भारतीय राजनीति – मौलिक अधिकार: अनुच्छेद 12 से 35 तक, अधिकार व अपवाद

| अगस्त 11, 2025
भारतीय राजनीति - मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 12 से 35) | Sarkari Service Prep

भारतीय राजनीति
मौलिक अधिकार
(अनुच्छेद 12 से 35)

1. परिचय

मौलिक अधिकार भारतीय संविधान का हृदय हैं। ये अधिकार व्यक्ति की गरिमा और स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं। भारतीय संविधान के भाग III में अनुच्छेद 12 से 35 तक मौलिक अधिकारों का वर्णन है। इन अधिकारों को न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय बनाया गया है।

डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने अनुच्छेद 32 को "संविधान का हृदय और आत्मा" कहा है।

मौलिक अधिकारों की विशेषताएं:

  • न्यायसंगत अधिकार: न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय
  • निरपेक्ष नहीं: युक्तिसंगत निर्बंधन संभव
  • नकारात्मक अधिकार: राज्य को कुछ न करने को कहते हैं
  • संवैधानिक सुरक्षा: संसद भी इन्हें समाप्त नहीं कर सकती

मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण:

  1. समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
  2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)
  4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)
  5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30)
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)

2. राज्य की परिभाषा और सामान्य सिद्धांत (अनुच्छेद 12-13)

अनुच्छेद 12: राज्य की परिभाषा

अनुच्छेद 12: इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, "राज्य" के अंतर्गत भारत की सरकार और संसद तथा राज्यों की सरकार और विधानमंडल तथा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी हैं।

राज्य के घटक:

  1. भारत सरकार और संसद
  2. राज्य सरकार और विधानमंडल
  3. स्थानीय प्राधिकरण: नगर निगम, पंचायतें, कैंटोनमेंट बोर्ड
  4. अन्य प्राधिकरण: सरकारी नियंत्रण वाली संस्थाएं
महत्वपूर्ण मामला: राजस्थान राज्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1977) - सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि न्यायपालिका भी राज्य की परिभाषा में आती है।

अनुच्छेद 13: मौलिक अधिकारों से असंगत विधियां

अनुच्छेद 13(1): इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त सभी विधियां इस भाग के उपबंधों से असंगत होने की मात्रा में शून्य होंगी।

अनुच्छेद 13(2): राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा जो इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छीनती है या न्यून करती है।

मुख्य सिद्धांत:

  • पूर्व-संवैधानिक विधियां: मौलिक अधिकारों से असंगत भाग शून्य
  • उत्तर-संवैधानिक विधियां: मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाली शून्य
  • न्यायिक समीक्षा: न्यायालय विधियों की वैधता परखता है
अपवाद: अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन इस नियम से मुक्त हैं (केशवानंद भारती मामले के बाद सीमित रूप में)।

3. समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)

अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समता

अनुच्छेद 14: राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।

दो मुख्य सिद्धांत:

  1. विधि के समक्ष समता (Rule of Law): कानून के सामने सभी समान
  2. विधियों का समान संरक्षण (Equal Protection): समान परिस्थितियों में समान व्यवहार

युक्तिसंगत वर्गीकरण:

  • वर्गीकरण तर्कसंगत आधार पर हो
  • कानून के उद्देश्य से संबंधित हो
  • मनमानी न हो
महत्वपूर्ण मामला: ई.पी. रॉयप्पा बनाम तमिलनाडु राज्य (1974) - समता का नया आयाम, मनमानेपन का निषेध।

अनुच्छेद 15: भेदभाव का प्रतिषेध

अनुच्छेद 15(1): राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।

निषिद्ध आधार:

  1. धर्म
  2. मूलवंश
  3. जाति
  4. लिंग
  5. जन्म स्थान

सकारात्मक भेदभाव (अनुच्छेद 15(3) और 15(4)):

  • अनुच्छेद 15(3): महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष उपबंध
  • अनुच्छेद 15(4): सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष उपबंध
  • अनुच्छेद 15(5): शिक्षण संस्थानों में आरक्षण (93वां संशोधन, 2005)

अनुच्छेद 16: लोक नियोजन में अवसर की समता

अनुच्छेद 16(1): राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समता होगी।

