महिला दिवस 2025: नारी शक्ति का उत्सव
हर साल 8 मार्च को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों का उत्सव है। महिला दिवस 2025 का थीम (यदि संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित हुआ हो तो) समानता, समावेशिता और सशक्तिकरण को और अधिक प्रोत्साहित करने की दिशा में केंद्रित होगा।
आज महिलाएँ शिक्षा, विज्ञान, राजनीति, व्यवसाय, खेल और हर क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दे रही हैं। लेकिन समानता और अधिकारों की यह यात्रा अभी भी पूरी नहीं हुई है। यह दिन हमें महिलाओं के प्रति सम्मान, समान अवसर, और लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने के संकल्प की याद दिलाता है।
इस महिला दिवस 2025 पर हम सभी को संकल्प लेना चाहिए कि हम महिलाओं को हर क्षेत्र में समर्थन देंगे, उनकी आवाज़ को सुनेगें, और उनके अधिकारों के लिए कार्य करेंगे। क्योंकि जब एक महिला सशक्त होती है, तो पूरा समाज प्रगति करता है।
"नारी शक्ति को नमन – समृद्ध समाज की पहचान!" 💜💪
महिला दिवस 2025: समर्पित अध्यापिकाओं को नमन
अध्यापिकाएँ सिर्फ ज्ञान ही नहीं, संस्कार और आत्मविश्वास भी देती हैं। वे हर सुबह अपने घर और कक्षा के बीच संतुलन साधते हुए न जाने कितनी ज़िंदगियों को रोशन करती हैं। उनकी मेहनत, समर्पण और धैर्य से ही समाज का भविष्य आकार लेता है।
इस महिला दिवस 2025 पर हम उन सभी अध्यापिकाओं को नमन करते हैं, जो शिक्षा के माध्यम से समाज को सशक्त बना रही हैं।
"शिक्षा की ज्योत जलाने वाली हर अध्यापिका को सलाम!" 💜📖
अध्यापिका 🙏😊
अध्यापिकाएँ रोज़ निकलती हैं हड़बड़ी में,
सुबह-सुबह घर से स्कूल की राह में।
आधे रास्ते में यादों की हलचल,
"सिलेंडर बंद किया या नहीं?" की उलझन।
मन में सवाल, गीजर जलता तो नहीं रह गया?
टेबल पर छूटा आधा सैंडविच मुस्काता रह गया।
जितनी भी जल्दी उठें, जितनी तेज़ी से भागें,
विद्यालय की देहरी पर कदम रखते ही घड़ी मुस्काती,
मानो कह रही हो, "आज भी देर हो गई!"
खिसियाई हँसी में छिपी एक बेचैनी,
इंचार्ज का बुलावा, सिहरन की एक लहर।
मुस्कान के आवरण में छुपाकर थकान,
नाखूनों में फंसे आटे को हटाती हैं,
और फिर भी पूरी तन्मयता से पढ़ाती हैं।
बच्चों की मासूमियत में खो जाती हैं,
सास की दवाई की चिंता भी साथ लाती हैं।
न चाय का समय, न कोई विश्राम,
हर घड़ी में बस कार्य का ही नाम।
विद्यालय से निकलने को होती हैं कि,
ट्रेनिंग का फरमान आ जाता है।
देह की ऊर्जा जैसे सूख जाती है,
बच्चे की मनुहार कानों में गूंजती है।
वॉशरूम में बह जाती है एक चुप्पी की रुलाई,
गहरी साँस ले, फिर संवार लेती हैं कलाई।
ट्रेनिंग में बैठी, नज़र घड़ी पर टिकी,
ज़ेहन में घर, और फोन पर अनगिनत मिस्ड कॉल्स लिखी।
देर से घर पहुँचने पर शिकायतों का अम्बार,
संकोच, अपराधबोध, और अंदर की तकरार।
जल्दी-जल्दी समेटती हैं बिखरा हुआ संसार,
सबकी जरूरतों में घुलकर, खुद रह जाती हैं बेज़ार।
सुबह को भागदौड़ से सजा देती हैं,
रात को कामों से सुलझा देती हैं।
विद्यालय में तेजी से काम निपटाती हैं,
कि घर समय से पहुँचा जाए।
घर पर तेजी से काम करती हैं,
कि विद्यालय समय से जाया जाए।
हर वक्त, हर क्षण हड़बड़ी में जीती,
कभी मशीन-सी, कभी चाकरी की रीति।
आईने में झांकते सफेद बालों को देख मुस्काती हैं,
पर भीतर कहीं एक सवाल जगाती हैं –
क्या मैं कहीं खुद को भूल तो नहीं गई?
विद्यालय में, घर में, मोहल्ले में,
हर जगह चाहती हैं सबको खुश रखना,
पर खुद की खुशी कहाँ खो गई?
फिर भी हर सुबह नई ऊर्जा के संग,
फिर से तैयार, फिर से संग्राम,
क्योंकि अध्यापिकाएँ कभी थमती नहीं,
हर दिन एक नई कहानी लिखती हैं।
🙏 समस्त सम्माननीय महिला शिक्षिकाओं को समर्पित 🙏
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