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Essential Teaching Materials for Indian School Teachers by Level – NEP 2020 Based Guide

विद्यालय स्तर अनुसार शिक्षकों के लिए आवश्यक शैक्षणिक सामग्री और नई शिक्षा नीति संदर्भ (Essential Teaching Materials for Teachers by School Level & NEP 2020 Context)

अनुक्रम (Table of Contents)

  1. शिक्षा का अर्थ और परिभाषा (Meaning of Education)
  2. भारत के विद्यालय स्तर (School Levels in India)
  3. प्रत्येक स्तर हेतु आवश्यक शैक्षणिक सामग्री (Required Educational Materials by Level)
  4. शिक्षकों के निरंतर अध्ययन हेतु सुझाव (Continuous Learning Tips for Teachers)
  5. नई शिक्षा नीति 2020 के प्रासंगिक बिंदु (NEP 2020 – Key Points for Teachers & Resources)
  6. प्रामाणिक शैक्षणिक संसाधन लिंक (Authentic Educational Resource Links)
  7. उदाहरण: भारत एवं अंतरराष्ट्रीय दृष्टांत (Examples: Indian & International Perspectives)
  8. विशेषज्ञों के विचार (Experts’ Views)
  9. निष्कर्ष एवं अगला कदम (Conclusion & Next Steps)

शिक्षा का अर्थ और परिभाषा (Meaning of Education)

शिक्षा का शाब्दिक अर्थ है सीखने-सिखाने की प्रक्रिया जिसके माध्यम से व्यक्ति के ज्ञान, कौशल, दृष्टिकोण और चरित्र का विकास होता है। शास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में शिक्षा को मानव जीवन के सर्वांगीण विकास से जोड़ा गया है। उदाहरण के लिए, प्राचीन संस्कृत कथन “सा विद्या या विमुक्तये” का अर्थ है – वही शिक्षा सार्थक है जो व्यक्ति को मुक्त (उन्नत) करती है। इसी भावना को स्वामी विवेकानंद ने अपनी प्रसिद्ध परिभाषा में व्यक्त किया है: *“शिक्षा मनुष्य में पहले से निहित पूर्णता का प्रकटीकरण है”* – अर्थात शिक्षा वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति के भीतर मौजूद संभावनाओं को विकसित करती है। प्राचीन भारतीय दर्शन में ज्ञान (Jnana), प्रज्ञा (Pragya) और सत्य (Satya) को मानव जीवन के परम लक्ष्य के रूप में देखा गया है, जिससे स्पष्ट होता है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल पुस्तकीय ज्ञान नहीं बल्कि बुद्धि और चरित्र का उत्थान है।

आधुनिक परिप्रेक्ष्य में शिक्षा की परिभाषा में व्यापक परिवर्तन आए हैं। आज शिक्षा को जीवन-पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया माना जाता है जो न केवल सूचना और तथ्य सिखाती है, बल्कि सीखने का तरीक़ा सिखाना अधिक महत्वपूर्ण है। 21वीं सदी में शिक्षा का आशय है आलोचनात्मक चिंतन, रचनात्मकता, नवाचार और समस्या-समाधान कौशल विकसित करना। आधुनिक शिक्षा प्रणाली में पाठ्यक्रम को बहु-विषयक और आनंददायी बनाने पर ज़ोर है ताकि विद्यार्थी सीखने में सक्रिय भागीदारी करें। शिक्षाविद कहते हैं कि आज की शिक्षा को इस प्रकार होना चाहिए कि वह बालक को सामाजिक और तकनीकी परिवेश में परिवर्तन के अनुरूप ढालने में सक्षम बनाए। संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) के अनुसार भी शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान, समझ, मूल्यों एवं कौशलों का पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण करते हुए व्यक्ति को एक ज़िम्मेदार नागरिक बनाना है।

भारतीय परिप्रेक्ष्य में शिक्षा को ज्ञान के साथ संस्कारों से जोड़ा गया है। भारत में प्राचीन काल से गुरुकुल परंपरा रही जहाँ शिक्षा जीवनोपयोगी कौशल, नैतिक मूल्यों और व्यवहारिक ज्ञान का समन्वय थी। भारतीय संविधान में शिक्षा को एक मौलिक अधिकार (6-14 वर्ष के बच्चों हेतु) घोषित किया गया है, जिससे इसके महत्व की पुष्टि होती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भी पारंपरिक भारतीय मूल्यों और आधुनिक कौशलों के संगम पर बल देती है। इस नीति में कहा गया है कि शिक्षा का उद्देश्य ऐसे नागरिक बनाना है जो न केवल नौकरी हेतु तैयार हों बल्कि नैतिक, सहिष्णु, और जिम्मेदार हों। संक्षेप में, भारतीय विचारधारा में शिक्षा व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक विकास का साधन है, जो उसे समाज का उत्तरदायी घटक बनाती है। विकासपीडिया (Vikaspedia) पर शिक्षा को “वह प्रकाश बताया गया है जो अज्ञानता का अंधकार मिटाकर बालक की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक शक्तियों का विकास करता है” – जिससे वह राष्ट्र का चरित्रवान नागरिक बन सके।

भारत के विद्यालय स्तर (School Levels in India)

भारत में विद्यालयी शिक्षा को विभिन्न स्तरों में विभाजित किया जाता है। पारंपरिक रूप से देश में 10+2 प्रणाली प्रचलित रही हैबीवी, जिसमें 10 वर्ष की स्कूली शिक्षा के बाद 2 वर्ष का उच्च माध्यमिक स्तर होता है। प्रत्येक स्तर की अपनी विशेषताएँ, आयु-समूह, कक्षाएँ और पाठ्यचर्या होती हैं:

  • प्राथमिक विद्यालय (Primary School): कक्षा 1 से 5 तक, आयु लगभग 6–11 वर्ष। यह प्रारंभिक स्तर है जहाँ बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता (foundational literacy and numeracy) पर ध्यान दिया जाता है। बच्चों को पढ़ना, लिखना, गणित की मूल अवधारणाएँ और आसपास के वातावरण का बुनियादी ज्ञान (पर्यावरण अध्ययन) सिखाया जाता है। शिक्षार्थियों में जिज्ञासा जगाने और सीखने के प्रति रूचि विकसित करने का यह महत्त्वपूर्ण दौर होता है।

  • उच्च प्राथमिक विद्यालय (Upper Primary School): कक्षा 6 से 8 तक, आयु लगभग 11–14 वर्ष। इसे माध्यमिक के पूर्व का चरण भी कहा जाता है (कई जगह मिडिल स्कूल भी कहते हैं)। इस स्तर पर विषयों का विस्तार होता है – आमतौर पर हिंदी, अंग्रेजी व एक अतिरिक्त भाषा, गणित, विज्ञान (विज्ञान को भौतिकी, रसायन, जीवविज्ञान में विभाजित किए बिना सामान्य विज्ञान), सामाजिक विज्ञान (इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्र) आदि पढ़ाए जाते हैं। उच्च प्राथमिक चरण में विद्यार्थियों की अवधारणाओं को गहरा करने और उच्चतर स्तर की पढ़ाई के लिए आधार तैयार करने पर ज़ोर दिया जाता है।

  • माध्यमिक विद्यालय (Secondary School): कक्षा 9 और 10, आयु लगभग 14–16 वर्ष। यह चरण काफी अहम है जहाँ विषय स्पष्ट तौर पर विभाजित हो जाते हैं – जैसे भौतिकी, रसायन, जीवविज्ञान, गणित, इतिहास, भूगोल, राजनीतिक विज्ञान आदि। छात्र-छात्राएँ बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी इसी चरण में करते हैं। माध्यमिक स्तर पर पाठ्यक्रम की गहनता बढ़ जाती है और प्रयोगशाला कार्य, प्रायोगिक शिक्षण एवं गहन अध्ययन को शामिल किया जाता है। इस स्तर का उद्देश्य विद्यार्थियों को उच्च माध्यमिक/कॉलिजियेट शिक्षा या व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए तैयार करना होता है।

  • उच्च माध्यमिक विद्यालय (Senior Secondary School): कक्षा 11 और 12, आयु लगभग 16–18 वर्ष। इसे इंटरमीडिएट या +2 स्तर भी कहते हैं। यहाँ विद्यार्थी विभिन्न शैक्षिक धाराओं (Streams) का चयन करते हैं:

    • कला (Arts/Humanities): इतिहास, भूगोल, राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, भाषा साहित्य, आदि विषय। इन विषयों के लिए शिक्षकों को विस्तृत पाठ्य सामग्री के साथ-साथ मानचित्र, ऐतिहासिक दस्तावेज़, साहित्यिक पाठ आदि की आवश्यकता होती है।
    • विज्ञान (Science): गणित, भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीवविज्ञान, कंप्यूटर विज्ञान आदि। विज्ञान वर्ग में प्रयोगशालाओं का विशेष महत्व है – भौतिकी के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, रसायन के लिए रसायन पदार्थ व ग्लासवेयर, जीवविज्ञान के लिए माइक्रोस्कोप, मॉडल इत्यादि आवश्यक होते हैं।
    • वाणिज्य (Commerce): लेखाशास्त्र (Accounts), व्यवसाय अध्ययन, अर्थशास्त्र, गणित/संख्यिकी आदि। वाणिज्य वर्ग के लिए लेखांकन प्रैक्टिस सेट, बजट एवं वित्तीय रिपोर्ट के उदाहरण, व्यावसायिक केस-स्टडी और डिजिटल स्प्रेडशीट/सॉफ़्टवेयर उपयोगी होते हैं।

उच्च माध्यमिक स्तर पर विषय-विशेषज्ञता बढ़ जाती है, अतः विषयवार अध्यापक नियुक्त होते हैं (जैसे भौतिकी का अध्यापक, इतिहास का अध्यापक आदि)। इस स्तर का मुख्य लक्ष्य विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के लिए तैयार करना और उनके चुने हुए क्षेत्र में बुनियादी विशेषज्ञता प्रदान करना है।

नोट: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने एक नयी संरचना 5+3+3+4 प्रस्तावित की है, जिसमें 5 वर्ष का मूलभूत चरण (Foundational Stage, आँगनवाड़ी/प्रारम्भिक + कक्षा 1-2), 3 वर्ष का तैयारी चरण (Preparatory Stage, कक्षा 3-5), 3 वर्ष का मध्य चरण (Middle Stage, कक्षा 6-8) और 4 वर्ष का माध्यमिक चरण (Secondary Stage, कक्षा 9-12) शामिल हैं। हालाँकि, वर्तमान लेख में वर्णित प्राथमिक/उच्च प्राथमिक/माध्यमिक/उच्च माध्यमिक विभाजन पारंपरिक 10+2 व्यवस्था के अनुरूप है, क्योंकि व्यवहार में विद्यालयों में अभी यही वर्गीकरण चलन में है। आगामी वर्षों में NEP 2020 के अनुसार शिक्षा ढाँचे में क्रमिक परिवर्तन होंगे।

