बादशाह अकबर (Akbar) – जीवन, शासन, नीतियाँ और विरासत

| अक्टूबर 09, 2025
बादशाह अकबर (Akbar) – जीवन, शासन, नीतियाँ और विरासत | Wikipedia-style लेख
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बादशाह अकबर (Akbar the Great)
मुग़ल सम्राट अकबर का मनोहर द्वारा बनाया गया चित्र
अकबर का समकालीन चित्र, चित्रकार: मनोहर (मुग़ल शैली)
पूरा नामजलालुद्दीन मुहम्मद अकबर
जन्म15 अक्टूबर 1542, आमरकोट (सिंध)
मृत्यु27 अक्टूबर 1605, आगरा
राज्याभिषेक14 फरवरी 1556 (आधा‌रिक शहंशाह)
वंशमुग़ल (तैमूरी वंश)
पिता / माताहुमायूँ / हमीदा बानो बेगम
प्रमुख राजधानीआगरा, फतेहपुर सीकरी (1571–1585)
समकालीन इतिहासकारअबुल फ़ज़ल (अकबरनामा, Ain-i Akbari), बदायूँनी
समाधिसिकंदरा, आगरा

बादशाह अकबर – जीवन, शासन, नीतियाँ, संस्कृति और विरासत

बादशाह अकबर (Akbar, 1542–1605) मुग़ल साम्राज्य के तीसरे सम्राट थे जिन्होंने 1556 से 1605 तक शासन किया। वे भारतीय उपमहाद्वीप में सुदृढ़ केंद्रीकृत प्रशासन, मानसबदारी (Mansabdari) व्यवस्था, धार्मिक सहिष्णुता, तथा कला-संरक्षण के लिए प्रसिद्ध हैं। यह Wikipedia-style लेख उनके जीवन, अभियानों, प्रशासन, दीन-ए-इलाही, वास्तुकला, अर्थव्यवस्था और दीर्घकालीन प्रभाव का व्यापक, निष्पक्ष और संदर्भित विवरण प्रस्तुत करता है।[1]

[संपादित करें]जीवन और आरंभिक वर्ष

अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 को सिंध के आमरकोट किले में हुआ जब उनके पिता हुमायूँ शेरशाह सूरी से पराजित होकर निर्वासन में थे। बचपन का समय कंधार और काबुल में बीता जहाँ शिकार, कुश्ती और घुड़सवारी में उनकी विशेष रुचि विकसित हुई। वे निरक्षर रहे, किन्तु स्मरण-शक्ति विलक्षण थी; वे ग्रंथ सुनकर कंठस्थ कर लेते और विद्वानों से घंटों वाद-विवाद करते थे।[2]

हुमायूँ के देहावसान (1556) के बाद बारह वर्षीय अकबर को बैरम ख़ाँ के संरक्षकत्व में दिल्ली का सम्राट घोषित किया गया। राज्यारोहन के वक्त उत्तरी भारत सूरी वंश के अवशेषों, राजपूत सरदारों और अफ़ग़ान गुटों में बंटा हुआ था।[3]

फतेहपुर सीकरी के बुलंद दरवाज़ा क्षेत्र की नक्काशी का दृश्य
फतेहपुर सीकरी परिसर की नक्काशी का निकटदृश्य—अकबर की स्थापत्य दृष्टि का प्रतीक।
अकबर के आरंभिक संरक्षक व प्रभाव
व्यक्तिभूमिकाप्रभाव/परिणाम
बैरम ख़ाँवजीर/अभिभावकशासन का स्थिरीकरण, पानीपत-II की विजय
महाम अनगापालन-पोषणदरबार में तुरानी प्रभाव; बाद में क्षीण
अब्दुल लतीफ़, फकीर आज़ियोद्दीनविद्वान/उलेमाधर्म चर्चा की प्रवृत्ति

[संपादित करें]सिंहासन ग्रहण और हेमू के विरुद्ध संघर्ष

अकबर के शासनारंभ पर सबसे बड़ा ख़तरा सूरी सेनापति हेमचन्द्र विक्रमादित्य (हेमू) से था, जिसने दिल्ली पर अधिकार कर लिया था। बैरम ख़ाँ के नेतृत्व में मुग़ल सेना ने 5 नवंबर 1556 को दूसरी पानीपत की लड़ाई में हेमू को परास्त किया। यह विजय मुग़ल सत्ता के पुनर्स्थापन का निर्णायक क्षण बनी।[4]

