RBSE Class 10 Science Question Paper 2024 (S-07) | Rajasthan Board Ajmer

| अक्टूबर 18, 2025
RBSE कक्षा 10 विज्ञान (S-07) - प्रश्न पत्र एवं हल 2024

राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर

माध्यमिक परीक्षा 2024 - विज्ञान (S-07)

कक्षा: दसवीं

विषय: विज्ञान (Science)

समय: 3 घंटे 15 मिनट

पूर्णांक: 80

परीक्षा कोड: S-07

सामान्य निर्देश

इस प्रश्न पत्र में कुल 22 प्रश्न हैं जो चार खंडों में विभाजित हैं - खंड अ, ब, स और द। सभी प्रश्न अनिवार्य हैं। खंड अ में प्रश्न संख्या 1 से 8 तक अति लघु उत्तरीय प्रश्न हैं जिनमें प्रत्येक 1 अंक का है। खंड ब में प्रश्न संख्या 9 से 14 तक लघु उत्तरीय प्रश्न हैं जिनमें प्रत्येक 2 अंक का है। खंड स में प्रश्न संख्या 15 से 19 तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रथम हैं जिनमें प्रत्येक 3 अंक का है। खंड द में प्रश्न संख्या 20 से 22 तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न द्वितीय हैं जिनमें प्रत्येक 5 अंक का है। कुछ प्रश्नों में आंतरिक विकल्प दिए गए हैं।

खंड - अ (अति लघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. रासायनिक अभिक्रिया का एक उदाहरण लिखिए। (1 अंक)

उत्तर: प्रकाश संश्लेषण एक रासायनिक अभिक्रिया का उदाहरण है। इसमें हरे पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड और जल से ग्लूकोज का निर्माण करते हैं। रासायनिक समीकरण: 6CO₂ + 6H₂O → C₆H₁₂O₆ + 6O₂

प्रश्न 2. अम्ल और क्षार में क्या अंतर है? (1 अंक)

उत्तर: अम्ल वे पदार्थ हैं जो जलीय विलयन में हाइड्रोजन आयन (H⁺) देते हैं। इनका स्वाद खट्टा होता है और ये नीले लिटमस पत्र को लाल कर देते हैं। उदाहरण: HCl, H₂SO₄। क्षार वे पदार्थ हैं जो जलीय विलयन में हाइड्रॉक्साइड आयन (OH⁻) देते हैं। इनका स्वाद कड़वा होता है और ये लाल लिटमस पत्र को नीला कर देते हैं। उदाहरण: NaOH, KOH।

प्रश्न 3. विद्युत धारा की SI इकाई क्या है? (1 अंक)

उत्तर: विद्युत धारा की SI इकाई एम्पीयर (Ampere) है, जिसे संकेत A से दर्शाया जाता है। एम्पीयर को इस प्रकार परिभाषित किया जाता है: यदि किसी चालक में एक कूलॉम आवेश एक सेकंड में प्रवाहित होता है, तो विद्युत धारा एक एम्पीयर कहलाती है। गणितीय रूप में: 1 एम्पीयर = 1 कूलॉम/1 सेकंड।

प्रश्न 4. उत्तल लेंस को अभिसारी लेंस क्यों कहते हैं? (1 अंक)

उत्तर: उत्तल लेंस को अभिसारी लेंस इसलिए कहते हैं क्योंकि यह अपने पर आपतित समांतर प्रकाश किरणों को अपवर्तन के बाद एक बिंदु पर अभिसरित (केंद्रित) कर देता है। यह बिंदु लेंस का मुख्य फोकस कहलाता है। उत्तल लेंस बीच से मोटा और किनारों से पतला होता है, जो प्रकाश किरणों को मोड़कर एक बिंदु पर एकत्रित करने में सहायक होता है।

प्रश्न 5. मनुष्य में नर युग्मक का निर्माण कहाँ होता है? (1 अंक)

उत्तर: मनुष्य में नर युग्मक (शुक्राणु) का निर्माण वृषण (Testes) में होता है। वृषण पुरुष की प्राथमिक जनन ग्रंथि है जो उदर गुहा के बाहर वृषण कोष (Scrotum) में स्थित होती है। वृषण में शुक्राणुजनन नलिकाएं होती हैं जहाँ शुक्राणुओं का निर्माण और परिपक्वन होता है। वृषण में टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन का भी स्राव होता है।

प्रश्न 6. आनुवंशिकता का जनक किसे कहा जाता है? (1 अंक)

उत्तर: ग्रेगर जॉन मेंडल (Gregor Johann Mendel) को आनुवंशिकता का जनक कहा जाता है। मेंडल ऑस्ट्रिया के एक भिक्षु और वैज्ञानिक थे जिन्होंने 1856 से 1863 के बीच मटर के पौधों पर व्यापक प्रयोग किए। उनके प्रयोगों से आनुवंशिकता के मूलभूत नियमों की खोज हुई जिन्हें मेंडल के आनुवंशिकता के नियम कहते हैं।

प्रश्न 7. पारिस्थितिक तंत्र किसे कहते हैं? (1 अंक)

उत्तर: पारिस्थितिक तंत्र या पारितंत्र (Ecosystem) किसी विशेष क्षेत्र के सभी जैविक घटकों (पेड़-पौधे, जीव-जंतु, सूक्ष्मजीव) और अजैविक घटकों (मृदा, जल, वायु, प्रकाश, तापमान) के बीच होने वाली परस्पर क्रियाओं की एक स्व-निर्भर और स्व-नियंत्रित इकाई है। यह प्रकृति की एक कार्यात्मक इकाई है जहाँ जैविक और अजैविक घटक एक-दूसरे से संबंधित होते हैं।

प्रश्न 8. ओजोन परत का क्या महत्व है? (1 अंक)

उत्तर: ओजोन परत वायुमंडल के समताप मंडल में स्थित एक सुरक्षा कवच है जो सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी (UV) विकिरणों को अवशोषित कर लेती है। यह परत पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करती है क्योंकि UV विकिरण त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद और प्रतिरक्षा तंत्र को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ओजोन परत के बिना पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं होता।

खंड - ब (लघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 9. संतुलित रासायनिक समीकरण लिखने का क्या महत्व है? उदाहरण सहित समझाइए। (2 अंक)

उत्तर: संतुलित रासायनिक समीकरण का महत्व द्रव्यमान संरक्षण के नियम को संतुष्ट करने में है। इस नियम के अनुसार, किसी भी रासायनिक अभिक्रिया में द्रव्यमान का न तो सृजन होता है और न ही विनाश होता है। संतुलित समीकरण यह सुनिश्चित करता है कि अभिक्रिया से पहले और बाद में प्रत्येक तत्व के परमाणुओं की संख्या समान रहे।

उदाहरण: असंतुलित समीकरण: H₂ + O₂ → H₂O

संतुलित समीकरण: 2H₂ + O₂ → 2H₂O

संतुलित समीकरण से हमें अभिकारकों और उत्पादों की सही मात्रा का ज्ञान होता है। यह रासायनिक गणनाओं के लिए आवश्यक है और औद्योगिक प्रक्रियाओं में कच्चे माल की सही मात्रा निर्धारित करने में सहायक होता है।

प्रश्न 10. ऑक्सीकरण और अपचयन अभिक्रिया को उदाहरण सहित समझाइए। (2 अंक)

उत्तर: ऑक्सीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें किसी पदार्थ में ऑक्सीजन की वृद्धि या हाइड्रोजन की कमी होती है, अथवा इलेक्ट्रॉनों का ह्रास होता है। अपचयन वह प्रक्रिया है जिसमें किसी पदार्थ में ऑक्सीजन की कमी या हाइड्रोजन की वृद्धि होती है, अथवा इलेक्ट्रॉनों का लाभ होता है।

