संविधान संशोधन (Amendment) – भारतीय संविधान में परिवर्तन की विधि
संविधान संशोधन (Amendment) – संविधान में बदलाव की प्रक्रिया
विषय सूची (Table of Contents)
कुल संशोधन
106 (तक 2023)
पहला संशोधन
1951
नवीनतम संशोधन
106वां (2023)
मुख्य अनुच्छेद
368
अनुच्छेद 368: संविधान संशोधन की आधारशिला
भारतीय संविधान के भाग XX में स्थित अनुच्छेद 368 संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति और प्रक्रिया को निर्धारित करता है। यह अनुच्छेद संविधान की घटक शक्ति (Constituent Power) को स्पष्ट करता है।
अनुच्छेद 368 के मुख्य प्रावधान:
• संसद को संविधान के किसी भी प्रावधान को जोड़ने, बदलने या निरस्त करने का अधिकार
• संशोधन प्रक्रिया की स्पष्ट रूपरेखा
• विशेष बहुमत की आवश्यकता
• कुछ मामलों में राज्य विधानसभाओं के अनुसमर्थन की आवश्यकता
• न्यायिक समीक्षा से सुरक्षा (सीमित)
संविधान संशोधन के प्रकार
भारतीय संविधान में संशोधन तीन प्रकार से किया जा सकता है:
1. साधारण बहुमत द्वारा संशोधन
परिभाषा: उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का 50% से अधिक मत
उदाहरण:
• नए राज्यों का गठन या प्रवेश (अनुच्छेद 2-4)
• राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन
• राज्यों के नाम में परिवर्तन
• राज्य विधानपरिषदों का गठन या समाप्ति (अनुच्छेद 169)
• पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों का प्रशासन
2. विशेष बहुमत द्वारा संशोधन
परिभाषा: प्रत्येक सदन की कुल सदस्य संख्या का बहुमत + उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का 2/3 बहुमत
उदाहरण:
• मौलिक अधिकार
• नीति निदेशक तत्व
• अन्य सभी प्रावधान जो तीसरी श्रेणी में नहीं आते
3. विशेष बहुमत + राज्य अनुसमर्थन
परिभाषा: विशेष बहुमत + कम से कम आधी राज्य विधानसभाओं का अनुसमर्थन
उदाहरण:
• राष्ट्रपति का निर्वाचन
• केंद्र और राज्य सरकारों की कार्यपालिका शक्ति
• सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों संबंधी प्रावधान
• केंद्र और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का वितरण
• अनुच्छेद 368 स्वयं
संविधान संशोधन की प्रक्रिया
चरणबद्ध प्रक्रिया:
चरण 1: पहल
• संशोधन विधेयक केवल संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है
• राज्य विधानसभाएं संशोधन प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकतीं
• कोई भी सांसद (मंत्री या निजी सदस्य) विधेयक पेश कर सकता है
• राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति आवश्यक नहीं
चरण 2: संसदीय अनुमोदन
• दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित होना आवश्यक
• संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं
• मतभेद की स्थिति में विधेयक समाप्त हो जाता है
चरण 3: राज्य अनुसमर्थन (यदि आवश्यक हो)
• कम से कम आधी राज्य विधानसभाओं का अनुसमर्थन
• साधारण बहुमत से पारित करना पर्याप्त
• समय सीमा निर्धारित नहीं
चरण 4: राष्ट्रपति की स्वीकृति
• राष्ट्रपति की स्वीकृति अनिवार्य
• राष्ट्रपति विधेयक वापस नहीं कर सकते
• स्वीकृति के बाद संशोधन प्रभावी हो जाता है
महत्वपूर्ण संविधान संशोधन
संशोधन | वर्ष | मुख्य प्रावधान | महत्व |
---|---|---|---|
1st | 1951 | नौवीं अनुसूची का समावेश, भूमि सुधार | न्यायिक समीक्षा से बचाव |
7th | 1956 | राज्यों का पुनर्गठन | भाषायी आधार पर राज्य गठन |
24th | 1971 | संसद की संशोधन शक्ति की पुष्टि | गोलकनाथ मामले का उत्तर |
42nd | 1976 | मिनी संविधान, मौलिक कर्तव्य | सबसे व्यापक संशोधन |
44th | 1978 | संपत्ति के अधिकार को हटाना | 42वें संशोधन में सुधार |