अकबर ने कुछ वर्षों में बैरम ख़ाँ का प्रभाव सीमित किया और 1560 में स्वतंत्र रूप से शासन संभाला। इसके बाद आंतरिक विद्रोहों का दमन और सीमांत नियंत्रण उनकी प्राथमिकता रही।[5]

मुख्य प्रारंभिक युद्ध (1556–1562)
वर्षस्थान/विरोधीपरिणामटिप्पणी
1556पानीपत-II बनाम हेमूमुग़ल विजयदिल्ली-आगरा पर पुनः अधिकार
1560–61बैरम ख़ाँ का पदच्युति प्रसंगशांति समझौताअकबर का प्रत्यक्ष शासन
1561–62मालवा अभियानमुग़ल नियंत्रणआदिलशाही/उज़्बेकों का दबाव कम

[संपादित करें]सैन्य विस्तार और अभियान

अकबर ने कूटनीति और सैन्य शक्ति के संयोजन से उत्तर और मध्य भारत को एकीकृत किया। राजपूत नीति—जहाँ सम्भव हो वहाँ सन्धि और वैवाहिक संबंध, और प्रतिरोध होने पर सीमित युद्ध—उनकी दीर्घकालिक रणनीति रही।[6]

चित्तौड़ (1568) और रणथम्भौर (1569) की विजय, गुजरात (1572–73) का तीव्र अभियान, बंगाल-बिहार (1574–76), काबुल-काश्मीर (1580s), सिंध और कंधार, तथा दक्कन (ख़ासकर ख़ांदेश, असीरगढ़: 1599–1601) प्रमुख उपलब्धियाँ थीं।[7]

प्रमुख क्षेत्रीय अधिग्रहण
प्रदेश/राज्यवर्षरणनीतिमहत्त्व
राजस्थान (आमेर, जोधपुर, बीकानेर, जोधपुर)1562–1590विवाह/सन्धि; सीमित युद्धराजपूतों का प्रशासन में समावेश
चित्तौड़, रणथम्भौर1568–69घेराबंदीमेवाड़ की शक्ति क्षीण, साम्राज्य का प्रतिष्ठा
गुजरात1572–73त्वरित स्विफ्ट कैंपेनसमुद्री व्यापार नियंत्रण, मुहर ‘इलाही’ सिक्का
बंगाल-बिहार1574–76नौसैनिक-स्थलसेना समन्वयधान/वाणिज्य-समृद्ध प्रदेश पर अधिकार
काबुल-काश्मीर1580–86सीमांत सुरक्षाउत्तर-पश्चिमी मोर्चे का संतुलन
दक्कन (ख़ानदेश/असीरगढ़)1599–1601दीर्घ अभियानदक्षिण की ओर विस्तार का मार्ग
उदाहरण: 1573 के गुजरात अभियान में अकबर ने ‘उड़ती छावनी’ (mobile camp) की शैली अपनाई। सीमित समय में सूरत-अहमदाबाद पर नियंत्रण दिखाता है कि उनकी युद्धनीति गति, आश्चर्य और आपूर्ति-व्यवस्था पर आधारित थी।[8]

[संपादित करें]प्रशासनिक व्यवस्था: मानसबदारी व ज़ब्ती

अकबर का सबसे दीर्घकालिक योगदान मानसबदारी (Mansabdari) और जगत (राजस्व) सुधार है। ऐन-ए-अकबरी में अबुल फ़ज़ल ने केन्द्र से प्रांतीय (सुबे) एवं परगना-महल स्तर तक की संरचना का वर्णन किया है। मानसबदार राज्य-सेवक थे जिनकी दायित्व-श्रेणी जात (व्यक्तिगत रैंक) और सवार (घुड़सवारों की संख्या) से तय होती थी।[9]

राजस्व में ज़ब्ती (Dahsala) प्रणाली—फसल-मूल्य के औसत पर अनुमानित दर—तोड़-मरोड़ और बिचौलिया-दबाव को घटाने की कोशिश थी। टोडरमल के नेतृत्व में मापन, बीघा-यूनिट, और दहसाला का क्रियान्वयन हुआ।[10]

