भारतीय इतिहास – प्राचीन भारत
भारतीय इतिहास - प्राचीन भारत
विषय सूची
1. प्रस्तावना
प्राचीन भारतीय इतिहास का अध्ययन मुख्यतः तीन स्रोतों के आधार पर किया जाता है: पुरातत्वीय साक्ष्य, साहित्यिक स्रोत और विदेशी यात्रियों के विवरण। यह काल मानव सभ्यता के विकास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- प्रागैतिहासिक काल: पाषाण युग से कांस्य युग तक
- सिंधु सभ्यता: 2600-1900 ईसा पूर्व
- वैदिक काल: 1500-600 ईसा पूर्व
- महाजनपद काल: 600-321 ईसा पूर्व
- मौर्य काल: 321-185 ईसा पूर्व
2. सिंधु घाटी सभ्यता (2600-1900 ईसा पूर्व)
2.1 खोज और विस्तार
सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे हड़प्पा सभ्यता भी कहते हैं, विश्व की प्राचीनतम नगरीय सभ्यताओं में से एक है। इसकी खोज 1921 में दयाराम साहनी द्वारा हड़प्पा में की गई थी।
- हड़प्पा (1921): दयाराम साहनी
- मोहनजोदड़ो (1922): राखालदास बनर्जी
- चन्हूदड़ो: एन.जी. मजूमदार
- लोथल: एस.आर. राव
- कालीबंगा: ए. घोष
- बनावली: आर.एस. बिष्ट
भौगोलिक विस्तार:
| दिशा | स्थल | आधुनिक स्थान | विशेषता |
|---|---|---|---|
| उत्तर | मांडा | जम्मू-कश्मीर | उत्तरतम स्थल |
| दक्षिण | दाइमाबाद | महाराष्ट्र | दक्षिणतम स्थल |
| पूर्व | आलमगीरपुर | उत्तर प्रदेश | पूर्वी सीमा |
| पश्चिम | सुत्कागेंडोर | बलूचिस्तान | पश्चिमी सीमा |
कुल क्षेत्रफल: लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर (मिस्र और मेसोपोटामिया से बड़ा)
2.2 प्रमुख नगर और विशेषताएं
नगर नियोजन की विशेषताएं:
- ग्रिड सिस्टम: सड़कें समकोण पर काटती थीं
- दुर्ग और निचला शहर: द्विस्तरीय नगर व्यवस्था
- उन्नत जल निकासी: पक्की नालियों की व्यवस्था
- मानकीकरण: ईंटों, माप-तौल में एकरूपता
- सार्वजनिक स्नानागार: विशेषकर मोहनजोदड़ो में
| प्रमुख हड़प्पाई स्थल और उनकी विशेषताएं | |||
|---|---|---|---|
| स्थल | आधुनिक स्थान | मुख्य विशेषताएं | महत्वपूर्ण खोजें |
| हड़प्पा | पाकिस्तान (पंजाब) | सबसे पहले खोजा गया | कब्रिस्तान R-37, नर्तकी की कांस्य मूर्ति |
| मोहनजोदड़ो | पाकिस्तान (सिंध) | महान स्नानागार, अन्नागार | पुरोहित राज की मूर्ति, पशुपति मुहर |
| चन्हूदड़ो | पाकिस्तान (सिंध) | मनका निर्माण केंद्र | लिपस्टिक, स्याही दानी |
| लोथल | गुजरात | बंदरगाह नगर | गोदीबाड़ा, ज्वारभाटा बांध |
| कालीबंगा | राजस्थान | अग्नि वेदियां | हल चलाने के निशान, भूकंप के साक्ष्य |
| धोलावीरा | गुजरात | जल संरक्षण तकनीक | स्टेडियम, बड़े अक्षरों का साइनबोर्ड |
| राखीगढ़ी | हरियाणा | सबसे बड़ा हड़प्पाई स्थल | डीएनए अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण |
2.3 समाज और संस्कृति
सामाजिक संरचना:
- समतावादी समाज: वर्गीय भेदभाव के स्पष्ट प्रमाण नहीं
- व्यापारी वर्ग: समृद्ध व्यापारिक गतिविधियां
- शिल्पकार: धातुकर्म, मृदभांड निर्माण में दक्ष
- कृषक: गेहूं, जौ, तिल, सरसों की खेती
धर्म और आध्यात्म:
- मातृदेवी: प्रकृति पूजा के प्रमाण
- पशुपति शिव: योगी की मुद्रा में बैठे देवता
- पेड़-पौधे पूजा: पीपल, नीम का महत्व
- पशु पूजा: बैल, भैंस, हाथी की पूजा
- जल पूजा: स्नानागारों का धार्मिक महत्व
- अग्नि पूजा: कालीबंगा में अग्निकुंड
तकनीकी उपलब्धियां:
- धातुकर्म: कांस्य, तांबा, सोना, चांदी का प्रयोग
- माप-तौल: 16 के अनुपात में मानकीकृत
