राजस्थान का इतिहास – प्रागैतिहासिक एवं प्राचीन काल: कालीबंगा, आहड़‑बागौर, गिलुंड, प्राचीन जनपद व कला‑स्थापत्य
राजस्थान का इतिहास
प्रागैतिहासिक एवं प्राचीन काल
विषय सूची
1. परिचय
राजस्थान का इतिहास अत्यंत प्राचीन और गौरवशाली है। यह भूमि हजारों वर्षों से मानव सभ्यता का केंद्र रही है। प्रागैतिहासिक काल से लेकर प्राचीन काल तक यहाँ अनेक सभ्यताओं का विकास हुआ है। हड़प्पा सभ्यता से लेकर विभिन्न राजवंशों तक का इतिहास इस प्रदेश की महानता को दर्शाता है।
2. प्रागैतिहासिक काल
राजस्थान में प्रागैतिहासिक काल के अवशेष मुख्यतः चार स्थलों पर मिले हैं - कालीबंगा, आहड़, बागौर और गिलुंड। ये सभी स्थल अलग-अलग कालखंडों की सभ्यताओं के प्रतिनिधि हैं।
2.1 कालीबंगा सभ्यता
कालीबंगा हनुमानगढ़ जिले में सरस्वती नदी (वर्तमान में घग्घर नदी) के तट पर स्थित है। यह हड़प्पा सभ्यता का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।
कालीबंगा की विशेषताएं:
- नगर नियोजन: सुव्यवस्थित सड़कें, जल निकासी प्रणाली
- कृषि: विश्व में सबसे पुराने जुते हुए खेत के साक्ष्य
- धर्म: अग्नि वेदिकाओं के अवशेष
- शिल्प: मिट्टी के बर्तन, मुहरें, खिलौने
- व्यापार: मेसोपोटामिया से व्यापारिक संबंध
पुरातत्वीय खोजें:
- दो टीले - निचला शहर (पूर्व-हड़प्पा) और ऊपरी दुर्ग (परिपक्व हड़प्पा)
- अनाज भंडारण के लिए कोठियों के अवशेष
- मिट्टी की मूर्तियां और खिलौने
- सुसज्जित मृदभांड (पेंटेड वेयर)
2.2 आहड़ सभ्यता
आहड़ उदयपुर जिले में स्थित है और बनास नदी के तट पर बसी थी। यह ताम्र युगीन सभ्यता का प्रमुख केंद्र था।
आहड़ की विशेषताएं:
- धातु विज्ञान: तांबे का व्यापक उपयोग
- कृषि: गेहूं, जौ, मटर की खेती
- पशुपालन: गाय, भैंस, बकरी का पालन
- मृदभांड: काले रंग के चित्रित मृदभांड
- आवास: पत्थर और मिट्टी के मकान
सांस्कृतिक जीवन:
- मातृदेवी की उपासना के प्रमाण
- मिट्टी की बैल मूर्तियां (धार्मिक महत्व)
- विभिन्न प्रकार के आभूषण
- शवदाह की परंपरा
2.3 बागौर सभ्यता
बागौर भीलवाड़ा जिले में कोठारी नदी के तट पर स्थित है। यह मध्य पाषाण कालीन सभ्यता का महत्वपूर्ण स्थल है।
बागौर की विशेषताएं:
- पाषाण उपकरण: सूक्ष्म पाषाण उपकरण (माइक्रोलिथ)
- शिकार: जंगली पशुओं का शिकार
- संग्रहण: वन्य फलों और कंदमूल का संग्रह
- कला: शैल चित्रकारी के प्रमाण
- आवास: अस्थायी झोपड़ियां
2.4 गिलुंड सभ्यता
गिलुंड राजसमंद जिले में बनास नदी के तट पर स्थित है। यह भी ताम्र युगीन सभ्यता का केंद्र था।
गिलुंड की विशेषताएं:
- नगर योजना: सुनियोजित सड़कें और मकान
- किलेबंदी: चारदीवारी से घिरा शहर
- मृदभांड: लाल और काले रंग के बर्तन
- व्यापार: मनकों का निर्माण और व्यापार
- धातुकर्म: तांबे के उपकरण और आभूषण
| सभ्यता | स्थान | नदी | काल | मुख्य विशेषता |
|---|---|---|---|---|
| कालीबंगा | हनुमानगढ़ | सरस्वती (घग्घर) | 3500-2500 ई.पू. | हड़प्पा सभ्यता |
| आहड़ | उदयपुर | बनास | 3000-1500 ई.पू. | ताम्र युगीन |
| बागौर | भीलवाड़ा | कोठारी | 5000-2500 ई.पू. | मध्य पाषाण कालीन |
| गिलुंड | राजसमंद | बनास | 2800-1800 ई.पू. | ताम्र युगीन |
3. प्राचीन शासक
राजस्थान के तीन मुख्य क्षेत्रों - मेवाड़, मारवाड़ और हाड़ौती में अलग-अलग राजवंशों का शासन रहा है। इन क्षेत्रों के प्राचीन शासकों ने राजस्थान की संस्कृति और सभ्यता को आकार दिया।
3.1 मेवाड़ के प्राचीन शासक
मेवाड़ राजस्थान का सबसे प्राचीन और गौरवशाली राज्य था। इसकी राजधानी चित्तौड़गढ़ थी।
गुहिल वंश (734 ई. - 1303 ई.)