मुख्य उपबंध:

  • अनुच्छेद 16(2): भेदभाव का प्रतिषेध
  • अनुच्छेद 16(3): निवास की शर्त (संसद कानून बना सकती है)
  • अनुच्छेद 16(4): पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण
  • अनुच्छेद 16(4A): अनुसूचित जाति/जनजाति में प्रोन्नति में आरक्षण (77वां संशोधन)
  • अनुच्छेद 16(4B): पदोन्नति में आरक्षण लाभ का अगले वर्ष तक बना रहना (81वां संशोधन)
  • अनुच्छेद 16(5): धार्मिक संस्थानों के लिए विशेष उपबंध

अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का अंत

अनुच्छेद 17: "अस्पृश्यता" का अंत किया जाता है और उसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध है। "अस्पृश्यता" से उपजे किसी निर्योग्यता को लागू करना एक अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।

संबंधित कानून:

  • नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 (पूर्व में अस्पृश्यता अपराध अधिनियम)
  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989

अनुच्छेद 18: उपाधियों का अंत

अनुच्छेद 18(1): राज्य कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा सिवाय सेना या विद्या संबंधी सम्मान के।
अनुच्छेद 18(2): भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा।

अपवाद:

  • सैन्य सम्मान: परमवीर चक्र, अशोक चक्र आदि
  • विद्या संबंधी सम्मान: भारत रत्न, पद्म पुरस्कार आदि
विदेशी उपाधि: राष्ट्रपति की अनुमति से विदेशी सम्मान स्वीकार किया जा सकता है।

4. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)

अनुच्छेद 19: वाक् स्वातंत्र्य आदि विषयक अधिकार

अनुच्छेद 19(1): सभी नागरिकों को निम्नलिखित अधिकार होंगे:
(a) वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
(b) शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन करने की स्वतंत्रता
(c) संगम या संघ बनाने की स्वतंत्रता
(d) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण की स्वतंत्रता
(e) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास और बसने की स्वतंत्रता
(g) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने की स्वतंत्रता

मूल में 7 स्वतंत्रताएं थीं:

  • अनुच्छेद 19(1)(f) - संपत्ति का अधिकार (44वें संशोधन, 1978 द्वारा हटाया गया)

युक्तिसंगत निर्बंधन:

(a) वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निर्बंधन:
  • भारत की संप्रभुता और अखंडता
  • राज्य की सुरक्षा
  • विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
  • लोक व्यवस्था
  • शिष्टाचार या सदाचार
  • न्यायालय की अवमानना
  • मानहानि
  • अपराध प्रेरणा
(g) व्यापार और कारबार की स्वतंत्रता पर निर्बंधन:
  • लोक हित में
  • किसी व्यवसाय के लिए योग्यता निर्धारण
  • राज्य द्वारा एकाधिकार
महत्वपूर्ण मामला: मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) - प्रक्रिया की उचितता का सिद्धांत।

अनुच्छेद 20: अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण

अनुच्छेद 20: तीन मुख्य सुरक्षा उपाय:
(1) भूतलक्षी आपराधिक विधि से संरक्षण
(2) दोहरे दंड से संरक्षण
(3) स्वयं के विरुद्ध साक्षी बनने के लिए बाध्य न होना

तीन सुरक्षाएं:

  1. Ex-post facto विधि का निषेध: कार्य के बाद बने कानून से दंड नहीं
  2. दोहरा दंड का निषेध: एक ही अपराध के लिए दो बार दंड नहीं
  3. आत्म-अभिशंसन से संरक्षण: स्वयं के विरुद्ध गवाही देने के लिए मजबूर नहीं

अनुच्छेद 21: प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण

अनुच्छेद 21: किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।

न्यायालय द्वारा विस्तारित अधिकार:

  • गोपनीयता का अधिकार (के.एस. पुत्तस्वामी बनाम भारत संघ, 2017)
  • शिक्षा का अधिकार (मोहिनी जैन मामला, 1992)
  • स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार
  • आजीविका का अधिकार
  • स्वास्थ्य का अधिकार
  • आश्रय का अधिकार
  • कानूनी सहायता का अधिकार

अनुच्छेद 21A: शिक्षा का अधिकार

अनुच्छेद 21A: राज्य छह से चौदह वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा। (86वां संशोधन, 2002 द्वारा जोड़ा गया)