73rd | 1992 | पंचायती राज संस्थाएं | स्थानीय स्वशासन को संवैधानिक दर्जा |
74th | 1993 | नगरपालिका संस्थाएं | शहरी स्थानीय निकायों को मजबूती |
86th | 2002 | शिक्षा का अधिकार | 6-14 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा |
101st | 2016 | वस्तु एवं सेवा कर (GST) | एकीकृत कर व्यवस्था |
106th | 2023 | महिला आरक्षण विधेयक | लोकसभा व विधानसभाओं में 33% आरक्षण |
42वां संशोधन (1976): मिनी संविधान
स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर आधारित यह संशोधन सबसे व्यापक था:
• प्रस्तावना में 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' शब्द जोड़े गए
• मौलिक कर्तव्यों का समावेश (अनुच्छेद 51A)
• शिक्षा, वन और वन्यजीव को समवर्ती सूची में स्थानांतरित
• प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की शक्तियों में वृद्धि
• न्यायपालिका की शक्ति में कमी
मूल ढांचा सिद्धांत (Basic Structure Doctrine)
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित यह सिद्धांत संविधान संशोधन की शक्ति पर महत्वपूर्ण सीमा लगाता है।
मूल ढांचे की विशेषताएं:
• संविधान की सर्वोच्चता
• गणतांत्रिक और लोकतांत्रिक सरकार
• धर्मनिरपेक्ष चरित्र
• शक्तियों का पृथक्करण
• संघवाद
• व्यक्ति की गरिमा और स्वतंत्रता
• न्यायपालिका की स्वतंत्रता
• न्यायिक समीक्षा
• स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव
• कल्याणकारी राज्य
संविधान संशोधन की सीमाएं
न्यायिक सीमाएं
• मूल ढांचा सिद्धांत
• न्यायिक समीक्षा की शक्ति
• संवैधानिक नैतिकता
राजनीतिक सीमाएं
• दोनों सदनों में विशेष बहुमत की आवश्यकता
• राज्यों के अनुसमर्थन की आवश्यकता
• संयुक्त बैठक का अभाव
व्यावहारिक सीमाएं
• राजनीतिक सहमति की कमी
• केंद्र-राज्य संबंधों का तनाव
• जनमत का दबाव
UPSC प्रश्नोत्तरी - संविधान संशोधन
महत्वपूर्ण न्यायिक मामले
ऐतिहासिक फैसले:
1. शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ (1951)
• संसद को मौलिक अधिकारों में संशोधन का अधिकार
• अनुच्छेद 13 संशोधन पर लागू नहीं
2. गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967)
• मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं किया जा सकता
• बाद में 24वें संशोधन द्वारा उलट दिया गया
3. केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
• मूल ढांचा सिद्धांत की स्थापना
• संविधान के मूल ढांचे में संशोधन नहीं किया जा सकता
4. मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980)
• न्यायिक समीक्षा मूल ढांचे का हिस्सा
• 42वें संशोधन के कुछ हिस्सों को रद्द किया
निष्कर्ष
संविधान संशोधन की प्रक्रिया भारतीय लोकतंत्र की जीवंतता का प्रमाण है। यह न तो अत्यधिक कठोर है और न ही अत्यधिक लचीली। अनुच्छेद 368 के माध्यम से स्थापित यह संतुलित व्यवस्था संविधान को समय की मांग के अनुसार ढालने की सुविधा प्रदान करती है।
UPSC की दृष्टि से महत्वपूर्ण बिंदु:
• संशोधन के तीनों प्रकारों की स्पष्ट समझ
• महत्वपूर्ण संशोधनों की जानकारी
• मूल ढांचा सिद्धांत की व्यापक समझ
• न्यायिक मामलों की जानकारी
• समसामयिक संदर्भ में संविधान संशोधन की भूमिका
परीक्षा टिप: संविधान संशोधन पर प्रश्न अक्सर प्रीलिम्स और मेन्स दोनों में आते हैं। विशेष रूप से 42वां, 73वां, 74वां, 86वां, 101वां और 106वां संशोधन पर विशेष ध्यान दें। मूल ढांचा सिद्धांत एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है जो निबंध लेखन में भी उपयोगी है।
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