- परिवहन: दो और चार पहियों की गाड़ियां
- कृषि: सिंचाई तकनीक, बांध निर्माण
- व्यापार: मेसोपोटामिया तक पहुंचने वाले व्यापारिक संबंध
हड़प्पाई लिपि:
सिंधु घाटी की लिपि अभी तक अपठित है। लगभग 400 चिह्न मिले हैं, जो दाईं से बाईं ओर लिखे जाते थे।
2.4 पतन के कारण
सिंधु सभ्यता का पतन लगभग 1900 ईसा पूर्व हुआ। इसके कई संभावित कारण हैं:
| सिद्धांत | समर्थक विद्वान | मुख्य तर्क | साक्ष्य |
|---|---|---|---|
| आर्य आक्रमण | मॉर्टिमर व्हीलर | बाहरी आक्रमण से विनाश | हड़प्पा में नरकंकाल |
| बाढ़ सिद्धांत | अर्नेस्ट मैके | सिंधु नदी में बाढ़ | मोहनजोदड़ो में गाद की परतें |
| जलवायु परिवर्तन | ऑरेल स्टाइन | सूखा और मरुस्थलीकरण | सरस्वती नदी का सूखना |
| भूकंप | एम.एस. वत्स | प्राकृतिक आपदा | कालीबंगा में भूकंप के निशान |
| महामारी | के.यू.आर. कैनेडी | संक्रामक रोग का प्रकोप | अचानक जनसंख्या में कमी |
3. वैदिक काल (1500-600 ईसा पूर्व)
3.1 ऋग्वैदिक काल (1500-1000 ईसा पूर्व)
आर्यों का आगमन:
आर्य मध्य एशिया से भारत आए और सर्वप्रथम सप्तसिंधु प्रदेश (पंजाब) में बसे। ऋग्वेद में इस काल का विस्तृत वर्णन मिलता है।
- सप्तसिंधु: सिंधु, सरस्वती, शतुद्रि, परुष्णी, वितस्ता, आस्किनी, सुषोमा
- मुख्य क्षेत्र: पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश
- पवित्र नदी: सरस्वती (सर्वाधिक उल्लेख)
- जनजातियां: भरत, पुरु, यदु, तुर्वस, अणु
राजनीतिक व्यवस्था:
| पद | कार्य | चुनाव पद्धति | विशेषताएं |
|---|---|---|---|
| राजा (राजन्) | सर्वोच्च शासक | वंशानुगत + निर्वाचन | युद्ध का नेता, गोरक्षक |
| पुरोहित | धर्म सलाहकार | नियुक्ति | यज्ञ संचालन, राजा का मार्गदर्शन |
| सेनानी | सेना प्रमुख | नियुक्ति | युद्ध संचालन |
| ग्रामणी | ग्राम प्रमुख | निर्वाचन | स्थानीय प्रशासन |
सामाजिक व्यवस्था:
- वर्ण व्यवस्था: प्रारंभिक रूप में द्विवर्णीय (आर्य-दास)
- पारिवारिक संरचना: पितृसत्तात्मक, संयुक्त परिवार
- महिलाओं की स्थिति: उच्च स्थान, उपनयन संस्कार, शिक्षा के अधिकार
- विवाह प्रथा: एक पत्नी प्रथा, स्वयंवर की परंपरा
आर्थिक जीवन:
- पशुपालन: गाय सबसे महत्वपूर्ण, संपत्ति का मापदंड
- कृषि: यव (जौ) मुख्य फसल, हल का प्रयोग
- धातुकर्म: तांबा, कांस्य, सोना की जानकारी
- व्यापार: वस्तु विनिमय, नष्क (स्वर्ण आभूषण) मुद्रा
धर्म और दर्शन:
- प्रकृति पूजा: इंद्र, अग्नि, वरुण, सोम प्रमुख देवता
- यज्ञ प्रधान: अग्निहोत्र, सोमयाग आदि
- सत्य और ऋत: नैतिक व्यवस्था के आधार
- अहिंसा: पशु बलि प्रचलित लेकिन अहिंसा के भाव
3.2 उत्तर वैदिक काल (1000-600 ईसा पूर्व)
भौगोलिक विस्तार:
इस काल में आर्यों का विस्तार सरस्वती-गंगा के दोआब तक हो गया। नई भूमि को आर्यावर्त कहा गया।
- पूर्व: कुरुक्षेत्र से विदेह (बिहार) तक
- दक्षिण: विंध्य पर्वत तक
- नए राज्य: कुरु, पांचाल, काशी, विदेह
- नई नदियां: गंगा, यमुना का महत्व बढ़ा
राजनीतिक परिवर्तन:
| ऋग्वैदिक काल | उत्तर वैदिक काल | परिवर्तन का कारण |
|---|---|---|
| जनजातीय राज्य | क्षेत्रीय राज्य | कृषि का विकास |
| निर्वाचित राजा | वंशानुगत राजा | सत्ता का केंद्रीकरण |
| सभा-समिति प्रभावी | राजा की शक्ति में वृद्धि | राज्याभिषेक की परंपरा |
| सरल प्रशासन | जटिल प्रशासनिक व्यवस्था | विस्तृत राज्य क्षेत्र |
सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन:
- चतुर्वर्ण व्यवस्था: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र का स्पष्ट विभाजन
- वर्ण संकरता: अंतर्विवाह से नई जातियों का जन्म
- आश्रम व्यवस्था: ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास
- महिलाओं की स्थिति में गिरावट: शिक्षा और धार्मिक अधिकारों में कमी
धार्मिक विकास:
- राजसूय यज्ञ: राज्याभिषेक के लिए
- अश्वमेध यज्ञ: साम्राज्य विस्तार के लिए
- वाजपेय यज्ञ: रत्निनों के लिए
- पुरुषमेध यज्ञ: सर्वोच्च यज्ञ
- प्रजापति: सृष्टिकर्ता के रूप में उदय
- विष्णु और रुद्र: महत्व में वृद्धि
3.3 वैदिक साहित्य
श्रुति साहित्य:
| चार वेद और उनकी विशेषताएं | |||
|---|---|---|---|
| वेद | मंडल/अध्याय | मुख्य विषय | विशेषताएं |
| ऋग्वेद | 10 मंडल, 1028 सूक्त | स्तुति मंत्र | सबसे प्राचीन, गायत्री मंत्र |
| सामवेद | 1875 मंत्र | गायन संबंधी | भारतीय संगीत का आधार |
| यजुर्वेद | 40 अध्याय | यज्ञ कर्मकांड | गद्य-पद्य दोनों में |
| अथर्ववेद | 20 कांड, 731 सूक्त | जादू-टोना, चिकित्सा | लोक जीवन की झलक |
उपवेद और वेदांग:
- उपवेद: आयुर्वेद, धनुर्वेद, गंधर्ववेद, शिल्पवेद
- वेदांग: शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, ज्योतिष
स्मृति साहित्य:
- सूत्र साहित्य: श्रौत सूत्र, गृह्य सूत्र, धर्म सूत्र
- महाकाव्य: रामायण, महाभारत
- पुराण: 18 महापुराण, 18 उपपुराण
- धर्मशास्त्र: मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति
3.4 समाज और धर्म
वर्ण व्यवस्था का विकास:
| वर्ण | मुख्य कार्य | अधिकार | कर्तव्य |
|---|---|---|---|
| ब्राह्मण | अध्ययन, अध्यापन, यज्ञ | दान लेना, यज्ञ कराना | धर्म का प्रचार |
| क्षत्रिय | शासन, युद्ध, प्रजा रक्षा | दंड देना, कर लेना | धर्म की रक्षा |
| वैश्य | कृषि, पशुपालन, व्यापार | संपत्ति अर्जन | उत्पादन और वितरण |
| शूद्र | तीनों वर्णों की सेवा | सीमित धार्मिक अधिकार | श्रम प्रदान करना |
पुरुषार्थ चतुष्टय:
- धर्म: नैतिक और सामाजिक कर्तव्य
- अर्थ: भौतिक समृद्धि और राजनीतिक शक्ति
- काम: इच्छाओं की पूर्ति
- मोक्ष: आत्मा की मुक्ति
4. महाजनपद काल (600-321 ईसा पूर्व)
4.1 सोलह महाजनपद
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत में सोलह महाजनपद थे। इनका उल्लेख अंगुत्तर निकाय में मिलता है।
| सोलह महाजनपद | |||
|---|---|---|---|
| महाजनपद | राजधानी | आधुनिक स्थान | शासन व्यवस्था |
| काशी | वाराणसी | उत्तर प्रदेश | राजतंत्र |
| कोसल | श्रावस्ती | उत्तर प्रदेश | राजतंत्र |
| अंग | चंपा | बिहार | राजतंत्र |
| मगध | राजगृह | बिहार | राजतंत्र |
| वज्जि | वैशाली | बिहार | गणराज्य |
| मल्ल | कुशीनारा, पावा | उत्तर प्रदेश | गणराज्य |
| चेदि | शुक्तिमती | मध्य प्रदेश | राजतंत्र |
| वत्स | कौशांबी | उत्तर प्रदेश | राजतंत्र |
| कुरु | इंद्रप्रस्थ | हरियाणा, दिल्ली | राजतंत्र |
| पांचाल | अहिच्छत्र, काम्पिल्य | उत्तर प्रदेश | राजतंत्र |
| मत्स्य | विराटनगर | राजस्थान | राजतंत्र |
| शूरसेन | मथुरा | उत्तर प्रदेश | राजतंत्र |
| अश्मक | पोतन | आंध्र प्रदेश | राजतंत्र |
| अवंति | उज्जयिनी | मध्य प्रदेश | राजतंत्र |
| गांधार | तक्षशिला | पाकिस्तान | राजतंत्र |
| कंबोज | राजपुर | अफगानिस्तान | राजतंत्र |
