्प्रचार (disinformation) का तेजी से प्रसार, विशेष रूप से सोशल मीडिया और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) द्वारा उत्पन्न सामग्री (जैसे डीपफेक) के माध्यम से, एक गंभीर चुनौती बन गया है [2, 3, 4]। यह व्यक्तिगत निर्णयों, मानसिक स्वास्थ्य [5] और सामाजिक ध्रुवीकरण को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है [6, 7]।
ऑनलाइन जानकारी पर घटते भरोसे से नागरिक सहभागिता, सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल (जैसे COVID-19 के दौरान आरोग्य सेतु ऐप की प्रभावशीलता पर संदेह [8, 9]), और यहाँ तक कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भी बाधा आ सकती है। यह नागरिकों के बीच निर्णय लेने में अनिश्चितता पैदा कर सकता है, जिससे वे महत्वपूर्ण जानकारी को अनदेखा कर सकते हैं या गलत जानकारी के आधार पर निर्णय ले सकते हैं। यह रिपोर्ट पाठकों को गलत सूचना के विभिन्न रूपों को समझने, ऑनलाइन स्रोतों की विश्वसनीयता का मूल्यांकन करने के लिए व्यावहारिक मानदंड (जैसे RADAR फ्रेमवर्क) लागू करने और आलोचनात्मक सोच कौशल विकसित करने के लिए सशक्त बनाएगी। इसका उद्देश्य उन्हें अधिक सूचित और सुरक्षित डिजिटल नागरिक बनाना है।
परिचय
आज के डिजिटल युग में, इंटरनेट जानकारी का एक विशाल जाल है जो कंप्यूटर, फोन और अन्य उपकरणों को दुनिया भर में जोड़ता है [10]। यह ज्ञान, संचार और सेवाओं तक अभूतपूर्व पहुँच प्रदान करता है। भारत में, स्मार्टफोन का उपयोग व्यापक है, 2025 की शुरुआत में 806 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ता थे [11], और 2025 तक 900 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ता होने का अनुमान है [12]। ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्मार्टफोन की पहुँच बढ़ रही है, 15-29 आयु वर्ग के लगभग 96.8% व्यक्ति मोबाइल फोन का उपयोग करते हैं [13]। यह डिजिटल क्रांति व्यवसायों [14], शिक्षा [15], और सरकारी सेवाओं [16] तक पहुँच को बदल रही है।
जानकारी की इस प्रचुरता के साथ, गलत सूचना और दुष्प्रचार का खतरा भी बढ़ गया है। गलत सूचना गलत या अशुद्ध जानकारी है जिसे गुमराह करने के इरादे के बिना फैलाई जाती है, जबकि दुष्प्रचार जानबूझकर फैलाई गई दुर्भावनापूर्ण सामग्री है [2]। ये अफवाहें, भ्रामक सुर्खियाँ, और यहाँ तक कि डीपफेक जैसी अत्यधिक यथार्थवादी AI-जनित सामग्री के रूप में प्रकट हो सकते हैं [2, 3, 4]।
भारत में कम डिजिटल साक्षरता दर, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और महिलाओं के बीच, उन्हें गलत सूचना के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती है [4]। ग्रामीण भारत में डिजिटल साक्षरता अंतराल यह दर्शाता है कि डिजिटल उपकरणों तक पहुँच होने के बावजूद, जानकारी की विश्वसनीयता का मूल्यांकन करने के कौशल की कमी गलत सूचना के प्रसार को बढ़ावा देती है [17, 18]। इसका अर्थ है कि डिजिटल साक्षरता की कमी गलत सूचना के प्रति भेद्यता को बढ़ाती है। गलत सूचना से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए, केवल इंटरनेट पहुँच बढ़ाने से कहीं अधिक की आवश्यकता है; डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण में ठोस निवेश आवश्यक है, विशेष रूप से वंचित समुदायों में। यह राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक स्थिरता के लिए भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जैसा कि AI के उपयोग के साथ चुनावों में हेरफेर की संभावना से पता चलता है [4]।
इस रिपोर्ट का उद्देश्य पाठकों को ऑनलाइन जानकारी को समझने और सत्यापित करने के लिए आवश्यक ज्ञान और उपकरणों से लैस करना है, जिससे वे गलत सूचना के जाल से बच सकें और एक अधिक सूचित और सुरक्षित डिजिटल नागरिक बन सकें।
गलत सूचना और दुष्प्रचार को समझना
गलत सूचना और दुष्प्रचार आज के डिजिटल परिदृश्य में दो महत्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं। दोनों ही गलत जानकारी के प्रसार से संबंधित हैं, लेकिन उनके इरादे और प्रकृति में महत्वपूर्ण अंतर हैं।
- गलत सूचना (Misinformation): यह गलत या अशुद्ध जानकारी है जो गुमराह करने के इरादे के बिना फैलाई जाती है। इसमें अक्सर अफवाहें, अपमान, या मज़ाक शामिल होते हैं जो अनजाने में साझा किए जाते हैं [2]।
- दुष्प्रचार (Disinformation): यह जानबूझकर फैलाई गई गलत जानकारी है जिसमें दुर्भावनापूर्ण सामग्री शामिल होती है। इसका उद्देश्य आबादी के बीच भय और संदेह फैलाना, या विशिष्ट उद्देश्यों के लिए सार्वजनिक राय में हेरफेर करना होता है [2]।
गलत सूचना और दुष्प्रचार विभिन्न रूपों में प्रकट हो सकते हैं, जिससे उन्हें पहचानना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। निम्नलिखित तालिका विभिन्न प्रकारों और उनके उदाहरणों का विस्तृत विवरण प्रदान करती है:
तालिका 1: गलत सूचना और दुष्प्रचार के प्रकार
प्रकार (Type) | परिभाषा (Definition) | उदाहरण (Example) |
---|---|---|
मनगढ़ंत सामग्री (Fabricated Content) | पूरी तरह से झूठी सामग्री। | एक पूरी तरह से गढ़ी हुई समाचार रिपोर्ट जो किसी घटना के बारे में है जो कभी हुई ही नहीं। |
