प्राचीन भारत - सम्पूर्ण गाइड | Ancient India Complete Guide for UPSC & RPSC
भारत का इतिहास अत्यंत विशाल, समृद्ध एवं वैविध्यपूर्ण रहा है। प्राचीन भारत की यह यात्रा आदिम मानव के प्रस्तर युग से आरंभ होकर मौर्य और गुप्त साम्राज्यों के उत्कर्ष तक जाती है। यह लेख UPSC और RPSC जैसे प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसमें सभी 17 विषयों को विस्तार से सरल भाषा में समझाया गया है।
Table of Contents (TOC)
- 1. ऐतिहासिक स्रोत
- 2. प्रस्तर युग आदिम मानव
- 3. ताम्रपाषाण कृषक संस्कृतियाँ
- 4. हड़प्पा सस्कृति: कांस्य युगीन सभ्यता
- 5. ऋग्वैदिक काल
- 6. उत्तर वैदिक काल
- 7. जैन और बौद्ध धर्म
- 8. महाजनपद और मगध साम्राज्य
- 9. ईरानी और मकवूनियाई आक्रमण
- 10. मौर्य युग
- 11. मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
- 12. सातवाहन युग
- 13. सुदूर दक्षिण में इतिहास का आरंभ
- 14. गुप्त साम्राज्य
- 15. हर्ष और उसका साम्राज्य
- 16. दक्कन और दक्षिण भारत के राज्य
- 17. दर्शन का विकास
1. ऐतिहासिक स्रोत (Historical Sources)
प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी हमें विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों से प्राप्त होती है। ये स्रोत मुख्यतः दो भागों में विभाजित किए जाते हैं:
- 1. साहित्यिक स्रोत (Literary Sources)
- 2. पुरातात्विक स्रोत (Archaeological Sources)
1.1 साहित्यिक स्रोत (Literary Sources)
यहाँ पर प्राचीन भारत के इतिहास को जानने के लिए लिखे गए ग्रंथ, वेद, महाकाव्य, बुद्ध-जैन साहित्य, विदेशी यात्रियों के वृत्तांत आदि आते हैं।
- वेद: ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद – धार्मिक, सामाजिक तथा आर्थिक जानकारी का प्रमुख स्रोत
- उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथ: दार्शनिक व धार्मिक विचारों का भंडार
- महाकाव्य: रामायण और महाभारत – समाज, संस्कृति, धर्म और नीति का प्रतिबिंब
- बौद्ध साहित्य: त्रिपिटक – विनय, सूत्र, अभिधम्म
- जैन साहित्य: आगम, कल्पसूत्र – श्रमण परंपरा की जानकारी
- संस्कृत साहित्य: कौटिल्य का अर्थशास्त्र, कालिदास के नाटक, बाणभट्ट की हर्षचरित
- विदेशी लेखन: मेगस्थनीज का इण्डिका, ह्वेनसांग का यात्रा विवरण
1.2 पुरातात्विक स्रोत (Archaeological Sources)
ये वे स्रोत हैं जो खुदाई, मूर्तियाँ, सिक्के, शिलालेखों आदि से प्राप्त होते हैं।
- स्मारक एवं स्थापत्य कला: स्तूप, मंदिर, गुफाएँ – जैसे साँची स्तूप, एलोरा गुफाएँ
- मूर्तिकला: गंधार, मथुरा व अमरावती शैली
- शिलालेख: अशोक के शिलालेख, प्रयाग प्रशस्ति, एरण अभिलेख
- सिक्के: मौर्य, कुषाण, गुप्त – शासन, आर्थिक नीति, धर्म का संकेत
- मृद्भांड (Pottery): चित्रित धूसर मृद्भांड (PGW), उत्तरी काली मृद्भांड (NBPW)
- खुदाई स्थल: मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगन, लोथल – सभ्यता की झलक
1.3 ऐतिहासिक स्रोतों का महत्व (Importance)
इन स्रोतों की सहायता से:
- राजनीतिक घटनाक्रमों का ज्ञान
- धार्मिक, आर्थिक व सामाजिक स्थितियों की जानकारी
- कलात्मक व स्थापत्य विकास का प्रमाण
- राजवंशों के कालक्रम का निर्धारण
1.4 UPSC / RPSC परीक्षा उपयोगी प्रश्न
- Q. इण्डिका किस विदेशी लेखक द्वारा लिखी गई थी?
Ans: मेगस्थनीज - Q. अशोक के शिलालेख किस लिपि में हैं?
Ans: ब्राह्मी लिपि - Q. त्रिपिटकों का संबंध किस धर्म से है?
Ans: बौद्ध धर्म - Q. प्रयाग प्रशस्ति किसके काल की है?
Ans: समुद्रगुप्त
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Join Telegram – DailyEduMagzineभाग 2: प्रस्तर युग और आदिम मानव (Stone Age and Early Humans)
प्रस्तर युग मानव इतिहास का वह आरंभिक काल था जब मानव ने पत्थरों का उपयोग औजार और हथियार बनाने के लिए करना शुरू किया। यह काल तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है:
- प्राचीन प्रस्तर युग (Paleolithic Age): यह काल लगभग 2.5 लाख वर्ष पूर्व से 10,000 ईसा पूर्व तक फैला था। मानव शिकारी और खाद्य संग्राहक थे। उन्होंने गुफाओं में निवास किया और आग की खोज की। भीमबेटका (मध्य प्रदेश) की चित्रकला इस युग की अमूल्य धरोहर है।
- मध्य प्रस्तर युग (Mesolithic Age): यह काल 10,000 ईसा पूर्व से 8,000 ईसा पूर्व के बीच रहा। मानव ने सूक्ष्म औजारों का निर्माण किया और आंशिक कृषि की शुरुआत की। बैलगाड़ी, कुत्ते के पालतूकरण के प्रमाण इसी काल से मिलते हैं।
- नव प्रस्तर युग (Neolithic Age): यह काल 8,000 ईसा पूर्व से 4,000 ईसा पूर्व के बीच फैला था। अब मानव पूर्णतः कृषक बन चुका था, मृद्भांड बनाता था और स्थायी निवास की ओर बढ़ा। मेहरगढ़ (बलूचिस्तान), चिरांद (बिहार), बुरज़होम (कश्मीर) आदि नव प्रस्तर युग की प्रमुख साइट्स हैं।
प्रस्तर युग की विशेषताएँ:
- औजारों में पत्थर का प्रयोग (Hand Axe, Microliths, Polished Tools)
- गुफा चित्रण – जैसे भीमबेटका की चित्रकला
- पालतू पशु – कुत्ता, बकरी
- स्थायी निवास की शुरुआत (Neolithic Period)
- अंतिम चरण में ताम्रपाषाण युग की शुरुआत
महत्वपूर्ण स्थल और उनके स्थान:
स्थल | राज्य | युग |
---|---|---|
भीमबेटका | मध्य प्रदेश | प्राचीन प्रस्तर युग |
मेहरगढ़ | बलूचिस्तान (पाकिस्तान) | नव प्रस्तर युग |
चिरांद | बिहार | नव प्रस्तर युग |
बुरज़होम | कश्मीर | नव प्रस्तर युग |
UPSC / RPSC में पूछे गए प्रश्न:
- Q. भीमबेटका की गुफाएं किस काल की हैं?
