"भारत में वन संरक्षण और प्रबंधन: कानूनी पहल, चुनौतियाँ और सतत विकास | UPSC & प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए सम्पूर्ण अध्ययन"
भारत में वन संरक्षण और प्रबंधन – विस्तृत अध्ययन
यह लेख भारत में वन संरक्षण और प्रबंधन की रणनीतियों, कानूनी पहल, सरकारी योजनाओं, न्यायिक हस्तक्षेप, अंतरराष्ट्रीय समझौतों, वन संरक्षण में इको-टूरिज्म, जल संकट के प्रभाव और भविष्य की रणनीतियों को गहराई से समझाता है। यह UPSC और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए विशेष रूप से उपयोगी होगा।
🔷 भाग 1: भारत में वन संरक्षण और प्रबंधन का परिचय
वन जलवायु संतुलन, जैव विविधता संरक्षण, जल संसाधन प्रबंधन, और आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।
✅ वनों का पारिस्थितिक महत्व – कार्बन अवशोषण, जल संरक्षण, मिट्टी संरक्षण।
✅ आर्थिक योगदान – लकड़ी, रेजिन, औषधीय पौधे, इको-टूरिज्म।
✅ सामाजिक और सांस्कृतिक भूमिका – आदिवासी समुदायों की आजीविका, धार्मिक मान्यताएँ।
📌 ISFR 2021 रिपोर्ट के अनुसार:
- भारत का कुल वन क्षेत्र 7,13,789 वर्ग किमी (देश के 21.71% भूभाग) पर फैला है।
- राष्ट्रीय वन नीति 1988 के अनुसार, देश के 33% क्षेत्र पर वन होना चाहिए।
🔷 भाग 2: भारत में वनों की कानूनी स्थिति और न्यायिक हस्तक्षेप
📌 1️⃣ वन संरक्षण के लिए प्रमुख कानून
📌 2023 में वन (संरक्षण) अधिनियम में संशोधन:
- सैन्य और राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों से कुछ क्षेत्रों को अधिनियम से बाहर रखा गया।
- आदिवासी समुदायों के पारंपरिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए कुछ प्रावधान जोड़े गए।
📌 2️⃣ वन संरक्षण पर प्रमुख न्यायिक फैसले
✅ गोधावर्मन केस (T.N. Godavarman Thirumulpad vs Union of India, 1996):
- इस ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी गैर-कानूनी वन कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया और वन संरक्षण को मजबूत किया।
✅ MC Mehta vs Union of India, 2018:
- दिल्ली-एनसीआर में अवैध कटाई और प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सख्त दिशानिर्देश जारी किए गए।
✅ NGT के फैसले:
- 2021 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने उत्तराखंड में अवैध वन कटाई रोकने के लिए निर्देश जारी किए।
📌 महत्व: न्यायपालिका ने वन संरक्षण को मजबूत करने के लिए कई कड़े फैसले लिए हैं, जिससे पर्यावरणीय संतुलन बना रहे।
🔷 भाग 3: अंतरराष्ट्रीय समझौते और भारत की भागीदारी
✅ यूएनएफसीसीसी (United Nations Framework Convention on Climate Change)
- भारत ने ग्लोबल वार्मिंग को 1.5°C तक सीमित करने के लिए प्रतिबद्धता जताई है।
✅ पेरिस समझौता (2015):
- भारत ने 2030 तक 2.5-3 बिलियन टन कार्बन अवशोषण के लिए वनों का विस्तार करने का लक्ष्य रखा है।
✅ REDD+ (Reducing Emissions from Deforestation and Forest Degradation):
- भारत वनों के नष्ट होने से रोकने के लिए इस वैश्विक पहल का हिस्सा है।
✅ बायोडायवर्सिटी कन्वेंशन (CBD) और CITES (Convention on International Trade in Endangered Species):
- भारत संकटग्रस्त प्रजातियों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
📌 FAO की रिपोर्ट: यदि सतत वनीकरण योजनाएँ लागू की जाएँ, तो 2050 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 15% तक कमी लाई जा सकती है।
🔷 भाग 4: वन संरक्षण और इको-टूरिज्म का योगदान
✅ इको-टूरिज्म (Eco-Tourism) वन संरक्षण को कैसे बढ़ावा देता है?
- स्थानीय समुदायों को रोजगार मिलता है, जिससे वे वन संरक्षण में रुचि लेते हैं।
- राष्ट्रीय उद्यानों और जैव विविधता स्थलों की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
📌 भारत के प्रमुख इको-टूरिज्म स्थल:
- सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान (पश्चिम बंगाल) – रॉयल बंगाल टाइगर।
- काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (असम) – एक सींग वाला गैंडा।
- गिर राष्ट्रीय उद्यान (गुजरात) – एशियाई शेर।
✅ पर्यावरणीय लाभ:
- पर्यटकों के शुल्क का उपयोग वन पुनर्वास और जैव विविधता संरक्षण के लिए किया जाता है।
🔷 भाग 5: जल संकट और भारतीय वनों पर प्रभाव
✅ जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा चक्र अस्थिर हो रहा है, जिससे वनों को पर्याप्त नमी नहीं मिल रही है।
✅ वनों की कटाई के कारण नदियों के जल स्रोत सूख रहे हैं।
✅ गंगा, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, गोदावरी जैसी नदियों की जलधाराओं पर वनों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
📌 नदी पुनरुद्धार परियोजनाएँ:
- "नमामि गंगे" योजना – गंगा नदी को पुनर्जीवित करने के लिए।
- कावेरी पुनरुद्धार अभियान – वनों के माध्यम से नदी पुनर्भरण।
🔷 निष्कर्ष (Conclusion)
✅ वन संरक्षण केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि इसमें समुदायों, उद्योगों और नागरिकों की भागीदारी आवश्यक है।
✅ भारत ने अंतरराष्ट्रीय समझौतों में प्रतिबद्धता जताई है, लेकिन कार्यान्वयन में तेजी लाने की जरूरत है।
✅ सतत विकास के लिए वन प्रबंधन को प्राथमिकता देना होगा।
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लेबल: GK, Indian Geography
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