📜 भारतीय संविधान: अनुच्छेद 35 और संसद के विशेष अधिकार 📜
(UPSC, SSC, और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के लिए विस्तृत और शोधपूर्ण आलेख)
🔷 प्रस्तावना
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 35 (Article 35) यह निर्धारित करता है कि संसद को विशेष रूप से कुछ कानून बनाने का अधिकार होगा।
- यह अनुच्छेद यह सुनिश्चित करता है कि कुछ मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए केवल संसद ही कानून बना सकती है, न कि राज्य विधानसभाएँ।
- इसका उद्देश्य पूरे भारत में एक समान कानूनी ढांचा बनाए रखना है ताकि विभिन्न राज्यों में कानूनों में अंतर न हो।
- यह अनुच्छेद भारतीय लोकतंत्र के संघीय ढांचे और केंद्र-राज्य संबंधों के बीच संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इस आलेख में हम अनुच्छेद 35 के विभिन्न प्रावधानों, न्यायिक व्याख्या, ऐतिहासिक फैसलों, और प्रभावों का विश्लेषण करेंगे।
🔷 1. अनुच्छेद 35 का मूल प्रावधान
📌 संविधान का अनुच्छेद 35 कहता है:
"कुछ विशेष मामलों में केवल संसद को कानून बनाने का अधिकार होगा, न कि राज्य विधानसभाओं को।"
✅ यह अनुच्छेद संसद को निम्नलिखित मामलों में कानून बनाने की विशेष शक्ति देता है:
1️⃣ मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए आवश्यक कानून।
2️⃣ अनुच्छेद 16(3) के तहत सरकारी नौकरियों में विशेष प्रावधान।
3️⃣ अनुच्छेद 33 के तहत सशस्त्र बलों के मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने के कानून।
4️⃣ अनुच्छेद 34 के तहत मार्शल लॉ के दौरान क्षतिपूर्ति से संबंधित कानून।
5️⃣ अनुच्छेद 23 और 24 के तहत बंधुआ मजदूरी, मानव तस्करी और बच्चों के शोषण को रोकने के लिए कानून।
📌 इस अनुच्छेद का उद्देश्य पूरे भारत में समान कानूनी प्रणाली बनाए रखना है।
🔷 2. अनुच्छेद 35 के तहत संसद के विशेषाधिकार
📌 अनुच्छेद 35 के तहत संसद को कुछ महत्वपूर्ण विशेषाधिकार दिए गए हैं:
✅ 1️⃣ मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए विशेष कानून बनाने का अधिकार
- संसद को यह अधिकार दिया गया है कि वह मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए आवश्यक कानून बना सके।
- उदाहरण: समानता, स्वतंत्रता, शिक्षा, और निष्पक्ष न्याय से जुड़े कानून।
✅ 2️⃣ रोजगार और आरक्षण से संबंधित कानून (अनुच्छेद 16(3))
- संसद को यह अधिकार दिया गया है कि वह सरकारी नौकरियों में कुछ विशेष समूहों (जैसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग) के लिए प्रावधान कर सके।
- उदाहरण: आरक्षण से संबंधित कानून।
✅ 3️⃣ सशस्त्र बलों के मौलिक अधिकारों पर नियंत्रण (अनुच्छेद 33)
- संसद को यह शक्ति दी गई है कि वह सेना, पुलिस, खुफिया एजेंसियों आदि के मौलिक अधिकारों को सीमित करने के लिए कानून बनाए।
- उदाहरण: आर्मी एक्ट, 1950 और पुलिस एक्ट।
✅ 4️⃣ मार्शल लॉ के दौरान सुरक्षा और क्षतिपूर्ति से संबंधित कानून (अनुच्छेद 34)
- संसद यह निर्धारित कर सकती है कि किसी विशेष परिस्थिति में सेना द्वारा किए गए कार्यों के लिए कानूनी सुरक्षा कैसे प्रदान की जाएगी।
- उदाहरण: सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम - AFSPA।
✅ 5️⃣ मानव तस्करी, बंधुआ मजदूरी और बाल श्रम से संबंधित कानून (अनुच्छेद 23 और 24)
- संसद को यह शक्ति दी गई है कि वह बंधुआ मजदूरी, मानव तस्करी और बाल श्रम पर रोक लगाने के लिए कानून बनाए।
- उदाहरण: बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976।