- संस्थापक: गुहादित्य (गुहिल)
- प्रमुख शासक:
- बप्पा रावल (734-753 ई.): मेवाड़ का वास्तविक संस्थापक
- अल्लट (953-973 ई.): आहड़ को राजधानी बनाया
- जैत्र सिंह (1213-1253 ई.): इल्तुतमिश से युद्ध
- रतन सिंह (1302-1303 ई.): अलाउद्दीन के आक्रमण में शहीद
- अरब आक्रमणकारियों को परास्त किया
- एकलिंगजी मंदिर का निर्माण
- गुहिल वंश की नींव रखी
सिसोदिया वंश (1326 ई. के बाद)
- संस्थापक: हम्मीर सिंह
- प्रमुख शासक:
- हम्मीर सिंह (1326-1364 ई.): चित्तौड़ पुनर्विजय
- राणा कुम्भा (1433-1468 ई.): कुम्भलगढ़ निर्माता
- राणा सांगा (1509-1528 ई.): खानवा युद्ध
3.2 मारवाड़ के प्राचीन शासक
मारवाड़ राजस्थान का पश्चिमी भाग है जिसकी राजधानी जोधपुर थी। यहाँ राठौड़ वंश का शासन था।
राठौड़ वंश
- संस्थापक: राव सीहा (1207 ई.)
- मूल स्थान: कन्नौज से आगमन
- प्रमुख शासक:
- राव जोधा (1438-1489 ई.): जोधपुर शहर की स्थापना
- राव मालदेव (1532-1562 ई.): मारवाड़ का विस्तार
- राव चंद्रसेन (1562-1581 ई.): अकबर का विरोधी
- 1459 ई. में जोधपुर शहर की स्थापना
- मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण
- मारवाड़ राज्य का संगठन
3.3 हाड़ौती के प्राचीन शासक
हाड़ौती राजस्थान का दक्षिण-पूर्वी भाग है जिसमें कोटा, बूंदी, झालावाड़ और बारां जिले शामिल हैं।
हाड़ा चौहान वंश
- संस्थापक: देवा हाड़ा (12वीं सदी)
- मुख्य केंद्र: बूंदी
- प्रमुख शासक:
- राव देवा (1241-1282 ई.): बूंदी राज्य की स्थापना
- राव हम्मीर (1402-1423 ई.): मेवाड़ से संधि
- राव सुर्जन (1554-1585 ई.): मुगलों से संधि
| क्षेत्र | राजवंश | संस्थापक | राजधानी | प्रमुख शासक |
|---|---|---|---|---|
| मेवाड़ | गुहिल/सिसोदिया | गुहादित्य | चित्तौड़गढ़ | बप्पा रावल, राणा कुम्भा |
| मारवाड़ | राठौड़ | राव सीहा | जोधपुर | राव जोधा, राव मालदेव |
| हाड़ौती | हाड़ा चौहान | देवा हाड़ा | बूंदी | राव देवा, राव सुर्जन |
4. स्थापत्य और मूर्तिकला
राजस्थान में प्राचीन काल से ही उत्कृष्ट स्थापत्य और मूर्तिकला की परंपरा रही है। यहाँ के मंदिर, किले, महल और मूर्तियां भारतीय कला के अनुपम उदाहरण हैं।
4.1 मंदिर स्थापत्य
राजस्थान के प्राचीन मंदिर नागर शैली के उत्कृष्ट नमूने हैं। यहाँ हिंदू और जैन दोनों धर्मों के मंदिर मिलते हैं।
प्रमुख मंदिर:
- एकलिंगजी मंदिर (उदयपुर):
- 8वीं सदी में बप्पा रावल द्वारा निर्मित
- शिव को समर्पित
- मेवाड़ के शासकों का कुलदेवता
- दिलवाड़ा मंदिर (माउंट आबू):
- 11वीं-13वीं सदी में निर्मित
- जैन तीर्थंकरों को समर्पित
- संगमरमर की अद्भुत नक्काशी
- रणकपुर जैन मंदिर:
- 15वीं सदी में निर्मित
- 1444 स्तंभों का मंदिर
- आदिनाथ को समर्पित
स्थापत्य की विशेषताएं:
- गर्भगृह: मुख्य देवता की मूर्ति
- मंडप: स्तंभों पर आधारित सभा कक्ष
- शिखर: मंदिर का शीर्ष भाग
- तोरण: सुसज्जित प्रवेश द्वार
- प्रदक्षिणा पथ: परिक्रमा मार्ग
4.2 मूर्तिकला
राजस्थान की मूर्तिकला में धार्मिक और लौकिक दोनों विषयों का चित्रण मिलता है। यहाँ की मूर्तियां शिल्पकारों की कुशलता का प्रमाण हैं।
मूर्तिकला की विशेषताएं:
- सामग्री: बलुआ पत्थर, संगमरमर, कांसा
- विषय: देवी-देवता, तीर्थंकर, शासक
- शैली: गुप्तकालीन प्रभाव
- तकनीक: उच्च और निम्न उत्कीर्णन
प्रमुख मूर्तिकला केंद्र:
- किराडू (बाड़मेर): 11वीं सदी के मंदिर
- ओसियां (जोधपुर): 8वीं-12वीं सदी के मंदिर
- जगत (उदयपुर): अम्बिका माता मंदिर
- सोमेश्वर (डूंगरपुर): शिव मंदिर
4.3 दुर्ग स्थापत्य
राजस्थान के दुर्ग भारतीय किला स्थापत्य के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। ये दुर्ग न केवल सुरक्षा प्रदान करते थे बल्कि कलात्मक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं।
प्रमुख दुर्ग:
- चित्तौड़गढ़ दुर्ग:
- 7वीं सदी में निर्मित
- भारत का सबसे बड़ा दुर्ग
- विजय स्तंभ और कीर्ति स्तंभ
- कुम्भलगढ़ दुर्ग:
- राणा कुम्भा द्वारा निर्मित
- 36 किमी लंबी दीवार
- विश्व की दूसरी सबसे लंबी दीवार
- मेहरानगढ़ दुर्ग (जोधपुर):
- राव जोधा द्वारा निर्मित
- 150 मीटर ऊंची पहाड़ी पर
- राजपूत स्थापत्य का उत्कृष्ट नमूना
दुर्ग स्थापत्य की विशेषताएं:
- रणनीतिक स्थिति: पहाड़ियों पर निर्माण
- मजबूत दीवारें: मोटी और ऊंची प्राचीरें
- प्रवेश द्वार: घुमावदार और संकरे रास्ते
- जल व्यवस्था: कुंड और बावड़ियां
- महल: शासकों के आवास
5. प्रश्नोत्तरी
6. निबंधात्मक प्रश्न
राजस्थान में चार प्रमुख प्रागैतिहासिक सभ्यताएं विकसित हुईं - कालीबंगा, आहड़, बागौर और गिलुंड। इनका तुलनात्मक अध्ययन निम्नलिखित है:
कालीबंगा सभ्यता (3500-2500 ई.पू.):
- हड़प्पा सभ्यता का हिस्सा
- सुव्यवस्थित नगर योजना
- विश्व की सबसे पुरानी कृषि के प्रमाण
- अग्नि पूजा की परंपरा
- व्यापारिक संपर्क मेसोपोटामिया तक
आहड़ सभ्यता (3000-1500 ई.पू.):
- ताम्र युगीन सभ्यता
- तांबे का व्यापक उत्पादन और उपयोग
- काले चित्रित मृदभांड की विशेषता
- कृषि और पशुपालन का विकास
- मातृदेवी की उपासना
बागौर सभ्यता (5000-2500 ई.पू.):
- मध्य पाषाण कालीन
- शिकार और संग्रह पर आधारित जीवन
- सूक्ष्म पाषाण उपकरणों का उपयोग
- अस्थायी निवास
- शैल चित्रकारी के प्रमाण
गिलुंड सभ्यता (2800-1800 ई.पू.):
- ताम्र युगीन सभ्यता
- किलेबंद शहर
- मनका निर्माण का केंद्र
- व्यापारिक महत्व
- उन्नत धातुकर्म
तुलनात्मक विश्लेषण:
- कालक्रम: बागौर सबसे प्राचीन, फिर कालीबंगा, आहड़ और गिलुंड
- तकनीकी विकास: पाषाण से ताम्र युग तक का विकास