संबंधित कानून:

  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009
  • निजी स्कूलों में 25% आरक्षण

अनुच्छेद 22: गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण

अनुच्छेद 22: गिरफ्तारी और निरोध के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है।

सामान्य गिरफ्तारी में अधिकार:

  1. गिरफ्तारी के कारण बताने का अधिकार
  2. वकील से सलाह लेने का अधिकार
  3. 24 घंटे में मैजिस्ट्रेट के सामने पेश करने का अधिकार

निवारक निरोध में अधिकार:

  • निरोध के कारण बताना (5 दिन के बाद)
  • सलाहकार बोर्ड का गठन (3 महीने के भीतर)
  • अधिकतम निरोध अवधि की सीमा
अपवाद: शत्रु विदेशी पर ये अधिकार लागू नहीं होते।

5. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)

अनुच्छेद 23: मानव के दुर्व्यापार और बलात् श्रम का प्रतिषेध

अनुच्छेद 23(1): मनुष्य का दुर्व्यापार और बेगार तथा इसी प्रकार का अन्य बलात् श्रम निषिद्ध है।
अनुच्छेद 23(2): राज्य लोक प्रयोजनों के लिए अनिवार्य सेवा आरोपित कर सकता है।

निषिद्ध प्रथाएं:

  • मानव तस्करी: व्यक्तियों की खरीद-बिक्री
  • बेगार: बिना पारिश्रमिक के काम
  • बंधुआ मजदूरी: ऋण के एवज में मजदूरी

अपवाद:

  • राष्ट्रीय सेवा योजना
  • अनिवार्य सैन्य सेवा
  • प्राकृतिक आपदा में सेवा

अनुच्छेद 24: कारखानों आदि में बच्चों के नियोजन का प्रतिषेध

अनुच्छेद 24: चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य खतरनाक काम में नहीं लगाया जाएगा।

संबंधित कानून:

  • बाल श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986
  • बाल श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2016

6. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)

अनुच्छेद 25: अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार की स्वतंत्रता

अनुच्छेद 25(1): लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अंतरात्मा की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान अधिकार है।

मुख्य तत्व:

  • अंतरात्मा की स्वतंत्रता: आंतरिक विश्वास की स्वतंत्रता
  • धर्म मानना: धार्मिक विश्वास रखना
  • धर्म का आचरण: धार्मिक कर्मकांड करना
  • धर्म का प्रचार: अपने धर्म का प्रसार करना

निर्बंधन:

  • लोक व्यवस्था
  • सदाचार
  • स्वास्थ्य
  • राज्य द्वारा सामाजिक कल्याण और सुधार की विधियां
महत्वपूर्ण मामला: शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी बनाम सोम नाथ दास (2000) - धर्म के आवश्यक अंग की अवधारणा।

अनुच्छेद 26: धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता

अनुच्छेद 26: प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को निम्नलिखित अधिकार हैं:
(a) धार्मिक संस्थानों की स्थापना और उनका पोषण
(b) अपने धार्मिक कार्यों का प्रबंध
(c) जंगम और स्थावर संपत्ति का अर्जन और स्वामित्व
(d) ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रशासन

अनुच्छेद 27: किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रता

अनुच्छेद 27: कोई भी व्यक्ति किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृद्धि या पोषण के लिए कर देने के लिए बाध्य नहीं होगा।

अनुच्छेद 28: कुछ शिक्षा संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता

अनुच्छेद 28(1): राज्य निधि से पूर्णतः पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।
अनुच्छेद 28(3): राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त या सहायता प्राप्त शिक्षा संस्था में कोई व्यक्ति धार्मिक शिक्षा लेने या उपासना में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं होगा।

7. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30)

अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण

अनुच्छेद 29(1): भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।
अनुच्छेद 29(2): कोई भी नागरिक राज्य द्वारा पोषित या राज्य निधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 30: शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार

अनुच्छेद 30(1): धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
अनुच्छेद 30(2): शिक्षा संस्थानों को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में है।

अल्पसंख्यक की परिभाषा:

  • धार्मिक अल्पसंख्यक: मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन
  • भाषाई अल्पसंख्यक: राज्य में बोली जाने वाली अल्पसंख्यक भाषाएं
महत्वपूर्ण मामला: टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य (2002) - अल्पसंख्यक संस्थानों के अधिकारों का विस्तार।

8. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)

अनुच्छेद 32: संवैधानिक उपचारों का अधिकार

अनुच्छेद 32: इस अनुच्छेद में प्रत्याभूत अधिकार को डॉ. अंबेडकर ने "संविधान का हृदय और आत्मा" कहा है।

मुख्य उपबंध:

  • अनुच्छेद 32(1): मौलिक अधिकारों को प्रवर्तित कराने का अधिकार
  • अनुच्छेद 32(2): सर्वोच्च न्यायालय को रिट जारी करने की शक्ति
  • अनुच्छेद 32(3): संसद को अन्य न्यायालयों को भी रिट शक्ति देने का अधिकार
  • अनुच्छेद 32(4): इस अधिकार को स्थगित नहीं किया जा सकता

पांच प्रकार की रिट:

  1. बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus): अवैध निरोध से मुक्ति
  2. परमादेश (Mandamus): संवैधानिक कर्तव्य पालन का आदेश
  3. प्रतिषेध (Prohibition): अधीनस्थ न्यायालय को कार्यवाही से रोकना
  4. उत्प्रेषण (Certiorari): निचली अदालत के निर्णय को रद्द करना
  5. अधिकार पृच्छा (Quo-Warranto): पद पर अवैध कब्जे की जांच

अनुच्छेद 226:

उच्च न्यायालयों को भी रिट जारी करने की शक्ति प्राप्त है, लेकिन यह मौलिक अधिकार नहीं है।

9. विशेष उपबंध (अनुच्छेद 33-35)

अनुच्छेद 33: सशस्त्र बलों आदि पर लागू होने में उपांतरण करने की संसद की शक्ति

अनुच्छेद 33: संसद विधि द्वारा निर्धारित कर सकती है कि इस भाग के द्वारा प्रदत्त अधिकार सशस्त्र बलों, अर्धसैनिक बलों, पुलिस बलों, खुफिया एजेंसियों के सदस्यों पर किस सीमा तक लागू होंगे।

अनुच्छेद 34: सेना विधि प्रवृत्त होने पर निर्बंधन

अनुच्छेद 34: जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत्त है तब इस भाग के द्वारा प्रदत्त अधिकारों पर निर्बंधन लगाया जा सकता है।

अनुच्छेद 35: इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए विधान

अनुच्छेद 35: केवल संसद को ही इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए विधि बनाने का अधिकार है, राज्य विधानमंडल को नहीं।
अनुच्छेद विषय मुख्य बिंदु महत्वपूर्ण मामला
12 राज्य की परिभाषा सरकार + स्थानीय प्राधिकरण राजस्थान राज्य बनाम यूनियन
14 समता का अधिकार विधि के समक्ष समता ई.पी. रॉयप्पा मामला
19 छह स्वतंत्रताएं वाक् स्वतंत्रता मुख्य मेनका गांधी मामला
21 जीवन और स्वतंत्रता सबसे व्यापक अधिकार पुत्तस्वामी मामला (गोपनीयता)
32 संवैधानिक उपचार संविधान का हृदय मिनर्वा मिल्स मामला

