राजस्थान सेवा नियम अध्याय 8 – बर्खास्तगी, निष्कासन एवं निलम्बन
अध्याय 8
बर्खास्तगी, निष्कासन एवं निलम्बन
राजस्थान सेवा नियम के अध्याय VIII में बर्खास्तगी, निष्कासन एवं निलम्बन पर चर्चा की गयी है। इस संबंध में विस्तृत प्रावधान राजस्थान सिविल सेवाएं (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1958 में उपलब्ध है। इनमें निलम्बन को नियम 13(1) में कार्यकारी संक्रिया माना गया है जबकि निष्कासन एवं बर्खास्तगी को क्रमशः नियम 14 (vi) व (vii) मे वृहद् शास्ति माना गया है।
बर्खास्तगी अथवा निष्कासन की तारीख से वेतन एवं भत्ते रोकना
नियम 52 के अनुसार सेवा में बर्खास्त किये गये अथवा निष्कासित किये गये राज्य कर्मचारी को उसकी बर्खास्तगी अथवा निष्कासन की तारीख से वेतन एवं भत्ते मिलने बंद हो जाते है। एक निलम्बित राज्य कर्मचारी को वेतन अथवा अवकाश वेतन नहीं दिया जावेगा।
निलम्बित राज्य कर्मचारी को निर्वाह अनुदान
एक निलम्बित राज्य कर्मचारी को निर्वाह अनुदान के रूप में निम्नांकित भुगतान प्राप्त हो सकते है:
- नियम 53(1) (क) के अनुसार निलम्बन के प्रथम 6 माह की अवधि में उसे अर्द्ध-वेतन अवकाश के समान वेतन एवं उस पर देय मंहगाई भत्ता, निर्वाह अनुदान के रूप में दिया जावेगा।
- जहां निलम्बन की अवधि 6 माह से अधिक हो तो यह अधिकारी जिसने कर्मचारी के निलम्बन की आज्ञा जारी की हो या उसके द्वारा दी गयी हो तो वह 6 माह से कितने भी अधिक समय लिये निर्वाह भत्ते की राशि में निम्न परिवर्तन कर सकता है-
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(अ) नियम 53(1) (क) (i) के अनुसार जहाँ निलम्बन की अवधि 6 माह से अधिक हो जाए और सक्षम प्राधिकारी लेखबद्ध कारणों के आधार पर इस परिणाम पर पहुँचे कि 6 माह से अधिक की अवधि प्रत्यक्ष रूप से कर्मचारी के कारण नहीं बढ़ाई गई है तो कर्मचारी को प्रथम 6 माह की अवधि में दिये गये निर्वाह अनुदान की राशि में 50% तक की वृद्धि की जा सकती है।
(ब) नियम 53(1) (क) (ii) जहाँ निलम्बन की अवधि 6 माह के आगे प्रत्यक्ष रूप से कर्मचारी के व्यवहार के कारण बढ़ हो, वहाँ सक्षम प्राधिकारी, कर्मचारी को 6 माह में दिये गये निर्वाह अनुदान की राशि में से 50% तक की कमी कर सकता हैं। ऐसे कारणों को आज्ञा में लेखबद्ध करने होंगें।
नियम 53 (1) (क) (iii) के अनुसार मंहगाई भत्ते की दरें उपरोक्त तीनों स्थितियों में स्वीकृत वेतन की दर के आधार पर (बढ़ी-घटी हुई दर) जैसी स्थिति को, निर्धारित की जावेगी।
- नियम 53(1) (ख) के अनुसार निलम्बित किये जाने के दिन यदि कर्मचारी को महंगाई भत्ते के अलावा कोई अन्य क्षतिपूरक भत्ते (Compensatory Allowances) प्राप्त हो रहे हों तो वह भी निलम्बित कर्मचारी को निर्वाह अनुदान की उक्त फलावट के अतिरिक्त प्राप्त होंगे।
- उक्त अनुच्छेद में 6 माह की अवधि, उस दिन से गिनी जावेगी जिस दिन कर्मचारी निलम्बित किया गया था।
निर्वाह अनुदान के भुगतान की शर्ते