- जीवनशैली: शिकार-संग्रह से कृषि-पशुपालन तक
- नगरीकरण: कालीबंगा में सर्वाधिक विकसित
- कला-संस्कृति: धार्मिक परंपराओं का विकास
मेवाड़ राजस्थान का सबसे प्राचीन और गौरवशाली राज्य था। यहाँ के प्राचीन शासकों ने न केवल राजनीतिक स्थिरता प्रदान की बल्कि कला, संस्कृति और धर्म के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
बप्पा रावल (734-753 ई.):
- राजनीतिक उपलब्धियां: अरब आक्रमणकारियों को परास्त कर राजपूत शक्ति की स्थापना
- धार्मिक कार्य: एकलिंगजी मंदिर का निर्माण, मेवाड़ के कुलदेवता की स्थापना
- वंशावली: गुहिल वंश की मजबूत नींव
- सांस्कृतिक योगदान: हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा
अल्लट (953-973 ई.):
- आहड़ को राजधानी बनाकर प्रशासनिक केंद्रीकरण
- मंदिर निर्माण में योगदान
- राज्य विस्तार की नीति
जैत्र सिंह (1213-1253 ई.):
- दिल्ली सुल्तान इल्तुतमिश के विरुद्ध सफल प्रतिरोध
- राजपूत एकता के लिए प्रयास
- मेवाड़ की स्वतंत्रता की रक्षा
रतन सिंह (1302-1303 ई.):
- अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण का वीरतापूर्वक सामना
- पद्मिनी के साथ जौहर की वीरगाथा
- राजपूत गौरव का प्रतीक
हम्मीर सिंह (1326-1364 ई.):
- चित्तौड़ का पुनर्विजय और सिसोदिया वंش की स्थापना
- मुहम्मद बिन तुगलक के विरुद्ध सफल युद्ध
- मेवाड़ की पुनर्स्थापना
राणा कुम्भा (1433-1468 ई.):
- स्थापत्य: कुम्भलगढ़ दुर्ग, विजय स्तंभ का निर्माण
- साहित्य: संस्कृत और हिंदी साहित्य का संरक्षण
- संगीत: संगीत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान
- राज्य विस्तार: मालवा और गुजरात पर विजय
सामूहिक योगदान:
- हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा
- मंदिर स्थापत्य का विकास
- राजपूत वीरता की परंपरा
- कला और साहित्य का संरक्षण
- स्वतंत्रता की भावना का विकास
राजस्थान के प्राचीन मंदिर स्थापत्य भारतीय कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। ये मंदिर नागर शैली के अंतर्गत आते हैं और अपनी विशिष्ट कलात्मक परंपरा रखते हैं।
स्थापत्य की मूलभूत विशेषताएं:
1. मंदिर के मुख्य अंग:
- गर्भगृह: मुख्य देवता की मूर्ति स्थापना
- अंतराल: गर्भगृह और मंडप के बीच का स्थान
- मंडप: स्तंभों पर आधारित सभा कक्ष
- अर्धमंडप: प्रवेश कक्ष
- प्रदक्षिणा पथ: परिक्रमा मार्ग
2. शिखर की विशेषताएं:
- भूमिज शैली के शिखर
- आमलक और कलश से सुसज्जित
- क्रमिक रूप से छोटे होते गए भाग
- वक्रता और सुंदरता का संयोजन
प्रमुख मंदिर और उनकी विशेषताएं:
एकलिंगजी मंदिर (उदयपुर):
- 8वीं सदी का निर्माण
- पिरामिडनुमा शिखर
- चतुर्मुखी शिवलिंग
- मेवाड़ी स्थापत्य का आदर्श
दिलवाड़ा मंदिर (माउंट आबू):