उदाहरण: CuO + H₂ → Cu + H₂O

इस अभिक्रिया में:

CuO का अपचयन हो रहा है क्योंकि इससे ऑक्सीजन निकल रही है और Cu प्राप्त हो रहा है।

H₂ का ऑक्सीकरण हो रहा है क्योंकि इसमें ऑक्सीजन जुड़ रही है और H₂O बन रहा है।

ऑक्सीकरण और अपचयन एक साथ होते हैं, इसलिए इन्हें रेडॉक्स अभिक्रिया (Redox Reaction) कहते हैं।

प्रश्न 11. ओम का नियम लिखिए और इसका सत्यापन करने के लिए एक प्रयोग का वर्णन कीजिए। (2 अंक)

उत्तर: ओम का नियम: यदि किसी चालक की भौतिक अवस्था (जैसे ताप) में कोई परिवर्तन न हो, तो उसके सिरों पर लगाया गया विभवांतर उसमें प्रवाहित विद्युत धारा के समानुपाती होता है। गणितीय रूप में: V ∝ I या V = IR, जहाँ R चालक का प्रतिरोध है।

    ओम के नियम का परिपथ
    
         (+) ●─────────┬─────────● (-)
              बैटरी    │
                      ╱
              A   ───( A )───  एमीटर (धारा मापन)
                      ╲
                       │
                       R  प्रतिरोध/चालक
                       │
                       ├──●──●─── वोल्टमीटर
                       │    V    (विभवांतर मापन)
                       │
                       K  कुंजी (Key)
                       │
         ●─────────────┴─────────●
    
    सूत्र: V = I × R
    
    V = विभवांतर (Volt)
    I = धारा (Ampere)
    R = प्रतिरोध (Ohm, Ω)
    
    ग्राफ: V vs I
         V ↑
           │    ╱
           │   ╱  (सीधी रेखा)
           │  ╱   ढाल = R
           │ ╱
           │╱________→ I
           O

प्रयोग का वर्णन: एक चालक तार को बैटरी, एमीटर, वोल्टमीटर और कुंजी से जोड़कर एक परिपथ बनाते हैं। बैटरी में सेलों की संख्या बदलकर विभिन्न विभवांतर लगाते हैं और प्रत्येक बार एमीटर से धारा तथा वोल्टमीटर से विभवांतर मापते हैं। विभवांतर V और धारा I के बीच ग्राफ खींचने पर एक सीधी रेखा प्राप्त होती है जो मूल बिंदु से गुजरती है। यह दर्शाता है कि V ∝ I। रेखा का ढाल (V/I) स्थिर रहता है जो प्रतिरोध R को दर्शाता है।

प्रश्न 12. विद्युत मोटर का सिद्धांत समझाइए। (2 अंक)

उत्तर: विद्युत मोटर विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करने वाली युक्ति है। यह विद्युत धारावाही चालक पर चुंबकीय क्षेत्र में लगने वाले बल के सिद्धांत पर कार्य करती है।

विद्युत मोटर का चित्र:

           ब्रश (Brush)
              ↓
    ┌─────────●─────────┐
    |    दिक्परिवर्तक   |
    |   (Commutator)    |
    |         ▲         |
    |     ____|____     |
    |    |  कुंडली |    |
    |    |   ABCD  |    |    
    N ← [========] → S
        |    ↑    |
    चुंबक  घूर्णन  चुंबक
    (North) अक्ष (South)
        |         |
        └─────────┘
         बल युग्म
    
    बल की दिशा: फ्लेमिंग का वाम-हस्त नियम
    • अंगूठा = बल (Force)
    • तर्जनी = चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic field)
    • मध्यमा = धारा (Current)

जब किसी आयताकार कुंडली को शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है और कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो कुंडली की भुजाओं पर विपरीत दिशाओं में बल लगते हैं। फ्लेमिंग के वाम-हस्त नियम के अनुसार, एक भुजा ऊपर की ओर और दूसरी नीचे की ओर धकेली जाती है। इस प्रकार कुंडली पर एक बल युग्म (Couple) का प्रभाव होता है जो कुंडली को अक्ष पर घुमाता है। दिक्परिवर्तक (Commutator) की सहायता से प्रत्येक अर्ध घूर्णन पर धारा की दिशा बदल दी जाती है, जिससे कुंडली निरंतर घूर्णन करती रहती है।

प्रश्न 13. पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को रासायनिक समीकरण द्वारा दर्शाइए। यह प्रक्रिया पत्तियों के किस भाग में होती है? (2 अंक)

उत्तर: प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया का रासायनिक समीकरण:

6CO₂ + 6H₂O + सूर्य का प्रकाश → C₆H₁₂O₆ + 6O₂

(क्लोरोफिल की उपस्थिति में)

या

कार्बन डाइऑक्साइड + जल + सूर्य का प्रकाश → ग्लूकोज + ऑक्सीजन

प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया पत्तियों की कोशिकाओं में उपस्थित हरितलवक (Chloroplast) में होती है। हरितलवक में क्लोरोफिल वर्णक पाया जाता है जो सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करता है। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से पत्तियों की मीसोफिल कोशिकाओं में होती है क्योंकि वहाँ अधिक संख्या में हरितलवक उपस्थित होते हैं। पत्तियों की सतह पर उपस्थित रंध्र (Stomata) से कार्बन डाइऑक्साइड प्रवेश करती है और ऑक्सीजन बाहर निकलती है।

प्रश्न 14. मानव श्वसन तंत्र का नामांकित चित्र बनाइए। (2 अंक)

अथवा

मानव हृदय का नामांकित चित्र बनाइए।

उत्तर: मानव श्वसन तंत्र का चित्र:

                    नासिका (Nose)
                         |
                         |
                    ग्रसनी (Pharynx)
                         |
                         |
                  स्वर यंत्र (Larynx)
                         |
                         |
                   श्वास नली (Trachea)
                         |
                    _____|_____
                   |           |
              बायीं श्वसनी   दायीं श्वसनी
              (Left Bronchus) (Right Bronchus)
                   |           |
              _____|_____   ___|_____
             |     |     | |   |     |
        बायां फेफड़ा      दायां फेफड़ा
        (Left Lung)      (Right Lung)
         [कूपिकाएं]       [कूपिकाएं]
         (Alveoli)       (Alveoli)
                         
    ============================================
              डायाफ्राम (Diaphragm)

मानव श्वसन तंत्र के मुख्य भाग:

  1. नासिका (Nose): श्वसन तंत्र का प्रवेश द्वार, वायु को गर्म और आर्द्र करती है
  2. ग्रसनी (Pharynx): नासिका के पीछे स्थित, भोजन और वायु का सामान्य मार्ग
  3. स्वर यंत्र (Larynx): वाक् तंतु युक्त, ध्वनि उत्पन्न करता है
  4. श्वास नली (Trachea): C-आकार की उपास्थि से बनी, लगभग 12 cm लंबी
  5. श्वसनी (Bronchi): श्वास नली की दो शाखाएं जो प्रत्येक फेफड़े में जाती हैं
  6. फेफड़े (Lungs): दाएं और बाएं दो भाग, स्पंजी संरचना
  7. कूपिका (Alveoli): गैसों के आदान-प्रदान का स्थल, लगभग 30 करोड़ कूपिकाएं
  8. डायाफ्राम (Diaphragm): पेशीय विभाजक, श्वसन में सहायक

श्वसन प्रक्रिया में वायु नासिका से होकर श्वास नली में जाती है, फिर श्वसनियों द्वारा फेफड़ों तक पहुंचती है। फेफड़ों में लाखों कूपिकाएं होती हैं जहाँ ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान होता है।