हेरफेर की गई सामग्री (Manipulated Content) | वास्तविक जानकारी या इमेजरी जिसे विकृत किया गया है। | एक सनसनीखेज शीर्षक या लोकलुभावन 'क्लिकबेट' [2] जो पाठक को क्लिक करने के लिए उकसाता है, भले ही सामग्री शीर्षक से मेल न खाती हो। |
डीपफेक (Deepfakes) | AI और मशीन लर्निंग का उपयोग करके बनाई गई अत्यधिक यथार्थवादी नकली छवियाँ, वीडियो या ऑडियो, जिसमें किसी व्यक्ति को किसी और की समानता से बदल दिया जाता है [2, 3, 4]। | किसी राजनेता का नकली वीडियो जो ऐसा कुछ कह रहा है जो उन्होंने कभी नहीं कहा, या एक सेलिब्रिटी का नकली ऑडियो। |
क्लिकबेट (Clickbait) | ऐसी सुर्खियाँ, सोशल मीडिया विवरण और/या छवियाँ जो वेबसाइट पर ट्रैफ़िक उत्पन्न करने के प्राथमिक लक्ष्य के साथ अतिरंजित, भ्रामक या संदिग्ध होती हैं [3]। | "आप विश्वास नहीं करेंगे कि इस सेलिब्रिटी के साथ क्या हुआ!" जैसी शीर्षक जो जिज्ञासा जगाती है लेकिन अक्सर कम गुणवत्ता वाली सामग्री की ओर ले जाती है। |
भ्रामक सामग्री (Misleading Content) | भ्रामक जानकारी, जैसे कि तथ्य के रूप में प्रस्तुत की गई टिप्पणी [2]। | एक विशेषज्ञ की राय को एक सिद्ध तथ्य के रूप में प्रस्तुत करना, जिससे पाठक को गलत धारणा हो। |
झूठा संदर्भ (False Context) | तथ्यात्मक रूप से सटीक सामग्री को झूठी प्रासंगिक जानकारी के साथ जोड़ा जाता है [2]। | एक पुरानी तस्वीर को एक नई घटना के रूप में प्रस्तुत करना ताकि दर्शकों को गुमराह किया जा सके। |
व्यंग्य और पैरोडी (Satire and Parody) | विनोदी लेकिन झूठी कहानियाँ जिन्हें सच के रूप में पारित किया जाता है। नुकसान पहुँचाने का कोई इरादा नहीं होता है, लेकिन पाठक मूर्ख बन सकते हैं [2, 3]। | एक व्यंग्यात्मक समाचार वेबसाइट से एक विनोदी लेख जिसे कुछ लोग सच मान लेते हैं क्योंकि वे व्यंग्य को नहीं पहचानते। |
प्रचार (Propaganda) | दृष्टिकोण, मूल्यों और ज्ञान को प्रबंधित करने के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री [2, 3]। | एक सरकारी अभियान जो केवल एक विशेष दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है, अक्सर असंतोष को दबाने के लिए। |
प्रायोजित सामग्री (Sponsored Content) | विज्ञापन या जनसंपर्क जो संपादकीय सामग्री के रूप में प्रच्छन्न होता है [2]। | एक लेख जो एक उत्पाद की प्रशंसा करता है लेकिन यह नहीं बताता कि यह एक भुगतान किया गया विज्ञापन है, जिससे यह एक निष्पक्ष समीक्षा प्रतीत होती है। |
गलती (Error) | स्थापित समाचार एजेंसियों द्वारा अपनी रिपोर्टिंग में की गई गलती [2]। | एक प्रतिष्ठित समाचार आउटलेट द्वारा एक तथ्यात्मक त्रुटि जिसे बाद में सुधारा जाता है, लेकिन इससे पहले कि वह व्यापक रूप से फैल जाए। |
नकली समाचार (Fake News) | उन स्रोतों से सामग्री जो पूरी तरह से जानकारी गढ़ते हैं, दुष्प्रचार और भ्रामक सामग्री फैलाते हैं, या वास्तविक समाचार रिपोर्टों को गंभीर रूप से विकृत करते हैं [3]। | एक वेबसाइट जो पूरी तरह से काल्पनिक समाचार कहानियाँ प्रकाशित करती है, अक्सर सनसनीखेज या पक्षपाती उद्देश्यों के लिए। |
जंक साइंस (Junk Science) | ऐसे स्रोत जो बदनाम षड्यंत्र सिद्धांतों या वैज्ञानिक रूप से झूठे या असत्यापित दावों को बढ़ावा देते हैं [3]। | एक लेख जो बिना किसी वैज्ञानिक आधार के एक "चमत्कारी इलाज" का दावा करता है, जिससे लोग गलत चिकित्सा सलाह का पालन कर सकते हैं। |
ऑनलाइन घृणा (Hate on the Internet) | ऐसी साइटें जो सक्रिय रूप से नस्लवाद, गलतफहमी, समलैंगिकता, श्वेत वर्चस्व और हिंसा, पूर्वाग्रह और बहिष्कार के अन्य रूपों को बढ़ावा देती हैं [3]। | एक मंच जो किसी विशेष समूह के खिलाफ घृणित भाषण को बढ़ावा देता है, जिससे सामाजिक विभाजन और शत्रुता बढ़ती है। |
सॉकपपेट (Sockpuppet) | ऑनलाइन पहचान जिसका उपयोग धोखा देने के लिए किया जाता है, जो एक स्वतंत्र तीसरे पक्ष के रूप में प्रस्तुत होती है [2]। | एक व्यक्ति जो अपनी प्रशंसा करने या दूसरों की राय में हेरफेर करने के लिए कई नकली ऑनलाइन खातों का उपयोग करता है, जिससे यह लगता है कि कई लोग एक ही बात कह रहे हैं। |
सीलियोनिंग (Sealioning) | ट्रोलिंग या उत्पीड़न का एक प्रकार जहाँ व्यक्तियों को सबूत के लिए लगातार अनुरोधों या बार-बार सवालों के साथ पीछा किया जाता है [2]। | एक उपयोगकर्ता जो एक ऑनलाइन चर्चा में एक बिंदु को साबित करने के लिए अंतहीन, सद्भावनाहीन प्रश्न पूछता रहता है, जिससे दूसरे पक्ष को थका दिया जाता है। |
एस्ट्रोटर्फिंग (Astroturfing) | एक संदेश के प्रायोजकों को छिपाने का अभ्यास ताकि यह प्रतीत हो कि यह जमीनी स्तर के प्रतिभागियों से आया है [2]। | एक कंपनी जो अपने उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए नकली उपभोक्ता समीक्षाएँ बनाती है, जिससे यह लगता है कि उत्पाद लोकप्रिय और विश्वसनीय है। |
कैटफिशिंग (Catfishing) | धोखाधड़ी का एक रूप जहाँ एक व्यक्ति सोशल मीडिया पर किसी विशेष पीड़ित को लक्षित करने के लिए एक नकली पहचान बनाता है [2]। | एक व्यक्ति जो किसी अन्य व्यक्ति को धोखा देने के लिए नकली ऑनलाइन प्रोफ़ाइल का उपयोग करता है, अक्सर वित्तीय लाभ के लिए या किसी को भावनात्मक रूप से हेरफेर करने के लिए। |
गलत सूचना क्यों फैलती है?