प्रत्येक स्तर हेतु आवश्यक शैक्षणिक सामग्री (Required Educational Materials by Level)

शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए प्रत्येक विद्यालय स्तर पर आवश्यक शैक्षणिक सामग्री (Teaching-Learning Material, TLM) का उपयोग अतिमहत्वपूर्ण है। सही सामग्री होने से कक्षा में सीखना अधिक स्पष्ट, रोचक और प्रयोगात्मक बनता है। नीचे प्रत्येक स्तर के लिए विषयवार जरूरी सामग्री व संसाधनों का वर्णन किया गया है:

प्राथमिक स्तर की सामग्री (Primary Level Materials)

प्राथमिक स्तर पर बच्चों के सीखने की नींव रखी जाती है, इसलिए यहाँ शिक्षण सामग्री रंगीन, आकर्षक और संवेदी अनुभव देने वाली होनी चाहिए। कुछ प्रमुख सामग्री व उपकरण इस प्रकार हैं:

  • विषय किट (Subject Kits): प्रारंभिक कक्षाओं के लिए गणित किट जिसमें गिनती के मोती, अंकों के कार्ड, ज्यामितीय आकार (गोलाकार, घन इत्यादि) के मॉडल, घड़ी के मॉडल (समय सिखाने हेतु) शामिल होते हैं। भाषा शिक्षण किट जिसमें चित्रमय फ़्लैशकार्ड, अक्षर-ताश, शब्द-पत्र आदि होते हैं जिससे बच्चे खेल-खेल में वर्णमाला और शब्द सीख सकें। एनसीईआरटी ने छोटे बच्चों के लिए भाषा एवं गणित की ऐसी किट विकसित की हैं। ये किट कम लागत की, बहुउद्देश्यीय एवं रोचक गतिविधियों से भरपूर होती हैं ताकि बच्चे प्रयोग द्वारा सीखें। उदाहरणतः NCERT का Early Childhood Care kit और प्राथमिक विज्ञान किट (Classes III-V) उपलब्ध हैं, जिनमें विज्ञान प्रयोग की सरल वस्तुएँ होती हैं।

  • शिक्षण सहायक चार्ट एवं मॉडल: प्राथमिक कक्षाओं में दीवारों पर वर्णमाला चार्ट, पहाड़ा चार्ट, फल-पशु-पक्षी के चित्र, मानचित्र आदि लगाने से बच्चों का परिचय इन अवधारणाओं से होता रहता है। तीन-आयामी मॉडल जैसे ग्लोब (पृथ्वी का मॉडल), मानव शरीर का साधारण मॉडल, पक्षियों-पशुओं के खिलौने आदि द्वारा जिज्ञासा बढ़ती है। कक्षा में मटेरियल कॉर्नर बनाकर अलग-अलग विषयों से जुड़ी वस्तुएँ रखी जा सकती हैं – जैसे विज्ञान कॉर्नर में बीज, पत्तियाँ, पत्थर, मग्नेट, छोटी दूरबीन; गणित कॉर्नर में गिनती का एबेकस, ज्यामितीय आकार; भाषा कॉर्नर में चित्र-पुस्तिकाएँ, आदि। ये स्पर्शनीय सामग्री बच्चों के अनुभवात्मक अधिगम (experiential learning) में मदद करती हैं।

  • कहानियाँ और चित्र-पुस्तकें: प्रारंभिक स्तर पर कहानी सुनाना/पढ़ना शिक्षा का अहम हिस्सा है। विभिन्न भाषाओं में बाल-पुस्तकें, चित्रकथाएँ, पहेली व कविता की किताबें कक्षा पुस्तकालय में रखनी चाहिए। जैसे एनसीईआरटी की बरखा पुस्तक श्रृंखला (Barkha Series) जो प्रारंभिक हिंदी पठन के लिए चित्रमय कहानियाँ प्रदान करती है। इसके अलावा पंचतंत्र, लोककथाएँ, प्रसिद्ध बाल कहानी संग्रह का उपयोग शिक्षक कक्षा में कर सकते हैं। डिक्शनरी (शब्दकोश) भी इस स्तर पर चित्रात्मक हो तो अच्छा है – जैसे चित्र शब्दकोश, ताकि बच्चे नए शब्द सीखें।

  • डिजिटल संसाधन (Digital Resources): आजकल कई ऐप्स और डिजिटल सामग्री प्राथमिक बच्चों के लिए उपलब्ध हैं – जिनमें शैक्षणिक गेम, इंटरैक्टिव कहानी ऐप, ऑडियो-विजुअल पाठ शामिल हैं। DIKSHA पोर्टल पर भी प्राथमिक कक्षाओं के लिए कई ई-कॉन्टेंट और गतिविधि वीडियो उपलब्ध हैं। शिक्षक कक्षा में यदि प्रोजेक्टर या स्मार्ट टीवी की सुविधा हो, तो समय-समय पर एनिमेशन और शैक्षणिक वीडियो दिखाकर बच्चों की उत्सुकता बढ़ा सकते हैं।

  • अन्य TLM: शिक्षकों द्वारा स्वयं निर्मित सामग्रियाँ जैसे पुराने गत्ते से कटे अक्षर/संख्या, खुद से बनाये चित्रकारी चार्ट, लोक गीतों/कविताओं के पोस्टर, दैनिक जीवन की वस्तुओं (सिक्के, घड़ी, तराजू) का उपयोग भी प्राथमिक शिक्षण को समृद्ध बनाता है। अंतरराष्ट्रीय तौर पर यह माना जाता है कि स्थानीय सुलभ सामग्री से बने टीएलएम भी उतने ही प्रभावी होते हैं। जहाँ शिक्षकों से अपने टीएलएम बनाने की अपेक्षा की जाती है, वहाँ उन्हें इस कार्य हेतु समय व प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

उच्च प्राथमिक स्तर की सामग्री (Upper Primary Level Materials)

6ठी से 8वीं कक्षा के विद्यार्थियों के लिए सामग्री का स्तर थोड़ा उन्नत हो जाता है, क्योंकि विषय कठिन होने लगते हैं। इस स्तर पर अवधारणाओं को स्पष्ट करने और कौशल विकसित करने के लिए निम्न सामग्रियाँ उपयोगी हैं:

  • विज्ञान एवं गणित किट: एनसीईआरटी ने Upper Primary Science Kit (UPSK) एवं Mathematics Kit (UPMK) विकसित की हैं जो कक्षा 6-8 के विज्ञान और गणित पाठ्यक्रम से संबंधित प्रयोग एवं गतिविधियों की सामग्रियाँ प्रदान करती हैं। उच्च प्राथमिक विज्ञान किट में 100 से अधिक छोटे वैज्ञानिक उपकरण/मॉडल हैं जिनसे छात्र विभिन्न प्रयोग (जैसे प्रकाश का परावर्तन/अपवर्तन, विद्युत परिपथ बनाना आदि) कर सकते हैं। इसी तरह गणित किट में ज्यामिति उपकरण (परकार, स्केल, गोनिया), संख्यात्मक पहेली, बीजगणित के बीजब्लॉक, फ्रैक्शन डिस्क आदि होते हैं। इनका प्रयोग कर शिक्षक अवधारणाओं को क्रियात्मक रूप में समझा सकते हैं।

  • प्रयोगशाला उपकरण (Lab Tools): उच्च प्राथमिक स्तर पर स्कूलों में सरल विज्ञान प्रयोगशाला आरंभ की जाती है। इसमें मापने के यंत्र (स्केल, भारमापी), बिजली का सरल उपकरण सेट (बैटरी, बल्ब, तार), चुंबक, माइक्रोस्कोप (आसान मॉडल), मॉडल मानव कंकाल या ग्लोब, केमिस्ट्री के लिए सहज प्रयोग (लिटमस पेपर, नमक, टेस्ट ट्यूब) जैसी चीजें शामिल होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, स्कूल यदि आठवीं में पौधों की संरचना पढ़ा रहे हैं तो एक साधारण सूक्ष्मदर्शी से पत्ते या प्याज की परत का स्लाइड दिखाया जा सकता है। प्रयोग करके सीखने से विद्यार्थियों की विज्ञान में रूचि और समझ दोनों बढ़ती है।

  • भाषा एवं सामाजिक विज्ञान संसाधन: इस स्तर पर भाषा शिक्षण के लिए उन्नत शब्दकोश (Hindi-English Dictionary), पर्यायवाची/विलोम शब्दकोश, व्याकरण की पुस्तकें शिक्षक को उपलब्ध होनी चाहिए। मानक हिंदी एवं अंग्रेजी उच्चारण सिखाने के लिए ऑडियो सामग्री (उच्चारण मार्गदर्शिका) काम आती है। सामाजिक विज्ञान में इस चरण पर इतिहास और भूगोल प्रमुख हो जाते हैं – अतः इतिहास हेतु समयरेखा (timeline) चार्ट, ऐतिहासिक मानचित्र, मानचित्रण अभ्यास के लिए नक़्शे एवं ग्लोब, विभिन्न संस्कृतियों के परिधानों/स्थापत्य के चित्र, इत्यादि सहायक हैं। भूगोल में भारत एवं विश्व के भौतिक मानचित्र, ग्लोब, दिशासूचक यंत्र (कंपास), विभिन्न प्रकार की मिट्टी/पत्थरों के नमूने रखना उपयोगी होगा।

  • आईसीटी उपकरण (ICT Tools): 6-8वीं में बच्चे कंप्यूटर की मूल बातें भी सीखने लगते हैं। यदि स्कूल में कंप्यूटर लैब है तो शिक्षक बेसिक सॉफ्टवेयर (जैसे वर्ड प्रोसेसर, प्रेज़ेंटेशन) चलाना सिखाते हैं। इसके अलावा प्रोजेक्टर, शैक्षिक सीडी/डीवीडी, शैक्षणिक सॉफ़्टवेयर (जैसे गणित सिम्युलेशन, भाषा सीखने के गेम) को कक्षा शिक्षण में शामिल किया जा सकता है। कई स्कूलों में अब स्मार्ट क्लास या डिजिटल बोर्ड उपलब्ध हो रहे हैं – शिक्षक DIKSHA एवं अन्य ओपन एजुकेशनल रिसोर्सेज़ से कंटेंट डाउनलोड कर कक्षा में दिखा सकते हैं। ध्यान रहे कि डिजिटल माध्यम सहायक उपकरण हैं, जो पारंपरिक अध्यापन को समृद्ध करते हैं।