अथवा

मानव हृदय का चित्र:

       फेफड़ों से          फेफड़ों को
     फुफ्फुस शिरा       फुफ्फुस धमनी
     (Pulmonary Vein)  (Pulmonary Artery)
            |               |
            ↓               ↑
      ┌─────────────────────────┐
      |    बायां अलिंद          |  महाशिरा
      |   (Left Atrium)         |  (Vena Cava)
      |  [O₂ युक्त रक्त]        |      ↓
      ├────────┬────────────────┤  ┌───────┐
      |        | द्विवलन कपाट   |  │ दायां  │
      |        | (Bicuspid)     |  │ अलिंद  │
      |  बायां निलय             |  │(Right  │
      | (Left Ventricle)        |  │Atrium) │
      | [मोटी दीवार]            |  └───┬───┘
      |  [O₂ युक्त रक्त]        |  त्रिवलन
      └────────┬────────────────┤  कपाट
               ↓                |  ┌───────┐
          महाधमनी              |  │ दायां  │
          (Aorta)              |  │ निलय  │
       शरीर के सभी भागों को    |  │(Right  │
                               |  │Ventric)│
                               |  └───────┘
                               |      ↑
                               └──────┘
                             फेफड़ों को

मानव हृदय के मुख्य भाग:

  1. दायां अलिंद (Right Atrium): शरीर से ऑक्सीजन रहित रक्त महाशिरा द्वारा प्राप्त करता है
  2. दायां निलय (Right Ventricle): रक्त को फुफ्फुस धमनी द्वारा फेफड़ों में शुद्धिकरण के लिए भेजता है
  3. बायां अलिंद (Left Atrium): फेफड़ों से ऑक्सीजन युक्त रक्त फुफ्फुस शिरा द्वारा प्राप्त करता है
  4. बायां निलय (Left Ventricle): ऑक्सीजन युक्त रक्त को महाधमनी द्वारा पूरे शरीर में भेजता है (सबसे मोटी दीवार)
  5. महाधमनी (Aorta): शरीर की सबसे बड़ी धमनी, शुद्ध रक्त शरीर के सभी भागों को वितरित करती है
  6. फुफ्फुस धमनी (Pulmonary Artery): अशुद्ध रक्त फेफड़ों को पहुंचाती है
  7. फुफ्फुस शिरा (Pulmonary Vein): शुद्ध रक्त फेफड़ों से लाती है
  8. कपाट (Valves): द्विवलन और त्रिवलन कपाट रक्त के प्रवाह को एकदिशीय बनाते हैं

हृदय चार कोष्ठों वाला एक पेशीय अंग है जो रक्त को पंप करता है। यह वक्ष गुहा में बाईं ओर थोड़ा झुका हुआ स्थित होता है। हृदय प्रति मिनट लगभग 72 बार धड़कता है और प्रतिदिन लगभग 7200 लीटर रक्त पंप करता है।

खंड - स (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रथम)

प्रश्न 15. धातुओं के भौतिक गुणों का वर्णन कीजिए। कोई पांच गुण लिखिए। (3 अंक)

उत्तर: धातुओं के प्रमुख भौतिक गुण निम्नलिखित हैं:

1. धात्विक चमक (Metallic Lustre): धातुओं की सतह पर विशिष्ट चमक होती है। घिसने या काटने पर धातुएं चमकती हैं। सोना, चांदी और तांबा इसके उत्तम उदाहरण हैं।

2. कठोरता (Hardness): सामान्यतः धातुएं कठोर होती हैं। अधिकांश धातुओं को काटना कठिन होता है। हालांकि, सोडियम और पोटैशियम जैसी क्षार धातुएं मुलायम होती हैं और चाकू से काटी जा सकती हैं।

3. आघातवर्ध्यता (Malleability): धातुओं को पीटकर पतली चादरें बनाई जा सकती हैं। सोना सबसे अधिक आघातवर्ध्य धातु है। इसे इतना पतला खींचा जा सकता है कि 1 ग्राम सोने से लगभग 1 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल की चादर बनाई जा सकती है।

4. तन्यता (Ductility): धातुओं को खींचकर तार बनाया जा सकता है। सोना, चांदी और तांबा अत्यधिक तन्य धातुएं हैं। 100 ग्राम चांदी से 200 किलोमीटर लंबा तार बनाया जा सकता है।

5. ऊष्मा और विद्युत का चालन (Conduction of Heat and Electricity): धातुएं ऊष्मा और विद्युत की सुचालक होती हैं। चांदी और तांबा विद्युत के सर्वोत्तम चालक हैं। धातुओं के मुक्त इलेक्ट्रॉन विद्युत चालन के लिए उत्तरदायी होते हैं।

अतिरिक्त गुण: धातुएं सामान्यतः कमरे के ताप पर ठोस अवस्था में होती हैं (पारा अपवाद है), इनके उच्च गलनांक और क्वथनांक होते हैं, और ये ध्वानिक (sonorous) होती हैं - अर्थात पीटने पर ध्वनि उत्पन्न करती हैं।

प्रश्न 16. श्रेणीक्रम संयोजन और समांतर क्रम संयोजन में क्या अंतर है? प्रत्येक के लिए प्रतिरोधों का तुल्य प्रतिरोध ज्ञात करने का सूत्र लिखिए। (3 अंक)

उत्तर: विद्युत परिपथ में प्रतिरोधों को दो प्रकार से जोड़ा जा सकता है:

श्रेणीक्रम संयोजन (Series Combination):

    (+)●────[R₁]────[R₂]────[R₃]────●(-)
         बैटरी
    
    धारा (I) सभी में समान
    I → [R₁] → [R₂] → [R₃] →
    
    विभवांतर: V = V₁ + V₂ + V₃
    तुल्य प्रतिरोध: R = R₁ + R₂ + R₃

इस संयोजन में प्रतिरोध एक-दूसरे के साथ क्रम में जुड़े होते हैं। एक प्रतिरोध का अंतिम सिरा दूसरे के प्रारंभिक सिरे से जुड़ा होता है। इस संयोजन में:

  1. सभी प्रतिरोधों में समान धारा प्रवाहित होती है
  2. कुल विभवांतर अलग-अलग प्रतिरोधों पर विभवांतरों के योग के बराबर होता है
  3. तुल्य प्रतिरोध सभी प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है

तुल्य प्रतिरोध का सूत्र: R = R₁ + R₂ + R₃ + ...

श्रेणीक्रम में तुल्य प्रतिरोध सदैव किसी भी व्यक्तिगत प्रतिरोध से अधिक होता है।

समांतर क्रम संयोजन (Parallel Combination):

              ┌───[R₁]───┐
              │          │
    (+)●──────┼───[R₂]───┼──────●(-)
         बैटरी│          │
              └───[R₃]───┘
    
    विभवांतर (V) सभी में समान
    
    धारा: I = I₁ + I₂ + I₃
    तुल्य प्रतिरोध: 1/R = 1/R₁ + 1/R₂ + 1/R₃

इस संयोजन में सभी प्रतिरोधों के प्रारंभिक सिरे एक बिंदु पर और अंतिम सिरे दूसरे बिंदु पर जुड़े होते हैं। इस संयोजन में:

  1. सभी प्रतिरोधों के सिरों पर समान विभवांतर होता है
  2. कुल धारा अलग-अलग प्रतिरोधों में प्रवाहित धाराओं के योग के बराबर होती है
  3. तुल्य प्रतिरोध व्यक्तिगत प्रतिरोधों से कम होता है

तुल्य प्रतिरोध का सूत्र: 1/R = 1/R₁ + 1/R₂ + 1/R₃ + ...