गलत सूचना का प्रसार कई जटिल कारकों द्वारा संचालित होता है, जिनमें मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियाँ, सामाजिक संरचनाएँ और उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ शामिल हैं।
- मनोवैज्ञानिक कारक: शोध से पता चलता है कि गलत जानकारी का पता लगाना मुश्किल है क्योंकि लोग नई जानकारी को समझने और अगले चरणों पर निर्णय लेने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, बजाय इसके कि वे तुरंत उसकी सटीकता का मूल्यांकन करें [7]।
- पुष्टि पूर्वाग्रह (Confirmation Bias): लोग ऐसी जानकारी पर विश्वास करने की अधिक संभावना रखते हैं जो उनके मौजूदा विश्वासों की पुष्टि करती है [6, 19]। यह एक आत्म-पुष्टि चक्र बनाता है जहाँ व्यक्तियों को लगातार ऐसे दृष्टिकोणों के संपर्क में लाया जाता है जो उनके मौजूदा विचारों को मान्य करते हैं। यह प्रवृत्ति उन्हें उन सूचनाओं को प्राथमिकता देने के लिए प्रेरित करती है जो उनके विश्वदृष्टि के अनुरूप होती हैं, जिससे वे असंगत सबूतों को अनदेखा कर देते हैं।
- भावनात्मक अपील: भय और आक्रोश जैसी भावनाओं को अपील करने वाले झूठे बयान अधिक विश्वसनीय माने जाते हैं [7]। भावनात्मक रूप से चार्ज की गई सामग्री संतुलित और सूक्ष्म दृष्टिकोणों को दबा देती है [6]। जब जानकारी तीव्र भावनाओं को उत्तेजित करती है, तो लोग अक्सर तर्कसंगत विश्लेषण के बजाय भावनात्मक प्रतिक्रिया के आधार पर इसे साझा करते हैं, जिससे इसका तेजी से प्रसार होता है।
- बार-बार संपर्क: जानकारी के बार-बार संपर्क में आने से उस पर विश्वास करने की संभावना बढ़ जाती है, भले ही वह पिछली जानकारी के विपरीत हो [7]। यह घटना, जिसे 'भ्रामक सत्य प्रभाव' के रूप में जाना जाता है, बताती है कि बार-बार दोहराई गई गलत सूचना अंततः सच लगने लगती है।
- प्रसंस्करण की सहजता: इंटरनेट उपयोगकर्ता जानकारी का मूल्यांकन करने के लिए अधिक सतही संकेतों (जैसे वेबसाइट का स्वरूप या आकर्षक डिज़ाइन) का उपयोग करना पसंद करते हैं, बजाय सामग्री का विश्लेषण करने के [1]। यह एक संज्ञानात्मक शॉर्टकट है जहाँ लोग जानकारी की विश्वसनीयता का त्वरित अनुमान लगाने के लिए सतही संकेतों पर भरोसा करते हैं, जिससे वे गहन जाँच से बचते हैं।
- सामाजिक कारक:
- इको चैंबर (Echo Chambers): सोशल मीडिया पर ऐसे वातावरण जहाँ व्यक्तियों को केवल उनके पहले से मौजूद विश्वासों के अनुरूप जानकारी और विचारों के संपर्क में लाया जाता है, जिससे भिन्न विचार दब जाते हैं [6, 19]। यह ध्रुवीकरण को बढ़ाता है और सार्थक चर्चाओं में बाधा डालता है [6]। इन चैंबरों में, लोग केवल उन आवाज़ों को सुनते हैं जो उनके अपने विचारों को प्रतिध्वनित करती हैं, जिससे उनके विश्वास और भी मजबूत होते जाते हैं।
- इन-ग्रुप स्रोत: इन-ग्रुप स्रोतों (जैसे मित्र, परिवार, या समान विचारधारा वाले समूह) से आने वाली जानकारी पर आउट-ग्रुप स्रोतों की तुलना में अधिक विश्वास किया जाता है [7]। सामाजिक पहचान और समूह संबद्धता अक्सर जानकारी की विश्वसनीयता के लिए एक प्रॉक्सी के रूप में कार्य करती है।
- AI की भूमिका: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) गलत सूचना के प्रसार में एक नई जटिलता जोड़ रही है। AI उपकरण अब अत्यधिक यथार्थवादी नकली छवियाँ, वीडियो (डीपफेक) और ऑडियो उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे वास्तविक और हेरफेर की गई सामग्री के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है [4]। भारत में हाल के चुनावों के दौरान, AI का उपयोग व्यक्तिगत अभियान संदेशों, सिंथेटिक भाषणों और मृत नेताओं के यथार्थवादी वीडियो के लिए किया गया था, जिससे वास्तविकता की सीमाएँ धुंधली हो गईं [4]। AI की यह क्षमता गलत सूचना के निर्माण और प्रसार की बाधा को कम करती है, जिससे यह अधिक सुलभ और विश्वसनीय हो जाता है। AI-जनित गलत सूचना से निपटने के लिए पारंपरिक तथ्य-जांच विधियां अपर्याप्त हो सकती हैं। इसके लिए उन्नत AI-आधारित पहचान उपकरण, डिजिटल फोरेंसिक में निवेश और जनता के बीच AI की क्षमताओं और सीमाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता होगी। यह डिजिटल साक्षरता के दायरे को "क्या सच है?" से "क्या वास्तविक है?" तक विस्तारित करता है।
गलत सूचना के प्रभाव
गलत सूचना के प्रभाव केवल व्यक्तिगत स्तर तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि व्यापक सामाजिक और आर्थिक प्रणालियों को प्रभावित करते हैं।
- मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: गलत सूचना, विशेष रूप से मनोवैज्ञानिक शब्दावली का दुरुपयोग, गलत निदान, अनुचित उपचार, मानसिक स्वास्थ्य प्रदाताओं में विश्वास का क्षरण और रिश्तों में कठिनाइयों का कारण बन सकता है [5]। जब लोग सोशल मीडिया पर अपुष्ट स्रोतों से चिकित्सा सलाह या मनोवैज्ञानिक अवधारणाओं को अपनाते हैं, तो वे अपनी स्थिति का गलत निदान कर सकते हैं या अप्रभावी उपचारों का पालन कर सकते हैं।