नियम 53 (2) के अनुसार उपरोक्त वर्णित परिस्थितियों के अनुसार निलम्बित राज्य कर्मचारी को स्वीकार्य अनुदान की राशि का भुगतान तब तक नहीं किया जावेगा जब तक वह इस प्रकार का एक प्रमाण-पत्र प्रस्तुत नहीं कर दे कि "निलम्बन काल में उसने कोई अन्य नियोजन, व्यापार, व्यवसाय स्वीकार नहीं किया/धनराशि नहीं अर्जित की।" यदि निर्वाह अनुदान के रूप में देय धनराशि अधिक हो तो तथा निलम्बित कर्मचारी द्वारा इस अवधि में अर्जित आय कम हो तो इन दोनों के अंतर के समान ही निर्वाह अनुदान का भुगतान किया जावेगा। जहाँ अर्जित की गई धनराशि निर्वाह अनुदान के भुगतान से अधिक हो तो ऐसी दशा में उसे कोई भुगतान नहीं किया जावेगा।
निर्वाह अनुदान का भुगतान रोकने का निषेध
नियम 53(2) के नीचे दिये गये स्पष्टीकरण के अनुसार निलम्बित करने वाले प्राधिकारी का निर्वाह अनुदान के भुगतान को रोकने का कोई विवेकाधिकार (Discretion) नहीं हैं। निलम्बित कर्मचारी को निलम्बन की अवधि में ऐसा भुगतान देना वैधानिक रूप से अनिवार्य है। जिन मामलों में एक निलम्बित राज्य कर्मचारी, सक्षम प्राधिकारी की अनुमति के बिना मुख्यालय छोड़ जाय अथवा कार्यालय में उपस्थित नहीं हो तो उचित समझने पर सक्षम प्राधिकारी द्वारा निलम्बित कर्मचारी के विरूद्ध राजस्थान सिविल सेवाएं (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1958 के अनुसार, उक्त आरोपों के संबंध में दूसरी जाँच प्रारम्भ की जा सकती हैं।
छः माह से अधिक के निलम्बनों के लिए समीक्षा समिति
प्रशासनिक सुधार विभाग, राजस्थान जयपुर की आज्ञा क्रमांक प.6 (18) प्र.सु/अनु-3/99 दिनांक 22 फरवरी, 2005 द्वारा गठित समिति निलम्बन के मामलों की समीक्षा करती है।
समिति की संरचना:
- अध्यक्ष: मुख्य सचिव, राजस्थान
- सदस्य: संबंधित प्रशासनिक विभाग के शासन सचिव
- सदस्य सचिव: कार्मिक विभाग के शासन सचिव
यह समिति अधिकारियों के निलम्बन को जारी रखने या बहाल करने संबंधी अपनी सिफारिशें राज्य सरकार को देने का कार्य करती है।
आज्ञा क्रमांक प.6 (18) प्र.सु/अनु-3/99 दिनांक 10 मार्च, 2005 के अनुसार समिति 6 माह से अधिक के निलम्बित अधिकारियों के निलम्बन को जारी रखने या बहाल करने संबंधी अपनी अभिशंषा प्रत्येक तिमाही में पुनर्विलोकन कर राज्य सरकार को प्रस्तुत करने के लिये जिम्मेदार हैं।
राज्य स्तरीय समिति (3 वर्ष से अधिक के मामले)
आज्ञा क्रमांक प.6 (23) प्र.सु/अनु-3/99 दिनांक 28 जुलाई, 2008 के अनुसार राज्य सरकार द्वारा एक राज्य स्तरीय समिति की भी गठन किया गया है।
समिति की संरचना:
- अध्यक्ष: मुख्य सचिव, राजस्थान
- सदस्य: महानिदेशक, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो, जयपुर
- सदस्य: संबंधित प्रशासनिक विभाग के शासन सचिव
- सदस्य सचिव: शासन सचिव, कार्मिक विभाग
समिति 3 वर्ष से अधिक के निलम्बन के मामलों का पुनरावलोकन करती हैं। 3 वर्ष की अवधि की गणना सक्षम न्यायालय में चालान पेश किये जाने की तिथि से की जाती है। समिति अपनी सिफारिशें कार्मिक विभाग को भेजती हैं।
अधीनस्थ सेवा के लिए समिति
आज्ञा क्रमांक प.6 (23) प्र.सु/अनु-3/99 दिनांक 12 जनवरी, 2011 द्वारा भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो पुलिस द्वारा पंजीकृत आपराधिक प्रकरणों में निलम्बित किये गये अधीनस्थ सेवा के राजसेवकों के मामलों का पुनर्विलोकन करने हेतु राज्य सरकार ने संबंधित विभाग के प्रमुख शासन सचिव/शासन सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है।