10. प्रश्नोत्तरी

प्रश्न 1: मौलिक अधिकार संविधान के किस भाग में वर्णित हैं?
उत्तर: मौलिक अधिकार भारतीय संविधान के भाग III में अनुच्छेद 12 से 35 तक वर्णित हैं।
प्रश्न 2: अनुच्छेद 32 को क्या कहा जाता है?
उत्तर: अनुच्छेद 32 को डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने "संविधान का हृदय और आत्मा" कहा है।
प्रश्न 3: अनुच्छेद 19 में मूल रूप से कितनी स्वतंत्रताएं थीं?
उत्तर: अनुच्छेद 19 में मूल रूप से 7 स्वतंत्रताएं थीं। संपत्ति का अधिकार 44वें संशोधन (1978) द्वारा हटा दिया गया।
प्रश्न 4: अस्पृश्यता का उन्मूलन किस अनुच्छेद में है?
उत्तर: अस्पृश्यता का उन्मूलन अनुच्छेद 17 में वर्णित है।
प्रश्न 5: शिक्षा का अधिकार किस संशोधन द्वारा जोड़ा गया?
उत्तर: शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21A) 86वें संविधान संशोधन (2002) द्वारा जोड़ा गया।
प्रश्न 6: रिट कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर: रिट पांच प्रकार की होती हैं: बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण, और अधिकार पृच्छा।
प्रश्न 7: मौलिक अधिकारों की कौन सी विशेषता है?
उत्तर: मौलिक अधिकार न्यायसंगत (Justiciable) हैं, अर्थात न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय हैं।
प्रश्न 8: अनुच्छेद 15(4) क्या प्रावधान करता है?
उत्तर: अनुच्छेद 15(4) सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष उपबंध का प्रावधान करता है।
प्रश्न 9: धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार कौन से अनुच्छेदों में है?
उत्तर: धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 25 से 28 तक वर्णित है।
प्रश्न 10: 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए कौन सा अनुच्छेद सुरक्षा प्रदान करता है?
उत्तर: अनुच्छेद 24 चौदह वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखानों में काम करने से सुरक्षा प्रदान करता है।
प्रश्न 11: मेनका गांधी मामले में कौन सा सिद्धांत स्थापित हुआ?
उत्तर: मेनका गांधी मामले (1978) में "प्रक्रिया की उचितता" (Due Process of Law) का सिद्धांत स्थापित हुआ।
प्रश्न 12: उपाधियों के अंत का प्रावधान किस अनुच्छेद में है?
उत्तर: उपाधियों के अंत का प्रावधान अनुच्छेद 18 में है।
प्रश्न 13: अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक अधिकार किस अनुच्छेद में हैं?
उत्तर: अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक अधिकार अनुच्छेद 29 और 30 में वर्णित हैं।
प्रश्न 14: भूतलक्षी आपराधिक कानून का निषेध किस अनुच्छेद में है?
उत्तर: भूतलक्षी आपराधिक कानून का निषेध अनुच्छेद 20 में वर्णित है।
प्रश्न 15: गोपनीयता का अधिकार किस मामले में स्थापित हुआ?
उत्तर: गोपनीयता का अधिकार के.एस. पुत्तस्वामी बनाम भारत संघ (2017) मामले में स्थापित हुआ।
प्रश्न 16: बंधुआ मजदूरी का निषेध किस अनुच्छेद में है?
उत्तर: बंधुआ मजदूरी का निषेध अनुच्छेद 23 में वर्णित है।
प्रश्न 17: संपत्ति का अधिकार कब हटाया गया?
उत्तर: संपत्ति का अधिकार 44वें संविधान संशोधन (1978) द्वारा मौलिक अधिकारों से हटाकर अनुच्छेद 300A में कानूनी अधिकार बनाया गया।
प्रश्न 18: वाक् स्वतंत्रता पर कितने निर्बंधन लगाए जा सकते हैं?
उत्तर: वाक् स्वतंत्रता पर 8 आधारों पर युक्तिसंगत निर्बंधन लगाए जा सकते हैं।
प्रश्न 19: सशस्त्र बलों पर मौलिक अधिकारों के संबंध में कौन सा अनुच्छेद है?
उत्तर: अनुच्छेद 33 सशस्त्र बलों पर मौलिक अधिकारों के संशोधन की संसद की शक्ति के बारे में है।
प्रश्न 20: धर्म के आवश्यक अंग का सिद्धांत किस मामले में स्थापित हुआ?
उत्तर: धर्म के आवश्यक अंग का सिद्धांत शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी बनाम सोम नाथ दास (2000) मामले में स्थापित हुआ।

11. निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1: मौलिक अधिकारों की विशेषताओं का वर्णन करते हुए इनकी सीमाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:

भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार लोकतांत्रिक व्यवस्था की आधारशिला हैं। ये अधिकार व्यक्ति की गरिमा और स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं तथा सरकार की निरंकुशता पर नियंत्रण रखते हैं।

मौलिक अधिकारों की विशेषताएं:

1. न्यायसंगत प्रकृति:

  • न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय
  • उल्लंघन की स्थिति में न्यायालय से सुरक्षा
  • रिट जारी करने की शक्ति