मानसबदारी (Mansab) – रैंक संरचना (उदाहरणात्मक)
मानसब (जात)सवार सीमाआम दायित्व
5000 से ऊपर3000–5000उच्च अमीर, सुबेदार/सेनानायक
3000–50002000–4000सीमांत/महत्त्वपूर्ण सूबों का प्रशासन
1000–3000500–2000परगना-स्तरीय सैन्य-प्रशासन
500–1000200–800कोर्ट/गवर्नेंस सहायक
500 से नीचे100–400स्थानीय प्रशासन/विशेष दायित्व
प्रांतीय ढाँचा (Subah-Sarkar-Pargana)
स्तरप्रमुख अधिकारीकार्य
सूबासूबेदार, दीवान, सादर, काजीकानून-व्यवस्था, राजस्व, न्याय
सरकार (जिला)फौजदार, अमीनसुरक्षा, कर-संग्रह
परगनाशिकदार, अमील, कनूंगो, पटवारीस्थानीय राजस्व/भू-अभिलेख
महत्वपूर्ण नोट: मानसबदारी जागीर (revenue assignment) से जुड़ी थी, किन्तु जागीर विरासत में स्थायी संपत्ति नहीं बनती थी; इससे केंद्र का नियंत्रण बना रहा और सैन्य-प्रशासन गतिशील रहा।[11]

[संपादित करें]धार्मिक नीतियाँ और दीन-ए-इलाही

अकबर ने सुल्ह-ए-कुल (सार्वभौमिक शांति) की नीति के तहत सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता अपनाई। 1563 में तीर्थ-कर (जज़्या के समरूप) और 1564/1565 में जज़्या का उन्मूलन (पुनः कुछ काल बाद संशोधन) सामाजिक-आर्थिक समावेशन का संकेत था।[12]

फतेहपुर सीकरी में इबादतख़ाना की स्थापना (1575) में सूफ़ी, हिन्दू, जैन, ईसाई, पारसी विद्वानों के साथ संवाद हुए। इन्हीं विमर्शों के बीच 1580s में तौहीद-ए-इलाही/दीन-ए-इलाही का विचार उभरा—यह धार्मिक सिद्धांतों से अधिक नैतिक-आचार संहिता था और सीमित अनुयायियों तक रहा।[13]

इबादतखाना में अकबर के दरबार का दृश्य जिसमें जेसुइट मिशनरी उपस्थित हैं
इबादतख़ाना में बहुधर्मी संवाद—जेसुइट मिशनरियों की उपस्थिति (अकबरनामा का चित्र)।
अकबर की धार्मिक नीतियाँ—तुलनात्मक सार
नीति/कदमवर्षप्रभाव
तीर्थ कर समाप्त1563हिन्दू व्यापार/यात्रा में सहजता
जज़्या समाप्त/शिथिल1564–65समावेशन का संदेश, राजपूत सहयोग
इबादतख़ाना1575दार्शनिक/धार्मिक संवाद का संस्थानीकरण
महज़-ए-इलाही/दीन-ए-इलाही1582–83नैतिक संहिता; सीमित अनुयायी

महज़-ए-इलाही/दीन-ए-इलाही का स्वरूप

यह किसी व्यापक धर्मांतरण आन्दोलन के बजाय सम्राट-केंद्रित नैतिक अनुशासन था—सत्य-वादिता, संयम, प्राणी-दया, और सम्राट के प्रति निष्ठा। बदायूँनी ने इसकी आलोचना की, जबकि अबुल फ़ज़ल ने इसे ‘सुल्ह-ए-कुल’ की पराकाष्ठा के रूप में चित्रित किया।[14]

[संपादित करें]आर्थिक नीतियाँ, राजस्व व सिक्का

टोडरमल के राजस्व सुधारों से स्थिर कैडस्ट्रल (भूमि अभिलेख) और औसत दर-आधारित कर-व्यवस्था विकसित हुई। कृषि-उत्पादन के साथ-साथ गुजरात और बंगाल पर अधिकार से विदेशी व्यापार—कपड़ा, मसाला, नील, अफीम, चाँदी—में वृद्धि हुई।[15]

अकबर के समय उच्च शुद्धता के सोने-चाँदी के सिक्के मोहुर, रुपया और तांबे का दम प्रचलित हुए। 1570s के पश्चात् ढलाई मानकों और टकसाल नियंत्रण ने मुद्रा-प्रणाली को विश्वसनीय बनाया।[16]

