बादशाह अकबर (Akbar) – जीवन, शासन, नीतियाँ और विरासत

पूरा नाम | जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर |
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जन्म | 15 अक्टूबर 1542, आमरकोट (सिंध) |
मृत्यु | 27 अक्टूबर 1605, आगरा |
राज्याभिषेक | 14 फरवरी 1556 (आधारिक शहंशाह) |
वंश | मुग़ल (तैमूरी वंश) |
पिता / माता | हुमायूँ / हमीदा बानो बेगम |
प्रमुख राजधानी | आगरा, फतेहपुर सीकरी (1571–1585) |
समकालीन इतिहासकार | अबुल फ़ज़ल (अकबरनामा, Ain-i Akbari), बदायूँनी |
समाधि | सिकंदरा, आगरा |
बादशाह अकबर – जीवन, शासन, नीतियाँ, संस्कृति और विरासत
बादशाह अकबर (Akbar, 1542–1605) मुग़ल साम्राज्य के तीसरे सम्राट थे जिन्होंने 1556 से 1605 तक शासन किया। वे भारतीय उपमहाद्वीप में सुदृढ़ केंद्रीकृत प्रशासन, मानसबदारी (Mansabdari) व्यवस्था, धार्मिक सहिष्णुता, तथा कला-संरक्षण के लिए प्रसिद्ध हैं। यह Wikipedia-style लेख उनके जीवन, अभियानों, प्रशासन, दीन-ए-इलाही, वास्तुकला, अर्थव्यवस्था और दीर्घकालीन प्रभाव का व्यापक, निष्पक्ष और संदर्भित विवरण प्रस्तुत करता है।[1]
- जीवन और आरंभिक वर्ष
- सिंहासन ग्रहण और हेमू के विरुद्ध संघर्ष
- सैन्य विस्तार और अभियान
- प्रशासनिक व्यवस्था: मानसबदारी व ज़ब्ती
- धार्मिक नीतियाँ और दीन-ए-इलाही
- आर्थिक नीतियाँ, राजस्व व सिक्का
- कला-संस्कृति एवं वास्तुकला
- विदेशी संपर्क व ईसाई मिशन
- नवरत्न और ज्ञान-परिसर
- व्यक्तित्व, चरित्र और दैनिक जीवन
- उत्तराधिकार और मृत्यु
- मूल्यांकन और विरासत
- कालक्रम और वंश
- उपयोगी प्रश्न-उत्तर
- संदर्भ
[संपादित करें]जीवन और आरंभिक वर्ष
अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 को सिंध के आमरकोट किले में हुआ जब उनके पिता हुमायूँ शेरशाह सूरी से पराजित होकर निर्वासन में थे। बचपन का समय कंधार और काबुल में बीता जहाँ शिकार, कुश्ती और घुड़सवारी में उनकी विशेष रुचि विकसित हुई। वे निरक्षर रहे, किन्तु स्मरण-शक्ति विलक्षण थी; वे ग्रंथ सुनकर कंठस्थ कर लेते और विद्वानों से घंटों वाद-विवाद करते थे।[2]
हुमायूँ के देहावसान (1556) के बाद बारह वर्षीय अकबर को बैरम ख़ाँ के संरक्षकत्व में दिल्ली का सम्राट घोषित किया गया। राज्यारोहन के वक्त उत्तरी भारत सूरी वंश के अवशेषों, राजपूत सरदारों और अफ़ग़ान गुटों में बंटा हुआ था।[3]

व्यक्ति | भूमिका | प्रभाव/परिणाम |
---|---|---|
बैरम ख़ाँ | वजीर/अभिभावक | शासन का स्थिरीकरण, पानीपत-II की विजय |
महाम अनगा | पालन-पोषण | दरबार में तुरानी प्रभाव; बाद में क्षीण |
अब्दुल लतीफ़, फकीर आज़ियोद्दीन | विद्वान/उलेमा | धर्म चर्चा की प्रवृत्ति |
[संपादित करें]सिंहासन ग्रहण और हेमू के विरुद्ध संघर्ष