- सफेद संगमरमर का उपयोग
- अत्यधिक बारीक नक्काशी
- रंगमंडप की छत पर कमल की नक्काशी
- प्रत्येक स्तंभ में अलग डिज़ाइन
रणकपुर जैन मंदिर:
- 1444 स्तंभों का अद्भुत संयोजन
- प्रत्येक स्तंभ में भिन्न कारीगरी
- प्रकाश और छाया का खेल
- गणितीय सटीकता
कलात्मक विशेषताएं:
1. मूर्तिकला:
- देवी-देवताओं की सजीव मूर्तियां
- अप्सराओं और गंधर्वों के चित्रण
- फूल-पत्तियों की प्राकृतिक नक्काशी
- ज्यामितीय अलंकरण
2. स्तंभ कला:
- अष्टकोणीय और वृत्ताकार स्तंभ
- फूलदान के आकार के स्तंभ शीर्ष
- मध्य भाग में मूर्तियों का अलंकरण
- कोष्ठक और वितान की सुंदरता
3. तोरण और द्वार:
- अलंकृत प्रवेश द्वार
- शाखाओं में देवी-देवताओं की मूर्तियां
- मकरतोरण का प्रयोग
- द्वारपाल की मूर्तियां
तकनीकी विशेषताएं:
- सामग्री: स्थानीय बलुआ पत्थर, संगमरमर का प्रयोग
- निर्माण तकनीक: चूना-सुर्खी का प्रयोग, बिना सीमेंट का निर्माण
- अनुपात: गणितीय अनुपात का पालन
- वास्तु: वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन
प्रभाव और महत्व:
- भारतीय मंदिर स्थापत्य में अग्रणी स्थान
- शिल्पकारों की पीढ़ियों का विकास
- धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना का विकास
- पर्यटन और विश्व धरोहर का दर्जा
राजस्थान के दुर्ग भारतीय किला स्थापत्य के सर्वोत्तम उदाहरण हैं। ये न केवल सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण थे बल्कि स्थापत्य कला के दृष्टिकोण से भी अद्वितीय हैं।
दुर्ग स्थापत्य की मूलभूत विशेषताएं:
1. भौगोलिक स्थिति:
- पर्वतीय दुर्ग: पहाड़ियों की चोटी पर निर्मित
- जल दुर्ग: झील या नदी के किनारे
- मरुस्थलीय दुर्ग: रेगिस्तान में स्थित
- मैदानी दुर्ग: समतल भूमि पर निर्मित
2. रक्षात्मक संरचना:
- प्राचीर: मोटी और ऊंची दीवारें
- बुर्ज: नियमित अंतराल पर निगरानी मीनारें
- कंगूरे: दीवारों के ऊपर दांतेदार संरचना
- खाई: दुर्ग के चारों ओर गहरी खाई
प्रमुख दुर्ग और उनकी विशेषताएं:
चित्तौड़गढ़ दुर्ग:
- आकार: 700 एकड़ में फैला, भारत का सबसे बड़ा दुर्ग
- इतिहास: 7वीं सदी से निरंतर विकास
- मुख्य संरचनाएं:
- विजय स्तंभ (कीर्ति स्तंभ) - 37 मीटर ऊंचा
- कीर्ति स्तंभ (जैन स्तंभ) - 22 मीटर ऊंचा
- राणा कुम्भा का महल
- पद्मिनी महल
- गौमुख कुंड
- धार्मिक स्थल: 65 मंदिर और मठ
कुम्भलगढ़ दुर्ग:
- दीवार: 36 किलोमीटर लंबी, विश्व की दूसरी सबसे लंबी दीवार
- ऊंचाई: समुद्रतल से 1914 मीटर की ऊंचाई
- निर्माणकर्ता: राणा कुम्भा (1443-1458 ई.)
- विशेषता: अभेद्य दुर्ग, केवल एक बार पराजित
- मुख्य संरचनाएं: बादल महल, कुम्भा स्वामी मंदिर
मेहरानगढ़ दुर्ग (जोधपुर):
- स्थिति: 150 मीटर ऊंची पहाड़ी पर
- निर्माणकर्ता: राव जोधा (1459 ई.)