- सामाजिक ध्रुवीकरण और अविश्वास: इको चैंबर संघर्षों के दौरान ध्रुवीकरण को बढ़ाते हैं, जिससे विरोधी पक्षों के बीच गहरा विभाजन होता है, और अविश्वास, भय और आक्रोश का एक चक्र बनता है [6]। यह विभाजन सामाजिक सामंजस्य को कमजोर करता है और सहयोग को बाधित करता है।
- निर्णय लेने में बाधा: गलत सूचना व्यक्तियों को गलत जानकारी के आधार पर महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए प्रेरित कर सकती है [7]। उदाहरण के लिए, वित्तीय धोखाधड़ी और होक्स में डीपफेक का उपयोग वास्तविक आर्थिक नुकसान का कारण बन सकता है [2, 3]। सार्वजनिक स्वास्थ्य के संदर्भ में, गलत जानकारी के कारण लोग गलत स्वास्थ्य सलाह का पालन कर सकते हैं, जिससे स्वास्थ्य परिणामों में गिरावट आ सकती है। AI के उपयोग के साथ चुनावों में हेरफेर की संभावना का उल्लेख है [4], जिसका व्यापक सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव हो सकता है, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अखंडता कमजोर हो सकती है। यह सब दर्शाता है कि गलत सूचना केवल एक "सूचना समस्या" नहीं है, बल्कि इसके वास्तविक आर्थिक नुकसान, सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम, और सामाजिक-राजनीतिक अस्थिरता हैं।
ऑनलाइन जानकारी की विश्वसनीयता का मूल्यांकन कैसे करें
ऑनलाइन जानकारी की विश्वसनीयता का मूल्यांकन करना डिजिटल युग में एक अनिवार्य कौशल है। जानकारी का मूल्यांकन उसी तरह किया जा सकता है जैसे कहीं और मिली जानकारी का [1]। एक चेकलिस्ट दृष्टिकोण, जैसे कि RADAR फ्रेमवर्क, इस प्रक्रिया में सहायता कर सकता है।
तालिका 2: ऑनलाइन जानकारी के मूल्यांकन के लिए RADAR फ्रेमवर्क
RADAR फ्रेमवर्क जानकारी के किसी भी स्रोत की गुणवत्ता, विश्वसनीयता और प्रासंगिकता का मूल्यांकन करने के लिए एक उपकरण है, चाहे वह प्रिंट, ऑनलाइन या अन्य मीडिया हो [20]।
मानदंड (Criterion) | परिभाषा (Definition) | विचार करने योग्य प्रश्न (Questions to Consider) | उदाहरण (Example) |
---|---|---|---|
प्रासंगिकता (Relevance) | जानकारी आपके उद्देश्य या शोध प्रश्न से कितनी संबंधित है [20]। | क्या जानकारी सीधे आपके विषय से संबंधित है? क्या यह आपकी विशिष्ट आवश्यकता को पूरा करती है? क्या यह आपके लक्षित दर्शकों के लिए उपयुक्त है? [20] | यदि आप मधुमेह के लिए आहार संबंधी जानकारी खोज रहे हैं, तो क्या यह लेख आपके विशिष्ट प्रकार के मधुमेह के लिए प्रासंगिक है, या यह केवल सामान्य स्वास्थ्य सलाह है? |
प्रामाणिकता (Authority) | जानकारी का स्रोत कौन है (लेखक, प्रकाशक) और उनकी विशेषज्ञता क्या है [20]। | क्या लेखक या संगठन स्पष्ट रूप से पहचाना गया है? क्या उनके पास विषय पर लिखने के लिए शिक्षा या अनुभव है? क्या कोई संपर्क जानकारी उपलब्ध है? [20, 21] | एक चिकित्सा विशेषज्ञ (जैसे डॉक्टर या पंजीकृत आहार विशेषज्ञ) द्वारा लिखा गया स्वास्थ्य लेख एक अज्ञात ब्लॉग की तुलना में अधिक विश्वसनीय है। |
दिनांक (Date) | जानकारी कब प्रकाशित हुई या आखिरी बार अपडेट हुई [20, 21, 22]। | क्या आपको सबसे हाल की जानकारी की आवश्यकता है? जानकारी कितनी पुरानी है? क्या वेबसाइट अच्छी तरह से बनी हुई प्रतीत होती है (जैसे, कोई टूटे हुए लिंक नहीं)? [20, 21, 22] | विज्ञान या प्रौद्योगिकी के बारे में एक लेख जो पाँच साल से अधिक पुराना है, उसमें पुरानी जानकारी हो सकती है, जबकि ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में एक लेख पुराना होने पर भी प्रासंगिक हो सकता है। |
सटीकता (Accuracy) | क्या सामग्री त्रुटियों से मुक्त है और क्या जानकारी को कहीं और सत्यापित किया जा सकता है [1, 21]। | क्या जानकारी तथ्यात्मक रूप से सही है? क्या यह अन्य विश्वसनीय स्रोतों के समान है? क्या पाठ में व्याकरण, वर्तनी और संरचनात्मक मानक सही हैं? [1, 21] | यदि एक ही तथ्य को कई प्रतिष्ठित समाचार आउटलेट्स द्वारा रिपोर्ट किया गया है, तो यह अधिक सटीक होने की संभावना है। यदि कोई लेख कई तथ्यात्मक त्रुटियाँ या खराब व्याकरण दिखाता है, तो उसकी सटीकता संदिग्ध है। |
उद्देश्य/तर्क (Rationale/Intent) | जानकारी क्यों प्रकाशित की गई [20, 21, 23]। | क्या जानकारी सूचित करने, सिखाने, मनोरंजन करने, राजी करने या कुछ बेचने के लिए बनाई गई थी? क्या यह तथ्य, राय या प्रचार है? [20, 23] | एक उत्पाद बेचने वाली वेबसाइट का प्राथमिक उद्देश्य लाभ कमाना हो सकता है, इसलिए जानकारी पक्षपाती हो सकती है और केवल उत्पाद के सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित कर सकती है। |
पक्षपात (Bias) | क्या स्रोत में कोई स्पष्ट पक्षपात है [23, 24]। | लेखक या प्रकाशन का राजनीतिक दृष्टिकोण क्या है? क्या वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किए गए हैं? क्या तर्क भावना को अपील करता है न कि तर्क को? [23] | एक राजनीतिक ब्लॉग जो केवल एक पार्टी के विचारों को बढ़ावा देता है और दूसरी पार्टी की आलोचना करता है, उसमें स्पष्ट पक्षपात होता है। |