मुग़ल सिक्का-प्रणाली (अकबर काल)
सिक्काधातुमानक वज़न (लग.)प्रयोग
मोहुरसोना~10.9 ग्रामउच्च लेन-देन/उपहार
रुपयाचाँदी~11.5 ग्रामवाणिज्य/कर
दमताँबापरिवर्तीदैनिक बाजार
महत्वपूर्ण टकसाल/वाणिज्यिक केंद्र
स्थानविशेषताटिप्पणी
आगरा/दिल्लीकेंद्रीय टकसालदरबार और उत्तरी व्यापार
अहमदाबाद/सूरतसमुद्री व्यापारपुर्तगाल/अरब खाड़ी से संपर्क
ढाका/सोनारगाँवकपड़ा/मलमलबंगाल की समृद्धि

[संपादित करें]कला-संस्कृति एवं वास्तुकला

अकबर ने फ़ारसी, तुर्की और भारतीय तत्त्वों के संश्लेषण से विशिष्ट मुग़ल कला का विकास करवाया। तसवीरख़ाना में चित्रकारों की बड़ी टोली—अब्दुस्समद, मीर सैय्यद अली, दासवन्त, बसावन, मनोहर—ने अकबरनामा और अन्य हस्तलिखित ग्रंथों का चित्रण किया।[17]

वास्तुकला में फतेहपुर सीकरी (1571–85) सर्वाधिक प्रसिद्ध है—दीवान-ए-खास, पंचमहल, बुलंद दरवाज़ा, जामा मस्जिद और शेख़ सलीम चिश्ती की दरगाह। बाद में आगरा-लाहौर किलों का पुनर्निर्माण और सिकंदरा में मक़बरा उनके कला-संरक्षण का साक्ष्य हैं।[18]

सिकंदरा, आगरा में अकबर का मक़बरा
सिकंदरा, आगरा — अकबर का मक़बरा, बहु-तल संरचना और लाल बलुआ पत्थर-संगमरमर का मिश्रण।
अकबरी स्थापत्य—विशेषताएँ
तत्त्वउदाहरणविवरण
लाल बलुआ पत्थरफतेहपुर सीकरीसतह पर नक्काशी, जालीकार्य
स्तम्भ-बीम प्रणालीदीवान-ए-आम/खासभारतीय/गुजराती प्रभाव
जाली, छत्री, चौरस आँगनपंचमहलवातायन और अलंकरण

[संपादित करें]विदेशी संपर्क व ईसाई मिशन

अकबर के दरबार में पुर्तगाली जेसुइट मिशनरियों को (गोवा से) निमंत्रित किया गया। इबादतख़ाना के वाद-विवाद में उन्होंने बाइबल का फ़ारसी अनुवाद प्रस्तुत किया और ईसाई धर्मशास्त्र पर विचार-विमर्श किया। यह संपर्क भारत-यूरोप सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रारम्भिक अध्याय माना जाता है।[19]

विदेशी संपर्क – संक्षेप
समूह/देशमाध्यमप्रतिफल
पुर्तगालीजेसुइट मिशनधर्म-संवाद, पुस्तकों का अनुवाद
उज़्बेक/ईरानीराजनय/सीमांत राजनीतिकंधार-काबुल पर प्रभाव
अंग्रेज/डचव्यापार के प्रारम्भिक संकेतपश्चवर्ती मुग़ल काल में विस्तार

[संपादित करें]नवरत्न और ज्ञान-परिसर

लोकपरंपरा में ‘नवरत्न’—अबुल फ़ज़ल, फ़ैज़ी, राजा टोडरमल, राजा मान सिंह, बीरबल, तानसेन, राजा बिरबल (महेशदास), राजा भगवानदास, हकीम हुमाम, और अब्दुर रहीम ख़ान-ए-ख़ाना—का उल्लेख मिलता है। इनके ऐतिहासिक स्वरूप में भिन्न-भिन्न मत हैं, पर विद्वत्ता और प्रशासनिक दक्षता से दरबार समृद्ध हुआ।[20]

दरबारी विद्वान/अधिकारी (चयन)
नामकृति/भूमिकायोगदान
अबुल फ़ज़लAkbarnama, Ain-i Akbariइतिहास/प्रशासन का व्यवस्थित विवरण
फ़ैज़ीकवि/अनुवादकसंस्कृत कृतियों का फ़ारसी रूपान्तरण
राजा टोडरमलदीवानदहसाला/भू-सर्वे सुधार
तानसेनध्रुपद गायकहिन्दुस्तानी संगीत परंपरा का उत्कर्ष
अब्दुर रहीम ख़ान-ए-ख़ानाकाव्य/नीतिहिंदी-फ़ारसी सम्मिश्र काव्य