अकबर के शासनारंभ पर सबसे बड़ा ख़तरा सूरी सेनापति हेमचन्द्र विक्रमादित्य (हेमू) से था, जिसने दिल्ली पर अधिकार कर लिया था। बैरम ख़ाँ के नेतृत्व में मुग़ल सेना ने 5 नवंबर 1556 को दूसरी पानीपत की लड़ाई में हेमू को परास्त किया। यह विजय मुग़ल सत्ता के पुनर्स्थापन का निर्णायक क्षण बनी।[4]
अकबर ने कुछ वर्षों में बैरम ख़ाँ का प्रभाव सीमित किया और 1560 में स्वतंत्र रूप से शासन संभाला। इसके बाद आंतरिक विद्रोहों का दमन और सीमांत नियंत्रण उनकी प्राथमिकता रही।[5]
वर्ष | स्थान/विरोधी | परिणाम | टिप्पणी |
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1556 | पानीपत-II बनाम हेमू | मुग़ल विजय | दिल्ली-आगरा पर पुनः अधिकार |
1560–61 | बैरम ख़ाँ का पदच्युति प्रसंग | शांति समझौता | अकबर का प्रत्यक्ष शासन |
1561–62 | मालवा अभियान | मुग़ल नियंत्रण | आदिलशाही/उज़्बेकों का दबाव कम |
[संपादित करें]सैन्य विस्तार और अभियान
अकबर ने कूटनीति और सैन्य शक्ति के संयोजन से उत्तर और मध्य भारत को एकीकृत किया। राजपूत नीति—जहाँ सम्भव हो वहाँ सन्धि और वैवाहिक संबंध, और प्रतिरोध होने पर सीमित युद्ध—उनकी दीर्घकालिक रणनीति रही।[6]
चित्तौड़ (1568) और रणथम्भौर (1569) की विजय, गुजरात (1572–73) का तीव्र अभियान, बंगाल-बिहार (1574–76), काबुल-काश्मीर (1580s), सिंध और कंधार, तथा दक्कन (ख़ासकर ख़ांदेश, असीरगढ़: 1599–1601) प्रमुख उपलब्धियाँ थीं।[7]
प्रदेश/राज्य | वर्ष | रणनीति | महत्त्व |
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राजस्थान (आमेर, जोधपुर, बीकानेर, जोधपुर) | 1562–1590 | विवाह/सन्धि; सीमित युद्ध | राजपूतों का प्रशासन में समावेश |
चित्तौड़, रणथम्भौर | 1568–69 | घेराबंदी | मेवाड़ की शक्ति क्षीण, साम्राज्य का प्रतिष्ठा |
गुजरात | 1572–73 | त्वरित स्विफ्ट कैंपेन | समुद्री व्यापार नियंत्रण, मुहर ‘इलाही’ सिक्का |
बंगाल-बिहार | 1574–76 | नौसैनिक-स्थलसेना समन्वय | धान/वाणिज्य-समृद्ध प्रदेश पर अधिकार |
काबुल-काश्मीर | 1580–86 | सीमांत सुरक्षा | उत्तर-पश्चिमी मोर्चे का संतुलन |
दक्कन (ख़ानदेश/असीरगढ़) | 1599–1601 | दीर्घ अभियान | दक्षिण की ओर विस्तार का मार्ग |
[संपादित करें]प्रशासनिक व्यवस्था: मानसबदारी व ज़ब्ती
अकबर का सबसे दीर्घकालिक योगदान मानसबदारी (Mansabdari) और जगत (राजस्व) सुधार है। ऐन-ए-अकबरी में अबुल फ़ज़ल ने केन्द्र से प्रांतीय (सुबे) एवं परगना-महल स्तर तक की संरचना का वर्णन किया है। मानसबदार राज्य-सेवक थे जिनकी दायित्व-श्रेणी जात (व्यक्तिगत रैंक) और सवार (घुड़सवारों की संख्या) से तय होती थी।[9]
राजस्व में ज़ब्ती (Dahsala) प्रणाली—फसल-मूल्य के औसत पर अनुमानित दर—तोड़-मरोड़ और बिचौलिया-दबाव को घटाने की कोशिश थी। टोडरमल के नेतृत्व में मापन, बीघा-यूनिट, और दहसाला का क्रियान्वयन हुआ।[10]