समांतर क्रम में तुल्य प्रतिरोध सदैव किसी भी व्यक्तिगत प्रतिरोध से कम होता है। घरेलू विद्युत परिपथों में समांतर क्रम संयोजन का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 17. प्रकाश के अपवर्तन से आप क्या समझते हैं? अपवर्तन के नियम लिखिए। (3 अंक)

उत्तर: प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of Light) वह घटना है जिसमें प्रकाश की किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करते समय अपनी दिशा बदल देती है। यह परिवर्तन दोनों माध्यमों के अपवर्तनांकों में अंतर के कारण होता है। जब प्रकाश विरल माध्यम से सघन माध्यम में जाता है तो अभिलंब की ओर मुड़ जाता है, और जब सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाता है तो अभिलंब से दूर हट जाता है।

    प्रकाश का अपवर्तन
    
    वायु (विरल माध्यम) n₁
    ─────────────────────────
         |      ╱
         |     ╱  आपतित किरण
         | i  ╱
         |   ╱
         |  ╱
         | ╱
         |╱__________ अभिलंब
         ●
        ╱|
       ╱ |
      ╱  | r
     ╱   |
    ╱    |  अपवर्तित किरण
    
    जल/काँच (सघन माध्यम) n₂
    ─────────────────────────
    
    i = आपतन कोण (Angle of Incidence)
    r = अपवर्तन कोण (Angle of Refraction)
    
    स्नेल का नियम: sin i / sin r = n₂/n₁

अपवर्तन के नियम:

प्रथम नियम: आपतित किरण, अपवर्तित किरण और आपतन बिंदु पर अभिलंब तीनों एक ही तल में होते हैं।

द्वितीय नियम (स्नेल का नियम): किन्हीं दो माध्यमों के लिए आपतन कोण की ज्या (sine) और अपवर्तन कोण की ज्या का अनुपात एक नियतांक होता है। इस नियतांक को दूसरे माध्यम का पहले माध्यम के सापेक्ष अपवर्तनांक कहते हैं।

गणितीय रूप में: sin i / sin r = n₂₁ = n₂/n₁

जहाँ i = आपतन कोण, r = अपवर्तन कोण, n₂₁ = माध्यम 2 का माध्यम 1 के सापेक्ष अपवर्तनांक, n₁ = माध्यम 1 का निरपेक्ष अपवर्तनांक, n₂ = माध्यम 2 का निरपेक्ष अपवर्तनांक।

अपवर्तन के कारण ही तालाब का पानी उथला दिखाई देता है, पानी में डूबी छड़ी टेढ़ी दिखती है, और लेंस तथा प्रिज्म प्रकाश को मोड़ने में सक्षम होते हैं।

प्रश्न 18. मानव में उत्सर्जन तंत्र का वर्णन कीजिए। वृक्क (गुर्दे) की संरचना और कार्य समझाइए। (3 अंक)

उत्तर: मानव उत्सर्जन तंत्र शरीर से हानिकारक उपापचयी अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने का कार्य करता है। इस तंत्र के मुख्य अंग हैं:

  1. वृक्क या गुर्दे (Kidneys) - एक जोड़ी
  2. मूत्रवाहिनी (Ureters) - दो नलिकाएं
  3. मूत्राशय (Urinary Bladder) - एक थैली
  4. मूत्रमार्ग (Urethra) - एक नलिका

वृक्क की संरचना:

वृक्क सेम के बीज के आकार के लगभग 10-12 सेमी लंबे अंग हैं जो उदर गुहा में रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर स्थित होते हैं। प्रत्येक वृक्क में लगभग 10 लाख सूक्ष्म नलिकाकार संरचनाएं होती हैं जिन्हें वृक्काणु या नेफ्रॉन (Nephron) कहते हैं। नेफ्रॉन वृक्क की कार्यात्मक इकाई है।

नेफ्रॉन के मुख्य भाग:

    नेफ्रॉन की संरचना (वृक्काणु)
    
       अभिवाही धमनिका
       (Afferent Arteriole)
              ↓
         ╔════●════╗
         ║ ग्लोमेरुलस║  अपवाही धमनिका
         ║ (कोशिका  ║  (Efferent Arteriole)
         ║  गुच्छ)  ║       →
         ╚════╤════╝
         ┌────┴────┐
         │ बोमन   │ छानना (Filtration)
         │ संपुट  │ [रक्त से जल, ग्लूकोज,
         └────┬────┘  लवण, यूरिया]
              │
         समीपस्थ│
         कुंडलित│ पुनः अवशोषण
         नलिका │ (Reabsorption)
              │ [ग्लूकोज, जल, लवण]
              │
         हेनले │
         लूप  │
              │
         दूरस्थ│
         कुंडलित│ स्रावण (Secretion)
         नलिका │ [अतिरिक्त लवण, H⁺]
              │
              ↓
         संग्रह वाहिनी
         (Collecting Duct)
              ↓
            मूत्र
  1. कोशिका गुच्छ या ग्लोमेरुलस (Glomerulus): केशिकाओं का गुच्छा
  2. बोमन संपुट (Bowman's Capsule): कोशिका गुच्छ को घेरने वाली प्याले नुमा संरचना
  3. वृक्क नलिका (Renal Tubule): एक लंबी नलिका जो संग्रह वाहिनी में खुलती है

वृक्क के कार्य:

  1. छानना (Filtration): रक्त ग्लोमेरुलस में छनता है। जल, ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, लवण और यूरिया बोमन संपुट में आ जाते हैं।
  2. पुनः अवशोषण (Reabsorption): उपयोगी पदार्थ जैसे ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, लवण और अधिकांश जल वृक्क नलिका में पुनः रक्त में अवशोषित हो जाते हैं।
  3. स्रावण (Secretion): अतिरिक्त लवण और अपशिष्ट पदार्थ नलिका में स्रावित होते हैं।
  4. मूत्र निर्माण: शेष द्रव जिसमें यूरिया, यूरिक अम्ल और अन्य अपशिष्ट होते हैं, मूत्र के रूप में मूत्रवाहिनी द्वारा मूत्राशय में जमा हो जाता है।

वृक्क रक्त को शुद्ध करके शरीर में जल और लवणों का संतुलन बनाए रखते हैं। एक स्वस्थ वयस्क में प्रतिदिन लगभग 180 लीटर रक्त छनता है और लगभग 1.5-2 लीटर मूत्र बनता है।

प्रश्न 19. DNA की संरचना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। DNA का पूर्ण नाम और इसके कार्य लिखिए। (3 अंक)

अथवा

पुष्प के विभिन्न भागों का वर्णन कीजिए और नर तथा मादा जनन अंग कौन से हैं?