Ans: प्राचीन प्रस्तर युग - Q. किस युग में मानव ने सबसे पहले कृषि की शुरुआत की?
Ans: नव प्रस्तर युग - Q. बुरज़होम किस युग से संबंधित स्थल है?
Ans: नव प्रस्तर युग
अगर आपको यह भाग उपयोगी लगा हो, तो अगला भाग पढ़ना ना भूलें – भाग 3: ताम्रपाषाण युगीन कृषक संस्कृतियाँ
भाग 3: ताम्रपाषाण युगीन कृषक संस्कृतियाँ
(Chalcolithic Age Farming Cultures)
ताम्रपाषाण युग (Chalcolithic Age) भारतीय उपमहाद्वीप के प्रागैतिहासिक काल का वह चरण है जिसमें मानव ने तांबे (Copper) और पत्थर (Stone) दोनों उपकरणों का प्रयोग करना प्रारंभ किया। यह युग मुख्यतः 2800 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व तक फैला हुआ था।
मुख्य विशेषताएँ:
- तांबे और पत्थर के औजारों का समवर्ती प्रयोग।
- स्थायी कृषि आधारित बस्तियाँ।
- मिट्टी के बर्तन – लाल एवं काले मृद्भांड (Black and Red Ware)।
- गाय, भेड़, बकरी आदि का पालन – पशुपालन की शुरुआत।
- मकान – मिट्टी और ईंटों के छोटे झोपड़ीनुमा घर।
- धान, गेहूं, जौ की खेती की शुरुआत।
प्रमुख ताम्रपाषाण स्थलों की सूची:
- आहड़ (राजस्थान): बनास नदी के किनारे स्थित, यहाँ से तांबे के औजार और मिट्टी के बर्तन मिले हैं।
- कायथा (मध्यप्रदेश): यहाँ लाल एवं काले मृद्भांड, अन्न भंडारण हेतु भंडारगृह मिले।
- इनामगाँव (महाराष्ट्र): दक्कन क्षेत्र का प्रमुख स्थल। यहाँ मानव कंकाल एवं बैल-गाड़ी के प्रमाण मिले हैं।
- गिलुंड (राजस्थान): आहड़ संस्कृति से संबंधित, ताम्र औजार और गेरुआ रंग के पात्र मिले।
- नेवासा (महाराष्ट्र): दक्कन क्षेत्र की महत्वपूर्ण बस्ती।
महत्वपूर्ण तथ्य (Exam Key Points):
- ताम्रपाषाण युगीन संस्कृति मुख्यतः ग्रामीण थी।
- आहड़ और कायथा संस्कृतियाँ मध्य भारत की प्रमुख Chalcolithic संस्कृतियाँ थीं।
- यह युग हड़प्पा काल के साथ आंशिक रूप से समकालीन था।
- प्राकृतिक आपदा या सिंधु सभ्यता के प्रभाव से इन संस्कृतियों का पतन हुआ।
UPSC / RPSC पूछे गए प्रश्न:
- Q. आहड़ संस्कृति का प्रमुख केंद्र कौन सा है? – RPSC 2016
Ans: उदयपुर (राजस्थान) - Q. कौन-सी संस्कृति तांबे और पत्थर दोनों का प्रयोग करती थी? – UPSC Prelims 2015
Ans: ताम्रपाषाण संस्कृति - Q. इनामगांव किस काल से संबंधित स्थल है? – RPSC 2019
Ans: ताम्रपाषाण युग
Quick Recap:
ताम्रपाषाण युग वह संक्रमणकालीन चरण था जब मानव कृषि, पशुपालन, और धातु प्रयोग को अपनाकर सभ्यता की दिशा में आगे बढ़ा।
हड़प्पा सभ्यता (Harappan Civilization)
परिचय
हड़प्पा सभ्यता, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता भी कहा जाता है, भारत की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है। इसका विकास लगभग 2500 ई.पू. से 1750 ई.पू. के बीच हुआ। यह सभ्यता मुख्यतः सिंधु नदी एवं उसकी सहायक नदियों के किनारे विकसित हुई।
प्रमुख स्थल
- हड़प्पा (पंजाब, पाकिस्तान)
- मोहनजोदड़ो (सिंध, पाकिस्तान)
- चन्हूदड़ों (सिंध)
- लोथल, धोलावीरा, सुरकोटडा (गुजरात, भारत)
- कालीबंगा (राजस्थान, भारत)
- बनवाली (हरियाणा, भारत)
विशेषताएँ
- नगर नियोजन: ग्रिड पैटर्न में बसी बस्तियाँ, पक्की ईंटों के घर, नालियों की व्यवस्था।
- व्यवस्थित जल निकासी प्रणाली।
- लिपि: अब तक पढ़ी नहीं जा सकी।
- धार्मिक विश्वास: मातृदेवी पूजा, पशुपति महादेव, वृक्ष पूजा आदि।
- व्यापार: मेसोपोटामिया, खाड़ी देशों से व्यापार।
- मृद्भांड, ताम्र उपकरण, मुहरें।
पतन के कारण
अनेक विद्वानों ने विभिन्न कारण बताए हैं:
- नदियों के मार्ग का परिवर्तन
- बाढ़ या सूखा
- आर्यों का आगमन
- प्राकृतिक आपदाएँ
UPSC/RPSC में पूछे गए प्रश्न
- प्र. हड़प्पा सभ्यता के किस स्थल पर पक्की ईंटों से बना स्नानघर मिला है?