  • अध्यापक संदर्शिका (Teacher’s Guides): उच्च प्राथमिक के प्रत्येक विषय हेतु अगर शिक्षक के पास शिक्षक मार्गदर्शिका पुस्तक हो तो यह पाठ की योजना बनाने में सहायक होती है। एनसीईआरटी एवं राज्य शैक्षिक शोध एवं प्रशिक्षण परिषदें (SCERTs) ऐसे गाइड प्रकाशित करती हैं जिनमें पाठ्यवस्तु के कठिन भागों को समझाने के उपाय, अतिरिक्त गतिविधियाँ, और मूल्यांकन के नमूने रहते हैं। शिक्षक को अपने घर पर या अवकाश में इन संदर्शिकाओं एवं विषय-संदर्भ पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए ताकि कक्षा में और प्रभावी ढंग से सामग्री प्रस्तुत कर सकें। उदाहरणस्वरूप, गणित शिक्षक के लिए “गणित शिक्षण कैसे करें” जैसी गाइड या ऑनलाइन मंचों (जैसे Diksha पर उपलब्ध NISHTHA मॉड्यूल) से इनोवेटिव टीचिंग आइडियाज लेना लाभप्रद होगा।

माध्यमिक स्तर की सामग्री (Secondary Level Materials)

कक्षा 9-10 में विषय और अधिक विशेषज्ञतापूर्ण हो जाते हैं, अतः शिक्षकों को उन्नत संसाधनों की ज़रूरत पड़ती है। इस स्तर पर परीक्षा की तैयारी भी एक मुख्य पहलू है, परंतु केवल पाठ्यपुस्तक पर निर्भर रहने के बजाय समग्र शिक्षण सामग्री का प्रयोग करना चाहिए:

  • विषय प्रयोगशालाएँ: माध्यमिक स्तर तक अधिकांश स्कूलों में अलग-अलग विषयों की प्रयोगशालाएँ स्थापित हो जाती हैं – जैसे विज्ञान प्रयोगशाला (भौतिकी, रसायन, जीवविज्ञान के लिए), कंप्यूटर प्रयोगशाला तथा कुछ बड़े स्कूलों में भाषा प्रयोगशाला (Language Lab) भी। विज्ञान शिक्षकों के लिए यह अति आवश्यक है कि वे प्रायोगिक उपकरणों की सूची तैयार रखें: भौतिकी के लिए इलेक्ट्रिकल सर्किट के उपकरण, लेंस-प्रिज्म आदि ऑप्टिक्स के लिए; रसायन में रसायनिक पदार्थों के रियेजेंट, टेस्ट ट्यूब, बर्नर; जीवविज्ञान में माइक्रोस्कोप, विभिन्न वनस्पति एवं प्राणि नमूने (स्लाइड/स्पेसिमेन) आदि। NCERT ने माध्यमिक स्तर के लिए Secondary Science Kit (SSK) और Secondary Mathematics Kit (SMK) भी विकसित की हैं, जिनमें कक्षा 9-10 के विज्ञान-गणित पाठ्यक्रम से जुड़े प्रयोगों की सामग्रियाँ हैं। उदाहरण के लिए माध्यमिक विज्ञान किट कक्षा 9-10 की पुस्तकों के अध्यायों पर आधारित गतिविधियों के लिए उपकरण प्रदान करती है।

  • पुस्तकालय और संदर्भ पुस्तकें: माध्यमिक स्तर पर प्रत्येक विषय के लिए पूरक पढ़ना बहुत लाभदायक होता है। स्कूल पुस्तकालय में विद्यार्थियों व शिक्षकों के लिए संदर्भ पुस्तकें होनी चाहिए – जैसे विज्ञान विश्वकोश, ऐटलस (Atlas), अंग्रेजी शब्दकोश एवं थिसॉरस, हिन्दी कहावत/मुहावरा कोष, गणित की पहेली/प्रतियोगी प्रश्न पुस्तक, इत्यादि। पुस्तकालय में विभिन्न विषयों पर पत्रिकाएँ (मैगज़ीन) भी मंगवाई जा सकती हैं – जैसे विज्ञान प्रगति (हिंदी विज्ञान पत्रिका), Resonance या Science Reporter (अंग्रेजी में), प्रतियोगिता दर्पण आदि जो सामान्य ज्ञान बढ़ाने में मदद करती हैं। नई शिक्षा नीति 2020 ने भी इस बात पर ज़ोर दिया है कि सभी स्कूलों में समृद्ध पुस्तकालय, विज्ञान एवं कंप्यूटर लैब, खेल के साधन आदि उपलब्ध कराए जाएँ। अतः शिक्षकों को चाहिए कि वे पुस्तकालय की सुविधाओं का पूरा उपयोग करें और छात्रों को भी रेफ़रेंस पढ़ने को प्रेरित करें।

  • आईसीटी व ई-लर्निंग: माध्यमिक विद्यार्थियों के लिए आज ऑनलाइन शिक्षा सामग्रियों का खज़ाना मौजूद है। शिक्षक एनसीईआरटी के ई-पाठशाला (ePathshala) ऐप/वेबसाइट से कक्षा 9-10 की पाठ्यपुस्तकों के ई-बुक निशुल्क डाउनलोड कर सकते हैं। साथ ही DIKSHA पोर्टल पर हर अध्याय से संबंधित ऑडियो-विजुअल कंटेंट और क्विज़ उपलब्ध हैं। गणित व विज्ञान शिक्षण में ख़ास तौर से सिम्युलेशन (जैसे भौतिकी प्रयोगों के इंटरैक्टिव सिमुलेशन, रसायन में आवर्त सारणी या अणु संरचना के 3D मॉडल सॉफ़्टवेयर) का प्रयोग समझ बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। आईसीटी उपकरणों में माध्यमिक शिक्षक के लिए कंप्यूटर/लैपटॉप, प्रोजेक्टर, इन्टरनेट कनेक्शन, प्रिंटर (वर्कशीट छापने हेतु) आदि को शामिल किया जा सकता है। सरकार द्वारा SMART Classroom पहल के तहत कई स्कूलों को इंटरैक्टिव डिजिटल बोर्ड प्रदान किए जा रहे हैं, जिनका उपयोग अध्यापक पढ़ाई को रोचक बनाने हेतु कर सकते हैं।

  • शिक्षण योजनाएँ व मूल्यांकन सामग्रियाँ: माध्यमिक स्तर के शिक्षक को हर पाठ के लिए एक ठोस शिक्षण योजना बनानी चाहिए। इसमें पाठ का उद्देश्य, प्रयुक्त सामग्री, गतिविधियाँ और मूल्यांकन प्रश्न पहले से तय किए जा सकते हैं। इस कार्य में सहायक के रूप में शिक्षकों के लिए उपलब्ध संसाधन जैसे – पिछली बोर्ड परीक्षाओं के प्रश्नपत्र (Previous Year Question Papers), NCERT Exemplar Problems (विशेषकर गणित व विज्ञान में), कक्षा अभ्यास पत्र (Worksheets) आदि का संग्रह रखना चाहिए। शिक्षक स्वयं भी विभिन्न स्रोतों से प्रश्नों का संकलन कर एक प्रश्न बैंक बना सकते हैं। इससे उन्हें छात्रों की तैयारी करवाने में सुविधा होगी। मूल्यांकन के आधुनिक तरीकों (प्रोजेक्ट, ओपन-बुक टेस्ट, प्रस्तुति आदि) की जानकारी लेने हेतु सीबीएसई और एनसीईआरटी द्वारा जारी दिशानिर्देश पढ़ने चाहिए। मध्यमिक शिक्षकों को निष्ठा प्रशिक्षण मॉड्यूल (NISHTHA modules) में भी इन बातों पर सामग्री मिलती है, जिसे वे DIKSHA ऐप के माध्यम से एक्सेस कर सकते हैं।

उच्च माध्यमिक स्तर की सामग्री (Senior Secondary Level Materials)

11वीं-12वीं (उच्च माध्यमिक) में शिक्षण सामग्री काफी विशेषज्ञता भरी होती है क्योंकि छात्र अपने चुने हुए स्ट्रीम के गहन अध्ययन में रहते हैं। यहाँ शिक्षक की भूमिका एक फ़ैसिलिटेटर और विषय विशेषज्ञ दोनों के रूप में होती है, जिसके लिए निम्न संसाधन आवश्यक हैं:

  • प्रयोगशाला (उन्नत): विज्ञान स्ट्रीम में प्रत्येक विषय की अलग प्रयोगशाला होनी चाहिए:

    • भौतिकी प्रयोगशाला: उन्नत इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (ऑसीलोस्कोप, मल्टीमीटर), प्रकाश के उपकरण (लेंस, दर्पण सेट, लेज़र), यांत्रिकी के सेटअप (स्प्रिंग, फलक्रम, लटकन आदि) और विद्युतचुंबकीय उपकरण (गैल्वैनोमीटर, ट्रांसफॉर्मर मॉडल) इत्यादि।
    • रसायन प्रयोगशाला: पर्याप्त मात्रा में रसायन अभिकारक (रसायन शास्त्र में आवश्यक रसायन), ग्लासवेयर (टिट्रेशन सेट, फ्लास्क, बीकर), ताप स्रोत (बर्नर), इंडिकेटर, एवं सुरक्षा उपकरण (दस्ताने, चश्मे) रखे जाने चाहिए। सूक्ष्म पैमाने (microscale) के प्रयोग के लिए NCERT ने माइक्रोकेमिस्ट्री किट विकसित की है जिससे कम रसायनों का उपयोग कर प्रयोग कराए जा सकते हैं।
    • जीवविज्ञान प्रयोगशाला: माइक्रोस्कोप (अधिक आवर्धन क्षमता वाले), स्थायी स्लाइड्स (कोशिका विभाजन, ऊतक, सूक्ष्मजीव आदि के), मॉडल (मानव अंगों के मॉडल – हृदय, आंख, कान इत्यादि), तथा डिसेक्शन किट (शारीरिकी प्रयोग हेतु) उपलब्ध हों। इसके अलावा पौधों के वर्गीकरण के लिए हर्बेरियम शीट, प्राणियों के अस्थि-पंजर के मॉडल, जेनेटिक्स के प्रयोग (मक्खियों/बीज इत्यादि) हेतु सामग्री हो तो अध्यापन प्रभावी बनता है।
    • कंप्यूटर/आईसीटी लैब: विज्ञान और वाणिज्य दोनों धाराओं में कंप्यूटर का प्रयोग बढ़ गया है। कंप्यूटर लैब में आधुनिक कंप्यूटर, प्रोग्रामिंग सॉफ़्टवेयर, स्प्रेडशीट व डाटाबेस सॉफ्टवेयर, प्रिंटर, इंटरनेट कनेक्शन आदि होने चाहिए। 12वीं के छात्र प्रोजेक्ट/प्रयोग के लिए इंटरनेट से रिसर्च करते हैं, डेटा एनालिसिस करते हैं – इसके लिए शिक्षक उन्हें प्रतिष्ठित डिजिटल स्रोत (जैसे राष्ट्रीय डिजिटल पुस्तकालय, जर्नल्स) बताएं। स्कूलों में वर्चुअल लैब्स की सुविधा भी विकसित की जा रही है – राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार DIKSHA और SWAYAM जैसे प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग वर्चुअल प्रयोगशाला बनाने हेतु किया जाएगा ताकि सभी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण प्रायोगिक सीख मिल सके।
  • संदर्भ पुस्तकों का गहन अध्ययन: उच्च माध्यमिक अध्यापक के लिए पाठ्यपुस्तक के अलावा संदर्भ (Reference) सामग्री रखना ज़रूरी है। उदाहरण के लिए, भौतिकी के शिक्षक के पास HC Verma जैसी उच्च स्तरीय पुस्तकों की जानकारी हो, गणित शिक्षक के पास RD Sharma या अन्य एडवांस्ड प्रॉब्लम की किताबें हों, अंग्रेजी के अध्यापक के पास साहित्यिक आलोचना या गाइड, आदि। ये पुस्तकें शिक्षक अपने व्यक्तिगत संग्रह में भी रख सकते हैं या स्कूल लाइब्रेरी से मांग कर सकते हैं। देश के प्रतिष्ठित संस्थानों (जैसे IIT PAL वीडियो लेक्चर, Oscillations वीडियो, कोटा कोचिंग मैटेरियल इत्यादि) को भी参考として देखा जा सकता है, हालाँकि स्कूल में उनका सीधा उपयोग नहीं होता पर शिक्षक की जानकारी के लिए उपयोगी हैं। एनसीईआरटी स्वयं भी अनेक Exemplar Problems जारी करता है जो उच्च माध्यमिक विज्ञान-गणित के जटिल प्रश्नों का अभ्यास कराते हैं – इनका उपयोग कक्षा में किया जाना चाहिए।