गणराज्य व्यवस्था:
- वज्जि संघ: 8 जनपदों का संघ, लिच्छवि सबसे शक्तिशाली
- मल्ल गणराज्य: कुशीनारा और पावा में विभाजित
- शाक्य गणराज्य: कपिलवस्तु, बुद्ध का जन्म स्थान
- कोलिय गणराज्य: रामग्राम, शाक्यों से संबंधित
4.2 मगध का उत्थान
मगध की श्रेष्ठता के कारण:
- भौगोलिक स्थिति: गंगा-सोन नदियों के संगम पर
- उपजाऊ भूमि: कृषि के लिए अनुकूल
- खनिज संपदा: लोहा और तांबे की खानें
- व्यापारिक मार्ग: पूर्वी और दक्षिणी भारत से संपर्क
- हाथियों की उपलब्धता: युद्ध में लाभ
मगध के राजवंश:
| राजवंश | काल | प्रमुख शासक | उपलब्धियां |
|---|---|---|---|
| हर्यंक वंश | 544-412 ईसा पूर्व | बिंबिसार, अजातशत्रु | मगध साम्राज्य की नींव |
| शिशुनाग वंश | 412-344 ईसा पूर्व | शिशुनाग, कालाशोक | अवंति को मगध में मिलाना |
| नंद वंश | 344-321 ईसा पूर्व | महापद्म नंद, धनानंद | सिकंदर के आक्रमण को रोकना |
बिंबिसार (544-492 ईसा पूर्व):
- विवाह नीति: कोसल, वैशाली और मद्र से वैवाहिक संबंध
- मित्रता नीति: अवंति के राजा प्रद्योत से मित्रता
- विजय: अंग राज्य को जीतकर अपने पुत्र कुणिक को दिया
- धार्मिक नीति: बुद्ध और जैन धर्म के प्रति सहिष्णुता
अजातशत्रु (492-460 ईसा पूर्व):
- वज्जि युद्ध: 16 वर्षों के संघर्ष के बाद वज्जि संघ पर विजय
- कूटनीतिक जीत: वासकार द्वारा लिच्छवि गणराज्य में फूट डालना
- नई राजधानी: पाटलिपुत्र (पाटलिग्राम) की स्थापना
- नए हथियार: महाशिलाकंटक और रथमूसल का प्रयोग
4.3 धार्मिक आंदोलन
धार्मिक आंदोलन के कारण:
- ब्राह्मणवाद की कट्टरता: यज्ञ प्रधान धर्म की जटिलता
- सामाजिक असमानता: वर्ण व्यवस्था की कठोरता
- आर्थिक शोषण: यज्ञ के नाम पर धन की बर्बादी
- दार्शनिक जिज्ञासा: आत्मा और मुक्ति की खोज
बौद्ध धर्म:
| विषय | विवरण |
|---|---|
| संस्थापक | सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध), शाक्य गणराज्य |
| जन्म | 563 ईसा पूर्व, लुंबिनी |
| ज्ञान प्राप्ति | 35 वर्ष की आयु में बोधगया में |
| प्रथम उपदेश | सारनाथ में धर्मचक्र प्रवर्तन |
| निर्वाण | 80 वर्ष की आयु में कुशीनारा में |
चार आर्य सत्य:
- दुख: जीवन दुखमय है
- दुख समुदाय: तृष्णा दुख का कारण है
- दुख निरोध: तृष्णा के नाश से दुख का अंत
- दुख निरोधगामिनी प्रतिपदा: अष्टांगिक मार्ग
जैन धर्म:
- 24वें तीर्थंकर: महावीर (वर्धमान), 599-527 ईसा पूर्व
- जन्म स्थान: कुंडग्राम (वैशाली)
- मुख्य सिद्धांत: अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह
- कर्म सिद्धांत: आत्मा की शुद्धता पर बल
- त्रिरत्न: सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र
अन्य संप्रदाय:
- आजीविक संप्रदाय: मक्खली गोसाल द्वारा स्थापित
- चार्वाक दर्शन: भौतिकवादी दर्शन
- संखा दर्शन: कपिल मुनि द्वारा प्रतिपादित
5. मौर्य काल (321-185 ईसा पूर्व)
5.1 चंद्रगुप्त मौर्य (321-297 ईसा पूर्व)
मौर्य वंश की स्थापना:
चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य (कौटिल्य) की सहायता से 321 ईसा पूर्व में नंद वंश का अंत करके मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
- धनानंद को परास्त: मगध पर अधिकार
- सिकंदर के सूबेदारों को भगाना: पश्चिमोत्तर भारत की मुक्ति
- सेल्यूकस से संधि: हेरात, कंधार, काबुल, बलूचिस्तान प्राप्त
- दक्षिण विजय: कर्नाटक तक साम्राज्य विस्तार