- विशेषताएं:
- लाल बलुआ पत्थर का निर्माण
- सात मुख्य द्वार
- मोती महल, फूल महल, शीश महल
- संग्रहालय में दुर्लभ वस्तुओं का संग्रह
तारागढ़ दुर्ग (अजमेर):
- राजस्थान का सबसे प्राचीन दुर्ग
- 11वीं सदी में निर्मित
- "राजस्थान का जिब्राल्टर" उपनाम
- तीन मुख्य द्वार और विशाल जल भंडार
स्थापत्य की तकनीकी विशेषताएं:
1. निर्माण सामग्री:
- स्थानीय पत्थर का उपयोग
- चूना-सुर्खी की जोड़ाई
- लकड़ी और लोहे का संयोजन
2. जल प्रबंधन:
- वर्षा जल संचयन प्रणाली
- बावड़ियां और कुंड
- भूमिगत जल भंडारण
- जल वितरण की नाली प्रणाली
3. सुरक्षा व्यवस्था:
- घुमावदार और संकरे रास्ते
- झूठे दरवाजे और गुप्त मार्ग
- तेल डालने के लिए छिद्र
- गुप्त सुरंगें
महत्व और प्रभाव:
1. सामरिक महत्व:
- आक्रमणकारियों से सुरक्षा
- व्यापारिक मार्गों पर नियंत्रण
- क्षेत्रीय शक्ति का प्रदर्शन
2. सांस्कृतिक महत्व:
- राजपूत वीरता का प्रतीक
- कला और स्थापत्य का संरक्षण
- धार्मिक परंपराओं का केंद्र
3. आधुनिक महत्व:
- विश्व धरोहर का दर्जा
- पर्यटन उद्योग का आधार
- ऐतिहासिक अनुसंधान का केंद्र
- फिल्म उद्योग के लिए स्थान
संरक्षण चुनौतियां:
- मौसम का प्रभाव
- पर्यटन दबाव
- आधुनिकीकरण का प्रभाव
- संरक्षण की तकनीकी समस्याएं
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राजस्थान का इतिहास – प्रागैतिहासिक एवं प्राचीन काल (PYQ + Answers)
Exam focus for RPSC/RAS • Quick facts + MCQs with answers
Quick Facts
- कालीबंगा (हनुमानगढ़) – हड़प्पा/सिन्धु सभ्यता स्थल; आग की हवन‑वेदिका, प्लाउ (हल) के चिन्ह, ईंटों के किलेबंदी अवशेष।
- आहड़/ढूंढाड़ी (उदयपुर) – कॉपर‑हॉरिजन संस्कृति; ताम्र, काली‑लाल मृदभांड (Black‑and‑Red ware) पर सफेद पेंट।
- बागौर (भीलवाड़ा) – बनास नदी तट; मेसोलिथिक से Chalcolithic; पशुपालन/अनाज के साक्ष्य।
- गिलुंड (राजसमंद) – आहड़ संस्कृति का विशाल केन्द्र; सील‑इम्प्रेशन, भण्डारण संरचनाएँ।
- लोथल/घग्गर‑हाकड़ा कड़ी – सरस्वती‑घग्गर प्रवाह क्षेत्र की कड़ियाँ कालीबंगा से जुड़ती हैं।
- PGW (Painted Grey Ware) – शूरवीर महाजनपद काल की मृदभांड पर धूसर रंग; उत्तरी‑पूर्वी राजस्थान में साक्ष्य।
- प्राचीन जनपद – मत्स्य (जयपुर‑आलवर‑भरतपुर), शूरसेन (धौलपुर/भरतपुर से सटा क्षेत्र), मालव प्रभाव (हाड़ौती)।
- आरंभिक राज्यों के केन्द्र – नाग, यदु/आभीर परंपरा; मेवाड़‑मारवाड़ में प्रारंभिक गण/जन।
- कला‑स्थापत्य – बौद्ध गुफा‑विहार के साक्ष्य सीमित; प्रारंभिक शिलालेख/मोहरें; पशु‑आकृतियाँ।
PYQ‑Style MCQs (Answers & Explanations)
-
कालीबंगा उत्खनन में निम्न में से कौन‑सा विशिष्ट साक्ष्य मिला?
- लौह गलन भट्ठी
- हवन‑वेदिका एवं हल के निशान
- शंखोद्योग के अवशेष
- पत्थर की अश्व आकृतियाँ
Answer: B
कालीबंगा (Ghaggar तट) पर अग्निवेदिका/यज्ञ‑पीठ और हल चलाने के समांतर निशान प्रमुख साक्ष्य हैं।
-
आहड़ संस्कृति (उदयपुर) की एक प्रमुख विशेषता है—
- Painted Grey Ware
- Black‑and‑Red Ware पर सफेद पेंट
- Megalithic Stone Circles
- Northern Black Polished Ware
Answer: B
आहड़/ढूंढाड़ी संस्कृति में काला‑लाल मृदभांड पर white‑paint अलंकरण प्रसिद्ध है; ताम्र उपयोग भी विशेषता है।
-
बागौर (भीलवाड़ा) स्थल किस नदी के किनारे स्थित है?