  • विषय-विशेष सॉफ़्टवेयर/टूल: आजकल कुछ विषयों के लिए विशेष सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं। जैसे गणित शिक्षण में ग्राफिंग कैल्कुलेटर या जियोजीब्रा (GeoGebra) का प्रयोग कर ग्राफ समझाना; रसायन में मॉलिक्यूलar मॉडलिंग सॉफ़्टवेयर (3D अणु संरचना दिखाने हेतु); भूगोल में GIS सॉफ़्टवेयर का बुनियादी परिचय (जैसे QGIS); कंप्यूटर साइंस में विभिन्न प्रोग्रामिंग प्लेटफ़ॉर्म आदि। शिक्षक यदि इन उपकरणों का ज्ञान रखते हैं और संभव हो तो परिचय करवाते हैं, तो छात्रों को नवीन तकनीकी कौशल मिल सकता है। नई शिक्षा नीति भी शिक्षकों को नवीन शैक्षणिक तकनीक प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती है।

  • घर पर अध्ययन व विकास: उच्च माध्यमिक शिक्षकों को घर पर अपने विषय के उन्नयन के लिए सतत प्रयासरत रहना चाहिए। इसके लिए वे ऑनलाइन कोर्स (MOOCs) कर सकते हैं – जैसे SWAYAM पोर्टल या अन्य प्लेटफ़ॉर्म पर शिक्षण कौशल, विषय-विस्तार या शोध से जुड़े पाठ्यक्रम लेना। NEP 2020 के अनुसार प्रत्येक शिक्षक को प्रति वर्ष न्यूनतम 50 घंटे का पेशेवर विकास (CPD) प्रशिक्षण लेना अपेक्षित है। ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म (विशेषकर DIKSHA) पर ऐसे कोर्स/मॉड्यूल उपलब्ध हैं, जो नवीन शिक्षण विधियों (जैसे अनुभवात्मक अधिगम, कला-एकीकृत अधिगम, मूल्यांकन में नवाचार) पर केंद्रित हैं। उच्च माध्यमिक अध्यापक विभिन्न वेबिनार, कार्यशालाओं में भाग लेकर, शैक्षिक ब्लॉग/जर्नल पढ़कर अपने ज्ञान को अद्यतन रखें। अपने विषय में हो रहे नए शोध या करिकुलम बदलाव (जैसे एनसीईआरटी समय-समय पर पाठ्यचर्या अपडेट करता है) से अवगत रहें। इस तरह घर पर स्वाध्ययन द्वारा शिक्षक अपनी कक्षा शिक्षण में नयापन और गहराई ला सकते हैं।

शिक्षकों के निरंतर अध्ययन हेतु सुझाव (Continuous Learning Tips for Teachers)

आज के तेजी से बदलते शैक्षणिक परिवेश में शिक्षकों का निरंतर सीखना (Lifelong Learning for Teachers) अत्यंत आवश्यक है। एक शिक्षक जितना अपडेटेड और दक्ष होगा, उसके विद्यार्थियों को उतना ही समृद्ध अनुभव मिलेगा। यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं जिन पर हर शिक्षक को अपने पेशेवर विकास के लिए ध्यान देना चाहिए:

  • नियमित पठन एवं स्वाध्ययन: एक अच्छा शिक्षक हमेशा एक अच्छा विद्यार्थी भी होता है। शिक्षकों को चाहिये कि वे नियमित रूप से शैक्षणिक किताबें, शोध पत्र, शिक्षा से संबंधित समाचार पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ें। अपने विषय के अलावा शिक्षा शास्त्र (Education Theory), बाल मनोविज्ञान, मूल्यांकन विज्ञान आदि पर भी पुस्तकें पढ़ें। उदाहरण के लिए, एक विज्ञान शिक्षक "How Children Fail" जैसी पुस्तक पढ़कर समझ सकता है कि बच्चे कहाँ और क्यों समस्याओं का सामना करते हैं, या "शिक्षा में कला का एकीकरण" जैसे संदर्शिका पढ़कर कक्षा में क्रिएटिव गतिविधियों को ला सकता है।

  • ऑनलाइन कोर्स एवं प्रमाणपत्र: वर्तमान में कई मुफ्त/स्वल्प-शुल्क ऑनलाइन कोर्स उपलब्ध हैं जो शिक्षकों के लिए लाभकारी हैं। भारत सरकार का SWAYAM प्लेटफ़ॉर्म और NPTEL विभिन्न विषयों और शिक्षण कौशलों पर कोर्स कराते हैं। इसी प्रकार Coursera, edX जैसे मंचों पर वैश्विक विश्वविद्यालयों द्वारा कोर्स चलते हैं – जैसे Effective Classroom Strategies, Educational Technology, Subject-specific Pedagogy आदि। शिक्षक छुट्टियों में या सप्ताहांत पर ऐसे कोर्स कर सकते हैं और प्रमाणपत्र हासिल कर अपने ज्ञान का प्रसार कर सकते हैं। याद रखें, NEP 2020 ने प्रतिवर्ष 50 घंटे के Continuous Professional Development (CPD) पर ज़ोर दिया है, तो इन कोर्स के माध्यम से इसे आसानी से पूरा किया जा सकता है।

  • शिक्षक समुदाय और कार्यशालाएँ: शिक्षकों को आपस में एक दूसरे के अनुभवों से सीखना चाहिए। स्कूल स्तर पर अनुभव-साझा सत्र आयोजित करें जहां शिक्षक अपने सफल नवाचार या चुनौतियाँ बता सकें। ब्लॉक/जिला स्तर पर होने वाली इंसर्ट (INSET) ट्रेनिंग, NISHTHA कार्यक्रम या विषय-विषय पर कार्यशालाओं में ज़रूर भाग लें। ऑनलाइन भी कई शिक्षक समुदाय (जैसे Facebook पर शिक्षक समूह, या शिक्षकों के लिए बने फ़ोरम) हैं जहां समस्याओं पर चर्चा होती है। DIKSHA पर भी Discussion Forum जैसी सुविधाएं है। इनसे आइडिया का आदान-प्रदान होता है और नये समाधान मिलते हैं। सहयोगात्मक अधिगम (Collaborative Learning) केवल विद्यार्थियों के लिए ही नहीं, शिक्षकों के लिए भी उतना ही फ़ायदेमंद है।

  • प्रयोग और प्रतिबिंब (Reflection): एक कुशल शिक्षक अपनी कक्षा में नये-नये प्रयोग करने से नहीं हिचकता – कभी नई गतिविधि, कभी तकनीक का प्रयोग, कभी आकलन का भिन्न तरीका अपनाकर देखिए। लेकिन साथ ही हर प्रयोग के बाद आत्म-मूल्यांकन भी करें। क्या अपेक्षित परिणाम मिला?, बच्चों की सहभागिता कैसी रही?, भविष्य में क्या सुधार कर सकते हैं? – इन प्रश्नों पर सोचें और नोट्स बनाएं। आप शिक्षक डायरी रखें जिसमें रोज़ के अनुभव और सीखे सबक दर्ज करें। यह डायरी आपके प्रतिबिंब (reflection) का साधन होगी और समय के साथ आपके पेशेवर विकास को प्रतिबिंबित करेगी।

  • डिजिटल कौशल में दक्षता: 21वीं सदी के शिक्षकों के लिए डिजिटल साक्षरता अत्यावश्यक है। कोशिश करें कि प्रति वर्ष आप कोई नया डिजिटल कौशल सीखें – जैसे इस वर्ष अगर आपने PPT बनाना सीखा है तो अगली बार Google Classroom उपयोग करना सीखें, उससे अगले वर्ष बेसिक कोडिंग या डेटा विश्लेषण की समझ लें। भारत सरकार ने शिक्षकों के लिए ICT कंपेटेंसी फ्रेमवर्क भी जारी किया है जिसके अनुसार gradually teachers को तकनीकी दक्षताएँ सीखनी हैं। आप एमआईसीटी (NIOS का ICT in Education कोर्स) या विद्यालयी शिक्षा में कंप्यूटर जैसे कोर्स कर सकते हैं। अपनी कक्षा में छोटे-छोटे डिजिटल प्रयोग करते रहें – जैसे WhatsApp समूह पर होमवर्क देना, ऑनलाइन क्विज़ लेना, कक्षा ब्लॉग बनाना आदि। ये आपको तकनीक में निपुण बनाएंगे और छात्र भी प्रोत्साहित होंगे।

इन सुझावों को अपनाकर शिक्षक न केवल अपने करियर में आगे बढ़ेंगे बल्कि उनकी क्लासरूम प्रैक्टिस भी लगातार निखरेगी। याद रखें, एक प्रगतिशील शिक्षक ही प्रगतिशील भविष्य का निर्माण कर सकता है।