मानसब (जात) | सवार सीमा | आम दायित्व |
---|---|---|
5000 से ऊपर | 3000–5000 | उच्च अमीर, सुबेदार/सेनानायक |
3000–5000 | 2000–4000 | सीमांत/महत्त्वपूर्ण सूबों का प्रशासन |
1000–3000 | 500–2000 | परगना-स्तरीय सैन्य-प्रशासन |
500–1000 | 200–800 | कोर्ट/गवर्नेंस सहायक |
500 से नीचे | 100–400 | स्थानीय प्रशासन/विशेष दायित्व |
स्तर | प्रमुख अधिकारी | कार्य |
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सूबा | सूबेदार, दीवान, सादर, काजी | कानून-व्यवस्था, राजस्व, न्याय |
सरकार (जिला) | फौजदार, अमीन | सुरक्षा, कर-संग्रह |
परगना | शिकदार, अमील, कनूंगो, पटवारी | स्थानीय राजस्व/भू-अभिलेख |
[संपादित करें]धार्मिक नीतियाँ और दीन-ए-इलाही
अकबर ने सुल्ह-ए-कुल (सार्वभौमिक शांति) की नीति के तहत सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता अपनाई। 1563 में तीर्थ-कर (जज़्या के समरूप) और 1564/1565 में जज़्या का उन्मूलन (पुनः कुछ काल बाद संशोधन) सामाजिक-आर्थिक समावेशन का संकेत था।[12]
फतेहपुर सीकरी में इबादतख़ाना की स्थापना (1575) में सूफ़ी, हिन्दू, जैन, ईसाई, पारसी विद्वानों के साथ संवाद हुए। इन्हीं विमर्शों के बीच 1580s में तौहीद-ए-इलाही/दीन-ए-इलाही का विचार उभरा—यह धार्मिक सिद्धांतों से अधिक नैतिक-आचार संहिता था और सीमित अनुयायियों तक रहा।[13]

नीति/कदम | वर्ष | प्रभाव |
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तीर्थ कर समाप्त | 1563 | हिन्दू व्यापार/यात्रा में सहजता |
जज़्या समाप्त/शिथिल | 1564–65 | समावेशन का संदेश, राजपूत सहयोग |
इबादतख़ाना | 1575 | दार्शनिक/धार्मिक संवाद का संस्थानीकरण |
महज़-ए-इलाही/दीन-ए-इलाही | 1582–83 | नैतिक संहिता; सीमित अनुयायी |
महज़-ए-इलाही/दीन-ए-इलाही का स्वरूप
यह किसी व्यापक धर्मांतरण आन्दोलन के बजाय सम्राट-केंद्रित नैतिक अनुशासन था—सत्य-वादिता, संयम, प्राणी-दया, और सम्राट के प्रति निष्ठा। बदायूँनी ने इसकी आलोचना की, जबकि अबुल फ़ज़ल ने इसे ‘सुल्ह-ए-कुल’ की पराकाष्ठा के रूप में चित्रित किया।[14]
[संपादित करें]आर्थिक नीतियाँ, राजस्व व सिक्का
टोडरमल के राजस्व सुधारों से स्थिर कैडस्ट्रल (भूमि अभिलेख) और औसत दर-आधारित कर-व्यवस्था विकसित हुई। कृषि-उत्पादन के साथ-साथ गुजरात और बंगाल पर अधिकार से विदेशी व्यापार—कपड़ा, मसाला, नील, अफीम, चाँदी—में वृद्धि हुई।[15]
अकबर के समय उच्च शुद्धता के सोने-चाँदी के सिक्के मोहुर, रुपया और तांबे का दम प्रचलित हुए। 1570s के पश्चात् ढलाई मानकों और टकसाल नियंत्रण ने मुद्रा-प्रणाली को विश्वसनीय बनाया।[16]
सिक्का | धातु | मानक वज़न (लग.) | प्रयोग |