उत्तर: मोहनजोदड़ो (UPSC Prelims, 2018) - प्र. सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को क्या नाम दिया गया है?
उत्तर: चित्रलिपि
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ऋग्वैदिक काल (Rigvedic Period)
कालखंड: लगभग 1500 ई.पू. से 1000 ई.पू. तक।
ऋग्वैदिक काल भारत के वैदिक इतिहास का प्रारंभिक चरण है। यह काल मुख्यतः सिंधु और सरस्वती नदी के क्षेत्र में बसा हुआ था। इस काल के प्रमुख स्रोत ऋग्वेद हैं – जो विश्व का सबसे प्राचीन ग्रंथ माना जाता है।
मुख्य विशेषताएँ:
- समाज: पितृसत्तात्मक समाज व्यवस्था। वर्ण व्यवस्था का प्रारंभ।
- आर्थिक व्यवस्था: गाय मुख्य संपत्ति थी। कृषि, पशुपालन और युद्ध प्रमुख कार्य।
- राजनीति: गोत्रों और कुलों के नेतृत्व में राजा का चयन। सभा, समिति जैसे संस्थानों का उल्लेख।
- धर्म: प्रकृति पूजन – इंद्र, अग्नि, वरुण, सोम आदि देवताओं की उपासना। यज्ञ परंपरा का प्रारंभ।
- साहित्य: प्रमुख रूप से ऋग्वेद संहिता। संस्कृत भाषा का विकास।
UPSC/RPSC में पूछे गए प्रश्न:
- ऋग्वेद में वर्णित प्रमुख देवताओं के नाम क्या हैं? (UPSC Pre 2020)
- ऋग्वैदिक समाज की विशेषताएँ लिखिए। (RPSC Mains 2022)
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Part 6: उत्तर वैदिक काल (Post-Vedic Period)
समयकाल: 1000 ईसा पूर्व – 600 ईसा पूर्व
ऋग्वैदिक काल के पश्चात भारतीय उपमहाद्वीप में जो परिवर्तन हुए, उन्हें उत्तर वैदिक काल के अंतर्गत रखा जाता है। यह काल वैदिक सभ्यता के विकास और विस्तारण का समय है, जब सभ्यता गंगा-यमुना के मैदानों तक फैल गई। इस समय सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक परिवर्तनों की गति तेज हुई।
मुख्य विशेषताएँ:
- लोहे का प्रयोग प्रारंभ हुआ
- कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था का विस्तार
- राजतंत्र की स्थायित्व की ओर प्रगति
- ग्राम व्यवस्था एवं पंचायतों की स्थापना
- ब्राह्मणों का प्रभाव एवं सामाजिक वर्गीकरण (वर्ण व्यवस्था)
- उपनिषदों की रचना – दर्शन एवं ज्ञान पर जोर
धार्मिक परिवर्तन:
उत्तर वैदिक काल में बलि प्रथा और यज्ञों का प्रचलन बढ़ा। ईश्वर की धारणा अमूर्त रूप लेती गई। आत्मा, ब्रह्म, कर्म और पुनर्जन्म जैसे विषय प्रमुख बनते गए। इस काल की सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक कृतियाँ उपनिषद हैं, जो ज्ञानमार्ग को प्रस्तुत करती हैं।
राजनीतिक स्थिति:
महाजनपदों की स्थापना इसी काल की महत्वपूर्ण घटना थी। राजा अब केवल सेनानी नहीं, वरन् धर्मपालक भी माना जाता था। सभा और समिति की भूमिका कम हो गई, जबकि राजा का प्रभाव बढ़ता गया।
साहित्यिक उपलब्धियाँ:
- यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद की रचना
- ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक, उपनिषद
- ज्ञान और दर्शन का आरंभ
UPSC/RPSC उपयोगी बिंदु:
- उपनिषदों में आत्मा और ब्रह्म की व्याख्या
- महाजनपदों की अवधारणा और उनके उदय का कारण
- वर्ण व्यवस्था और ब्राह्मणवाद का प्रभाव
UPSC में पूछे गए प्रश्न:
- प्रश्न: उपनिषदों की मुख्य शिक्षाएँ क्या थीं?
उत्तर: आत्मा-ब्रह्म का एकत्व, ज्ञान मार्ग, पुनर्जन्म - प्रश्न: उत्तर वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था की क्या भूमिका थी?
उत्तर: समाज को वर्गीकृत कर शासन और धार्मिक व्यवस्था को सुदृढ़ किया गया
Part 7: जैन और बौद्ध धर्म | Jainism and Buddhism
परिचय:
प्राचीन भारत के धार्मिक और दार्शनिक विचारों में जैन धर्म और बौद्ध धर्म का विशेष स्थान है। ये दोनों धर्म 6वीं शताब्दी ई.पू. में श्रमण परंपरा से उत्पन्न हुए और भारतीय समाज, राजनीति और कला पर दीर्घकालिक प्रभाव डाले।
जैन धर्म (Jainism)
- संस्थापक: ऋषभदेव को पहला तीर्थंकर माना जाता है, परंतु महावीर (599–527 ई.पू.) को इसका अंतिम तीर्थंकर और वास्तविक संस्थापक माना गया।
- मुख्य सिद्धांत: अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह।
- त्रिरत्न: सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र।
- ग्रंथ: अंग, उपांग – पालि भाषा में नहीं, अपभ्रंश और संस्कृत में।
- संप्रदाय: श्वेतांबर और दिगंबर।
महावीर के जीवन से संबंधित तथ्य:
- जन्म – वैशाली (कुंडग्राम)
- पिता – सिद्धार्थ, माता – त्रिशला
- 30 वर्ष की आयु में संन्यास
- 12 वर्षों तक तपस्या
- निर्वाण – पावापुरी (बिहार)
बौद्ध धर्म (Buddhism)
- संस्थापक: गौतम बुद्ध (563–483 ई.पू.)