[संपादित करें]व्यक्तित्व, चरित्र और दैनिक जीवन

अकबर शारीरिक रूप से सबल, शिकार-कुश्ती प्रेमी और उत्कृष्ट घुड़सवार थे। वे निरक्षर होने पर भी बहस-मुलाक़ात के शौकीन, कला-प्रेमी और दानशील माने जाते हैं। शिकार के साथ सूफी दरगाहों—विशेषतः शेख़ सलीम चिश्ती—से आध्यात्मिक लगाव रहा।[21]

उनके निजी जीवन में आमेर की राजकुमारी हरका बाई (लोक में जोधा) से विवाह ने राजपूतों के साथ दीर्घकालिक गठबंधन को सुदृढ़ किया। उत्तराधिकारियों में सलीम (जहाँगीर) ने 1605 में गद्दी पाई।[22]

[संपादित करें]उत्तराधिकार और मृत्यु

1605 में अकबर का देहान्त हुआ और उन्हें सिकंदरा, आगरा में बहु-तल मक़बरे में दफ़नाया गया। राजकुमार सलीम (जहाँगीर) ने उत्तराधिकार लिया। अकबर की नीतियों—राजपूत नीति, मानसबदारी, राजस्व सुधार—ने जहाँगीर-शाहजहाँ युग की स्थिरता का आधार बनाया।[23]

[संपादित करें]मूल्यांकन और विरासत

इतिहासलेखन में अकबर को ‘ग्रेट’ उपनाम उनके समावेशी राज्य-दृष्टिकोण, प्रशासनिक नवाचार, और सांस्कृतिक-वास्तु संरक्षण के कारण दिया गया। आलोचनाएँ भी हैं—कठोर घेराबंदियाँ (चित्तौड़), साम्राज्यवादी विस्तार, और केंद्रीकरण के दुष्परिणाम। फिर भी उनके काल में विविधतापूर्ण समाज के लिए शासन-मॉडल का निर्माण हुआ जिसने भारतीय इतिहास की धुरी बदल दी।[24]

अकबर: उपलब्धि बनाम आलोचना
उपलब्धिस्पष्टीकरणसंभावित आलोचना
सुल्ह-ए-कुलबहुधर्मी सहअस्तित्वदरबार-केंद्रित; जन-स्तर पर मिश्रित प्रभाव
मानसबदारीकुशल सैन्य-प्रशासनजागीर पर निर्भरता से स्थानीय दबाव
राजपूत नीतिस्थिरता/गठबंधनकठोर युद्ध (चित्तौड़) की स्मृति
कला-वास्तु संरक्षणसीकरी, सिकंदरा, किलेसीकरी का परित्याग (जल संकट)

[संपादित करें]कालक्रम और वंश

संक्षिप्त कालक्रम (1542–1605)
वर्षघटना
1542आमरकोट में जन्म
1556हुमायूँ की मृत्यु; अकबर का राज्याभिषेक; पानीपत-II
1562–69राजपूत नीति; चित्तौड़/रणथम्भौर
1571–85फतेहपुर सीकरी राजधानी
1572–76गुजरात, बंगाल अधिग्रहण
1580–86इबादतख़ाना; काबुल-काश्मीर अभियानों
1599–1601दक्कन अभियान; असीरगढ़
1605मृत्यु; जहाँगीर उत्तराधिकारी
वंशावली (सरलीकृत)
पूर्वजसम्बंधटिप्पणी
तैमूरपूर्वजतैमूरी/चगताई वंश
बाबरपितामहमुग़ल वंश के संस्थापक
हुमायूँपितानिर्वासन/पुनरुद्धार
जहाँगीर (सलीम)पुत्रउत्तराधिकारी

[संपादित करें]उपयोगी प्रश्न-उत्तर

अकबर के शासन की सबसे विशिष्ट विशेषता क्या थी?

उत्तर: मानसबदारी-आधारित केंद्रीकृत प्रशासन और सुल्ह-ए-कुल की समावेशी नीति, जिसने विविध समुदायों को दरबार-प्रशासन में जोड़ा।[9][12]

क्या दीन-ए-इलाही एक नया धर्म था?