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मोहुर | सोना | ~10.9 ग्राम | उच्च लेन-देन/उपहार |
रुपया | चाँदी | ~11.5 ग्राम | वाणिज्य/कर |
दम | ताँबा | परिवर्ती | दैनिक बाजार |
स्थान | विशेषता | टिप्पणी |
---|---|---|
आगरा/दिल्ली | केंद्रीय टकसाल | दरबार और उत्तरी व्यापार |
अहमदाबाद/सूरत | समुद्री व्यापार | पुर्तगाल/अरब खाड़ी से संपर्क |
ढाका/सोनारगाँव | कपड़ा/मलमल | बंगाल की समृद्धि |
[संपादित करें]कला-संस्कृति एवं वास्तुकला
अकबर ने फ़ारसी, तुर्की और भारतीय तत्त्वों के संश्लेषण से विशिष्ट मुग़ल कला का विकास करवाया। तसवीरख़ाना में चित्रकारों की बड़ी टोली—अब्दुस्समद, मीर सैय्यद अली, दासवन्त, बसावन, मनोहर—ने अकबरनामा और अन्य हस्तलिखित ग्रंथों का चित्रण किया।[17]
वास्तुकला में फतेहपुर सीकरी (1571–85) सर्वाधिक प्रसिद्ध है—दीवान-ए-खास, पंचमहल, बुलंद दरवाज़ा, जामा मस्जिद और शेख़ सलीम चिश्ती की दरगाह। बाद में आगरा-लाहौर किलों का पुनर्निर्माण और सिकंदरा में मक़बरा उनके कला-संरक्षण का साक्ष्य हैं।[18]
तत्त्व | उदाहरण | विवरण |
---|---|---|
लाल बलुआ पत्थर | फतेहपुर सीकरी | सतह पर नक्काशी, जालीकार्य |
स्तम्भ-बीम प्रणाली | दीवान-ए-आम/खास | भारतीय/गुजराती प्रभाव |
जाली, छत्री, चौरस आँगन | पंचमहल | वातायन और अलंकरण |
[संपादित करें]विदेशी संपर्क व ईसाई मिशन
अकबर के दरबार में पुर्तगाली जेसुइट मिशनरियों को (गोवा से) निमंत्रित किया गया। इबादतख़ाना के वाद-विवाद में उन्होंने बाइबल का फ़ारसी अनुवाद प्रस्तुत किया और ईसाई धर्मशास्त्र पर विचार-विमर्श किया। यह संपर्क भारत-यूरोप सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रारम्भिक अध्याय माना जाता है।[19]
समूह/देश | माध्यम | प्रतिफल |
---|---|---|
पुर्तगाली | जेसुइट मिशन | धर्म-संवाद, पुस्तकों का अनुवाद |
उज़्बेक/ईरानी | राजनय/सीमांत राजनीति | कंधार-काबुल पर प्रभाव |
अंग्रेज/डच | व्यापार के प्रारम्भिक संकेत | पश्चवर्ती मुग़ल काल में विस्तार |
[संपादित करें]नवरत्न और ज्ञान-परिसर
लोकपरंपरा में ‘नवरत्न’—अबुल फ़ज़ल, फ़ैज़ी, राजा टोडरमल, राजा मान सिंह, बीरबल, तानसेन, राजा बिरबल (महेशदास), राजा भगवानदास, हकीम हुमाम, और अब्दुर रहीम ख़ान-ए-ख़ाना—का उल्लेख मिलता है। इनके ऐतिहासिक स्वरूप में भिन्न-भिन्न मत हैं, पर विद्वत्ता और प्रशासनिक दक्षता से दरबार समृद्ध हुआ।[20]
नाम | कृति/भूमिका | योगदान |
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अबुल फ़ज़ल | Akbarnama, Ain-i Akbari | इतिहास/प्रशासन का व्यवस्थित विवरण |
फ़ैज़ी | कवि/अनुवादक | संस्कृत कृतियों का फ़ारसी रूपान्तरण |
राजा टोडरमल | दीवान | दहसाला/भू-सर्वे सुधार |