- जन्म: लुंबिनी (वर्तमान नेपाल)
- ज्ञान प्राप्ति: बोधगया, बिहार में बोधिवृक्ष के नीचे
- प्रथम उपदेश: सारनाथ (धर्मचक्र प्रवर्तन)
- महापरिनिर्वाण: कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)
मुख्य सिद्धांत:
- चार आर्य सत्य
- अष्टांगिक मार्ग
- पंचशील
- मध्यम मार्ग
बौद्ध संगीति:
- प्रथम – राजगृह, आजातशत्रु के काल में
- द्वितीय – वैशाली, कालाशोक के समय
- तृतीय – पाटलिपुत्र, अशोक के शासन में
- चतुर्थ – कुण्डलवन, कनिष्क के शासनकाल में
बौद्ध ग्रंथ:
- त्रिपिटक – विनय पिटक, सुत्त पिटक, अभिधम्म पिटक
- भाषा – पालि
UPSC/RPSC में पूछे गए प्रश्न:
- Q. महावीर का निर्वाण कहाँ हुआ? – पावापुरी
- Q. प्रथम बौद्ध संगीति कहाँ हुई? – राजगृह
- Q. बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश कहाँ दिया? – सारनाथ
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अगर आप UPSC/RPSC की तैयारी कर रहे हैं तो जैन और बौद्ध धर्म के सिद्धांत, जीवन तथ्य और इतिहास को गहराई से पढ़ें। ये विषय अक्सर प्रश्नपत्रों में पूछे जाते हैं।
Part 8: महाजनपद और मगध साम्राज्य
महाजनपद: वैदिक युग के बाद भारत में अनेक छोटे-बड़े राज्यों का उदय हुआ, जिन्हें 'महाजनपद' कहा जाता है। प्रारंभिक बौद्ध साहित्य 'अंगुत्तर निकाय' के अनुसार 16 महाजनपद थे।
- 1. अंग
- 2. मगध
- 3. काशी
- 4. कोसल
- 5. वत्स
- 6. वृजी
- 7. मल्ल
- 8. चेदि
- 9. कुरु
- 10. पांचाल
- 11. शूरसेन
- 12. मत्स्य
- 13. अश्मक
- 14. अवंती
- 15. गान्धार
- 16. कंबोज
इनमें से मगध सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली बना, जिसने आगे चलकर मौर्य साम्राज्य की नींव रखी।
मगध साम्राज्य:
मगध की प्रमुख राजवंश:
- हर्यंक वंश – बिंबिसार और अजातशत्रु
- शिशुनाग वंश – शिशुनाग और कालाशोक
- नंद वंश – महापद्मनंद
मगध के उत्कर्ष के कारण:
- गंगा घाटी की उपजाऊ भूमि
- लौह खनिज की उपलब्धता
- राजनीतिक सुदृढ़ता
- व्यापारिक मार्गों पर नियंत्रण
- संगठित सेना और प्रशासनिक कुशलता
UPSC/RPSC उपयोगी तथ्य:
- महाजनपदों की संख्या – 16
- सबसे पहले लौह धातु का प्रयोग – मगध
- प्रथम गणराज्य – वृजी संघ
- राजगृह और पाटलिपुत्र – मगध की दो प्रमुख राजधानियाँ
FAQs & Practice Questions:
- प्रश्न: सबसे शक्तिशाली महाजनपद कौन-सा था?
उत्तर: मगध - प्रश्न: वृजी संघ किस प्रकार का राज्य था?
उत्तर: गणराज्य - प्रश्न: हर्यंक वंश का संस्थापक कौन था?
उत्तर: बिंबिसार
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Part 9 : ईरानी और मकदूनियाई आक्रमण (Iranian & Macedonian Invasions)
1. ईरानी आक्रमण (6वीं-5वीं सदी ई.पू.)
ईरान के हखामनी शासकों (Achaemenid rulers) ने भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों पर आक्रमण किया। प्रथम प्रमुख शासक था – डेरियस प्रथम (Darius I) जिसने सिंधु क्षेत्र पर नियंत्रण किया।
- सिंधु क्षेत्र हखामनी साम्राज्य का 20वां प्रांत बना।
- इन्होंने कर वसूली, प्रशासनिक प्रणाली और सड़क निर्माण में योगदान दिया।
- भारत-ईरान सांस्कृतिक संबंध स्थापित हुए।
2. मकदूनियाई आक्रमण (Alexander’s Invasion – 326 BCE)
मकदूनिया (ग्रीस) के सम्राट अलेक्ज़ेंडर महान ने 326 ई.पू. में भारत पर आक्रमण किया।
- उसने सिन्धु पार किया और पोरस से युद्ध किया – ‘हाइडेस्पेस का युद्ध’।
- पोरस ने वीरता से मुकाबला किया और अलेक्ज़ेंडर ने उसे सम्मानपूर्वक पुनः राज्य सौंप दिया।
- अलेक्ज़ेंडर व्यास नदी पार नहीं कर सका – उसके सैनिकों ने मना कर दिया।
3. परिणाम
- भारत और यूनान के बीच व्यापार, कला व स्थापत्य में संपर्क बढ़ा।
- ग्रीक राजदूत मेगास्थनीज चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया।
- राजनीतिक रूप से मौर्य साम्राज्य के लिए रास्ता खुला।
UPSC/RPSC में पूछे गए प्रश्न
- Q: सिंधु क्षेत्र को अपना प्रांत बनाने वाला प्रथम ईरानी शासक कौन था?
Ans: डेरियस प्रथम - Q: अलेक्ज़ेंडर का युद्ध पोरस से कहाँ हुआ?
Ans: झेलम नदी (हाइडेस्पेस युद्ध) - Q: किस कारण अलेक्ज़ेंडर भारत के और अंदर नहीं बढ़ सका?