समिति की संरचना:
- अध्यक्ष: संबंधित विभाग के प्रमुख शासन सचिव/शासन सचिव
- सदस्य: महानिदेशक, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो/पुलिस द्वारा मनोनीत अधिकारी (महानिरीक्षक के स्तर से नीचे का न हो)
- सदस्य: प्रमुख शासन सचिव/शासन सचिव, कार्मिक द्वारा मनोनीत उप शासन सचिव या उनके स्तर का अधिकारी
- सदस्य सचिव: विभागाध्यक्ष अथवा उनके द्वारा मनोनीत अधिकारी (उप शासन सचिव स्तर से नीचे का न हो)
यह समिति 3 वर्ष से अधिक समयावधि से लम्बित निलम्बन के मामलों का, जिसमें न्यायालय में चालान प्रस्तुत किये हुऐ 1 वर्ष का समय व्यतीत हो गया हो, का पुनर्विलोकन करती है। समिति की बैठक 6 माह में एक बार अवश्य होती है। समिति अपनी सिफारिशें प्रशासनिक सचिव को प्रस्तुत करती है जो प्रत्येक प्रकरण के संबंध में तथ्यों के आधार पर उचित निर्णय लेते हैं।
पुनः प्रस्थापन अथवा बहालगी (Re-instatement) पर वेतन
नियम 54(1) के अनुसार जब एक राज्य कर्मचारी, जिसे सेवा से निष्कासित अथवा बर्खास्त कर दिया हो या अनिवार्य रूप से सेवा निवृत्त कर दिया गया हो या निलम्बित किया हुआ हो और वह आगे चलकर किसी अपील अथवा पुनरावलोकन आदि के कारण सेवा में पुनः प्रस्थापित हो जाता है अथवा उसे निलम्बन से बहाल कर दिया जाता है तो ऐसी स्थिति में पुनः प्रस्थापन के आदेश देने वाले सक्षम अधिकारी को निम्न अंकित बिन्दुओं पर विचार कर विशिष्ट आदेश देने चाहिये:
- नियम 54(1) (a) के अनुसार कर्त्तव्यों से अनुपस्थिति अथवा विश्रामवृत्ति की आयु पर सेवा निवृत्त किये जाने की तारीख तक ही निलम्बन की अवधि में कर्मचारी को क्या वेतन एवं भत्ते आदि दिये जायें।
- नियम 54 (1) (b) के अनुसार क्या उक्त अवधि "कर्त्तव्य पर बिताई गई अवधि" (On-duty) मानी जावेगी या नहीं।
नियम 54(2) के अनुसार जहाँ प्राधिकारी को यह ज्ञात हो जाये कि कर्मचारी को पूर्णतया दोषमुक्त कर दिया गया है अथवा निलम्बित किया जाना पूर्णतया औचित्यहीन था तो ऐसे कर्मचारी को उस अवधि में उसी दर पर वेतन एवं महंगाई भत्ते आदि दिये जाने चाहिये जो वह सेवा से निलम्बित/निष्कासित अथवा अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त नहीं किया जाता तो प्राप्त करता। ऐसे मामलों में माना जाता है कि कर्मचारी के विरूद्ध किसी प्रकार के निलम्बन आदेश जारी ही नहीं हुये। नियम 54(4) के अनुसार ऐसे मामलों में कर्त्तव्यों से अनुपस्थिति के समय को सभी कार्यों के लिये कर्त्तव्य पर व्यतीत किया समय के रूप में माना जायेगा।
नियम 54(3) के अनुसार अन्य मामलों में ऐसे कर्मचारी को वेतन एवं महंगाई भत्ते का ऐसा भाग दिया जावेगा जो सक्षम प्राधिकारी अपने आदेशों द्वारा निर्धारित करें।