उत्तर: DNA का पूर्ण नाम: डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल (Deoxyribonucleic Acid)

DNA की संरचना:

DNA की संरचना की खोज जेम्स वॉटसन और फ्रांसिस क्रिक ने 1953 में की थी। DNA एक द्विकुंडलित (Double Helix) अणु है जो दो समानांतर श्रृंखलाओं से बना होता है।

    DNA की द्विकुंडली संरचना (Double Helix)
    
    फॉस्फेट-शर्करा   क्षार जोड़े    फॉस्फेट-शर्करा
       श्रृंखला                      श्रृंखला
          |                              |
       [P-S]-------- A = T --------[S-P]
          |                              |
       [P-S]-------- T = A --------[S-P]
          |                              |
       [P-S]-------- C ≡ G --------[S-P]
          |                              |
       [P-S]-------- G ≡ C --------[S-P]
          |                              |
       [P-S]-------- A = T --------[S-P]
          |                              |
       [P-S]-------- G ≡ C --------[S-P]
          |                              |
    
    P = फॉस्फेट (Phosphate)
    S = शर्करा (डीऑक्सीराइबोज़)
    A = एडेनीन (Adenine)
    T = थायमीन (Thymine)
    G = ग्वानीन (Guanine)
    C = साइटोसीन (Cytosine)
    
    = दो हाइड्रोजन बंध
    ≡ तीन हाइड्रोजन बंध

DNA की मूल इकाइयां:

  1. न्यूक्लिओटाइड (Nucleotide): DNA की मूल इकाई जो तीन भागों से बनी होती है - एक नाइट्रोजन युक्त क्षार, एक पंच कार्बन शर्करा (डीऑक्सीराइबोज), और एक फॉस्फेट समूह।
  2. क्षार (Bases): DNA में चार प्रकार के नाइट्रोजनी क्षार होते हैं - एडेनीन (A), थायमीन (T), ग्वानीन (G), और साइटोसीन (C)। एडेनीन सदैव थायमीन से और ग्वानीन सदैव साइटोसीन से जुड़ता है।
  3. द्विकुंडली संरचना: दो श्रृंखलाएं एक-दूसरे के चारों ओर कुंडलित रहती हैं और क्षारों के बीच हाइड्रोजन बंधों द्वारा जुड़ी होती हैं। यह सीढ़ी की तरह दिखती है जहाँ शर्करा-फॉस्फेट श्रृंखलाएं बाहरी भाग बनाती हैं और क्षार जोड़े सीढ़ी के डंडों की तरह अंदर होते हैं।

DNA के कार्य:

  1. आनुवंशिक सूचना का संग्रहण: DNA में जीव की सभी आनुवंशिक सूचनाएं संग्रहीत रहती हैं। क्षारों का क्रम आनुवंशिक कोड निर्धारित करता है।
  2. प्रतिकृतिकरण (Replication): कोशिका विभाजन से पहले DNA अपनी प्रतिलिपि बनाता है जिससे आनुवंशिक सूचना संतति कोशिकाओं में पहुंचती है।
  3. प्रोटीन संश्लेषण का नियंत्रण: DNA में उपस्थित जीन प्रोटीन संश्लेषण को निर्देशित करते हैं। RNA की मध्यस्थता से DNA की सूचना प्रोटीन में अनुवादित होती है।
  4. विभिन्नता का आधार: DNA में उत्परिवर्तन (Mutation) के कारण नए लक्षण उत्पन्न होते हैं जो जैव विकास का आधार हैं।

DNA जीवन का आणविक आधार है और यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी लक्षणों के संचरण के लिए उत्तरदायी है।

अथवा

पुष्प की संरचना:

        पुष्प के भाग (Flower Parts)
        
            वर्तिकाग्र (Stigma)
                 |
            वर्तिका (Style)    परागकोश
                 |            (Anther)
                 |    ___──●     |
            स्त्रीकेसर ╱       पुंतंतु
           (Carpel) |        (Filament)
                    |           |
                अंडाशय ●        पुंकेसर
               (Ovary)        (Stamen)
              [बीजांड]          
        ┌──────────────────────────┐
        │    ╱ ╲  दल/पंखुड़ियाँ   │
        │   ●   ● (Petals)         │
        │  ╱     ╲ [रंगीन]        │
        │ ●       ●                │
        │╱    ●    ╲               │
        └──────┬─────────────────── ┘
          बाह्यदल (Sepals) [हरे]
               │
          पुष्पासन (Receptacle)
               │
          पुष्पवृन्त (Pedicel)
    
    मादा जनन अंग: स्त्रीकेसर
    नर जनन अंग: पुंकेसर

पुष्प पौधे का जनन अंग है। एक पूर्ण पुष्प में चार मुख्य भाग होते हैं:

  1. बाह्यदल (Sepals): सबसे बाहरी चक्र में हरे रंग की पत्ती जैसी संरचनाएं जो कली अवस्था में पुष्प की रक्षा करती हैं। इनके समूह को बाह्यदल पुंज (Calyx) कहते हैं।
  2. दल या पंखुड़ियां (Petals): दूसरे चक्र में रंगीन पंखुड़ियां होती हैं जो कीटों को आकर्षित करने का कार्य करती हैं। इनके समूह को दल पुंज (Corolla) कहते हैं।
  3. पुंकेसर (Stamens) - नर जनन अंग: तीसरे चक्र में पुंकेसर होते हैं। प्रत्येक पुंकेसर दो भागों से बना होता है - पुंतंतु (Filament) और परागकोश (Anther)। परागकोश में परागकण (Pollen grains) बनते हैं जिनमें नर युग्मक होते हैं।
  4. स्त्रीकेसर (Carpels) - मादा जनन अंग: सबसे भीतरी चक्र में स्त्रीकेसर होते हैं। प्रत्येक स्त्रीकेसर तीन भागों से बना होता है - वर्तिकाग्र (Stigma), वर्तिका (Style), और अंडाशय (Ovary)। अंडाशय में बीजांड (Ovules) होते हैं जिनमें मादा युग्मक (अंडाणु) होता है।

परागण की प्रक्रिया में परागकण परागकोश से वर्तिकाग्र तक पहुंचते हैं। निषेचन के बाद अंडाशय फल में और बीजांड बीज में परिवर्तित हो जाते हैं। इस प्रकार पुष्प के माध्यम से पौधों में लैंगिक जनन संपन्न होता है।

खंड - द (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न द्वितीय)

प्रश्न 20. कार्बन यौगिकों की बहुलता के क्या कारण हैं? समजातीय श्रेणी को उदाहरण सहित समझाइए। (5 अंक)

अथवा

साबुन और अपमार्जक में क्या अंतर है? साबुन की सफाई क्रिया को समझाइए।

उत्तर: प्रकृति में कार्बन के यौगिक अत्यधिक संख्या में पाए जाते हैं - लगभग 30 लाख से अधिक। इस बहुलता के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:

कार्बन यौगिकों की बहुलता के कारण:

1. श्रृंखलन (Catenation) की क्षमता:

कार्बन परमाणुओं में एक-दूसरे से सहसंयोजी बंध बनाकर लंबी श्रृंखलाएं बनाने की असाधारण क्षमता होती है। यह गुण अन्य तत्वों में बहुत कम पाया जाता है। कार्बन-कार्बन बंध अत्यंत मजबूत (348 kJ/mol) होते हैं जो श्रृंखला को स्थायित्व प्रदान करते हैं। कार्बन परमाणु सीधी श्रृंखला, शाखित श्रृंखला या वलयाकार संरचनाएं बना सकते हैं।

2. चतुःसंयोजकता (Tetravalency):

कार्बन की संयोजकता चार होती है, अर्थात यह चार अन्य परमाणुओं से बंध बना सकता है। यह हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, सल्फर, क्लोरीन और अन्य कार्बन परमाणुओं से एकल, द्विबंध या त्रिबंध बना सकता है। इससे असंख्य संभावनाएं उत्पन्न होती हैं।

3. समावयवता (Isomerism):

एक ही आणविक सूत्र वाले विभिन्न यौगिक बन सकते हैं जिनकी संरचनाएं और गुण भिन्न होते हैं। उदाहरण: C₄H₁₀ के दो समावयवी हैं - ब्यूटेन और आइसोब्यूटेन। जैसे-जैसे कार्बन परमाणुओं की संख्या बढ़ती है, समावयवियों की संख्या तेजी से बढ़ती है।

4. बहुबंधों का निर्माण:

कार्बन एकल बंध (C-C), द्विबंध (C=C), और त्रिबंध (C≡C) बना सकता है। यह विविधता यौगिकों की संख्या को और बढ़ा देती है।

समजातीय श्रेणी (Homologous Series):