RADAR फ्रेमवर्क एक कठोर नियम-आधारित प्रणाली नहीं है, बल्कि एक लचीला ढाँचा है जिसे संदर्भ के आधार पर व्याख्या की आवश्यकता होती है [20]। यह स्वीकार करता है कि "पक्षपाती, राय-आधारित या यहाँ तक कि झूठी जानकारी को भी एक शोध परियोजना में शामिल किया जा सकता है ताकि असहमतिपूर्ण राय को प्रभावी ढंग से उजागर किया जा सके या सामान्य रूप से होने वाली त्रुटियों की पहचान की जा सके।" इसका मतलब है कि उपयोगकर्ताओं को केवल RADAR के मानदंडों को यांत्रिक रूप से लागू नहीं करना चाहिए, बल्कि जानकारी के उद्देश्य और जिस संदर्भ में इसका उपयोग किया जाएगा, उसके बारे में भी महत्वपूर्ण रूप से सोचना चाहिए। यह एक महत्वपूर्ण सोच कौशल है जो उन्हें "अच्छी" और "बुरी" जानकारी के बीच अंतर करने के बजाय "उपयोगी" और "अनुपयोगी" जानकारी के बीच अंतर करने में सक्षम बनाता है, या जानकारी के पक्षपात को स्वीकार करते हुए भी उसका उपयोग करने में सक्षम बनाता है।
जाँच के लिए व्यावहारिक कदम
RADAR फ्रेमवर्क का उपयोग करने के अलावा, ऑनलाइन जानकारी की विश्वसनीयता का आकलन करने के लिए कई व्यावहारिक कदम उठाए जा सकते हैं:
- स्रोत की जाँच करें: हमेशा जानकारी के स्रोत की पहचान करें। क्या यह एक प्रतिष्ठित समाचार आउटलेट, विद्वानों का जर्नल, या किसी विशेष क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं? [25, 1, 23]। सरकारी वेबसाइटें (.gov), शैक्षिक संस्थान (.edu), और गैर-लाभकारी संगठन (.org) आमतौर पर विश्वसनीय होते हैं [10]। किसी भी अज्ञात स्रोत से सावधान रहें।
- प्रकाशन की तारीख देखें: जानकारी कब प्रकाशित हुई या आखिरी बार अपडेट हुई, यह जानना महत्वपूर्ण है। पुरानी खबरें वर्तमान के रूप में प्रस्तुत होने पर गुमराह कर सकती हैं [22, 26]। हमेशा सामग्री के प्रकाशित होने की तारीख की पुष्टि करें, खासकर यदि विषय तेजी से विकसित हो रहा हो (जैसे विज्ञान या प्रौद्योगिकी)।
- पक्षपात और उद्देश्य का आकलन करें: विचार करें कि जानकारी क्यों प्रकाशित की गई। क्या सामग्री का उद्देश्य सूचित करना है, या राजी करना या बेचना है? [23, 26]। भावनाएं भड़काने वाले या एकतरफा दृष्टिकोण वाले स्रोतों से सावधान रहें। एक स्रोत जो केवल एक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, उसमें निहित पक्षपात हो सकता है।
- साक्ष्य और उद्धरणों की तलाश करें: विश्वसनीय लेखों में प्रतिष्ठित अध्ययनों या विश्वसनीय आंकड़ों का हवाला दिया जाता है, न कि व्यक्तिगत राय या उपाख्यानात्मक साक्ष्य का [27]। जांचें कि क्या स्रोत अपने दावों का समर्थन करने के लिए संदर्भ या ग्रंथ सूची प्रदान करता है [21]। यदि कोई दावा किया जाता है, तो देखें कि क्या उसे किसी विश्वसनीय अध्ययन या डेटा द्वारा समर्थित किया गया है।
- यूआरएल (URL) और डोमेन की जाँच करें: नकली वेबसाइटों से सावधान रहें जिनमें मामूली गलत वर्तनी या असामान्य डोमेन होते हैं जो वैध समाचार स्रोतों की नकल करते हैं [26]। हमेशा URL की जाँच करें ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आप एक वैध साइट पर हैं।
- लाल झंडों (Red Flags) से सावधान रहें: कुछ संकेत हैं जो एक अविश्वसनीय स्रोत का संकेत दे सकते हैं। इनमें खराब व्याकरण, अत्यधिक पॉप-अप, क्लिकबेट सुर्खियां, और गुमशुदा तारीखें शामिल हैं [26]। यदि कोई वेबसाइट अत्यधिक विज्ञापन या सनसनीखेज भाषा का उपयोग करती है, तो उसकी विश्वसनीयता पर संदेह करना उचित है।
ऑनलाइन जानकारी के मूल्यांकन में संज्ञानात्मक पूर्वाग्रहों की भूमिका को समझना भी महत्वपूर्ण है। कई इंटरनेट उपयोगकर्ता जानकारी का मूल्यांकन करने के लिए अधिक सतही संकेतों (जैसे वेबसाइट का स्वरूप) का उपयोग करना पसंद करते हैं, बजाय सामग्री का विश्लेषण करने के [1]। इसमें प्रतिष्ठा अनुमानी (reputation heuristic), समर्थन अनुमानी (endorsement heuristic), संगति अनुमानी (consistency heuristic), और अपेक्षा उल्लंघन अनुमानी (expectancy violation heuristic) शामिल हैं। यह पुष्टि पूर्वाग्रह और भावनात्मक अपील के साथ जुड़ता है [6, 7]। यह दर्शाता है कि केवल RADAR जैसे मूल्यांकन उपकरण प्रदान करना पर्याप्त नहीं है। उपयोगकर्ताओं को अपने स्वयं के संज्ञानात्मक पूर्वाग्रहों और मानसिक शॉर्टकटों के बारे में भी जागरूक होने की आवश्यकता है जो उनके मूल्यांकन को प्रभावित कर सकते हैं। प्रभावी डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण में इन मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों को पहचानना और उन्हें दूर करने के लिए रणनीतियाँ सिखाना शामिल होना चाहिए, ताकि उपयोगकर्ता अधिक वस्तुनिष्ठ और तर्कसंगत मूल्यांकन कर सकें।
आलोचनात्मक सोच और डिजिटल साक्षरता विकसित करना
डिजिटल युग में सुरक्षित रूप से नेविगेट करने के लिए आलोचनात्मक सोच और डिजिटल साक्षरता आवश्यक कौशल हैं। भारत में, इन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, लेकिन चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।