नियम 54(5) के अनुसार ऐसे मामलों में कर्त्तव्य से अनुपस्थिति अवधि को कर्त्तव्य पर व्यतीत अवधि के रूप में जब तक नहीं समझा जावेगा जब तक सक्षम प्राधिकारी विशेष रूप से उस अवधि को ऐसा समझने के स्पष्ट आदेश जारी नहीं कर दे किन्तु यदि कर्मचारी ऐसा चाहे तो सक्षम प्राधिकारी ऐसे निर्देश जारी कर सकता है कि सेवा में अनुपस्थिति की अवधि कर्मचारी के बकाया एवं स्वीकृत किये जाने योग्य किसी भी प्रकार के अवकाशों में परिवर्तित की जायेगी। यहां यह अंकित करना उचित होगा कि इस प्रावधान के तहत कर्त्तव्य से अनुपस्थिति की अवधि मानने का सक्षम प्राधिकारी का आदेश पूर्णतया मान्य है। अस्थायी कर्मचारी को 3 माह से अधिक के असाधारण अवकाश की स्वीकृति के लिये उसे किसी उच्च स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है।
नियम 54(6) के अनुसार कई बार ऐसा भी होता है कि दण्डाज्ञा में यह उल्लेख नहीं होता कि निलम्बन की अवधि पेंशन के प्रयोजनार्थ गिनी जायेगी या नहीं, वहां निलम्बन की अवधि पेंशन के प्रयोजनार्थ गिनी जायेगी। बाकी सभी अन्य मामलों में, दण्डाज्ञा के अनुसार कार्यवाही की जायेगी।
टिप्पणियां और विशेष प्रावधान
टिप्पणी 1: पुनरावलोकन एवं अपील पर वेतन आदि का भुगतान
नियम 54(7) के नीचे दी गयी टिप्पणी संख्या के अनुसार पुनरावलोकन एवं अपील सुनने के लिये सक्षम प्राधिकारी एक कर्मचारी द्वारा निलम्बन काल में व्यतीत समय को, उसे निलम्बित किये जाने से पूर्व देय अवकाशों में परिवर्तित करने एवं उसके एवज में अवकाश वेतन भुगतान के आदेश दे सकता है।
टिप्पणी 2: पुनः प्रस्थापन पर पदाधिकार
नियम 54(7) के नीचे दी गयी टिप्पणी संख्या 2 के अनुसार सेवा से बर्खास्त/निष्कासित कर्मचारी जब अपील करने पर किसी तारीख से पुनः प्रस्थापित कर दिया जाता है तथा अपील के आदेशों में बर्खास्तगी/निष्कासन की तारीख एवं पुनः प्रस्थापना की तारीख के बीच की अवधि को 'कर्त्तव्य के रूप में व्यतीत अवधि मानने का आदेश दिया जाता है तथा उस समय को अवकाश एवं वेतन वृद्धि के लिये सम्मिलित करने की स्वीकृति दी जाती है तो ऐसे आदेशों को सक्षम आदेश मानकर पालना करनी चाहिये, चाहे उस कर्मचारी द्वारा उस अवधि में किसी स्थायी पद पर कोई पदाधिकार नहीं रखा हो क्योंकि ऐसे कर्मचारी द्वारा रिक्त किये गये पद को इसी शर्त के साथ भरा जा सकता है कि यदि निष्कासित कर्मचारी अपील के कारण पुनः प्रस्थापित कर दिया जावेगा तो उस पद पर किये गये प्रबंध समाप्त हो जायेंगे।
टिप्पणी 3: निलम्बन अवधि को अवकाश में परिवर्तन
नियम 54(7) के नीचे दी गयी टिप्पणी संख्या 3 के अनुसार निलम्बन काल की किसी अवधि को सक्षम प्राधिकारी द्वारा जब असाधारण अवकाशों में परिवर्तित करने के आदेश दे दिये जा सकते है। ऐसे आदेश जारी होने पर कर्मचारी के निलम्बन के कलंक तथा उसके अनुसरण में होने वाले समस्त विपरीत परिणाम समाप्त हो जाते हैं। जिस समय निलम्बन अवधि अवकाशों में बदल दी जाये तो उसी समय यह निलम्बन आज्ञा को प्रभावहीन कर देता है तथा वह समय निलम्बन काल में बिताया हुआ समय बिल्कुल नहीं माना जायेगा। ऐसी स्थिति में जब यह ज्ञात हो जाय कि एक कर्मचारी निलम्बन की अवधि में निर्वाह अनुदान एवं क्षतिपूरक भत्ते आदि जो राशि कुल भुगतान के रूप में प्राप्त करता है यदि यह अवकाश वेतन एवं उन पर देय भत्तों से अधिक बनती हो तो ऐसी अधिक राशि कर्मचारी से वसूल की जावेगी तथा इस परिणाम से बचने का कोई उपाय नहीं है।
टिप्पणी 5: पद भरने संबंधी नीति