सेल्यूकस-चंद्रगुप्त संधि (305 ईसा पूर्व):
| शर्तें | चंद्रगुप्त को प्राप्त | सेल्यूकस को प्राप्त |
|---|---|---|
| क्षेत्रीय | हेरात, कंधार, काबुल, बलूचिस्तान | शांति और सुरक्षा |
| वैवाहिक | सेल्यूकस की पुत्री | मौर्य साम्राज्य से मित्रता |
| उपहार | - | 500 हाथी |
| राजदूत | मेगस्थनीज को स्वीकार | भारत की जानकारी |
मेगस्थनीज का विवरण:
- इंडिका: चंद्रगुप्त के शासनकाल का विस्तृत विवरण
- पाटलिपुत्र: 9.5 मील लंबी और 1.75 मील चौड़ी नगर
- सप्तअंग राज्य: राजा, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोश, दंड, मित्र
- समाज: सात वर्गों में विभाजित समाज का वर्णन
5.2 बिंदुसार (297-273 ईसा पूर्व)
शासन और विजयें:
- उत्तराधिकार: चंद्रगुप्त का योग्य पुत्र
- दक्षिण विजय: 16 राज्यों को जीतकर साम्राज्य का विस्तार
- कलिंग को छोड़कर: समस्त भारत पर नियंत्रण
- विदेशी संबंध: सीरिया, मिस्र से मित्रता
- डायमेकस: सीरिया का राजदूत
- डायोनिसियस: मिस्र का राजदूत
- अरिस्टोक्रेट्स: एंटियोकस का दूत
प्रशासनिक व्यवस्था:
- तक्षशिला विद्रोह: राजकुमार अशोक द्वारा दमन
- उज्जयिनी शासन: अशोक को उज्जयिनी का राज्यपाल नियुक्त
- चाणक्य का प्रभाव: प्रशासनिक सुधार जारी
5.3 सम्राट अशोक (268-232 ईसा पूर्व)
राज्यारोहण और प्रारंभिक शासन:
अशोक ने 268 ईसा पूर्व में राज्यारोहण किया। प्रारंभ में वह चंडाशोक के नाम से प्रसिद्ध था।
कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व):
- व्यापक विनाश: 1 लाख सैनिक मारे गए, 1.5 लाख बंदी
- अशोक पर प्रभाव: युद्ध की भयावहता से मन परिवर्तन
- बौद्ध धर्म स्वीकार: अहिंसा और करुणा की नीति
- धम्म नीति: नैतिक आचरण पर आधारित शासन
- 13वां शिलालेख: कलिंग युद्ध का विस्तृत वर्णन
अशोक का धम्म:
| धम्म के सिद्धांत | व्यावहारिक रूप |
|---|---|
| अहिंसा | पशु बलि पर रोक, चिकित्सा सुविधा |
| सत्य | न्याय व्यवस्था में सुधार |
| करुणा | दीन-दुखियों की सहायता |
| दान | धर्मशालाओं और अस्पतालों का निर्माण |
| पवित्रता | नैतिक आचरण का प्रचार |
| मितव्ययता | शाही खर्च में कमी |
अशोक के अभिलेख:
- शिलालेख: 14 वृहद शिलालेख, चट्टानों पर उत्कीर्ण
- स्तंभ लेख: 7 स्तंभ लेख, बलुआ पत्थर के स्तंभों पर
- गुहा लेख: बराबर पहाड़ी की गुफाओं में
- लघु शिलालेख: स्थानीय महत्व के विषयों पर
धर्म प्रचार और विदेश नीति:
- श्रीलंका: महेंद्र और संघमित्रा
- यूनान: एंटियोकस II के राज्य में
- मिस्र: टालेमी II के राज्य में
- सीरिया: सेल्यूकिड साम्राज्य में
- मैसेडोनिया: एंटिगोनस के राज्य में
5.4 मौर्य प्रशासन
केंद्रीय प्रशासन:
| पदनाम | कार्य | विशेषताएं |
|---|---|---|
| राजा | सर्वोच्च शासक | निरंकुश लेकिन प्रजा हितैषी |
| मंत्रिपरिषद | राजा की सलाहकार | महामंत्री का नेतृत्व |
| तीर्थ (मंत्री) | विभागीय प्रमुख | 18 तीर्थ (अधिकारी) |
| अध्यक्ष | विभागाध्यक्ष | विशिष्ट कार्यों के प्रभारी |
प्रांतीय प्रशासन:
- 5 प्रांत: मगध, अवंति, तक्षशिला, तोषाली, सुवर्णगिरि
- कुमार: राजकुमार प्रांतीय गवर्नर
- आर्यपुत्र: राजपरिवार के सदस्य गवर्नर
- राष्ट्रिक: जिला अधिकारी
स्थानीय प्रशासन:
- जनपद: प्रांत
- आहार: जिला
- संग्रहण: तहसील
- ग्राम: गांव (सबसे छोटी इकाई)
न्याय व्यवस्था:
- धर्मस्थीय न्यायालय: दीवानी मामले
- कंटकशोधन न्यायालय: फौजदारी मामले