कार्बन यौगिकों का वह समूह जिसमें प्रत्येक सदस्य पिछले सदस्य से एक -CH₂- इकाई से भिन्न होता है और जिनमें एक ही क्रियात्मक समूह होता है, समजातीय श्रेणी कहलाती है।

समजातीय श्रेणी की विशेषताएं:

  1. सभी सदस्यों को एक सामान्य सूत्र से निरूपित किया जा सकता है
  2. क्रमागत सदस्यों के आणविक द्रव्यमान में 14u का अंतर होता है
  3. सभी सदस्यों में एक ही क्रियात्मक समूह होता है
  4. सभी सदस्यों के रासायनिक गुण समान होते हैं
  5. भौतिक गुणों में क्रमिक परिवर्तन होता है

उदाहरण - ऐल्केन श्रेणी:

सामान्य सूत्र: CₙH₂ₙ₊₂

  1. मेथेन (CH₄)
  2. एथेन (C₂H₆) = CH₄ + CH₂
  3. प्रोपेन (C₃H₈) = C₂H₆ + CH₂
  4. ब्यूटेन (C₄H₁₀) = C₃H₈ + CH₂
  5. पेंटेन (C₅H₁₂) = C₄H₁₀ + CH₂

उदाहरण - ऐल्कोहॉल श्रेणी:

सामान्य सूत्र: CₙH₂ₙ₊₁OH

  1. मेथेनॉल (CH₃OH)
  2. एथेनॉल (C₂H₅OH)
  3. प्रोपेनॉल (C₃H₇OH)
  4. ब्यूटेनॉल (C₄H₉OH)

समजातीय श्रेणी का अध्ययन कार्बनिक रसायन को सरल बनाता है क्योंकि एक समजातीय श्रेणी के एक सदस्य को समझने से पूरी श्रेणी के गुणों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।

अथवा

साबुन और अपमार्जक में अंतर:

  1. रासायनिक संरचना: साबुन दीर्घ श्रृंखला वाले कार्बोक्सिलिक अम्लों के सोडियम या पोटैशियम लवण होते हैं। उदाहरण: सोडियम स्टीयरेट (C₁₇H₃₅COONa)। अपमार्जक लंबी श्रृंखला वाले सल्फोनिक अम्लों के लवण होते हैं। उदाहरण: सोडियम डोडेसिल बेंजीन सल्फोनेट।
  2. कठोर जल में व्यवहार: साबुन कठोर जल में झाग नहीं देता और अघुलनशील लवण (scum) बनाता है। अपमार्जक कठोर जल में भी प्रभावी रूप से काम करते हैं।
  3. जैव निम्नीकरणीयता: साबुन पूर्णतः जैव निम्नीकरणीय होते हैं और पर्यावरण के अनुकूल हैं। कुछ अपमार्जक जैव निम्नीकरणीय नहीं होते और जल प्रदूषण करते हैं।
  4. निर्माण: साबुन वनस्पति तेलों या जंतु वसाओं के साबुनीकरण से बनते हैं। अपमार्जक पेट्रोलियम उत्पादों से संश्लेषित किए जाते हैं।

साबुन की सफाई क्रिया:

साबुन के अणु दो भागों से बने होते हैं:

  1. जलरागी सिर (Hydrophilic head): यह आयनिक भाग होता है (-COO⁻Na⁺) जो जल में घुलनशील है।
  2. जलविरागी पूंछ (Hydrophobic tail): यह कार्बन श्रृंखला का भाग होता है जो जल में अघुलनशील लेकिन तेल या ग्रीस में घुलनशील है।

सफाई प्रक्रिया:

  1. मिसेल निर्माण: जब साबुन को जल में घोला जाता है, तो साबुन के अणु मिसेल (Micelle) नामक गोलाकार संरचनाएं बनाते हैं। इसमें जलविरागी पूंछें अंदर की ओर और जलरागी सिर बाहर की ओर होते हैं।
  2. मैल का घिरना: जब साबुन के जलीय विलयन को मैले कपड़े पर लगाया जाता है, तो साबुन के अणुओं की जलविरागी पूंछें ग्रीस या तेल के कणों में घुस जाती हैं और उन्हें घेर लेती हैं, जबकि जलरागी सिर बाहर जल की ओर रहते हैं।
  3. इमल्शन बनना: इस प्रकार ग्रीस या तेल के कण साबुन के अणुओं से घिरकर जल में फैल जाते हैं और एक इमल्शन बन जाता है।
  4. धुलाई: कपड़े को हिलाने या रगड़ने से ये मिसेल कपड़े से अलग हो जाते हैं और जल में तैरने लगते हैं। फिर जल से धोने पर ये मैल के कण बह जाते हैं और कपड़ा साफ हो जाता है।

साबुन का यह उभयधर्मी (Amphipathic) गुण ही इसे प्रभावी सफाई एजेंट बनाता है। पृष्ठ तनाव को कम करके साबुन जल को कपड़े के रेशों में अच्छी तरह प्रवेश करने में मदद करता है।

प्रश्न 21. विद्युत चुंबकीय प्रेरण क्या है? फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण के प्रयोग का वर्णन कीजिए। विद्युत जनित्र (जेनरेटर) का सिद्धांत और कार्य समझाइए। (5 अंक)

उत्तर: विद्युत चुंबकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction):

विद्युत चुंबकीय प्रेरण वह परिघटना है जिसमें किसी चालक में विद्युत धारा उत्पन्न होती है जब उसे चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है और या तो चालक को गति दी जाती है या चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन किया जाता है। इस प्रकार उत्पन्न धारा को प्रेरित धारा और विभवांतर को प्रेरित विद्युत वाहक बल (emf) कहते हैं। इस परिघटना की खोज माइकल फैराडे ने 1831 में की थी।

फैराडे के प्रयोग का वर्णन:

प्रयोग 1:

फैराडे ने एक कुंडली ली और इसे एक गैल्वेनोमीटर से जोड़ा। जब उन्होंने एक छड़ चुंबक को कुंडली के पास लाया, तो गैल्वेनोमीटर की सुई में विक्षेप हुआ, जो कुंडली में विद्युत धारा के प्रवाह को दर्शाता था। जब चुंबक को कुंडली से दूर ले जाया गया, तो गैल्वेनोमीटर की सुई विपरीत दिशा में विक्षेपित हुई। जब चुंबक स्थिर रखा गया, तो कोई विक्षेप नहीं हुआ।

प्रयोग 2:

फैराडे ने दो कुंडलियां लीं - एक प्राथमिक कुंडली जो बैटरी और कुंजी से जुड़ी थी, और एक द्वितीयक कुंडली जो गैल्वेनोमीटर से जुड़ी थी। जब प्राथमिक कुंडली में धारा प्रारंभ या बंद की गई, तो द्वितीयक कुंडली में क्षणिक धारा प्रेरित हुई। स्थायी धारा प्रवाहित करने पर कोई प्रेरण नहीं हुआ।

निष्कर्ष:

  1. चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन होने पर ही प्रेरित धारा उत्पन्न होती है
  2. चुंबकीय क्षेत्र में तेज परिवर्तन से अधिक प्रेरित धारा उत्पन्न होती है
  3. प्रेरित धारा की दिशा चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन की दिशा पर निर्भर करती है

विद्युत जनित्र (Electric Generator):

विद्युत जनित्र एक युक्ति है जो यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है। यह विद्युत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करती है।

सिद्धांत:

जब किसी कुंडली को शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र में घुमाया जाता है, तो कुंडली से गुजरने वाली चुंबकीय बल रेखाओं की संख्या (चुंबकीय फ्लक्स) में परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन के कारण कुंडली में विद्युत वाहक बल प्रेरित होता है और यदि कुंडली का परिपथ पूर्ण हो तो प्रेरित धारा प्रवाहित होती है।