भारत में डिजिटल साक्षरता की स्थिति और चुनौतियाँ
भारत में डिजिटल साक्षरता दर कम है [18, 4]। 78वें राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार, भारत की डिजिटल साक्षरता दर बहुत खराब है [4]। ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल विभाजन अधिक स्पष्ट है, जिसमें महिलाओं की पहुँच और साक्षरता अक्सर सबसे कम होती है [28, 4]। उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों में, महिला छात्रों के पास शैक्षिक उद्देश्यों के लिए स्मार्टफोन या कंप्यूटर तक पहुँच की संभावना पुरुषों की तुलना में 30% कम है [29]। इंटरनेट पहुँच बढ़ने के बावजूद, कई लोगों में ऑनलाइन जानकारी की विश्वसनीयता का मूल्यांकन करने के कौशल की कमी है [4]।
आधारभूत संरचना की कमी (जैसे खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी, बिजली की कमी) और उपकरणों की उच्च लागत डिजिटल विभाजन में योगदान करती है [30, 31, 18, 32, 33]। ग्रामीण महाराष्ट्र में कंप्यूटर स्वामित्व शहरी क्षेत्रों में 23% की तुलना में केवल 4% घरों में है [34]। इसके अतिरिक्त, स्थानीय भाषा की सामग्री की अपर्याप्त उपलब्धता एक महत्वपूर्ण बाधा है [28, 12, 35]। भारत में 400 से अधिक भाषाएँ हैं, और AI मॉडल मुख्य रूप से अंग्रेजी डेटा का उपयोग करके प्रशिक्षित होते हैं [12]। महाराष्ट्र जैसे राज्यों में छोटे व्यवसायों को डिजिटल मार्केटिंग साक्षरता की कमी और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अविश्वास जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है [36]। केवल 38% सूक्ष्म व्यवसाय डिजिटल मार्केटिंग टूल का उपयोग करते हैं, और Google Business Profile जैसे प्रमुख दृश्यता टूल के महत्व के बारे में ज्ञान सीमित है [36]।
इन चुनौतियों के बावजूद, सरकार की पहलें जैसे डिजिटल इंडिया प्रोग्राम (DIP), प्रधान मंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (PMGDISHA), और कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) डिजिटल साक्षरता और समावेश को बढ़ावा दे रहे हैं [37, 38, 18]। PMGDISHA का लक्ष्य हर ग्रामीण परिवार के कम से कम एक सदस्य को डिजिटल रूप से साक्षर बनाना है [17]। इन पहलों का उद्देश्य डिजिटल विभाजन को पाटना और डिजिटल सेवाओं तक पहुँच में सुधार करना है।
भारत में डिजिटल साक्षरता के कई पहलू हैं: बुनियादी ढाँचे की कमी (इंटरनेट, बिजली), उपकरणों की उच्च लागत, स्थानीय भाषा सामग्री की कमी, महिलाओं और ग्रामीण आबादी के बीच कम कौशल, और ऑनलाइन प्लेटफार्मों में अविश्वास [28, 39, 36, 40, 29, 41, 42, 43, 44, 45, 31, 18, 12, 33, 4, 35]। यह इंगित करता है कि डिजिटल साक्षरता केवल "कंप्यूटर का उपयोग कैसे करें" के बारे में नहीं है, बल्कि इसमें पहुँच, सामर्थ्य, प्रासंगिक सामग्री और विश्वास जैसे व्यापक सामाजिक-आर्थिक कारक शामिल हैं। डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों को केवल तकनीकी कौशल पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें स्थानीय भाषा सामग्री विकसित करने, बुनियादी ढाँचे में सुधार करने, उपकरणों को अधिक किफायती बनाने और ऑनलाइन प्लेटफार्मों में विश्वास बनाने के लिए सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता है। सरकारी पहलें (जैसे PMGDISHA, CSCs) इस दिशा में महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उनकी पहुँच और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास की आवश्यकता है।
जानकारी की खपत में सुधार के लिए रणनीतियाँ
गलत सूचना से बचने और ऑनलाइन जानकारी को प्रभावी ढंग से नेविगेट करने के लिए सक्रिय रणनीतियों की आवश्यकता होती है।
- साझा करने से पहले जाँच करें: सामग्री को साझा करने से पहले उसकी पुष्टि करना एक महत्वपूर्ण आदत है [26]। शीर्षक से परे पढ़ें, स्रोत की पहचान करें, तारीख देखें, यूआरएल की जाँच करें, और अन्य प्रतिष्ठित स्रोतों से क्रॉस-रेफरेंस करें [26]। यह सुनिश्चित करता है कि आप अनजाने में गलत जानकारी नहीं फैला रहे हैं।
- हेरफेर की रणनीति को पहचानें: डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म अक्सर सोच को सूक्ष्मता से प्रभावित करने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग करते हैं। भावनात्मक ट्रिगर्स, फिल्टर बुलबुले, अत्यधिक व्यवस्थित आख्यान, तात्कालिकता के संकेत, लक्षित विज्ञापन और एस्ट्रोटर्फिंग (Astroturfing) से सावधान रहें [26]। इन युक्तियों को पहचानने से व्यक्तियों को उनकी जानकारी की खपत पर नियंत्रण हासिल करने में मदद मिलती है।
- स्रोत की विश्वसनीयता का मूल्यांकन करें: यह डिजिटल साक्षरता के लिए मौलिक है। 'About' पेज की जाँच करें, उद्धरणों की तलाश करें, लेखक की विशेषज्ञता का आकलन करें, उद्देश्य पर विचार करें, संतुलन की जाँच करें, और लाल झंडों (खराब व्याकरण, पॉप-अप) पर ध्यान दें [26]। एक विश्वसनीय स्रोत पारदर्शी होगा और अपने दावों का समर्थन करने के लिए साक्ष्य प्रदान करेगा।