- राजूक: न्यायाधीश और राजस्व अधिकारी
- प्रादेशिक: न्यायाधीश
सेना संगठन:
| सेना प्रकार | संख्या | प्रमुख | विशेषता |
|---|---|---|---|
| पैदल सेना | 6 लाख | पदाध्यक्ष | सबसे बड़ी शाखा |
| अश्व सेना | 30,000 | अश्वाध्यक्ष | तीव्र आक्रमण |
| गज सेना | 9,000 | गजाध्यक्ष | मुख्य शक्ति |
| रथ सेना | 8,000 | रथाध्यक्ष | युद्ध संचालन |
| नौ सेना | 2,000 | नावाध्यक्ष | जल मार्ग सुरक्षा |
| यंत्र सेना | - | यंत्राध्यक्ष | युद्ध उपकरण |
5.5 मौर्य साम्राज्य का पतन
पतन के कारण:
- अशोक के बाद कमजोर उत्तराधिकारी: दशरथ, सम्प्रति, शतधन्वा
- अत्यधिक विकेंद्रीकरण: प्रांतीय गवर्नरों की बढ़ती शक्ति
- आर्थिक संकट: अत्यधिक व्यय से खजाना खाली
- ब्राह्मण विरोध: बौद्ध धर्म संरक्षण से असंतुष्टि
- उत्तर-पश्चिम से आक्रमण: यूनानी आक्रमण
अंतिम मौर्य शासक:
- मौर्य वंश का अंतिम शासक
- पुष्यमित्र शुंग द्वारा हत्या
- शुंग वंश की स्थापना
- मगध साम्राज्य का विभाजन
मौर्य काल की देन:
- राजनीतिक एकीकरण: पहली बार अखिल भारतीय साम्राज्य
- प्रशासनिक व्यवस्था: केंद्रीकृत प्रशासन का मॉडल
- कला और वास्तुकला: अशोक स्तंभ, स्तूप निर्माण
- धर्म प्रसार: बौद्ध धर्म का अंतर्राष्ट्रीय प्रसार
- व्यापार और वाणिज्य: आंतरिक और बाह्य व्यापार का विकास
6. UPSC स्तरीय प्रश्नोत्तरी
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (1 अंक)
(b) मोहनजोदड़ो
(c) राखीगढ़ी
(d) धोलावीरा
उत्तर: (c) राखीगढ़ी - हरियाणा में स्थित, यह सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल है।
(b) सरस्वती
(c) गंगा
(d) यमुना
उत्तर: (b) सरस्वती - ऋग्वेद में सरस्वती को सबसे पवित्र नदी माना गया है।
(b) अंगुत्तर निकाय
(c) मज्झिम निकाय
(d) संयुत्त निकाय
उत्तर: (b) अंगुत्तर निकाय - बौद्ध ग्रंथ में 16 महाजनपदों की सूची है।
(b) चंद्रगुप्त मौर्य
(c) अशोक
(d) धनानंद
उत्तर: (b) चंद्रगुप्त मौर्य - सेल्यूकस का राजदूत था।
(b) 13वां शिलालेख
(c) 14वां शिलालेख
(d) 7वां स्तंभ लेख
उत्तर: (b) 13वां शिलालेख - कलिंग युद्ध की भयावहता का वर्णन।
लघु उत्तरीय प्रश्न (5 अंक)
- ग्रिड सिस्टम: सड़कें समकोण पर काटती थीं, मुख्य सड़क उत्तर-दक्षिण दिशा में
- द्विस्तरीय व्यवस्था: ऊपरी दुर्ग (शासक वर्ग) और निचला शहर (सामान्य जन)
- जल निकासी व्यवस्था: पक्की ईंटों की नालियां, ढकी हुई नालियां
- मानकीकरण: ईंटों का आकार 4:2:1 के अनुपात में
- सार्वजनिक सुविधाएं: स्नानागार, अन्नागार, कूप
- सड़क व्यवस्था: चौड़ी सड़कें, मुख्य सड़क 30-34 फुट चौड़ी
| विषय | ऋग्वैदिक काल | उत्तर वैदिक काल |
|---|---|---|
| वर्ण व्यवस्था | लचीली, द्विवर्णीय | कठोर चतुर्वर्ण |
| महिला स्थिति | उच्च, शिक्षा के अधिकार | अधीनस्थ, सीमित अधिकार |
| राजनीति | जनजातीय लोकतंत्र | राजतंत्र की स्थापना |
| धर्म | प्रकृति पूजा | कर्मकांड प्रधान |
- भौगोलिक लाभ: गंगा-सोन नदियों के संगम पर स्थित
- उपजाऊ भूमि: कृषि के लिए अनुकूल जलवायु और मिट्टी
- खनिज संपदा: राजगीर में लोहे की खानें
- वन संपदा: हाथियों की उपलब्धता, युद्ध में लाभकारी
- व्यापारिक मार्ग: पूर्व और दक्षिण भारत से संपर्क
- योग्य शासक: बिंबिसार, अजातशत्रु जैसे कुशल राजा
- कूटनीतिक नीति: विवाह संबंध और मित्रता की नीति
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (10 अंक)
बौद्ध धर्म के उदय के कारण:
1. धार्मिक कारण:
- ब्राह्मणवाद की कट्टरता और कर्मकांड की जटिलता
- यज्ञों में पशु बलि से जन सामान्य में असंतोष
- संस्कृत भाषा की दुरूहता
2. सामाजिक कारण:
- वर्ण व्यवस्था की कठोरता
- ब्राह्मणों के विशेषाधिकार
- शूद्रों और महिलाओं की दयनीय स्थिति
3. आर्थिक कारण:
- व्यापारी वर्ग की उन्नति
- नए व्यापारिक मार्गों का विकास
- धन संचय की नई प्रवृत्ति
बौद्ध धर्म की मुख्य शिक्षाएं:
1. चार आर्य सत्य:
- दुख: जीवन दुखमय है
- दुख समुदाय: तृष्णा दुख का कारण
- दुख निरोध: तृष्णा नाश से दुख का अंत
- दुख निरोधगामिनी प्रतिपदा: अष्टांगिक मार्ग
2. अष्टांगिक मार्ग:
- सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प
- सम्यक वाणी, सम्यक कर्मांत
- सम्यक आजीव, सम्यक व्यायाम
- सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि
3. नैतिक सिद्धांत:
- अहिंसा, सत्य, करुणा
- समानता का सिद्धांत
- मध्यम मार्ग का अनुसरण
राजनीतिक उपलब्धियां:
1. मौर्य साम्राज्य की स्थापना (321 ईसा पूर्व):
- चाणक्य की सहायता से नंद वंश का अंत
- पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया
- केंद्रीकृत प्रशासन की स्थापना
2. साम्राज्य विस्तार:
- पश्चिमोत्तर भारत: सिकंदर के सेनापतियों को परास्त
- सेल्यूकस से संधि: 4 प्रांत प्राप्त
- दक्षिण विजय: कर्नाटक तक विस्तार
- पूर्वी भारत: गंगा डेल्टा तक नियंत्रण
प्रशासनिक सुधार:
- केंद्रीकृत प्रशासन: मंत्रिपरिषद की स्थापना
- प्रांतीय व्यवस्था: कुशल गवर्नर नियुक्ति
- गुप्तचर व्यवस्था: आंतरिक सुरक्षा
- न्याय व्यवस्था: उचित कानून व्यवस्था
आर्थिक उपलब्धियां:
- व्यापार विकास: आंतरिक और बाह्य व्यापार को बढ़ावा
- कृषि सुधार: सिंचाई व्यवस्था का विकास
- राजस्व व्यवस्था: व्यवस्थित कर संग्रह
- मुद्रा प्रणाली: चांदी के पंचमार्क सिक्के
सामाजिक और सांस्कृतिक योगदान:
- धार्मिक सहिष्णुता की नीति
- जैन धर्म के प्रति झुकाव
- कलाओं को संरक्षण
- शिक्षा का प्रसार
विदेशी संबंध:
- सेल्यूकस साम्राज्य के साथ मैत्री
- मेगस्थनीज का स्वागत
- यूनानी सभ्यता से संपर्क
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा
निष्कर्ष: चंद्रगुप्त मौर्य ने भारत में पहली बार एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की और राजनीतिक एकीकरण का कार्य किया।
निबंधात्मक प्रश्न (15 अंक)
प्रस्तावना:
सम्राट अशोक प्राचीन भारत के सबसे महान शासकों में से एक था। कलिंग युद्ध के बाद उसका हृदय परिवर्तन और धम्म नीति की स्थापना ने उसे केवल एक राजनीतिक शासक से कहीं अधिक बनाया। वह मानवता के इतिहास में अद्वितीय स्थान रखता है।
अशोक का प्रारंभिक जीवन और परिवर्तन:
1. राज्यारोहण से पूर्व:
- बिंदुसार का पुत्र, प्रारंभ में चंडाशोक के नाम से प्रसिद्ध
- तक्षशिला और उज्जयिनी में प्रशासनिक अनुभव
- सिंहासन के लिए भाइयों से संघर्ष
- 268 ईसा पूर्व में राज्यारोहण
2. कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व):
- युद्ध का कारण: साम्राज्य की पूर्णता हेतु कलिंग विजय आवश्यक
- युद्ध की भयावहता: 1 लाख मृत, 1.5 लाख निर्वासित
- अशोक पर प्रभाव: व्यापक विनाश देखकर मन में पछतावा
- 13वें शिलालेख: युद्ध के पश्चाताप का स्पष्ट उल्लेख
धम्म नीति की स्थापना:
1. धम्म का अर्थ:
- धम्म न तो हिंदू धर्म था न ही बौद्ध धर्म
- यह एक नैतिक आचार संहिता थी