संरचना:

    विद्युत जनित्र (Electric Generator)
    
           ब्रश       ब्रश
           (Brush)   (Brush)
             ↓         ↓
             ●────●────●
             │    │    │
        सर्पी│वलय│वलय│
             ●────●────●
             │         │
        ┌────●─────────●────┐
        │   कुंडली ABCD    │
        │  (Armature Coil)  │
        │        ↺          │
    N   │   ↑  घूर्णन →     │   S
    ║   │   │  अक्ष    →   │   ║
    ║ ← │ ←●→ ↓           → │ → ║
    ║   │      चुंबकीय      │   ║
    ║   │       क्षेत्र     │   ║
    ║   └───────────────────┘   ║
    ║    स्थायी चुंबक          ║
    ╚══════════════════════════╝
         │                   │
         └───── बाह्य ────────┘
                परिपथ
    
    AC जनित्र: सर्पी वलय (Slip rings)
    DC जनित्र: दिक्परिवर्तक (Commutator)
  1. कुंडली (Armature): तार की एक आयताकार कुंडली जो नरम लोहे के क्रोड पर लिपटी होती है
  2. चुंबक: एक शक्तिशाली स्थायी चुंबक या विद्युत चुंबक जिसके दो ध्रुवों के बीच कुंडली घूमती है
  3. सर्पी वलय (Slip rings): दो धातु के वलय जो कुंडली के सिरों से जुड़े होते हैं और कुंडली के साथ घूमते हैं
  4. ब्रश (Brushes): कार्बन के दो ब्रश जो सर्पी वलयों को स्पर्श करते हैं और बाह्य परिपथ से जुड़े होते हैं

कार्यविधि:

  1. घूर्णन: जब कुंडली को किसी बाह्य साधन (जैसे टरबाइन) द्वारा घुमाया जाता है, तो कुंडली की भुजाएं चुंबकीय क्षेत्र को काटती हैं।
  2. प्रेरण: फैराडे के नियम के अनुसार, कुंडली में विद्युत वाहक बल प्रेरित होता है। फ्लेमिंग के दक्षिण-हस्त नियम से प्रेरित धारा की दिशा ज्ञात की जा सकती है।
  3. प्रत्यावर्ती धारा: जब कुंडली का ऊपरी भाग नीचे आता है और निचला भाग ऊपर जाता है (180° घूर्णन के बाद), तो प्रेरित धारा की दिशा उलट जाती है। इस प्रकार कुंडली के प्रत्येक अर्ध चक्र में धारा की दिशा बदलती रहती है, जिससे प्रत्यावर्ती धारा (AC) उत्पन्न होती है।
  4. धारा का संग्रहण: सर्पी वलय और ब्रशों के माध्यम से प्रेरित धारा बाह्य परिपथ में प्रवाहित होती है।

DC जनित्र:

दिष्ट धारा (DC) उत्पन्न करने के लिए सर्पी वलयों के स्थान पर दिक्परिवर्तक (Commutator) का उपयोग किया जाता है। दिक्परिवर्तक एक विभक्त वलय होता है जो प्रत्येक अर्ध घूर्णन पर बाह्य परिपथ में धारा की दिशा को स्थिर रखता है, जिससे एकदिशीय धारा प्राप्त होती है।

विद्युत जनित्र आधुनिक सभ्यता की रीढ़ हैं। ताप विद्युत संयंत्रों, जल विद्युत संयंत्रों और पवन ऊर्जा संयंत्रों में विशाल जनित्रों का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 22. मेंडल के आनुवंशिकता के नियमों का वर्णन कीजिए। एक संकर क्रॉस का उदाहरण देते हुए समझाइए। (5 अंक)

अथवा

खाद्य श्रृंखला और खाद्य जाल को उदाहरण सहित समझाइए। ऊर्जा प्रवाह का 10% नियम क्या है?

उत्तर: ग्रेगर जॉन मेंडल ने 1856-1863 के बीच मटर के पौधों पर किए गए अपने प्रयोगों के आधार पर आनुवंशिकता के मूलभूत नियमों की खोज की। उन्होंने मटर के सात जोड़े विपरीत लक्षणों का अध्ययन किया।

मेंडल के आनुवंशिकता के नियम:

1. प्रभाविता का नियम (Law of Dominance):

जब दो विपरीत लक्षणों वाले पौधों का संकरण कराया जाता है, तो F₁ पीढ़ी में केवल एक लक्षण ही प्रकट होता है। जो लक्षण प्रकट होता है उसे प्रभावी लक्षण (Dominant trait) और जो छिप जाता है उसे अप्रभावी लक्षण (Recessive trait) कहते हैं। प्रभावी लक्षण को बड़े अक्षर (T) और अप्रभावी को छोटे अक्षर (t) से दर्शाया जाता है।

2. पृथक्करण का नियम (Law of Segregation):

युग्मक निर्माण के समय युग्म के दोनों कारक (Alleles) अलग-अलग हो जाते हैं और प्रत्येक युग्मक में एक ही कारक जाता है। युग्मकों का निर्माण यादृच्छिक होता है और निषेचन के समय युग्मकों का संयोग भी यादृच्छिक होता है।

3. स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment):

जब दो या अधिक जोड़ी विपरीत लक्षणों का एक साथ संकरण कराया जाता है, तो एक जोड़ी के लक्षणों का पृथक्करण दूसरे जोड़ी के लक्षणों के पृथक्करण से स्वतंत्र होता है। अर्थात विभिन्न लक्षण एक-दूसरे को प्रभावित नहीं करते।

एक संकर क्रॉस (Monohybrid Cross) का उदाहरण:

मेंडल ने लंबे (T) और बौने (t) मटर के पौधों का संकरण कराया:

P पीढ़ी (जनक):

शुद्ध लंबा पौधा (TT) × शुद्ध बौना पौधा (tt)

युग्मक:

T (लंबे पौधे से) × t (बौने पौधे से)

F₁ पीढ़ी (प्रथम संतति):

सभी पौधे Tt (लंबे) - 100% लंबे पौधे

प्रभाविता के नियम के अनुसार, यद्यपि सभी पौधों में T और t दोनों जीन हैं, फिर भी सभी लंबे दिखते हैं क्योंकि T प्रभावी है।

F₁ का स्व-परागण:

Tt × Tt

युग्मक:

T और t (दोनों पौधों से)

F₂ पीढ़ी (द्वितीय संतति):

पनेट वर्ग (Punnett Square) द्वारा:

    F₁ × F₁ = Tt × Tt
    
    पनेट वर्ग (Punnett Square):
    
         नर युग्मक
        ┌──────┬──────┐
        │  T   │  t   │
    ┌───┼──────┼──────┤
  मा│ T │  TT  │  Tt  │
  दा│   │लंबा │लंबा │
  यु├───┼──────┼──────┤
  ग्मक│ t │  Tt  │  tt  │
    │   │लंबा │बौना │
    └───┴──────┴──────┘
    
    F₂ परिणाम:
    ┌──────────────────────────┐
    │ TT : Tt : Tt : tt       │
    │  1  :  2  :  1          │
    │                          │
    │ जीनप्ररूप अनुपात:        │
    │ TT:Tt:tt = 1:2:1         │
    │                          │
    │ लक्षणप्ररूप अनुपात:      │
    │ लंबे:बौने = 3:1          │
    └──────────────────────────┘

TT (लंबा) : Tt (लंबा) : Tt (लंबा) : tt (बौना)

जीनप्ररूप अनुपात (Genotypic ratio): TT : Tt : tt = 1 : 2 : 1

लक्षणप्ररूप अनुपात (Phenotypic ratio): लंबे : बौने = 3 : 1

F₂ पीढ़ी में:

  • 1 पौधा शुद्ध लंबा (TT) - 25%
  • 2 पौधे संकर लंबे (Tt) - 50%
  • 1 पौधा शुद्ध बौना (tt) - 25%

दिखने में 75% लंबे और 25% बौने होते हैं, जो 3:1 का अनुपात देता है।

F₂ पीढ़ी में बौने पौधों का पुनः प्रकट होना यह सिद्ध करता है कि F₁ में अप्रभावी जीन विलुप्त नहीं हुआ था बल्कि छिपा हुआ था। यह पृथक्करण के नियम की पुष्टि करता है।

महत्व:

मेंडल के नियमों ने आधुनिक आनुवंशिकी की नींव रखी। इनसे हमें समझ में आता है कि लक्षण कण रूप में पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचरित होते हैं और वे मिश्रित नहीं होते। ये नियम फसलों और पशुओं की नई किस्में विकसित करने, आनुवंशिक रोगों को समझने, और जैव प्रौद्योगिकी में व्यापक रूप से उपयोगी हैं।

अथवा

खाद्य श्रृंखला (Food Chain):

खाद्य श्रृंखला जीवों की एक श्रृंखला है जिसमें प्रत्येक जीव अगले जीव का भोजन बनता है। यह ऊर्जा और पोषक तत्वों के एक दिशीय प्रवाह को दर्शाती है। खाद्य श्रृंखला सदैव उत्पादकों से शुरू होती है और अपघटकों पर समाप्त होती है।

खाद्य श्रृंखला के स्तर:

  1. उत्पादक (Producers): हरे पौधे जो प्रकाश संश्लेषण द्वारा सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलते हैं
  2. प्राथमिक उपभोक्ता (Primary Consumers): शाकाहारी जीव जो पौधे खाते हैं
  3. द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary Consumers): छोटे मांसाहारी जो शाकाहारियों को खाते हैं
  4. तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary Consumers): बड़े मांसाहारी जो छोटे मांसाहारियों को खाते हैं
  5. अपघटक (Decomposers): बैक्टीरिया और कवक जो मृत जीवों को विघटित करते हैं

उदाहरण 1 - स्थलीय खाद्य श्रृंखला:

    घास → टिड्डा → मेंढक → सांप → बाज
    
  उत्पादक  प्राथमिक  द्वितीयक  तृतीयक  चतुर्थक
           उपभोक्ता  उपभोक्ता  उपभोक्ता उपभोक्ता

(उत्पादक) → (प्राथमिक उपभोक्ता) → (द्वितीयक उपभोक्ता) → (तृतीयक उपभोक्ता) → (चतुर्थक उपभोक्ता)

उदाहरण 2 - जलीय खाद्य श्रृंखला:

फाइटोप्लैंकटन → जूप्लैंकटन → छोटी मछली → बड़ी मछली → मनुष्य

खाद्य जाल (Food Web):

प्रकृति में जीव केवल एक ही प्रकार का भोजन नहीं करते। एक जीव कई जीवों का भोजन बनता है और स्वयं भी कई जीवों को खाता है। जब कई खाद्य श्रृंखलाएं आपस में जुड़ जाती हैं तो एक जटिल जाल बनता है जिसे खाद्य जाल कहते हैं।

उदाहरण:

एक तालाब में:

  • शैवाल → जलीय कीट → छोटी मछली → बड़ी मछली → बगुला
  • शैवाल → जलीय कीट → मेंढक → सांप → बाज
  • शैवाल → घोंघा → बत्तख
  • जलीय पौधे → टिड्डा → मछली → मनुष्य

ये सभी श्रृंखलाएं आपस में जुड़कर एक जटिल खाद्य जाल बनाती हैं। खाद्य जाल पारिस्थितिक तंत्र को स्थिरता प्रदान करता है क्योंकि यदि एक खाद्य स्रोत समाप्त हो जाए तो जीव वैकल्पिक भोजन ढूंढ सकते हैं।

ऊर्जा प्रवाह का 10% नियम (10% Law of Energy Flow):

यह नियम रेमण्ड लिंडेमैन ने 1942 में प्रतिपादित किया। इस नियम के अनुसार:

"खाद्य श्रृंखला में एक पोषी स्तर से दूसरे पोषी स्तर में जाते समय केवल 10% ऊर्जा ही स्थानांतरित होती है। शेष 90% ऊर्जा श्वसन, गति, ऊष्मा के रूप में नष्ट हो जाती है।"

उदाहरण:

    ऊर्जा पिरामिड (10% नियम)
    
               ▲
              ╱ ╲  तृतीयक उपभोक्ता
             ╱10J╲  (बड़े मांसाहारी)
            ╱─────╲
           ╱       ╲
          ╱  100 J  ╲  द्वितीयक उपभोक्ता
         ╱───────────╲  (छोटे मांसाहारी)
        ╱             ╲
       ╱    1,000 J    ╲  प्राथमिक उपभोक्ता
      ╱─────────────────╲  (शाकाहारी)
     ╱                   ╲
    ╱     10,000 J        ╲  उत्पादक
   ╱───────────────────────╲  (पौधे)
   ‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾
      सौर ऊर्जा (100,000 J)
    
    प्रत्येक स्तर पर केवल 10% ऊर्जा
    अगले स्तर को स्थानांतरित होती है
  • यदि उत्पादक (पौधे) 10,000 J ऊर्जा प्राप्त करें
  • प्राथमिक उपभोक्ता (शाकाहारी) को 1,000 J मिलेगी (10%)
  • द्वितीयक उपभोक्ता (छोटे मांसाहारी) को 100 J मिलेगी (10% का 10%)
  • तृतीयक उपभोक्ता (बड़े मांसाहारी) को 10 J मिलेगी (10% का 10% का 10%)

परिणाम:

  1. खाद्य श्रृंखला में 3-4 पोषी स्तरों से अधिक नहीं होते क्योंकि ऊर्जा तेजी से कम होती जाती है
  2. उच्च पोषी स्तर पर जीवों की संख्या कम होती है
  3. शाकाहारी भोजन अधिक ऊर्जा दक्ष है क्योंकि यह उत्पादकों के निकट है
  4. पारिस्थितिक पिरामिड (ऊर्जा, संख्या, जैवभार) का निर्माण इसी कारण होता है

यह नियम पारिस्थितिक तंत्र की ऊर्जा गतिकी को समझने और जैव विविधता संरक्षण में महत्वपूर्ण है।

अतिरिक्त संसाधन

यह मॉडल प्रश्न पत्र राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर के कक्षा 10 विज्ञान (S-07) पाठ्यक्रम पर आधारित है। अधिक जानकारी और आधिकारिक पाठ्यक्रम के लिए RBSE की आधिकारिक वेबसाइट देखें: https://rajeduboard.rajasthan.gov.in

मूल प्रश्न पत्र (PDF): S-07 Science Paper 2024

तैयारी के सुझाव

विज्ञान विषय में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए नियमित अभ्यास, प्रयोगों की समझ, और सूत्रों का अच्छा ज्ञान आवश्यक है। प्रत्येक अध्याय के महत्वपूर्ण बिंदुओं को नोट करें और आरेखों का अभ्यास करें। पिछले वर्षों के प्रश्न पत्रों को हल करने से परीक्षा पैटर्न की बेहतर समझ विकसित होती है। अवधारणाओं को रटने के बजाय समझने पर ध्यान दें। प्रयोगात्मक कार्यों को व्यावहारिक रूप से समझें और वैज्ञानिक सिद्धांतों को दैनिक जीवन से जोड़ें।

यह मॉडल प्रश्न पत्र शैक्षिक उद्देश्यों के लिए तैयार किया गया है। सभी छात्रों को शुभकामनाएं।