- घग्गर
- लूणी
- बनास
- चम्बल
Answer: C
बागौर बनास नदी तट पर—यहाँ Mesolithic से Chalcolithic संक्रमण के साक्ष्य मिलते हैं।
-
गिलुंड (राजसमंद) किस सांस्कृतिक धारा से सम्बद्ध है?
- हड़प्पा परवर्ती PGW
- आहड़/चाल्कोलिथिक
- मेगालिथिक
- NBPW
Answer: B
गिलुंड आहड़‑चाल्कोलिथिक केन्द्र है; यहाँ सील‑इम्प्रेशन एवं भण्डारण संरचनाएँ मिलीं।
-
निम्न युग्म में सही समन्वय चुनें:
- PGW — महाजनपद/प्रारंभिक लौह काल
- NBPW — हड़प्पा सभ्यता
- Megalith — आहड़ संस्कृति
- Black‑and‑Red Ware — मौर्य शाही शैली
Answer: A
PGW धूसर चित्रित मृदभांड—लौह‑युग/महाजनपद काल सूचक।
-
मत्स्य महाजनपद का मुख्य क्षेत्र आज के किस भाग से अधिक मेल खाता है?
- जैसलमेर‑बाड़मेर
- जयपुर‑आलवर‑भरतपुर बेल्ट
- उदयपुर‑डूंगरपुर
- कोटा‑बरां
Answer: B
मत्स्य महाजनपद का क्षेत्र वर्तमान जयपुर‑आलवर‑भरतपुर‑सीकर हिस्सों से मेल खाता है।
-
निम्न में से किस स्थल पर fire altars के साथ सुदृढ़ किलेबंदी का साक्ष्य प्रमुख है?
- बागौर
- कालीबंगा
- आहड़
- गिलुंड
Answer: B
कालीबंगा—आग्निवेदिका, किलेबंदी, नियोजित नगर विन्यास।
-
आहड़ संस्कृति का मुख्य धातु है—
- लोहा
- ताम्र
- सोना
- सीसा
Answer: B
आहड़ Chalcolithic—ताम्र आधारित; ताम्र उपकरण/आभूषण प्रचुर।
-
निम्न जोड़ी गलत है:
- कालीबंगा — घग्गर
- बागौर — बनास
- आहड़ — चम्बल
- गिलुंड — बनास बेसिन
Answer: C
आहड़ उदयपुर क्षेत्र में आयड़/बेड़च नदी तंत्र के पास—चम्बल नहीं।
-
निम्न में से कौन‑सा कथन सही है?
- PGW सीधा हड़प्पा‑पूर्व काल से सम्बन्धित है।
- गिलुंड में NBPW सर्वाधिक मिलता है।
- बागौर में पशुपालन एवं अनाज भंडारण के साक्ष्य हैं।
- कालीबंगा केवल कब्रिस्तानों के लिए प्रसिद्ध है।
Answer: C
बागौर में domestic animal bones, दाने/अनाज के साक्ष्य मिले; A, B, D तथ्यात्मक रूप से गलत/आंशिक हैं।
-
‘कॉपर हॉरिजन’ पद सामान्यतः किस सांस्कृतिक क्षेत्र का द्योतक है?
- आहड़ व निकटवर्ती चाल्कोलिथिक
- मेगालिथिक दक्षिण
- हड़प्पा शहरी केन्द्र
- गुप्तकाल
Answer: A
राजस्थान‑मेवाड़ व समीपवर्ती क्षेत्रों की ताम्र संस्कृति को Copper Horizon कहा जाता है।
-
निम्न में से कौन‑सा स्थल ‘सील‑इम्प्रेशन’ के कारण चर्चित है?
- गिलुंड
- आहड़
- बागौर
- कालीबंगा
Answer: A
गिलुंड से बड़ी संख्या में seal impressions व भंडारण संरचनाएँ मिलीं।
Note: PYQ‑style प्रश्न RPSC/State‑PSC पैटर्न के अनुरूप संकलित हैं।
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