Ans: सैनिकों ने मना कर दिया।
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अब अगला भाग पढ़ें – मौर्य युग का विस्तार।
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Part 10: मौर्य युग (Maurya Empire)
मौर्य वंश प्राचीन भारत का प्रथम व्यापक साम्राज्य था जिसने लगभग पूरे उपमहाद्वीप को एक शासनतंत्र के अंतर्गत एकीकृत किया। यह साम्राज्य चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित किया गया था, जिसकी राजधानी पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) थी।
चंद्रगुप्त मौर्य
- चंद्रगुप्त ने चाणक्य (कौटिल्य) की सहायता से नंद वंश को पराजित किया।
- उसने सिकंदर के उत्तराधिकारियों (सेल्यूकस निकेटर) को हराया और 305 ई.पू. में संधि की।
- बिंदुसार उसका उत्तराधिकारी बना।
बिंदुसार
- बिंदुसार को अमित्रघात (दुश्मनों का संहारक) कहा जाता है।
- यूनानी स्रोतों में उसे "Amitrochates" कहा गया।
- उसका शासनकाल शांतिपूर्ण था।
अशोक महान
- अशोक ने कलिंग युद्ध (261 ई.पू.) के बाद बौद्ध धर्म अपना लिया।
- उसने धम्म नीति की शुरुआत की और शिलालेखों द्वारा उसका प्रचार किया।
- उसके स्तंभ लेख, शिलालेख और गुफा लेख महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
- अशोक का प्रतीक सारनाथ का सिंह स्तंभ भारत का राष्ट्रीय प्रतीक बना।
प्रशासनिक व्यवस्था
- राज्य प्रमुख सम्राट होता था।
- चाणक्य का अर्थशास्त्र मौर्य प्रशासन का महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
- प्रदेशों में कुमार अमात्य राज्यपाल के रूप में नियुक्त होते थे।
- गुप्तचरों का विशेष महत्व था।
अर्थव्यवस्था
- कृषि पर कर लगता था – भोग कर
- खनिज, पशुपालन, व्यापार, और शिल्प आधारित आय
- राजकीय नियंत्रण में भारी उद्योग
सांस्कृतिक योगदान
- अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार भारत और विदेशों में किया।
- बौद्ध विहारों, स्तूपों और शिलालेखों का निर्माण।
- संस्कृत और पालि साहित्य का विकास।
Important UPSC/RPSC Questions
- Q. मौर्य साम्राज्य की राजधानी क्या थी? पाटलिपुत्र
- Q. अशोक ने किस युद्ध के बाद बौद्ध धर्म अपनाया? कलिंग युद्ध
- Q. चाणक्य द्वारा रचित ग्रंथ कौन-सा था? अर्थशास्त्र
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Part 11 : मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम (Contacts with Central Asia and Their Consequences)
प्राचीन भारत के इतिहास में मध्य एशिया से हुआ संपर्क एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस संपर्क से भारत को न केवल राजनीतिक टकराव मिला, बल्कि सांस्कृतिक, व्यापारिक और धार्मिक आदान-प्रदान का अवसर भी मिला। यह लेख UPSC व RPSC परीक्षार्थियों हेतु इस ऐतिहासिक विषय को सरल एवं परीक्षा-उपयोगी भाषा में प्रस्तुत करता है।
1. मध्य एशिया से भारत के संपर्क का प्रारंभ
मौर्य काल के पश्चात् भारत और मध्य एशिया के बीच द्वार खुले। सिकंदर की विजय (326 BCE) के बाद से ही भारत और पश्चिम एशिया के बीच संपर्क तेज़ हुआ।
2. शकों का भारत आगमन
- शकों ने प्रथम शताब्दी BCE में भारत में प्रवेश किया।
- उनका सबसे प्रमुख शासक रुद्रदमन प्रथम था, जिसने जूनागढ़ शिलालेख में अपने विजय वर्णन किए।
- शकों ने व्यापार, सिक्कामुद्राएं और स्थापत्य में योगदान दिया।
3. कुषाण साम्राज्य का उदय
- कुषाणों का सबसे प्रसिद्ध शासक कनिष्क था।
- कनिष्क ने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया और कुशान साम्राज्य में गांधार कला का विकास हुआ।
- उनकी राजधानी पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) थी।
4. हूणों का आक्रमण
- हूणों ने 5वीं-6वीं शताब्दी में भारत पर आक्रमण किया।
- सबसे प्रमुख हूण नेता तोरमाण और मिहिरकुल थे।
- इनके आक्रमणों से गुप्त साम्राज्य को भारी क्षति हुई।
5. भारत पर समग्र प्रभाव
मध्य एशिया से संपर्क के प्रभाव इस प्रकार थे:
- राजनीतिक: भारत में नए राजवंशों का उदय हुआ।
- सांस्कृतिक: गांधार कला और मिश्रित स्थापत्य का विकास।
- धार्मिक: बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ।
- व्यापार: रेशम मार्ग के माध्यम से व्यापारिक संबंध मजबूत हुए।
6. UPSC/RPSC में पूछे गए प्रश्न
- प्रश्न (UPSC Prelims 2014): कनिष्क का संबंध किस राजवंश से था?
उत्तर: कुषाण - प्रश्न (RPSC Mains 2018): मध्य एशियाई संपर्कों से भारत की संस्कृति पर पड़े प्रभावों की विवेचना कीजिए।
7. Frequently Asked Questions (FAQs)
- Q: भारत में गांधार कला का उद्भव किसके संपर्क से हुआ?
A: शकों और कुशानों के मध्य एशियाई प्रभाव से। - Q: हूणों के आक्रमण का प्रमुख प्रभाव क्या रहा?
A: गुप्त साम्राज्य का पतन।
8. पढ़ाई के अगले कदम
अधिक तैयारी के लिए:
- गुप्त युग का अगला अध्याय पढ़ें
- हमारे टेलीग्राम चैनल से जुड़ें: Join Now
- Mock Test Series के लिए वेबसाइट विजिट करें: Sarkari Service Prep
Part 12 : सातवाहन युग
परिचय: सातवाहन वंश (1st Century BCE से 3rd Century CE) प्राचीन भारत का एक महत्वपूर्ण दक्षिणी राजवंश था, जिसने मौर्यों के पतन के बाद दक्षिण भारत में राजनीतिक एकता और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा दिया। इस वंश को आंध्र वंश भी कहा जाता है।
उत्पत्ति और संस्थापक
- सातवाहन वंश के संस्थापक सिमुक थे।
- इस वंश का उल्लेख 'आंध्र' नाम से पुण्यक inscription और कुछ पाली ग्रंथों में मिलता है।
महत्वपूर्ण शासक
- सातकर्णी-I: प्रारंभिक शासक जिन्होंने उत्तर और दक्षिण के कई क्षेत्रों पर अधिकार किया।
- गौतमिपुत्र सातकर्णी: सबसे प्रसिद्ध शासक जिन्होंने शक क्षत्रपों को हराया और स्वयं को “एक ब्राह्मण जो क्षत्रियों को नष्ट करता है” कहा।
- वशिष्ठिपुत्र पुलुमावी: गौतमिपुत्र के पुत्र जिन्होंने साम्राज्य को समृद्ध किया।
प्रशासनिक व्यवस्था
- राज्य शासनात्मक था – राजा सर्वोच्च अधिकारी होता था।
- मौर्य प्रणाली के कुछ तत्वों को अपनाया गया था।
- राजस्व प्रणाली भूमि कर पर आधारित थी।
धार्मिक स्थिति
- सातवाहन ब्राह्मण धर्म के समर्थक थे परंतु उन्होंने बौद्ध धर्म को भी संरक्षण दिया।
- बौद्ध स्तूपों का निर्माण – विशेषकर अमरावती और नागार्जुनकोंडा में।
सांस्कृतिक योगदान
- प्राकृत भाषा को राजकीय भाषा बनाया गया।
- अमरावती स्कूल ऑफ आर्ट का विकास हुआ।
- प्रसिद्ध वास्तुशिल्पीय केंद्र: नासिक, कनारी, और अमरावती
आर्थिक स्थिति
- रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार – सोने के सिक्कों की अधिकता।
- सातवाहन शासकों ने व्यापारिक मार्गों और बंदरगाहों का विकास किया।
- नाणेघाट शिलालेख व्यापारियों के योगदान को दर्शाता है।
पतन के कारण
- उत्तर-पश्चिम से शक क्षत्रपों का दबाव।
- उत्तर भारत के गुप्त शासकों का उत्थान।
- सातवाहन साम्राज्य का विघटन अनेक छोटे राज्यों में हो गया।
UPSC/RPSC परीक्षा उपयोगी तथ्य
- गौतमिपुत्र सातकर्णी – शक क्षत्रपों को हराने वाले शासक
- सातवाहन शासक ब्राह्मण धर्म के संरक्षक
- प्राकृत – राजकीय भाषा
- विदेशी व्यापार – मुख्यतः रोमन साम्राज्य से
- अमरावती – प्रमुख बौद्ध स्थापत्य केंद्र
प्रश्न-उत्तर (UPSC/RPSC Previous Year)
- Q: सातवाहन वंश की राजकीय भाषा क्या थी?