📌 यह अनुच्छेद सुनिश्चित करता है कि इन महत्वपूर्ण विषयों पर केवल संसद कानून बना सके ताकि पूरे भारत में एकरूपता बनी रहे।
🔷 3. अनुच्छेद 35 से जुड़े महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय
1️⃣ केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) – संसद की विशेष शक्तियाँ
✅ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 35 के तहत संसद को कुछ मामलों में विशेष अधिकार दिए गए हैं, लेकिन यह अधिकार संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं कर सकते।
2️⃣ इंडिरा साहनी बनाम भारत संघ (1992) – आरक्षण संबंधी अधिकार
✅ सुप्रीम कोर्ट ने पुष्टि की कि अनुच्छेद 16(3) के तहत संसद को सरकारी नौकरियों में विशेष समूहों के लिए आरक्षण का प्रावधान करने का अधिकार है।
3️⃣ डी.एस. नक़ारा बनाम भारत संघ (1983) – पेंशन और सामाजिक सुरक्षा के कानून
✅ न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 35 के तहत संसद सामाजिक कल्याण और न्याय से संबंधित कानून बना सकती है।
📌 इन फैसलों ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 35 संसद को विशेष कानूनी शक्तियाँ प्रदान करता है, लेकिन न्यायपालिका इसकी संवैधानिकता की समीक्षा कर सकती है।
🔷 4. अनुच्छेद 35 का प्रभाव और महत्व
1️⃣ राष्ट्रीय स्तर पर एक समान कानून सुनिश्चित करना
✅ यह अनुच्छेद यह सुनिश्चित करता है कि पूरे देश में समान कानून लागू हो और कोई भी राज्य अपनी अलग नीति न बनाए।
2️⃣ संसद की विधायी शक्ति को मजबूत करना
✅ यह संसद को विशेष शक्ति प्रदान करता है ताकि वह मौलिक अधिकारों से जुड़े महत्वपूर्ण कानून बना सके।
3️⃣ नागरिकों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करना
✅ यह अनुच्छेद यह सुनिश्चित करता है कि संसद द्वारा बनाए गए कानून नागरिकों को न्याय दिलाने में सहायक होंगे।
📌 यह अनुच्छेद संसद की सर्वोच्चता और विधायी शक्ति को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रावधान है।
🔷 5. अनुच्छेद 35 से जुड़े विवाद और चुनौतियाँ
1️⃣ राज्यों के अधिकारों की सीमाएँ
✅ क्या संसद को विशेष रूप से कुछ कानून बनाने की शक्ति देने से राज्यों की स्वतंत्रता सीमित होती है?
2️⃣ न्यायिक समीक्षा और संसद की सर्वोच्चता
✅ क्या अनुच्छेद 35 के तहत बनाए गए कानूनों को न्यायपालिका द्वारा पूरी तरह से नियंत्रित किया जा सकता है?
3️⃣ मौलिक अधिकारों की रक्षा बनाम संसद की शक्ति
✅ क्या संसद को मौलिक अधिकारों से संबंधित सभी कानूनों पर पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए, या इसमें न्यायपालिका का भी हस्तक्षेप होना चाहिए?
📌 इसलिए, न्यायपालिका को नागरिक स्वतंत्रता और संसद की विधायी शक्तियों के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
🔷 निष्कर्ष: संसद की विधायी शक्ति और मौलिक अधिकारों की रक्षा
अनुच्छेद 35 भारतीय संविधान में संसद की विधायी शक्ति को स्पष्ट करने वाला एक महत्वपूर्ण प्रावधान है।
- यह सुनिश्चित करता है कि कुछ महत्वपूर्ण मामलों में केवल संसद ही कानून बना सकती है।
- हालांकि, इसे न्यायपालिका की समीक्षा के अधीन रखा गया है ताकि संविधान की मूल संरचना को क्षति न पहुंचे।
📌 विद्यार्थी के लिए महत्वपूर्ण सीख:
✅ अनुच्छेद 35 राष्ट्रीय स्तर पर एक समान कानूनी ढांचे को सुनिश्चित करता है।
✅ यह संसद को कुछ महत्वपूर्ण मामलों में कानून बनाने का विशेष अधिकार प्रदान करता है।
✅ इस अनुच्छेद का उद्देश्य नागरिकों को न्याय दिलाने और सामाजिक समानता को बढ़ावा देना है।
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