- एल्गोरिथम बुलबुले (Echo Chambers) से बाहर निकलें: डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म अक्सर "फिल्टर बुलबुले" या "इको चैंबर" बनाते हैं, जिससे उपयोगकर्ताओं को केवल वही सामग्री मिलती है जिससे वे जुड़ने की संभावना रखते हैं, जिससे चुनौतीपूर्ण दृष्टिकोणों के संपर्क में कमी आती है [6, 19]। इससे बाहर निकलने के लिए, जानबूझकर विभिन्न स्रोतों से समाचार का उपभोग करें, जिसमें विभिन्न राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण शामिल हों [6, 19]। पुष्टि पूर्वाग्रह को कम करने के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों के साथ जुड़ें [6, 19]। अपनी ऑनलाइन व्यवहार को विनियमित करें ताकि सामग्री की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ जुड़ सकें [19]। क्रॉस-सांस्कृतिक शिक्षा में संलग्न हों ताकि निर्णय लेने से पहले विभिन्न दृष्टिकोणों को समझ सकें [6, 19]।
- लैटरल रीडिंग (Lateral Reading) कौशल विकसित करें: पारंपरिक शीर्ष-से-नीचे पढ़ने के विपरीत, लैटरल रीडिंग में जानकारी को विभिन्न स्रोतों से सत्यापित करने के लिए कई टैब खोलना शामिल है। यह तकनीक, जिसका उपयोग पेशेवर तथ्य-जांचकर्ता करते हैं, ऑनलाइन जानकारी को संसाधित करने के तरीके को बदल देती है [26]। सामग्री के साथ गहराई से जुड़ने से पहले स्रोत की विश्वसनीयता की पुष्टि करने के लिए कई टैब खोलें। इसमें तथ्य-जाँच, विकिपीडिया की जाँच, और कई दृष्टिकोणों पर विचार करना शामिल है।
तथ्य-जाँच उपकरण और संसाधन
गलत सूचना से लड़ने के लिए, कई तथ्य-जाँच उपकरण और संसाधन उपलब्ध हैं जो जानकारी को सत्यापित करने में सहायता कर सकते हैं:
- पीआईबी फैक्ट चेक यूनिट (PIB Fact Check Unit): यह भारत सरकार से संबंधित संदिग्ध और संदिग्ध जानकारी की तथ्य-जाँच के लिए एक आसान मार्ग प्रदान करता है। यह व्हाट्सएप हॉटलाइन (+91 8799711259), ईमेल (socialmedia[at]pib[dot]gov[dot]in), और वेबसाइट पोर्टल (https://factcheck.pib.gov.in/) के माध्यम से शिकायतें स्वीकार करता है [46]। यह रिवर्स इमेज सर्च और वीडियो विश्लेषण जैसे तकनीकी उपकरणों का उपयोग करता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या कोई वायरल छवि या वीडियो को गुमराह करने के इरादे से एक अलग संदर्भ में फिर से प्रसारित किया गया है [46]।
- रिवर्स इमेज सर्च (Reverse Image Search) उपकरण:
- TinEye: यह छवियों को ऑनलाइन खोजने, सत्यापित करने और ट्रैक करने के लिए एक उपकरण है [47]। यह आपको यह पता लगाने में मदद कर सकता है कि कोई छवि मूल रूप से कहाँ से आई है और क्या इसे हेरफेर किया गया है।
- Google Images: Google Images एक व्यापक रूप से उपलब्ध उपकरण है जो आपको एक छवि को अपलोड करके या उसके URL का उपयोग करके समान छवियों को खोजने की अनुमति देता है। यह किसी छवि के मूल संदर्भ को समझने में सहायक हो सकता है।
- अन्य विश्वसनीय तथ्य-जाँच वेबसाइटें: Google का फैक्ट चेक टूल और Snopes जैसी वेबसाइटें व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त हैं और विभिन्न विषयों पर गलत सूचना को उजागर करने में मदद कर सकती हैं [48]।
गलत सूचना के प्रसार को एक "वायरस" के रूप में देखा जा सकता है, और डिजिटल साक्षरता का व्यापक प्रसार एक "टीकाकरण" के रूप में कार्य करता है [7]। "साझा करने से पहले जाँच करें" और "हेरफेर की रणनीति को पहचानें" जैसी रणनीतियाँ व्यक्तियों को गलत सूचना के खिलाफ अपनी प्रतिरक्षा बनाने में मदद करती हैं [26]। "इको चैंबर" से बाहर निकलने और विविध दृष्टिकोणों के साथ जुड़ने की आवश्यकता इस बात पर जोर देती है कि गलत सूचना से लड़ना केवल व्यक्तिगत कौशल सिखाने से अधिक है; यह एक सामूहिक, सामुदायिक प्रयास की आवश्यकता है [6, 19]। जिस तरह टीकाकरण एक समुदाय को बीमारी से बचाता है, उसी तरह डिजिटल साक्षरता और महत्वपूर्ण सोच का व्यापक प्रसार एक समाज को गलत सूचना के हानिकारक प्रभावों से बचा सकता है। इसके लिए स्कूलों, सामुदायिक केंद्रों, मीडिया और सरकारी एजेंसियों के बीच सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता है ताकि एक "सूचनात्मक रूप से स्वस्थ" समाज का निर्माण किया जा सके।
मुख्य बिंदु (Main Points)
- डिजिटल युग में ऑनलाइन जानकारी का महत्व बढ़ गया है, लेकिन इसके साथ ही गलत सूचना (misinformation) और दुष्प्रचार (disinformation) का खतरा भी बढ़ गया है, खासकर AI-जनित सामग्री (जैसे डीपफेक) के कारण।
- गलत सूचना के प्रसार के कई कारण हैं, जिनमें मनोवैज्ञानिक कारक (पुष्टि पूर्वाग्रह, भावनात्मक अपील), सामाजिक कारक (इको चैंबर), और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की भूमिका शामिल है।
- गलत सूचना के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं, जैसे मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर, सामाजिक ध्रुवीकरण, अविश्वास में वृद्धि, और गलत जानकारी के आधार पर निर्णय लेना।