तानसेन | ध्रुपद गायक | हिन्दुस्तानी संगीत परंपरा का उत्कर्ष |
अब्दुर रहीम ख़ान-ए-ख़ाना | काव्य/नीति | हिंदी-फ़ारसी सम्मिश्र काव्य |
[संपादित करें]व्यक्तित्व, चरित्र और दैनिक जीवन
अकबर शारीरिक रूप से सबल, शिकार-कुश्ती प्रेमी और उत्कृष्ट घुड़सवार थे। वे निरक्षर होने पर भी बहस-मुलाक़ात के शौकीन, कला-प्रेमी और दानशील माने जाते हैं। शिकार के साथ सूफी दरगाहों—विशेषतः शेख़ सलीम चिश्ती—से आध्यात्मिक लगाव रहा।[21]
उनके निजी जीवन में आमेर की राजकुमारी हरका बाई (लोक में जोधा) से विवाह ने राजपूतों के साथ दीर्घकालिक गठबंधन को सुदृढ़ किया। उत्तराधिकारियों में सलीम (जहाँगीर) ने 1605 में गद्दी पाई।[22]
[संपादित करें]उत्तराधिकार और मृत्यु
1605 में अकबर का देहान्त हुआ और उन्हें सिकंदरा, आगरा में बहु-तल मक़बरे में दफ़नाया गया। राजकुमार सलीम (जहाँगीर) ने उत्तराधिकार लिया। अकबर की नीतियों—राजपूत नीति, मानसबदारी, राजस्व सुधार—ने जहाँगीर-शाहजहाँ युग की स्थिरता का आधार बनाया।[23]
[संपादित करें]मूल्यांकन और विरासत
इतिहासलेखन में अकबर को ‘ग्रेट’ उपनाम उनके समावेशी राज्य-दृष्टिकोण, प्रशासनिक नवाचार, और सांस्कृतिक-वास्तु संरक्षण के कारण दिया गया। आलोचनाएँ भी हैं—कठोर घेराबंदियाँ (चित्तौड़), साम्राज्यवादी विस्तार, और केंद्रीकरण के दुष्परिणाम। फिर भी उनके काल में विविधतापूर्ण समाज के लिए शासन-मॉडल का निर्माण हुआ जिसने भारतीय इतिहास की धुरी बदल दी।[24]
उपलब्धि | स्पष्टीकरण | संभावित आलोचना |
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सुल्ह-ए-कुल | बहुधर्मी सहअस्तित्व | दरबार-केंद्रित; जन-स्तर पर मिश्रित प्रभाव |
मानसबदारी | कुशल सैन्य-प्रशासन | जागीर पर निर्भरता से स्थानीय दबाव |
राजपूत नीति | स्थिरता/गठबंधन | कठोर युद्ध (चित्तौड़) की स्मृति |
कला-वास्तु संरक्षण | सीकरी, सिकंदरा, किले | सीकरी का परित्याग (जल संकट) |
[संपादित करें]कालक्रम और वंश
वर्ष | घटना |
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1542 | आमरकोट में जन्म |
1556 | हुमायूँ की मृत्यु; अकबर का राज्याभिषेक; पानीपत-II |
1562–69 | राजपूत नीति; चित्तौड़/रणथम्भौर |
1571–85 | फतेहपुर सीकरी राजधानी |
1572–76 | गुजरात, बंगाल अधिग्रहण |
1580–86 | इबादतख़ाना; काबुल-काश्मीर अभियानों |
1599–1601 | दक्कन अभियान; असीरगढ़ |
1605 | मृत्यु; जहाँगीर उत्तराधिकारी |
पूर्वज | सम्बंध | टिप्पणी |
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तैमूर | पूर्वज | तैमूरी/चगताई वंश |
बाबर | पितामह | मुग़ल वंश के संस्थापक |
हुमायूँ | पिता | निर्वासन/पुनरुद्धार |
जहाँगीर (सलीम) | पुत्र | उत्तराधिकारी |
[संपादित करें]उपयोगी प्रश्न-उत्तर
अकबर के शासन की सबसे विशिष्ट विशेषता क्या थी?