नई शिक्षा नीति 2020 के प्रासंगिक बिंदु (NEP 2020 – Key Points for Teachers & Resources)

भारत की नई शिक्षा नीति 2020 (National Education Policy 2020) में शिक्षकों की भूमिका, उनकी दक्षता और शैक्षणिक सामग्री को उन्नत करने पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस नीति के कुछ प्रासंगिक बिंदु निम्न हैं, जिनका उद्देश्य शिक्षकों को सशक्त बनाना और शिक्षण संसाधनों को बेहतर करना है:

  • शिक्षक – परिवर्तन के केंद्रबिंदु: NEP 2020 स्पष्ट रूप से कहती है कि *“शिक्षक शिक्षा व्यवस्था में मूलभूत सुधारों के केंद्र में हैं”*। नीति दो दशकों बाद शिक्षकों को पुनः सबसे अधिक सम्मानित और महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में स्थापित करने की बात करती है। इसमें कहा गया है कि शिक्षकों को पूर्ण समर्थन, स्वायत्तता और संसाधन दिए जाएँ ताकि वे अपने कक्षाओं में नवाचार कर सकें। साथ ही श्रेष्ठ प्रतिभाओं को शिक्षण पेशे में आकर्षित करने हेतु प्रेरणा, गरिमा और उचित वेतन/सुविधा सुनिश्चित करने की बात भी है। यह दृृष्टिकोण दर्शाता है कि शिक्षक के बिना कोई भी शिक्षा सुधार संभव नहीं, इसलिए नीति उन पर केंद्रित है।

  • निरंतर व्यावसायिक विकास (Continuous Professional Development): NEP 2020 शिक्षकों के सतत प्रशिक्षण पर ज़ोर देती है। हर शिक्षक और प्रधानाध्यापक को कम-से-कम 50 घंटे का CPD प्रशिक्षण प्रति वर्ष अनिवार्य रूप से करने की सिफारिश नीति में है। ये प्रशिक्षण स्थानीय, राज्य, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यशालाओं, सेमिनार, ऑनलाइन कोर्स आदि के रूप में हो सकते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि शिक्षक अपनी रुचि व आवश्यकता के अनुसार नए педагогियाँ (जैसे बुनियादी साक्षरता, मूल्यांकन में नवाचार, दक्षता-आधारित शिक्षा, कथा-वाचन तकनीक, खेल-आधारित अधिगम आदि) में प्रशिक्षित हों। सरकार ने इसके लिए DIKSHA जैसे ई-लर्निंग प्लेटफ़ॉर्म पर बहुत से मुफ़्त मॉड्यूल उपलब्ध कराए हैं, ताकि शिक्षक सुविधा से ऑनलाइन प्रशिक्षण ले सकें। इसके अतिरिक्त स्कूल स्तर पर निष्ठा (NISHTHA) जैसे बड़े कार्यक्रम चलाए गए हैं जिनमें लाखों शिक्षकों को नवीनतम शिक्षण कौशल का प्रशिक्षण दिया गया।

  • 5+3+3+4 पाठ्यचर्या संरचना: नीति ने पाठ्यक्रम संरचना में बड़ा बदलाव करते हुए पारंपरिक 10+2 प्रणाली को 5+3+3+4 से स्थानापन्न किया है। इस नये ढाँचे के तहत बुनियादी चरण (Foundational Stage) में गतिविधि-आधारित शिक्षा (प्ले-आधारित लर्निंग), मध्य चरण में खोज-आधारित तथा माध्यमिक चरण में बहुविषयक आलोचनात्मक चिंतन पर ज़ोर होगा। शिक्षक समुदाय के लिए यह बदलाव महत्वपूर्ण है – उन्हें उम्र के अनुसार उपयुक्त शिक्षण सामग्री का चयन/निर्माण करना होगा। नीति यह संकेत देती है कि पूर्व-प्राथमिक से ही समृद्ध TLM (जैसे जादुई पिटारा-KG किट) और बाद के चरणों में विषय एकीकरण के माध्यम से सामग्री इस्तेमाल होगी। उदाहरणतः 6-8 में कला-एकीकृत परियोजनाएँ या 9-10 में व्यावसायिक शिक्षा के उपकरण शामिल करना।

  • भाषाई और संसाधन विविधता: NEP में कहा गया है कि प्रारंभिक स्तर पर शिक्षा मातृभाषा/स्थानीय भाषा में दी जाए। इससे शिक्षकों को स्थानीय भाषा में पर्याप्त शिक्षण सामग्री की उपलब्धता पर ध्यान देना होगा। NCERT एवं राज्य शैक्षिक संस्थानों को स्थानीय भाषाओं में डिजिटल सामग्री विकसित करने की जिम्मेदारी दी गई है। साथ ही बहुभाषिक शिक्षण को बढ़ावा देने के लिए तकनीकी हस्तक्षेप (जैसे DIKSHA में अनुवाद टूल) का उपयोग होगा। इससे शिक्षक एक ही सामग्री को कई भाषाओं में पा सकेंगे। उदाहरण के लिए, एक गणित का वीडियो अगर अंग्रेज़ी में है तो DIKSHA पर उसके हिंदी/तमिल संस्करण भी मिलेंगे, जिससे भाषा बाधा कम होगी।

  • शैक्षणिक तकनीक और DIKSHA का विस्तार: नीति तकनीक के समुचित उपयोग पर बल देती है – *“शिक्षण और प्रशिक्षण में तकनीकी मंचों (जैसे SWAYAM/DIKSHA) का उपयोग प्रोत्साहित किया जाएगा”*। विशेष रूप से, DIKSHA प्लेटफ़ॉर्म को सशक्त बनाने की बात कही गई है ताकि उस पर शिक्षक प्रशिक्षण सामग्रियाँ, पाठ्य सामग्री, और इनोवेटिव TLM व्यापक रूप से उपलब्ध हों। इसके लिए NCERT के निकाय CIET को मजबूत किया जा रहा है जो DIKSHA पर ई-कंटेंट बढ़ाने और शिक्षकों के लिए उपयोगी टूल विकसित करने में सहायता करेगा। यहाँ तक कहा गया है कि स्कूलों में उपयुक्त उपकरण उपलब्ध करवाए जाएं ताकि शिक्षक कक्षा में ई-कंटेंट का एकीकरण सुगमता से कर सकें। इस प्रावधान से साफ है कि आने वाले समय में हर शिक्षक के पास एक डिजिटल संसाधन भंडार (DIKSHA) और उसे चलाने हेतु बुनियादी उपकरण (टैबलेट/प्रोजेक्टर आदि) होगा।

  • स्कूल कॉम्प्लेक्स एवं साझा संसाधन: NEP ने स्कूल कॉम्प्लेक्स/क्लस्टर की परिकल्पना की है, जहाँ आसपास के 4-5 स्कूल मिलकर एक समूह बनाएं और अपने संसाधन साझा करें। इसका बड़ा लाभ यह होगा कि छोटे स्कूल जिनके पास खुद की लैब या पुस्तकालय नहीं, वे क्लस्टर के संसाधन केंद्र का प्रयोग कर पाएंगे। प्रत्येक कॉम्प्लेक्स में एक अच्छा पुस्तकालय, विज्ञान प्रयोगशाला, कंप्यूटर प्रयोगशाला, खेल का मैदान, कला-कक्ष आदि होना अनिवार्य होगा। इससे शिक्षकों को अधिक साधन मिलेंगे – जैसे अगर उनके पास स्कूल में केमिस्ट्री लैब नहीं तो कॉम्प्लेक्स लैब में बच्चे प्रयोग करने जा सकेंगे। शिक्षक भी आपस में क्लस्टर के भीतर सहयोग करेंगे, अलग-थलग पड़े स्कूलों की चुनौती घटेगी। कुल मिलाकर, नीति संसाधनों के आदान-प्रदान और सामूहिक उपयोग से प्रत्येक विद्यालय में गुणवत्ता लाने की दिशा में बढ़ रही है।

  • शिक्षक के लिए करियर प्रगति एवं मानक: नीति में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) को एक राष्ट्रीय प्रोफेशनल स्टैंडर्ड फ़ॉर टीचर्स (NPST) विकसित करने का दायित्व दिया गया है। इसके तहत शिक्षकों के लिए विभिन्न करियर चरणों पर अपेक्षित दक्षताओं का मानकीकरण होगा। शिक्षक की प्रोन्नति को विद्यार्थियों के सीखने के प्रतिफल, सहकर्मी समीक्षा, नवाचार आदि से जोड़ने का प्रावधान है। इससे एक उत्साहवर्धक वातावरण बनेगा जिसमें उत्कृष्ट कार्य करने वाले शिक्षकों को पुरस्कृत/मान्य किया जाएगा। साथ ही वर्ष 2030 तक न्यूनतम अध्यापक योग्यता 4-वर्षीय एकीकृत B.Ed करने की बात है, जो आने वाले शिक्षकों के प्रशिक्षण की गुणवत्ता बढ़ाएगी।

इन बिंदुओं से स्पष्ट है कि NEP 2020 शिक्षक और शिक्षण सामग्री दोनों के परिदृश्य में सकारात्मक परिवर्तन लाने का प्रयास कर रही है। एक ओर जहाँ शिक्षक-प्रशिक्षण, करियर वृद्धि, स्वायत्तता पर बल है, वहीं दूसरी ओर टेक्नोलॉजी, किट, लाइब्रेरी, लैब जैसे संसाधनों की उपलब्धता पर भी ध्यान है। यदि इस नीति के प्रावधान सही ढंग से लागू होते हैं, तो आने वाले वर्षों में शिक्षकों को बेहतर सामग्री, प्रशिक्षण व माहौल मिलेगा, जो अंततः विद्यार्थियों के सीखने के अनुभव को समृद्ध करेगा।

प्रामाणिक शैक्षणिक संसाधन लिंक (Authentic Educational Resource Links)

शिक्षकों और विद्यार्थियों के लिए भारत सरकार एवं शैक्षिक संस्थानों ने कई ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म और पोर्टल उपलब्ध कराए हैं। ये प्रामाणिक स्रोत न केवल अद्यतन जानकारी प्रदान करते हैं, बल्कि निःशुल्क या सस्ते दर पर उत्कृष्ट सामग्री भी मुहैया कराते हैं। कुछ प्रमुख संसाधन व उनके उपयोग इस प्रकार हैं:

  • शाला दर्पण (Shaala Darpan): शाला दर्पण शिक्षा मंत्रालय की एक ई-गवर्नेंस पहल है, जो खासकर केंद्रीय विद्यालय संगठन (KVS) के स्कूलों को एकीकृत प्लेटफ़ॉर्म प्रदान करती है। इस पोर्टल पर स्कूलों, छात्रों, शिक्षकों का डेटा ऑनलाइन उपलब्ध है और विभिन्न सेवाएँ (उपस्थिति, रिपोर्ट कार्ड, आदि) डिजिटली प्रबंधित होती हैं। शाला दर्पण का एक प्रमुख लाभ यह भी है कि यह शिक्षण-अध्ययन सामग्री (Teaching-Learning Material) और कंटेंट डिलीवरी का मंच भी है। यानी शिक्षक और छात्र पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन लर्निंग संसाधन, सेल्फ-असेसमेंट क्विज़ आदि तक पहुंच सकते हैं। कई राज्य सरकारें भी अपने संस्करण चला रही हैं (जैसे राजस्थान शाला दर्पण)। यह प्रणाली पारदर्शिता, दक्षता और विभिन्न हितधारकों (अभिभावकों, प्रशासन) की सहभागिता बढ़ाने के लिए बनाई गई है। शिक्षकों को शाला दर्पण पर अपनी प्रोफ़ाइल एवं कक्षा संबंधित अद्यतन करते रहना चाहिए और उपलब्ध सामग्रियों को कक्षा में प्रयोग करना चाहिए।

  • राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद – एनसीईआरटी (NCERT): एनसीईआरटी भारत में स्कूली शिक्षा संबंधी पाठ्यचर्या, पाठ्यपुस्तक एवं टीचर्स ट्रेनिंग की शीर्ष संस्था है। इसकी आधिकारिक वेबसाइट (ncert.nic.in) पर शिक्षक और विद्यार्थी नि:शुल्क ई-पुस्तकें (PDF) डाउनलोड कर सकते हैं, प्रकाशनों की सूची देख सकते हैं और नवीनतम अधिप्रेत (exemplar), लैब मैनुअल, आदि पा सकते हैं। NCERT ने विभिन्न विद्यालयी किट्स (पूर्व-प्राथमिक किट, भाषा किट, विज्ञान/गणित किट) भी विकसित की हैं, जिनका विवरण और उपयोग निर्देश वेबसाइट पर उपलब्ध है। उदाहरणतः स्कूल किट्स और लैब मैनुअल सेक्शन में किट की सूची, सामग्री और मैनुअल दिए गए हैं। एनसीईआरटी के द्वारा संचालित कुछ उप-पोर्टल:

    • ई-पाठशाला (ePathshala): यह NCERT का डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म है जहां कक्षा 1-12 की पुस्तकें और कई ऑडियो-वीडियो सामग्री उपलब्ध हैं। ऐप के रूप में भी यह Android/iOS पर है।
    • दीक्षा (DIKSHA): हालाँकि DIKSHA मूलतः MoE का मंच है, NCERT उसका शैक्षणिक समन्वयक है – इसपर NCERT की पाठ्यपुस्तकों के अध्यायनुसार कंटेंट, क्विज़, लेसन प्लान आदि मिलते हैं।
    • NROER: National Repository of Open Educational Resources – यह एक वेब संग्रह है जिसमें ओपन लाइसेंस के साथ बहुत सी शिक्षण सामग्री (इमेज, वीडियो, पीडीएफ) हैं।
  • दीक्षा पोर्टल (DIKSHA – Digital Infrastructure for Knowledge Sharing): यह भारत का एकीकृत शैक्षणिक प्लेटफ़ॉर्म है जिसका उपयोग शिक्षक, छात्र, अभिभावक सभी कर सकते हैं। DIKSHA पर CBSE, NCERT, राज्य बोर्डों द्वारा योगदान की गई पाठ्य सामग्री, व्याख्यान वीडियो, अभ्यास प्रश्न, व्यावहारिक गाइड आदि हैं। शिक्षक विशेषकर इसका उपयोग ऑनलाइन प्रशिक्षण के लिए कर रहे हैं – जैसे निष्ठा के कोर्स, विषय उन्नयन कोर्स, क्षमता निर्माण मॉड्यूल आदि यहीं होते हैं। NEP 2020 के अनुसार DIKSHA को शिक्षक प्रशिक्षण के एक प्रमुख मंच के रूप में विकसित किया जा रहा है। यह प्लेटफ़ॉर्म वेब और मोबाइल ऐप दोनों रूप में उपलब्ध है। इसमें क्यूआर कोड स्कैन कर पाठ से जुड़े डिजिटल कंटेंट तक पहुंचने की सुविधा, क्विज़ खेलने, प्रमाणपत्र हासिल करने की सुविधाएँ हैं। हर शिक्षक को DIKSHA पर एक बार अवश्य पंजीकरण करना चाहिए और अपने उपयोग हेतु ज़रूरी सामग्री “My Downloads” में सहेजकर रखनी चाहिए।

  • निष्ठा (NISHTHA – National Initiative for School Heads’ and Teachers’ Holistic Advancement): निष्ठा शिक्षकों और स्कूल प्रधानों के लिए एक राष्ट्रव्यापी प्रशिक्षण कार्यक्रम है। इसका उद्देश्य एकीकृत शिक्षक प्रशिक्षण के माध्यम से प्राथमिक से उच्च माध्यमिक स्तर तक सभी शिक्षकों में नवीन शैक्षणिक दक्षताएँ विकसित करना है। निष्ठा के अंतर्गत ऑफ़लाइन एवं ऑनलाइन दोनों मोड में प्रशिक्षण आयोजित किए गए हैं। हाल ही में निष्ठा 2.0 (माध्यमिक स्तर के लिए) और 3.0 (फाउंडेशनल लिटरेसी हेतु) भी आए हैं। NCERT ने निष्ठा के लिए विस्तृत कोर्स सामग्री तैयार की है जो DIKSHA पर मॉड्यूल के रूप में उपलब्ध है। शिक्षक इन मॉड्यूल को अपनी सुविधानुसार पूरा कर सकते हैं और क्विज़/असेसमेंट पास करके प्रमाणपत्र पा सकते हैं। निष्ठा को सफलतापूर्वक करने वाले शिक्षक नवीन शिक्षा नीति में सुझाए गए 21वीं सदी के कौशल, समावेशी शिक्षा, मूल्यांकन सुधार, इत्यादि से भली-भांति परिचित हो जाते हैं। निष्ठा कार्यक्रम की आधिकारिक जानकारी और प्रशिक्षण analytics NCERT की ITPD (Integrated Teacher Training Platform) वेबसाइट पर देखी जा सकती है।

  • पोर्टल्स for Curriculum and Governance: शिक्षा विभाग ने कुछ और पोर्टल भी विकसित किए हैं:

    • Unified District Information System for Education (UDISE+): यह स्कूलों से सम्बंधित डेटा एकत्र करने वाला प्लेटफ़ॉर्म है। शिक्षक इसका सीधा उपयोग नहीं करते लेकिन स्कूल प्रशासन करता है।
    • स्वयं (SWAYAM): मुक्त ऑनलाइन कोर्सेज प्लेटफ़ॉर्म, जिस पर स्कूली पाठ्यक्रम (IIT-PAL) से लेकर उच्च शिक्षा तक के कोर्स हैं।
    • PM eVidya Channels: विभिन्न कक्षाओं के लिए समर्पित TV चैनल (कक्षा 1-12 के लिए एक-एक चैनल) जहाँ दूरदर्शन पर रोज़ पाठ्यक्रम आधारित कार्यक्रम आते हैं – जिनका शेड्यूल NCERT जारी करता है। ये सामग्री YouTube पर भी उपलब्ध है।
    • विद्या प्रवेश, नुक्कड़ नाटक, आदि: विशिष्ट पहल व उनके संसाधन जैसे – विद्या प्रवेश (प्रारंभिक कक्षाओं के लिए 3 माह का स्कूल तैयारी मॉड्यूल) की सामग्री NCERT ने जारी की है, निपुण भारत मिशन से जुड़े FLN सामग्री आदि सरकारी वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं।

इन सभी लिंक/प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग कर शिक्षक अपने कक्षा के लिए पाठ योजना, अतिरिक्त अभ्यास, दृष्टान्त, संदर्शिका आदि पा सकते हैं। साथ ही ये भरोसेमंद स्रोत हैं क्योंकि इन पर सामग्री की गुणवत्ता और मानक सुनिश्चित होते हैं। नियमित अंतराल पर इन साइट्स को विज़िट करना और नई सामग्री देखते रहना, हर शिक्षक के लिए लाभदायक होगा। संक्षेप में कहें तो, आज का डिजिटल युग शिक्षकों के लिए सीखने और सिखाने के अनंत साधन प्रदान कर रहा है – बस आवश्यकता है तो इनका सही प्रयोग करने की।

उदाहरण: भारत एवं अंतरराष्ट्रीय दृष्टांत (Examples: Indian & International Perspectives)

शिक्षण सामग्री और शिक्षक विकास के संदर्भ में भारत एवं विश्वभर में कई उत्कृष्ट उदाहरण मिलते हैं, जिनसे प्रेरणा लेकर हम अपनी शिक्षा प्रणाली को और बेहतर बना सकते हैं।

भारत में उदाहरण:

  • अटल टिंकरिंग लैब्स (Atal Tinkering Labs): भारत सरकार के अटल नवाचार मिशन (AIM) के तहत देश भर के सेकेंडरी स्कूलों में अटल टिंकरिंग लैब्स की स्थापना की गई है। ये आधुनिक प्रयोगशालाएँ हैं जहाँ 3D प्रिंटर, रोबोटिक्स किट, इलेक्ट्रॉनिक्स कॉम्पोनेंट्स जैसे नवीन उपकरण उपलब्ध कराए गए हैं। उद्देश्य है कि छात्र छोटे-छोटे प्रोजेक्ट बना कर हैंड्स-ऑन तरीके से विज्ञान व तकनीक सीखें, समस्या-समाधान और नवाचार की क्षमता विकसित करें। शिक्षकों को भी इन लैब्स के उपयोग हेतु विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वे बच्चों को मार्गदर्शन दे सकें। ATL के कारण बहुत से स्कूलों में एक नया मेकर कल्चर विकसित हुआ है – विद्यार्थी पाठ्यपुस्तक से परे जाकर खुद अन्वेषण कर रहे हैं। उदाहरण स्वरूप, कई स्कूलों के छात्रों ने ATL की मदद से वैज्ञानिक मॉडल, रोबोट, ऐप्प आदि बनाए हैं। यह पहल दर्शाती है कि यदि सरकार आधुनिक सामग्री उपलब्ध करवाए और शिक्षक-छात्र मिलकर उसका उपयोग करें, तो शिक्षा का स्तर कितना बढ़ सकता है।