- ऑनलाइन जानकारी की विश्वसनीयता का मूल्यांकन करने के लिए RADAR फ्रेमवर्क (प्रासंगिकता, प्रामाणिकता, दिनांक, सटीकता, उद्देश्य/तर्क) का उपयोग किया जा सकता है।
- जानकारी की विश्वसनीयता की जाँच के लिए व्यावहारिक कदम उठाएँ, जैसे स्रोत की जाँच करना, प्रकाशन की तारीख देखना, पक्षपात का आकलन करना, साक्ष्य की तलाश करना, और URL की जाँच करना।
- आलोचनात्मक सोच और डिजिटल साक्षरता विकसित करना महत्वपूर्ण है। भारत में डिजिटल साक्षरता दर कम है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों और महिलाओं के बीच, जिससे वे गलत सूचना के प्रति अधिक संवेदनशील हैं।
- गलत सूचना से बचने के लिए सक्रिय रणनीतियाँ अपनाएँ: साझा करने से पहले जाँच करें, हेरफेर की रणनीति को पहचानें, स्रोत की विश्वसनीयता का मूल्यांकन करें, एल्गोरिथम बुलबुले (इको चैंबर) से बाहर निकलें, और लैटरल रीडिंग कौशल विकसित करें।
- तथ्य-जाँच उपकरण और संसाधन जैसे PIB फैक्ट चेक यूनिट और रिवर्स इमेज सर्च टूल्स (TinEye) जानकारी को सत्यापित करने में सहायक होते हैं।
- डिजिटल विभाजन को पाटने और गलत सूचना से लड़ने के लिए सरकारों को डिजिटल साक्षरता को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में एकीकृत करने, स्थानीय भाषा में गुणवत्तापूर्ण सामग्री को प्रोत्साहित करने, और AI-जनित गलत सूचना को संबोधित करने के लिए नियामक ढाँचे स्थापित करने की आवश्यकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
यहां ऑनलाइन विश्वसनीय जानकारी खोजने और गलत सूचना से बचने से संबंधित कुछ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न दिए गए हैं:
- गलत सूचना (Misinformation) और दुष्प्रचार (Disinformation) में क्या अंतर है?
गलत सूचना गलत या अशुद्ध जानकारी है जो गुमराह करने के इरादे के बिना फैलाई जाती है [2]। वहीं, दुष्प्रचार जानबूझकर फैलाई गई गलत जानकारी है जिसमें दुर्भावनापूर्ण सामग्री शामिल होती है, जिसका उद्देश्य आबादी के बीच भय और संदेह फैलाना या सार्वजनिक राय में हेरफेर करना होता है [2]। - डीपफेक क्या हैं और वे गलत सूचना कैसे फैलाते हैं?
डीपफेक AI और मशीन लर्निंग का उपयोग करके बनाई गई अत्यधिक यथार्थवादी नकली छवियाँ, वीडियो या ऑडियो हैं, जिसमें किसी व्यक्ति को किसी और की समानता से बदल दिया जाता है [2, 3, 4]। ये वास्तविक और हेरफेर की गई सामग्री के बीच अंतर करना मुश्किल बनाते हैं, जिससे गलत सूचना का प्रसार आसान हो जाता है। - लोग गलत सूचना पर आसानी से विश्वास क्यों कर लेते हैं?
मनोवैज्ञानिक कारकों में पुष्टि पूर्वाग्रह (मौजूदा विश्वासों की पुष्टि करने वाली जानकारी पर विश्वास), भावनात्मक अपील (भय और आक्रोश जगाने वाली जानकारी), और बार-बार संपर्क (जानकारी के बार-बार संपर्क में आने से उस पर विश्वास करने की संभावना बढ़ जाती है) शामिल हैं [6, 7, 19]। - RADAR फ्रेमवर्क क्या है और यह जानकारी की विश्वसनीयता का मूल्यांकन कैसे करता है?
RADAR फ्रेमवर्क जानकारी के किसी भी स्रोत की गुणवत्ता, विश्वसनीयता और प्रासंगिकता का मूल्यांकन करने के लिए एक उपकरण है [20]। यह प्रासंगिकता (Relevance), प्रामाणिकता (Authority), दिनांक (Date), सटीकता (Accuracy), और उद्देश्य/तर्क (Rationale/Intent) जैसे मानदंडों पर विचार करता है [20]। - ऑनलाइन जानकारी की विश्वसनीयता की जाँच के लिए कुछ व्यावहारिक कदम क्या हैं?
आप स्रोत की जाँच कर सकते हैं (क्या यह एक प्रतिष्ठित समाचार आउटलेट है?), प्रकाशन की तारीख देख सकते हैं (क्या यह वर्तमान है?), पक्षपात और उद्देश्य का आकलन कर सकते हैं (क्या यह सूचित करने के लिए है या बेचने के लिए?), साक्ष्य और उद्धरणों की तलाश कर सकते हैं, और URL तथा डोमेन की जाँच कर सकते हैं [25, 1, 21, 22, 23, 26, 27]। - भारत में डिजिटल साक्षरता की क्या स्थिति है?
भारत में डिजिटल साक्षरता दर कम है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों और महिलाओं के बीच [28, 18, 4]। बुनियादी ढाँचे की कमी, उपकरणों की उच्च लागत, और स्थानीय भाषा की सामग्री की अपर्याप्त उपलब्धता जैसी चुनौतियाँ मौजूद हैं, जिससे गलत सूचना के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है [28, 34, 30, 31, 18, 12, 32, 33, 35]। - गलत सूचना से बचने के लिए क्या रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं?
गलत सूचना से बचने के लिए, साझा करने से पहले जानकारी की जाँच करें, हेरफेर की रणनीति को पहचानें, स्रोत की विश्वसनीयता का मूल्यांकन करें, एल्गोरिथम बुलबुले (इको चैंबर) से बाहर निकलें, और लैटरल रीडिंग कौशल विकसित करें ।
अस्वीकरण (Disclaimer)
यह लेख केवल सामान्य जानकारी और शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है। इसमें दी गई जानकारी को पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। किसी भी महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले हमेशा योग्य विशेषज्ञों से परामर्श करें।
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