A: प्राकृत - Q: गौतमिपुत्र सातकर्णी किस वंश से संबंधित थे?
A: सातवाहन वंश - Q: सातवाहनों का प्रमुख बौद्ध स्थापत्य केंद्र कौनसा था?
A: अमरावती
Part 13 : सुदूर दक्षिण में इतिहास का आरंभ | Early History of Far South India
भारत के इतिहास में दक्षिण भारत का उल्लेख वैदिक साहित्य में सीमित रूप से होता है, परंतु वास्तविक इतिहास का आरंभ मुख्यतः मौर्यकालीन inscriptions, यूनानी-रोमन स्रोतों और संगम साहित्य से होता है। 'सुदूर दक्षिण' शब्द मुख्यतः द्रविड़ भाषी क्षेत्रों – तमिलनाडु, केरल, आंध्र और कर्नाटक के प्रारंभिक सामाजिक-राजनीतिक विकास को दर्शाता है।
1. ऐतिहासिक स्रोत | Historical Sources
- संगम साहित्य: तमिल भाषा में रचित कविताओं का विशाल भंडार जो तत्कालीन राजाओं, युद्धों, व्यापार और समाज की जानकारी देता है।
- अशोक के अभिलेख: दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में अशोक के शिलालेख मिले हैं जैसे - मास्की (कर्नाटक), ब्रह्मगिरि आदि।
- यूनानी-रोमन विवरण: टॉलमी, प्लिनी, पेरिप्लस जैसी कृतियाँ दक्षिण भारत के बंदरगाहों और व्यापार का प्रमाण देती हैं।
2. प्रमुख राज्य | Major Kingdoms
- चेर राज्य (केरल क्षेत्र): प्रमुख बंदरगाह – मुजिरिस। रोम और मध्य एशिया से मसालों का व्यापार।
- चोल राज्य (कावेरी डेल्टा क्षेत्र): उरैयूर और कांचीपुरम जैसे नगर। संगम काल में उन्नत प्रशासन और संस्कृति।
- पांड्य राज्य (दक्षिणी तमिलनाडु): मदुरै राजधानी, संगम साहित्य का प्रमुख केंद्र।
3. प्रशासन, समाज और अर्थव्यवस्था | Administration, Society & Economy
- राजतंत्र: राजा ही सर्वोच्च था परंतु मंत्रिपरिषद का सहयोग रहता था।
- सामाजिक ढाँचा: वर्ण व्यवस्था उतनी कठोर नहीं थी। मातृसत्तात्मक परंपराएँ भी थीं।
- व्यापार: समुद्री व्यापार अत्यंत उन्नत था। सोने-चाँदी के सिक्के, बर्तनों और मसालों का लेन-देन होता था।
4. संस्कृति एवं धर्म | Culture & Religion
- धर्म: प्रारंभ में शैव और वैष्णव परंपराएँ, जैन और बौद्ध प्रभाव भी प्रमुख।
- भाषा: तमिल भाषा का उत्कर्ष। संगम साहित्य का उत्कर्ष काल।
- कला: प्रारंभिक मंदिर स्थापत्य, मूर्तिकला का प्रारंभ।
‘मुजिरिस’ बंदरगाह का उल्लेख रोमन दस्तावेजों में मिलता है जहाँ से काली मिर्च और मसाले निर्यात किए जाते थे। इसे ‘Black Gold’ कहा जाता था।
UPSC/RPSC में पूछे गए प्रश्न | PYQs
- प्रश्न (UPSC Prelims 2011): संगम साहित्य किस क्षेत्र की प्राचीन सभ्यता से संबंधित है?
उत्तर: तमिलनाडु - प्रश्न (RPSC RAS 2018): मुजिरिस बंदरगाह कहाँ स्थित था?