अधिकांश इतिहासकार इसे व्यापक धर्म के बजाय सम्राट-केंद्रित नैतिक-आचार संहिता मानते हैं, जिसके अनुयायी सीमित रहे।[13][14]

फतेहपुर सीकरी क्यों छोड़ा गया?

मुख्यतः जल-संकट और साम्राज्य की भौगोलिक आवश्यकताओं के कारण राजधानी का स्थानांतरण हुआ; प्रशासनिक लचीलेपन के लिए आगरा/लाहौर प्रयोज्य रहे।[18]

अकबर का पूर्णाकृति चित्र
अकबर का पूर्णाकृति चित्र—मनोहर, मुग़ल चित्रकला विद्यालय।
अकबर के दरबार में जेसुइट मिशनरी
अकबर के दरबार में जेसुइट मिशनरी—धर्म-संवाद का अपूर्व दृश्य।
फतेहपुर सीकरी के बुलंद दरवाज़े का अलंकरण
बुलंद दरवाज़ा क्षेत्र का अलंकरण—फ़ारसी-भारतीय शैलियों का संगम।
अकबर की समाधि, सिकंदरा
अकबर की समाधि—सिकंदरा, आगरा।

संदर्भ

  1. “Akbar”, Encyclopaedia Britannica – जीवन व शासन का समग्र अवलोकन।
  2. Richards, J.F., The Mughal Empire (The New Cambridge History of India) – आरंभिक जीवन व काबीलाई पृष्ठभूमि।
  3. Ali, M. Athar, The Apparatus of Empire – दरबार व खानदानी राजनीति।
  4. Satish Chandra, Medieval India: From Sultanat to the Mughals, Vol. II – पानीपत-II व प्रारंभिक संग्राम।
  5. Lane-Poole, S., Akbar the Great Mogul – बैरम ख़ाँ प्रसंग व सत्ता-संक्रमण।
  6. Chandra, S., Parties and Politics at the Mughal Court – राजपूत नीति व गठबंधन।
  7. Jackson, Peter, & Subrahmanyam, Sanjay (eds.), The Mughal State, 1526–1750 – अभियानों का भू-राजनीतिक सन्दर्भ।
  8. Abu'l-Fazl, Akbarnama – गुजरात अभियान का शाही वृत्तांत।
  9. Abu'l-Fazl, Ain-i Akbari – मानसबदारी व प्रशासन की आधिकारिक सूचना।
  10. Irfan Habib, The Agrarian System of Mughal India – दहसाला व भू-मापन।
  11. Moosvi, Shireen, Economy of the Mughal Empire – जागीर-राजस्व संरचना।
  12. Truschke, Audrey, Cultural Interface under Akbar – जज़्या/तीर्थ-कर व समावेशन।
  13. Alam, Muzaffar & Subrahmanyam, Sanjay, Writing the Mughal World – दीन-ए-इलाही का पुनर्मूल्यांकन।
  14. Badayuni, Muntakhab-ut-Tawarikh – समकालीन आलोचनात्मक दृष्टि।
  15. Chaudhuri, K.N., Trade and Civilisation in the Indian Ocean – समुद्री व्यापार, सूरत-अहमदाबाद।
  16. John Deyell, Living Without Silver – मुग़ल सिक्का व टकसाल मानक।
  17. Beach, Milo C., Mughal and Rajput Painting – तसवीरख़ाना व चित्रकार।
  18. Asher, Catherine B., Architecture of Mughal India – फतेहपुर सीकरी व सिकंदरा।
  19. “Jesuits at Akbar’s court”, Wikimedia Commons फ़ाइल-विवरण – इबादतख़ाना का चित्रात्मक प्रमाण।
  20. Rasiklal Parikh (ed.), Nauratna of Akbar – ‘नवरत्न’ पर स्रोत-विवेचन।
  21. Wikimedia Commons फ़ाइलें: Portrait of Akbar by Manohar, Fatehpur sikri, Tomb of Akbar, Sikandra – दृश्य सामग्री।
  22. “Akbar’s Tomb (Sikandra)”, Archaeological Survey of India – स्मारक विवरण।
  23. Streusand, Douglas E., The Formation of the Mughal Empire – उत्तराधिकार व नीतिगत स्थायित्व।
  24. Bayly, C.A., Indian Society and the Making of the British Empire – दीर्घकालिक विरासत का आकलन।

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