- सभी धर्मों के सार तत्वों का समन्वय
- व्यावहारिक जीवन में नैतिकता का प्रयोग
2. धम्म के मूल सिद्धांत:
| सिद्धांत | व्यावहारिक रूप | उद्देश्य |
|---|---|---|
| अहिंसा | पशु बलि पर रोक, चिकित्सा सेवा | जीव मात्र का कल्याण |
| सत्य | न्याय व्यवस्था में सुधार | समाज में विश्वास |
| करुणा | गरीबों की सहायता | सामाजिक न्याय |
| दान | अस्पताल, धर्मशाला निर्माण | कल्याणकारी राज्य |
| पवित्रता | मानसिक और शारीरिक स्वच्छता | व्यक्तित्व विकास |
3. धम्म प्रचार की व्यवस्था:
- धम्म महामात्र: धम्म प्रचार के लिए विशेष अधिकारी
- शिलालेख: प्राकृत भाषा में जन सामान्य के लिए
- धम्म यात्रा: राजा स्वयं प्रजा से मिलकर प्रचार
- व्यक्तिगत उदाहरण: राजा का आचरण ही प्रचार
अशोक की महानता के आयाम:
1. धार्मिक सहिष्णुता:
- सभी धर्मों के प्रति समान आदर
- 12वें शिलालेख में सर्वधर्म समभाव का उपदेश
- धार्मिक वाद-विवाद को हतोत्साहित करना
- सभी संप्रदायों को राज्य संरक्षण
2. कल्याणकारी शासन:
- चिकित्सा सेवा: मनुष्यों और पशुओं के लिए अस्पताल
- पशु कल्याण: अनावश्यक पशु हत्या पर रोक
- वृक्षारोपण: मार्गों पर छायादार वृक्ष
- जल व्यवस्था: कुओं और तालाबों का निर्माण
3. न्याय व्यवस्था में सुधार:
- राजूक और प्रादेशिक की नियुक्ति
- न्याय के लिए राजा की निरंतर उपलब्धता
- दंड व्यवस्था में मानवीयता
- निष्पक्ष न्याय की गारंटी
4. अंतर्राष्ट्रीय संबंध:
- धर्म दूत: श्रीलंका, यूनान, मिस्र में भेजे
- शांति नीति: युद्ध के बजाय धम्म विजय
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान: विदेशी विचारों का स्वागत
- व्यापारिक संबंध: आर्थिक समृद्धि
धम्म नीति का प्रभाव:
1. तत्कालीन प्रभाव:
- समाज में अहिंसा की भावना का प्रसार
- धार्मिक सद्भावना में वृद्धि
- प्रशासनिक भ्रष्टाचार में कमी
- कल्याणकारी राज्य की अवधारणा
2. दीर्घकालीन प्रभाव:
- बौद्ध धर्म का अंतर्राष्ट्रीय प्रसार
- भारतीय संस्कृति का विश्व व्यापी प्रभाव
- अहिंसा की परंपरा का विकास
- आधुनिक मानवाधिकार की पूर्व पीठिका
आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिकता:
- भारतीय राज्य चिह्न: अशोक चक्र और सिंह स्तंभ
- संविधान में सिद्धांत: धर्मनिरपेक्षता, समानता
- पंचशील सिद्धांत: नेहरू की विदेश नीति पर प्रभाव
- गांधी के आदर्श: अहिंसा और सत्याग्रह
आलोचनात्मक मूल्यांकन:
सकारात्मक पहलू:
- मानवीय मूल्यों पर आधारित शासन
- धर्मनिरपेक्ष और समतावादी दृष्टिकोण
- अंतर्राष्ट्रीय शांति और सद्भावना
- पर्यावरण चेतना और पशु कल्याण
आलोचनाएं:
- धम्म की अस्पष्ट परिभाषा
- व्यावहारिक राजनीति की उपेक्षा
- केवल नैतिक उपदेश, कठोर नीति नहीं
- साम्राज्य के पतन में योगदान
निष्कर्ष:
अशोक का व्यक्तित्व और उसकी धम्म नीति मानव इतिहास में एक युगांतकारी घटना थी। उसने दिखाया कि राजनीतिक सत्ता का उपयोग मानवता की भलाई के लिए किया जा सकता है। कलिंग युद्ध के बाद उसका हृदय परिवर्तन और फिर जीवन भर धम्म के प्रचार में समर्पण ने उसे न केवल एक महान शासक बल्कि एक महान मानव बनाया। आज भी अशोक के आदर्श और सिद्धांत विश्व शांति और मानवीय मूल्यों के लिए प्रासंगिक हैं। उसकी धम्म नीति ने भारतीय संस्कृति की वैश्विक पहचान बनाई और मानवाधिकार की आधुनिक अवधारणा की नींव रखी।
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