उत्तर: मानसबदारी-आधारित केंद्रीकृत प्रशासन और सुल्ह-ए-कुल की समावेशी नीति, जिसने विविध समुदायों को दरबार-प्रशासन में जोड़ा।[9][12]
क्या दीन-ए-इलाही एक नया धर्म था?
अधिकांश इतिहासकार इसे व्यापक धर्म के बजाय सम्राट-केंद्रित नैतिक-आचार संहिता मानते हैं, जिसके अनुयायी सीमित रहे।[13][14]
फतेहपुर सीकरी क्यों छोड़ा गया?
मुख्यतः जल-संकट और साम्राज्य की भौगोलिक आवश्यकताओं के कारण राजधानी का स्थानांतरण हुआ; प्रशासनिक लचीलेपन के लिए आगरा/लाहौर प्रयोज्य रहे।[18]



संदर्भ
- “Akbar”, Encyclopaedia Britannica – जीवन व शासन का समग्र अवलोकन।
- Richards, J.F., The Mughal Empire (The New Cambridge History of India) – आरंभिक जीवन व काबीलाई पृष्ठभूमि।
- Ali, M. Athar, The Apparatus of Empire – दरबार व खानदानी राजनीति।
- Satish Chandra, Medieval India: From Sultanat to the Mughals, Vol. II – पानीपत-II व प्रारंभिक संग्राम।
- Lane-Poole, S., Akbar the Great Mogul – बैरम ख़ाँ प्रसंग व सत्ता-संक्रमण।
- Chandra, S., Parties and Politics at the Mughal Court – राजपूत नीति व गठबंधन।
- Jackson, Peter, & Subrahmanyam, Sanjay (eds.), The Mughal State, 1526–1750 – अभियानों का भू-राजनीतिक सन्दर्भ।
- Abu'l-Fazl, Akbarnama – गुजरात अभियान का शाही वृत्तांत।
- Abu'l-Fazl, Ain-i Akbari – मानसबदारी व प्रशासन की आधिकारिक सूचना।
- Irfan Habib, The Agrarian System of Mughal India – दहसाला व भू-मापन।
- Moosvi, Shireen, Economy of the Mughal Empire – जागीर-राजस्व संरचना।
- Truschke, Audrey, Cultural Interface under Akbar – जज़्या/तीर्थ-कर व समावेशन।
- Alam, Muzaffar & Subrahmanyam, Sanjay, Writing the Mughal World – दीन-ए-इलाही का पुनर्मूल्यांकन।
- Badayuni, Muntakhab-ut-Tawarikh – समकालीन आलोचनात्मक दृष्टि।
- Chaudhuri, K.N., Trade and Civilisation in the Indian Ocean – समुद्री व्यापार, सूरत-अहमदाबाद।
- John Deyell, Living Without Silver – मुग़ल सिक्का व टकसाल मानक।
- Beach, Milo C., Mughal and Rajput Painting – तसवीरख़ाना व चित्रकार।
- Asher, Catherine B., Architecture of Mughal India – फतेहपुर सीकरी व सिकंदरा।
- “Jesuits at Akbar’s court”, Wikimedia Commons फ़ाइल-विवरण – इबादतख़ाना का चित्रात्मक प्रमाण।
- Rasiklal Parikh (ed.), Nauratna of Akbar – ‘नवरत्न’ पर स्रोत-विवेचन।
- Wikimedia Commons फ़ाइलें: Portrait of Akbar by Manohar, Fatehpur sikri, Tomb of Akbar, Sikandra – दृश्य सामग्री।
- “Akbar’s Tomb (Sikandra)”, Archaeological Survey of India – स्मारक विवरण।
- Streusand, Douglas E., The Formation of the Mughal Empire – उत्तराधिकार व नीतिगत स्थायित्व।
- Bayly, C.A., Indian Society and the Making of the British Empire – दीर्घकालिक विरासत का आकलन।
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