उत्तर: केरल
✅ निष्कर्ष | Conclusion
सुदूर दक्षिण भारत का प्राचीन इतिहास अत्यंत समृद्ध, स्वतंत्र और विशिष्ट था। संगम साहित्य, व्यापारिक संपर्क और सांस्कृतिक विविधता इसे पूरे भारत के ऐतिहासिक विकास में एक अलग पहचान देता है।
Part 14 : गुप्त साम्राज्य: भारत का स्वर्ण युग | The Gupta Empire – The Golden Age of India
प्रस्तावना | Introduction
गुप्त साम्राज्य (लगभग 320–550 ई.) को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है। इस काल में कला, साहित्य, विज्ञान, गणित, ज्योतिष, धर्म और प्रशासन का अद्वितीय विकास हुआ। गुप्तों की राजधानी पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) थी।
प्रमुख शासक | Notable Rulers
- चंद्रगुप्त प्रथम (320–335 ई.): गुप्त साम्राज्य का संस्थापक। लिच्छवी वंश की राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह।
- समुद्रगुप्त (335–375 ई.): विजेता सम्राट, इलाहाबाद प्रशस्ति में उल्लेख। दक्षिण भारत तक विजय।
- चंद्रगुप्त द्वितीय (375–415 ई.): विक्रमादित्य की उपाधि, उज्जैन को दूसरी राजधानी बनाया, कैलाश मंदिर निर्माण।
- कुमारगुप्त (415–455 ई.): नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना।
- स्कंदगुप्त (455–467 ई.): हूण आक्रमणों को रोका।
शासन प्रणाली | Administration
- केंद्र में सम्राट सर्वोच्च, सहायता हेतु मंत्रिपरिषद।
- प्रशासनिक इकाइयाँ – भुक्ति (प्रांत), विशय (जिला), ग्राम (गाँव)।
- ग्राम स्तर पर पंचायत प्रणाली।
अर्थव्यवस्था और व्यापार | Economy & Trade
- भूमि कर (भूमिधर, भोग, कर)।
- सोने के सिक्के (दीनार), तांबा और चांदी के सिक्के।
- आंतरिक और समुद्री व्यापार – रेशम मार्ग, रोम, चीन, सुमात्रा से व्यापार।
धर्म और दर्शन | Religion & Philosophy
- हिंदू धर्म को राजकीय संरक्षण, विशेषकर वैष्णव धर्म।
- बौद्ध धर्म और जैन धर्म का भी संरक्षण।
- अनेक मंदिर, मठों और स्तूपों का निर्माण।
कला और स्थापत्य | Art & Architecture
- अजंता की गुफाएँ – चित्रकला की उत्कृष्टता।
- सांची, एलीफेंटा, देओगढ़ मंदिर।
- नक्काशीदार स्तंभ और गुफा मंदिर।
विज्ञान और शिक्षा | Science & Education
- आर्यभट: आर्यभटीय की रचना, शून्य की अवधारणा।
- वराहमिहिर: बृहत्संहिता – ज्योतिष पर ग्रंथ।
- नालंदा विश्वविद्यालय: अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त शिक्षा केंद्र।
साहित्य और भाषा | Literature & Language
- संस्कृत का स्वर्ण काल।
- कालिदास: अभिज्ञानशाकुंतलम्, रघुवंशम्।
- विशाखदत्त: मुद्राराक्षस।
- भास, भारवि और दंडी जैसे महान रचनाकार।
UPSC/RPSC पूर्ववर्ती प्रश्न | Previous Year Questions
- गुप्तकाल को स्वर्ण युग क्यों कहा गया है? (UPSC Prelims 2015)
- समुद्रगुप्त के दक्षिणी अभियानों का उल्लेख किस लेख में है? (RPSC RAS 2018)
निष्कर्ष | Conclusion
गुप्त साम्राज्य न केवल सैन्य शक्ति में अग्रणी था, बल्कि सांस्कृतिक और बौद्धिक दृष्टि से भी भारत का सर्वोच्च युग था। यह वह समय था जब भारत विश्व में ज्ञान, संस्कृति और कला का नेतृत्व करता था।
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Part 15 : हर्षवर्धन और उसका साम्राज्य (Harsha and His Empire)
हर्षवर्धन (राज्यकाल: 606–647 ई.) प्राचीन भारत के अंतिम महान सम्राटों में से एक थे, जिन्होंने उत्तर भारत में एक शक्तिशाली और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध साम्राज्य की स्थापना की। उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय को संरक्षण दिया और बौद्ध धर्म के प्रचार में योगदान दिया।
हर्ष का वंश और प्रारंभिक जीवन
- हर्षवर्धन पुष्यभूति वंश के थे।
- उनके पिता का नाम – प्रभाकरवर्धन (थानेश्वर के राजा)।
- भाई – राज्यवर्धन (जो कन्नौज के युद्ध में मारे गए)।
- बहन – राज्यश्री, जिसकी सहायता हेतु हर्ष ने युद्ध प्रारंभ किया।
हर्ष का राज्यारोहण और साम्राज्य विस्तार
- 606 ई. में हर्षवर्धन का राज्याभिषेक हुआ।
- प्रारंभ में थानेश्वर (हरियाणा) और फिर कन्नौज को राजधानी बनाया।
- पूर्वी भारत (मगध, बंगाल, उड़ीसा) को जीत लिया।
- दक्षिण विजय में चालुक्य सम्राट पुलकेशिन द्वितीय ने उन्हें रोक दिया (आह्वल युद्ध)।
प्रशासन और शासन व्यवस्था
- हर्ष ने प्रशासकीय रूप से एक केंद्रीकृत व्यवस्था अपनाई।
- राजस्व प्रणाली, भूमि वितरण, ग्राम पंचायत आदि संरचनाएं मजबूत थीं।
- धर्मिक सहिष्णुता और बौद्ध धर्म के प्रति गहरी आस्था थी।
धार्मिक नीति और संस्कृति
- स्वयं शैव धर्म के अनुयायी होते हुए भी बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया।
- प्रत्येक पाँच वर्ष में कन्यकुब्ज (कन्नौज) में महामोक्ष परिषद का आयोजन करते थे।
- बौद्ध भिक्षु 'ह्वेनसांग' ने भारत यात्रा कर हर्ष के शासनकाल का विस्तृत वर्णन किया।
साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान
- हर्ष स्वयं संस्कृत के महान लेखक थे।
- उनकी रचनाएँ: नागानंद, रत्नावली, प्रियदर्शिका।
- समकालीन विद्वानों में बाणभट्ट (हर्षचरित के लेखक) विशेष थे।
ह्वेनसांग का वर्णन
हर्षवर्धन की मृत्यु
- 647 ई. में हर्षवर्धन की मृत्यु हो गई।
- उनके बाद पुष्यभूति वंश का पतन हो गया।
- हर्ष के बाद भारत में एक लंबे समय तक केंद्रीय शक्ति का अभाव रहा।
UPSC/RPSC प्रश्न
- Q. हर्षवर्धन की राजधानी कौन-सी थी? – कन्नौज
- Q. ह्वेनसांग किस सम्राट के शासनकाल में भारत आया? – हर्षवर्धन
- Q. हर्षवर्धन द्वारा लिखित कोई एक नाटक बताइए – नागानंद
- Q. चालुक्य सम्राट जिसने हर्ष को दक्षिण में रोका – पुलकेशिन द्वितीय
क्या आपने जाना?