  • DIKSHA का बड़े पैमाने पर उपयोग: DIKSHA पोर्टल पर लगभग हर राज्य ने अपनी स्थानीय भाषा में सामग्री अपलोड की है। कोविड-19 महामारी के दौरान DIKSHA देशभर में स्कूल शिक्षा के लिए मुख्य डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म बनकर उभरा। करोड़ों छात्रों और शिक्षकों ने इसपर उपलब्ध ई-कंटेंट,QR कोड आधारित पाठ, ऑडियो पुस्तकें, इंटरेक्टिव क्विज़ का उपयोग घर बैठे किया। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में “परिणामवा नवाचार” पहल के तहत शिक्षकों ने DIKSHA पर खुद कंटेंट बनाकर डाला, जिसे राज्य भर के शिक्षकों ने इस्तेमाल किया। केरल राज्य का अपना SAMAGRA पोर्टल है जो DIKSHA से लिंक्ड है, उसपर भी शिक्षक सामग्रियाँ साझा करते हैं। ये उदाहरण दिखाते हैं कि एक राष्ट्रीय प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से कैसे शिक्षक समुदाय एक-दूसरे से सीख सकता है और एक उच्च गुणवत्ता की रिसोर्स लाइब्रेरी सबके लिए सुलभ होती है।

  • केन्द्रीय विद्यालय एवं नवोदय विद्यालय: KVS और NVS जैसे राष्ट्रीय विद्यालय संगठन अपने अध्यापकों के लिए नियमित रूप से नवाचार प्रतियोगिताएँ, प्रदर्शनी, इन-हाउस प्रशिक्षण आयोजित करते हैं। केंद्रीय विद्यालयों में हर वर्ष राष्ट्रीय सामाजिक विज्ञान, विज्ञान प्रदर्शनी होती है, जिसमें विभिन्न क्षेत्र के KV के शिक्षक-विद्यार्थी परियोजनाएँ लाते हैं और श्रेष्ठ का चयन होता है। इससे एक सर्वश्रेष्ठ प्रैक्टिसेस का आदान-प्रदान होता है – जैसे किसी स्कूल के शिक्षक ने low-cost TLM से जुड़ा आइडिया लगाया है तो वह सभी तक पहुंचता है। नवोदय विद्यालय में नवाचार मेलों का आयोजन होता है जहां शिक्षक अपने शिक्षण में किए सुधार साझा करते हैं। इन संस्थानों के छात्रों का शैक्षणिक प्रदर्शन ऊँचा रहता है, जिसका आंशिक श्रेय इनकी समृद्ध शैक्षणिक सामग्री व प्रशिक्षित शिक्षकों को जाता है।

  • एनजीओ और निजी पहल: देश में कई गैर-सरकारी संगठन शिक्षा सामग्री विकसित करने में लगे हैं। जैसे प्रथम संस्था की लर्निंग लिंक्ड लाइब्रेरी, एकलव्य की विज्ञान पुस्तिकाएँ, खान एकेडमी का हिंदी वीडियो कंटेंट, Central Square Foundation द्वारा FLN हेतु विकसित सामग्री आदि। ये पूरक संसाधन अक्सर सरकारी तंत्र के साथ मिलकर कार्यान्वित होते हैं। उदाहरणस्वरूप, मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों में एकलव्य की किताबें संदर्शिका रूप में प्रयुक्त होती हैं। राजस्थान में प्राथमिक गणित सीखने के लिए Pratham’s CAMAL सामग्री का उपयोग किया गया। इनसे स्पष्ट है कि सरकार के अलावा सामाजिक संगठनों का सहयोग लेकर हम शिक्षण-अधिगम सामग्री को और रोचक व प्रभावी बना सकते हैं।

अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य:

  • फ़िनलैंड का शिक्षा मॉडल: फ़िनलैंड विश्व में अपनी बेहतरीन शिक्षा के लिए प्रसिद्ध है। वहाँ शिक्षक अत्यंत उच्च प्रशिक्षित होते हैं (प्रत्येक शिक्षक के पास मास्टर डिग्री होना अनिवार्य है) और उन्हें नवीन शिक्षण विधियों को आज़माने की आज़ादी दी जाती है। फ़िनलैंड में स्कूल स्तर पर अनुभवात्मक अधिगम को बढ़ावा दिया जाता है – कक्षा में प्रोजेक्ट आधारित पढ़ाई, गेम-आधारित लर्निंग, आउटडोर एजुकेशन आम बात है। शिक्षकों को पाठ्यक्रम में भारी स्वतंत्रता है; राष्ट्रीय स्तर पर कठोर मानकीकृत परीक्षाएँ नहीं होतीं, बल्कि शिक्षक खुद अपने मूल्यांकन डिजाइन करते हैं। संसाधनों की दृष्टि से, फ़िनलैंड के हर स्कूल में आधुनिक लैब, पुस्तकालय, छोटे क्लास आकार (औसतन 20 विद्यार्थी) आदि सुनिश्चित किया गया है। सरकार शिक्षकों पर भरोसा करती है और उन्हें समाज में बेहद सम्मान दिया जाता है, जिसे वहाँ के परिणामों से उचित ठहराया जाता है। यह मॉडल दिखाता है कि शिक्षकों को सशक्त बनाकर और समृद्ध संसाधन देकर शिक्षा में क्रांतिकारी सफलताएँ पाई जा सकती हैं। Read more 

  • जापान का लेसन स्टडी कल्चर: जापान में शिक्षकों के पेशेवर विकास का अनूठा तरीका है – Lesson Study. इसमें एक शिक्षक सबके सामने कक्षा में पढ़ाता है जबकि अन्य शिक्षक अवलोकन करते हैं, फिर सब मिलकर उस पाठ पर चर्चा करते हैं और सुधार सुझाव देते हैं। यह एक प्रकार का सहयोगी प्रशिक्षण है जिससे शिक्षक अपने अध्यापन शैली में लगातार सुधार करते हैं। इसके लिए भी एक तरह से टीचिंग मटीरियल की साझेदारी होती है – मिलजुल कर पाठ योजना बनाना, कौनसी सामग्री प्रयोग होगी तय करना आदि। आज लेसन स्टडी कई देशों (सिंगापुर, अमेरिका के कुछ जिले) में अपनाया जा रहा है, क्योंकि इससे नवाचारी संसाधन व गतिविधियों का भंडार बनता है और शिक्षक आपस में सीखते हैं।

  • ओपन एजुकेशनल रिसोर्सेज़ (OER) वैश्विक पहल: संयुक्त राष्ट्र और यूनESCO वैश्विक स्तर पर मुक्त शैक्षणिक संसाधन आंदोलन को बढ़ावा दे रहे हैं। 2019 में UNESCO ने OER पर सिफारिश जारी की कि देशों को मुक्त लाइसेंस में पाठ्य सामग्री विकसित कर साझा करनी चाहिए। कई अंतरराष्ट्रीय प्लेटफ़ॉर्म जैसे OER Commons, Khan Academy, Coursera (for campus) आदि शिक्षकों-छात्रों के लिए निःशुल्क गुणवत्तापूर्ण सामग्री उपलब्ध करा रहे हैं। उदाहरण के लिए, अफ्रीका में TESSA (Teacher Education in Sub-Saharan Africa) एक पहल है जिसने कई खुले संसाधन शिक्षकों के लिए बनाए और लाखों अध्यापक लाभान्वित हुए। विश्व बैंक की रिपोर्टें दिखाती हैं कि जिन विकासशील देशों ने OER अपनाए वहाँ शिक्षण सामग्री की कमी काफी हद तक दूर हुई। एक और पहल UNESCO ICT Competency for Teachers के तहत अंतरराष्ट्रीय ICT कौशल रूपरेखा दी गयी है, जिसे अपनाकर विभिन्न देशों ने अपने टीचर ट्रेनिंग मॉड्यूल तैयार किए हैं। कुल मिलाकर, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रुझान यही है कि ज्ञान को खुला और सबके लिए सुलभ बनाया जाए, ताकि हर शिक्षक कहीं से भी सीखने-सिखाने के साधन प्राप्त कर सके।

  • अन्य उल्लेखनीय: अमेरिका में खान एकेडमी ने गणित- विज्ञान शिक्षा का परिदृश्य बदला – लाखों अमेरिकी शिक्षक अब खान एकेडमी की अभ्यास योजनाएँ कक्षा में अपनाते हैं। यूके में BBC Bitesize जैसे पोर्टल स्कूली पाठ्यक्रम अनुसार इंटरैक्टिव सामग्री मुफ्त देते हैं, जिसका उपयोग शिक्षक होमवर्क या रिवीज़न में कराते हैं। ऑस्ट्रेलिया में Scootle नामक शिक्षण सामग्री का राष्ट्रीय भंडार है जहां शिक्षक लॉगइन करके उच्च गुणवत्ता सामग्री पा सकते हैं। इन सभी से भारत सीख सकता है कि डिजिटल भंडार और ओईआर को मुख्यधारा में ला कर शिक्षकों को कैसे सशक्त किया जाए।

भारत सरकार भी अंतरराष्ट्रीय सहयोग से इनोवेटिव प्रैक्टिसेज़ सीख रही है – जैसे पीएम ईविद्या कार्यक्रम में एक भारत-एक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म की संकल्पना वैश्विक COVIDकाल की प्रतिक्रिया से प्रेरित थी। धीरे-धीरे, “ग्लोबल बेस्ट प्रैक्टिस लोकलाइजेशन” के ज़रिए हमारे शिक्षक दुनिया के सर्वोत्तम संसाधनों का लाभ अपनी भाषा और संदर्भ में पा सकेंगे।

विशेषज्ञों के विचार (Experts’ Views)

शिक्षा और अध्यापन पर देश-विदेश के कई विद्वानों ने अपने बहुमूल्य विचार प्रस्तुत किए हैं, जो इस संदर्भ में हमारा मार्गदर्शन करते हैं। कुछ प्रसिद्ध उद्धरण और दृष्टिकोण निम्नलिखित हैं:

  • स्वामी विवेकानंद: शिक्षा के उद्देश्य पर विवेकानंद का कथन अत्यंत चर्चित है – *“शिक्षा मनुष्य में पहले से निहित पूर्णता का प्रकटीकरण है।”* इस विचार में यह संदेश निहित है कि प्रत्येक बच्चे में प्रतिभा और संभावनाएँ जन्मजात हैं; शिक्षक का कार्य उन संभावनाओं को उभारना है, न कि केवल बाहरी ज्ञान ठूँसना। यह दर्शन आज के बाल-केंद्रित शिक्षा के अनुरूप है, जहाँ छात्र की निहित क्षमताओं को विकसित करने पर बल दिया जाता है।

  • डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम: पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम, जिन्होंने स्वयं एक शिक्षक के रूप में जीवन का अंतिम काल बिताया, शिक्षकों की भूमिका को बेहद महत्व देते थे। उनका कहना था, *“शिक्षण एक महान पेशा है जो व्यक्ति के चरित्र, क्षमता और भविष्य को आकार देता है।”* कलाम के अनुसार एक आदर्श समाज निर्माण में माता-पिता के साथ शिक्षक की भूमिका सबसे अहम है – यदि लोग मुझे एक अच्छे शिक्षक के रूप में याद रखें, तो मेरे लिए वही सबसे बड़ा सम्मान होगा। यह कथन हमें याद दिलाता है कि शिक्षक का प्रभाव व्यक्ति विशेष के अलावा पूरे समाज की नियति को प्रभावित करता है, इसलिए इस पेशे में उत्कृष्टता लाना परमावश्यक है।

  • डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन: भारत के द्वितीय राष्ट्रपति एवं महान शिक्षाविद् डॉ. राधाकृष्णन के सम्मान में देश में शिक्षक दिवस मनाया जाता है। उनका मत था कि *“देश में सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्क वाले व्यक्तियों को ही शिक्षक होना चाहिए।”* उन्होंने हमेशा शिक्षा को देश का मेरुदंड माना और कहा कि उत्कृष्ट प्रतिभाओं का शिक्षण क्षेत्र की ओर आकर्षित होना राष्ट्र के भविष्य के लिए शुभ संकेत है। यह विचार आज भी प्रासंगिक है – हमें मेधावी युवाओं को शिक्षक बनने के लिए प्रेरित करना चाहिए तथा शिक्षकों को वैसा माहौल/सम्मान देना चाहिए ताकि ब्रेन-ड्रेन न होकर ब्रेन-गेन हो सके।

  • महात्मा गांधी: गांधीजी ने बुनियादी शिक्षा (नयी तालीम) की कल्पना पेश की थी जो कार्य-केन्द्रित और नैतिकता-आधारित हो। उनका एक प्रसिद्ध उद्धरण है, *“मैंने हमेशा महसूस किया है कि विद्यार्थी के लिए सच्ची पाठ्यपुस्तक उसका शिक्षक होता है।”* अर्थात एक प्रेरणादायी शिक्षक जीवित पुस्तक की तरह है जिससे विद्यार्थी जीवनभर सीखते रहते हैं। यह कथन शिक्षकों को आत्ममंथन का मौका देता है – क्या हम स्वयं ऐसे आदर्श बन पा रहे हैं जो बच्चों के लिए जीवनपाठ बन सकें?

  • नेल्सन मंडेला (दक्षिण अफ़्रीका के पूर्व राष्ट्रपति): “शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे तुम दुनिया बदल सकते हो।” यह प्रसिद्ध कथन बताता है कि समाज परिवर्तन और प्रगति की कुंजी शिक्षा है। शिक्षक इस हथियार के निर्माता और संचालक हैं – वे बच्चों को ज्ञान रूपी शस्त्र से सज्जित करते हैं ताकि वे आगे चलकर सामाजिक बुराइयों से लड़ सकें, नव-निर्माण कर सकें।

  • हेलन कैल्डिकोट (परमाणु भौतिक विज्ञानी): “मेरी दृष्टि में शिक्षक समाज के सबसे ज़िम्मेदार और महत्वपूर्ण सदस्य हैं क्योंकि उनके व्यावसायिक प्रयास पृथ्वी के भाग्य को प्रभावित करते हैं।” यह अन्तरदृष्टि वैश्विक स्तर पर शिक्षक के महत्व को दर्शाती है – एक शिक्षक द्वारा कक्षा में किए गए प्रयास आने वाली पीढ़ियों का भविष्य तय करते हैं।

उपरोक्त विचारों से एक बात स्पष्ट होती है: महान शिक्षाविदों ने शिक्षा को मात्र पाठ्यक्रम पूरा करने की प्रक्रिया नहीं माना, बल्कि व्यक्ति और समाज के उत्थान का साधन माना है। शिक्षक को एक दृष्टा (visionary) और नेता की तरह देखा गया है, जो ज्ञान का प्रकाश फैलाकर पीढ़ियों को दिशा देता है। यह हम सभी शिक्षकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। हमें याद रखना चाहिए:

“एक अच्छा शिक्षक आशा को जगाता है, कल्पना को प्रज्वलित करता है और सीखने के प्रति प्रेम पैदा करता है।” – ब्रैड हेन्री (पूर्व अमेरिकी गवर्नर)

निष्कर्ष एवं अगला कदम (Conclusion & Next Steps)

निष्कर्ष: उपरोक्त विस्तृत चर्चा से स्पष्ट है कि शिक्षण सामग्री (Teaching Materials) और शिक्षक दक्षता शिक्षा की गुणवत्ता में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शिक्षा का अर्थ केवल किताबें पढ़ाना नहीं, बल्कि बच्चों के भीतर निहित क्षमताओं को उभारना है – और इसके लिए उपयुक्त सामग्री व उपकरण होना अनिवार्य है। भारत के विभिन्न विद्यालय स्तरों के अनुसार यदि शिक्षकों को आवश्यक संसाधन (किताबें, किट, लैब, डिजिटल टूल्स) मिलें और वे उनका रचनात्मक उपयोग करें, तो सीखने का अनुभव आनंददायक और प्रभावी हो सकता है। नई शिक्षा नीति 2020 ने सही दिशा में पहल करते हुए इन पहलुओं को नीति स्तर पर मान्यता दी है और ढांचागत बदलाव व समर्थन का आश्वासन दिया है। अब ज़रूरत इस बात की है कि शिक्षक, प्रशासक और नीति-निर्माता मिलकर इन उद्देश्यों को ज़मीन पर उतारें।

आज के युग में भारतीय शिक्षकों के पास संसाधनों की कोई कमी नहीं है – किताब से लेकर इंटरनेट तक, NCERT से लेकर UNESCO तक, हर जगह सामग्री भरी पड़ी है। असली आवश्यकता उसे पाने और सही तरीके से इस्तेमाल करने की है। एक समर्थ शिक्षक वही है जो निरंतर सीखता है, नए उपकरण अपनाता है और विद्यार्थियों के हित में खुद को ढालता रहता है। निष्कर्षतः, शिक्षक और सामग्री शिक्षा के दो ऐसे स्तंभ हैं जो एक-दूसरे को पूरक करते हैं: उत्कृष्ट सामग्री भी बिना सक्षम शिक्षक के निष्प्राण है, और एक उत्साही शिक्षक भी बिना उचित सामग्री के अपने पूर्ण प्रभाव तक नहीं पहुंच सकता।

अगला कदम (Actionable CTA): अब समय है कार्रवाई करने का! एक शिक्षक और शिक्षा प्रेमी होने के नाते, आइए निम्न कदम उठाने का संकल्प लें:

  • कक्षा में परिवर्तन: आने वाले सप्ताह में अपने कक्षा-कक्ष में एक नया टीएलएम या विधि अपनाएँ – चाहे वह एक सरल विज्ञान प्रयोग हो, दीवार पर बनाया गया नया चार्ट, या DIKSHA से ली गई किसी कहानी का प्रदर्शन। छोटे-छोटे प्रयोग एक बड़ा अंतर ला सकते हैं।

  • सीखने का अवसर: स्वयं के विकास के लिए आज ही एक कोर्स/प्रशिक्षण चयन करें। यह एक ऑनलाइन मॉड्यूल हो सकता है या शहर में होने वाली वर्कशॉप – लेकिन नई चीज़ सीखने का बीड़ा उठाएँ। जैसे आप इस माह एक ICT कौशल सीखने का लक्ष्य रख सकते हैं (e.g. पावरपॉइंट प्रेज़ेंटेशन बनाना)।

  • संसाधन एक्सप्लोर करें: ऊपर बताए गए पोर्टल (NCERT, DIKSHA, शाला दर्पण आदि) में से किसी एक को समय निकालकर एक्सप्लोर करें। उदाहरण के लिए, DIKSHA एप डाउनलोड करें और अपने विषय के दो डिजिटल पाठ वहां से देखें। या एनसीईआरटी की लाइब्रेरी से अपनी कक्षा की एक किताब डाउनलोड करें और उसमे दिए अतिरिक्त संसाधन नोट करें।

  • साझा करें और जुड़ें: अपने सहकर्मी शिक्षकों के साथ इस लेख में मिले आइडियाज पर चर्चा करें। एक छोटे अनौपचारिक मीटिंग में पूछें – “हम अपने स्कूल में और कौन-सी सामग्री जोड़ सकते हैं?” एक-दूसरे के संसाधन बाँटें। ऑनलाइन शिक्षक समुदाय से जुड़कर अपने अनुभव साझा करें और सीखें।

  • विद्यार्थियों को प्रेरित करें: अंततः, बच्चों को भी इन संसाधनों का उपयोग करना सिखाएँ। उन्हें लाइब्रेरी का महत्व बताएं, स्वयं प्रयोग कर सीखने के लिए प्रोत्साहित करें, स्मार्टफोन पर शिक्षा ऐप का सकारात्मक उपयोग समझाएँ। एक जागरूक शिक्षक अपने विद्यार्थियों को सीखने का कौशल सिखाता है – कि संसाधन हमारे आसपास हैं, बस हमें उत्सुकता के साथ उन्हें ग्रहण करना है।

अब देर किस बात की? अपने शिक्षण के इन स्तंभों को मज़बूत बनाने के लिए अभी कदम बढ़ाएँ। एक नए टीएलएम को अपनाने से लेकर एक कोर्स ज्वाइन करने तक – जो भी करें, तुरंत आरंभ करें। छोटे कदमों से बड़ा परिवर्तन आएगा। याद रखें, आप के प्रयास ही आने वाली पीढ़ी का भविष्य निर्धारित करेंगे। आइए, मिलकर शिक्षा को एक जीवंत, समावेशी और उत्कर्ष यात्रा बनाएं!

हम आशा करते हैं कि यह लेख आपको स्पष्ट दिशा (Clear), प्रेरणा (Motivation) और कार्रवाई योग्य योजनाएँ (Conversion to action) प्रदान करने में सफल रहा है। अपने शैक्षिक मिशन में आप सतत प्रगति करें, इसी शुभकामना के साथ… Happy Teaching! 🙏

संदर्भ (Sources): शिक्षा तथा शिक्षक विकास संबंधी उपरोक्त तथ्यों हेतु निम्न प्रमाणित स्रोतों का संदर्भ लिया गया है:

  1. NEP 2020 – Ministry of Education, Govt. of India
  2. NCERT School Kits Manual
  3. Shaala Darpan – KVS Initiative
  4. DIKSHA Platform – NEP Excerpts
  5. Vikaspedia Education Definition
  6. Finland Education System – Finland Toolbox
  7. Abdul Kalam on Teaching, Radhakrishnan Quote, Vivekananda Quote
  8. UNESCO Teacher Policy Guide (Local TLM)
  9. Times of India – Teachers Day Quotes


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