नियम 54(7) के नीचे दी गयी टिप्पणी संख्या 5 के अनुसार जब एक कर्मचारी को अनिवार्य रूप से सेवा निवृत्त कर दिया जावे अथवा सेवा से निष्कासित कर दिया जावे तो उसके परिणामस्वरूप उस रिक्त पद को एक वर्ष तक नहीं भरा जाना चाहिए। एक वर्ष की समाप्ति पर पद को स्थायी रूप से भरा जा सकता है। उसके बाद यदि उस पद का मूल धारक किसी अपील अथवा पुनरावलोकन के परिणामस्वरूप सेवा में पुनः प्रस्थापित कर दिया जावे तो उस कर्मचारी को किसी अन्य, स्थायी रूप से रिक्त पद पर समायोजित किया जाना चाहिये। यदि ऐसा कोई रिक्त पद नहीं हो तो उसके लिये एक अधिसंख्य (Supernumerary) पद उसी वेतन में सृजित करा कर कर्मचारी को समायोजित कर देना चाहिये तथा जैसे ही उसके संवर्ग अथवा श्रेणी में कोई नियमित स्थायी पद रिक्त हो जाय तो अधिसंख्य पद समाप्त कर दिया जाय।
राज्य सरकार का यह निर्णय है कि राजस्थान सेवा नियमों का नियम 54 अपने आप में एक पूर्ण (Absolute) नियम है तथा उसके अपने अधिकार क्षेत्र पर कोई प्रतिबंध नहीं है। जिन मामलों में एक कर्मचारी अपील पर बहाल कर दिया जाय तथा निलम्बन अवधि को बकाया अवकाशों के रूप में बदल दिया जाय तथा पुनः प्रस्थापन करने पर कर्मचारी को स्थायी पद पर पदाधिकार नहीं दिया जा सके तो भी सेवा में पुनः प्रस्थापित किये गये ऐसे कर्मचारी को पदाधिकार देने तथा उसे उस अवधि का अवकाश वेतन एवं भत्ते आदि देने के लिये किसी अतिरिक्त पद के अथवा अधिसंख्य पद के सृजित किये जाने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिये। इस परिस्थितियों में ऐसे कर्मचारी का वेतन एवं भत्ते आदि सेवा नियम 54 के अनुसार किसी अधिसंख्य पद के बिना भी भुगतान किये जा सकते हैं क्योंकि ऐसी परिस्थिति में वेतन आदि चुकाने को स्वीकार्य अतिरेक (Permissible) माना जाता है।
निलम्बन काल में अवकाश स्वीकृति का निषेध
नियम 55 के अनुसार निलम्बन काल में किसी राज्य कर्मचारी को कोई अवकाश स्वीकृत नहीं किया जा सकता है।
यद्यपि नियम 55 के अनुसार निलम्बन काल में राज्य कर्मचारी को किसी प्रकार के अवकाश देने पर प्रतिबन्ध है अपितु राज्य सरकार का यह निर्णय है कि यदि निलम्बित कर्मचारी को उसके परिवार में गंभीर बीमारी के कारण कठिनाई होती हो तो ऐसे मामलें में सक्षम प्राधिकारी द्वारा कर्मचारी को मुख्यालय छोड़ने की अनुमति दी जा सकती है जो अत्यंत आवश्यक परिस्थितियों तथा जाँच की स्थिति एवं राज्य कर्मचारी की अनुपस्थिति के कारण जाँच की प्रगति में संभावित प्रभावों/परिणामों को ध्यान में रखकर उचित समय के लिये दी जावेगी।
राज्य सरकार का स्पष्टीकरण है कि एक निलम्बित कर्मचारी को मुख्यालय पर अपनी उपस्थिति सिद्ध करने के लिये नियमित रूप से कार्यालय में उपस्थित होना चाहिये यदि सक्षम प्राधिकारी ऐसा न चाहे तो उस कर्मचारी को कार्यालय में उपस्थिति अंकित करना आवश्यक नहीं होगा।
नियम 55A के अनुसार ऐसे राज्य कर्मचारी को किसी प्रकार का अवकाश स्वीकृत नहीं किया जावेगा जिसे दण्ड देने वाले सक्षम प्राधिकारी ने राज्य सेवा से बर्खास्त करने अथवा निष्कासित करने अथवा अनिवार्य सेवा निवृत्त करने का निर्णय कर लिया है।