हर्षवर्धन ने भारत में शासन के साथ-साथ साहित्य, धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया। वह सम्राट थे, लेखक थे, और एक दूरदर्शी शासक भी।16. दक्कन और दक्षिण भारत के राज्य
States of Deccan and South India
परिचय: प्राचीन भारत के दक्कन और दक्षिणी क्षेत्र का राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास उत्तर भारत से अलग लेकिन उतना ही समृद्ध था। यहां पर पल्लव, चोल, पांड्य, चेर और सातवाहन जैसे शक्तिशाली राजवंशों ने शासन किया। इन राज्यों ने कला, स्थापत्य और व्यापार में अद्भुत योगदान दिया।
दक्कन के राज्य
- सातवाहन वंश: सबसे प्रमुख दक्कनी शक्ति। इसकी स्थापना सिमुक ने की थी और इसके प्रमुख शासक गौतमीपुत्र शातकर्णी रहे।
- वातापी के चालुक्य: पुलकेशिन II इस वंश के महान शासक थे, जिन्होंने हर्षवर्धन को भी पराजित किया।
- राष्ट्रकूट: इन्होंने चालुक्यों को हराया और दक्कन में सत्ता प्राप्त की। गोविंद III एवं अमोघवर्ष प्रमुख शासक थे।
दक्षिण भारत के राज्य
- पल्लव वंश: राजधानी कांची
- चेर वंश: मलयालम क्षेत्र के प्रमुख शासक। व्यापारिक गतिविधियों में अग्रणी।
- चोल वंश: प्राचीन चोलों से लेकर राजराज चोल और राजेंद्र चोल तक शक्तिशाली साम्राज्य। बृहदेश्वर मंदिर प्रसिद्ध।
- पांड्य वंश: मदुरै केन्द्र। रत्न व्यापार और संगम साहित्य का योगदान।
संस्कृति और योगदान
इन राज्यों ने तमिल, तेलुगु और कन्नड़ साहित्य, भव्य मंदिरों, मूर्तिकला और समुद्री व्यापार को बढ़ावा दिया। संगम साहित्य, महाबलीपुरम की गुफाएं और बृहदेश्वर मंदिर इनके योगदान को दर्शाते हैं।
UPSC/RPSC परीक्षा हेतु उपयोगी तथ्य:
- गौतमीपुत्र शातकर्णी की उपाधि: एकब्राह्मण।
- चालुक्य-राष्ट्रकूट संघर्ष से राजनीतिक अस्थिरता।
- संगम साहित्य: तमिल भाषा में रचित प्राचीन ग्रंथ।
- राजराज चोल ने बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण किया।
UPSC में आए प्रश्न:
- Q. पुलकेशिन द्वितीय का किस शासक से संघर्ष हुआ था?
Ans. हर्षवर्धन - Q. बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण किसने करवाया?
Ans. राजराज चोल - Q. संगम युग किस भाषा से संबंधित है?
Ans. तमिल
17. दर्शन का विकास (Development of Philosophy)
प्रस्तावना: भारत का दार्शनिक चिंतन विश्व के सबसे प्राचीन एवं समृद्ध दर्शन परंपराओं में से एक है। यह केवल आत्मा और ब्रह्म के बारे में ही नहीं, बल्कि जीवन, कर्म, मोक्ष, समाज और व्यवहार के गहरे प्रश्नों से भी जुड़ा है।
भारतीय दर्शन की प्रमुख विशेषताएं:
- श्रुति और स्मृति पर आधारित परंपरा
- सत्य की खोज में विविध दृष्टिकोणों का समावेश
- सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत जैसे षड्दर्शन
- चार्वाक, बौद्ध और जैन जैसे आगम दर्शन
- कर्म, पुनर्जन्म और मोक्ष की केंद्रीय अवधारणाएँ
षड्दर्शन (6 Orthodox Systems of Philosophy):
- सांख्य: कपिल मुनि द्वारा प्रतिपादित। यह प्रकृति (प्रकृति) और आत्मा (पुरुष) को दो शाश्वत तत्व मानता है।
- योग: पतंजलि द्वारा प्रतिपादित। आठ अंगों के माध्यम से चित्तवृत्ति निरोध और मोक्ष की प्राप्ति।
- न्याय: गौतम द्वारा रचित। तर्क, प्रमाण और ज्ञान की वैज्ञानिक विवेचना।
- वैशेषिक: कणाद द्वारा। पदार्थों की विशेषताओं (विशेष) पर केंद्रित।
- पूर्व मीमांसा: जैमिनि द्वारा। यज्ञ और कर्मकांड की प्रधानता।
- उत्तर मीमांसा (वेदांत): बादरायण (व्यास) द्वारा। आत्मा और ब्रह्म की अद्वैतात्मक एकता।
अन्य दर्शनों की भूमिका:
- बौद्ध दर्शन: दुःख, कारण, निरोध और मार्ग पर आधारित। चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग।
- जैन दर्शन: आत्मा की स्वतंत्रता, अहिंसा, अनेकांतवाद और संयम आधारित सिद्धांत।
- चार्वाक दर्शन: प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानने वाला भौतिकवादी मत।
दर्शन और समाज:
प्राचीन भारत का दर्शन केवल वैचारिक नहीं रहा, अपितु सामाजिक व्यवस्था, धर्म, शिक्षा और शासन प्रणाली में इसकी गहरी पैठ रही। न्याय, नीति, कर्म, भक्ति और मोक्ष जैसे विचारों का सामाजिक प्रभाव अत्यंत व्यापक था।
UPSC/RPSC के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण प्रश्न:
- सांख्य दर्शन में पुरुष और प्रकृति की अवधारणा पर प्रश्न
- बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य क्या हैं?
- जैन धर्म का अनेकांतवाद किसे कहते हैं?
- न्याय दर्शन में प्रमाणों के प्रकार
- योग दर्शन के आठ अंग
FAQs:
Q. कौन-सा दर्शन अद्वैतवाद का प्रतिपादन करता है?
Ans: उत्तर मीमांसा (वेदांत), विशेषकर शंकराचार्य द्वारा प्रतिपादित अद्वैतवाद।
Q. चार्वाक दर्शन का प्रमुख सिद्धांत क्या था?
Ans: प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानना और आत्मा-पुनर्जन्म का निषेध।
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