2. संवैधानिक सुरक्षा:

  • संविधान में स्पष्ट रूप से वर्णित
  • सामान्य कानून द्वारा संशोधन संभव नहीं
  • केवल संविधान संशोधन द्वारा परिवर्तन

3. नकारात्मक अधिकार:

  • मुख्यतः राज्य को कुछ न करने के निर्देश
  • राज्य की शक्ति पर नियंत्रण
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा

4. सार्वभौमिक प्रकृति:

  • सभी नागरिकों को समान रूप से प्राप्त
  • कुछ अधिकार विदेशियों को भी
  • व्यक्ति की गरिमा का आधार

मौलिक अधिकारों की सीमाएं:

1. निरपेक्ष नहीं:

  • युक्तिसंगत निर्बंधन संभव
  • राष्ट्रीय हित में सीमा
  • लोक कल्याण के लिए प्रतिबंध

2. आपातकाल में स्थगन:

  • अनुच्छेद 19 का स्थगन
  • निवारक निरोध कानून
  • राष्ट्रीय सुरक्षा हित में

3. संसद की शक्ति:

  • संविधान संशोधन द्वारा परिवर्तन
  • मूल ढांचे की सीमा में
  • न्यायिक समीक्षा का अधीन

4. राज्य की विशेष परिस्थितियां:

  • सशस्त्र बलों पर अलग नियम
  • सेना विधि के दौरान सीमा
  • लोक व्यवस्था हेतु प्रतिबंध

संतुलन की आवश्यकता:

  1. व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक कल्याण
  2. अधिकार और कर्तव्य के बीच संतुलन
  3. न्यायिक सक्रियता और न्यायिक संयम
  4. केशवानंद भारती सिद्धांत की भूमिका

निष्कर्ष: मौलिक अधिकार भारतीय लोकतंत्र के स्तंभ हैं, लेकिन वे निरपेक्ष नहीं हैं। इनकी सीमाएं राष्ट्रीय हित और सामाजिक कल्याण को ध्यान में रखकर निर्धारित की गई हैं।

प्रश्न 2: समता के अधिकार (अनुच्छेद 14-18) की विस्तृत व्याख्या करें और इसके न्यायिक विकास पर प्रकाश डालें।
उत्तर:

समता का अधिकार भारतीय संविधान की आधारशिला है और लोकतांत्रिक शासन का मूलभूत सिद्धांत है। यह अनुच्छेद 14 से 18 तक विस्तारित है और न्यायपालिका द्वारा इसका व्यापक विकास किया गया है।

अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समता

मूल सिद्धांत:

  • विधि के समक्ष समता (Equality before Law): सभी व्यक्ति कानून के सामने समान
  • विधियों का समान संरक्षण (Equal Protection of Laws): समान परिस्थितियों में समान व्यवहार

न्यायिक विकास:

  • ई.पी. रॉयप्पा बनाम तमिलनाडु राज्य (1974): समता का नया आयाम - मनमानेपन का निषेध
  • अजय हासिया बनाम खालिद मुजीब (1981): प्रक्रिया की निष्पक्षता
  • मंडल आयोग मामला (1992): सामाजिक न्याय और समता में संतुलन

युक्तिसंगत वर्गीकरण:

  1. बुद्धिमत्तापूर्ण विभेदक (Intelligible Differentia): वर्गीकरण तर्कसंगत आधार पर
  2. उद्देश्य से संबद्धता (Nexus with Object): कानून के उद्देश्य से संबंधित

अनुच्छेद 15: भेदभाव का प्रतिषेध

निषिद्ध आधार:

  • धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान
  • सार्वजनिक स्थानों पर भेदभाव का निषेध
  • दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों में प्रवेश

सकारात्मक कार्रवाई:

  • अनुच्छेद 15(3): महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान
  • अनुच्छेद 15(4): पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान (प्रथम संशोधन, 1951)
  • अनुच्छेद 15(5): शिक्षण संस्थानों में आरक्षण (93वां संशोधन, 2005)

अनुच्छेद 16: लोक नियोजन में अवसर की समता

मुख्य तत्व:

  • सरकारी नौकरियों में समान अवसर
  • योग्यता के आधार पर चयन
  • भेदभाव का निषेध

आरक्षण के प्रावधान:

  • अनुच्छेद 16(4): पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण
  • अनुच्छेद 16(4A): प्रोन्नति में आरक्षण (77वां संशोधन, 1995)
  • अनुच्छेद 16(4B): आरक्षण लाभ का अगले वर्ष तक बना रहना (81वां संशोधन, 2000)

महत्वपूर्ण मामले:

  • इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992): 50% सीमा का सिद्धांत
  • एम. नागराज बनाम भारत संघ (2006): प्रोन्नति में आरक्षण की शर्तें

अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का अंत

व्यापक निषेध:

  • अस्पृश्यता की सभी प्रथाओं का अंत
  • सामाजिक बहिष्कार का निषेध
  • सार्वजनिक स्थानों से वंचना का अंत

कानूनी ढांचा:

  • नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955
  • अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989

अनुच्छेद 18: उपाधियों का अंत

मुख्य प्रावधान:

  • राज्य द्वारा उपाधि प्रदान करने का निषेध
  • विदेशी उपाधि स्वीकार करने का निषेध
  • समानता की भावना को बढ़ावा

अपवाद:

  • सैन्य और विद्या संबंधी सम्मान
  • भारत रत्न, पद्म पुरस्कार
  • परमवीर चक्र, अशोक चक्र

न्यायिक विकास के मुख्य सिद्धांत:

  1. पारदर्शिता: सरकारी कार्यों में पारदर्शिता
  2. निष्पक्षता: प्रक्रिया की निष्पक्षता
  3. युक्तिसंगतता: मनमानेपन का अभाव
  4. सामाजिक न्याय: वंचित वर्गों का उत्थान

समसामयिक चुनौतियां:

  • आर्थिक आरक्षण का मुद्दा
  • क्रीमी लेयर की अवधारणा
  • निजी क्षेत्र में आरक्षण
  • लैंगिक समानता के नए आयाम

निष्कर्ष: समता का अधिकार एक जीवंत अवधारणा है जो न्यायपालिका के माध्यम से निरंतर विकसित हो रही है। यह केवल औपचारिक समानता नहीं बल्कि सामाजिक न्याय और वास्तविक समानता स्थापित करने का साधन है।

प्रश्न 3: अनुच्छेद 21 के न्यायिक विस्तार का विश्लेषण करें। जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के नए आयामों पर चर्चा करें।
उत्तर:

अनुच्छेद 21 भारतीय संविधान का सबसे गतिशील और व्यापक अनुच्छेद है। न्यायपालिका द्वारा इसकी व्याख्या में क्रांतिकारी परिवर्तन किया गया है, जिससे यह केवल जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा से कहीं अधिक व्यापक अधिकार बन गया है।

मूल प्रावधान और प्रारंभिक व्याख्या:

अनुच्छेद 21 का मूल पाठ: "किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।"

प्रारंभिक संकीर्ण व्याख्या:

  • ए.के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य (1950): केवल प्रक्रियागत सुरक्षा
  • विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया का शाब्दिक अर्थ
  • Due Process का अभाव

न्यायिक क्रांति: मेनका गांधी मामला (1978)

मेनका गांधी बनाम भारत संघ के महत्वपूर्ण सिद्धांत:

  1. प्रक्रिया की उचितता (Due Process): प्रक्रिया न्यायसंगत, निष्पक्ष और युक्तिसंगत हो
  2. मौलिक अधिकारों की एकरूपता: सभी अधिकार परस्पर संबद्ध
  3. व्यापक व्याख्या: जीवन का अर्थ केवल पशु अस्तित्व नहीं

न्यायपालिका द्वारा विस्तारित अधिकार:

1. शिक्षा का अधिकार:

  • मोहिनी जैन बनाम कर्नाटक राज्य (1992): शिक्षा जीवन का अभिन्न अंग
  • उन्नीकृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1993): 14 वर्ष तक निःशुल्क शिक्षा
  • बाद में अनुच्छेद 21A के रूप में संविधान में शामिल

2. स्वास्थ्य का अधिकार:

  • पराश्नाथ यादव बनाम बिहार राज्य (1987): जीवन में स्वास्थ्य शामिल
  • विंसेंट पणिकुरलंगारा बनाम भारत संघ (1987): चिकित्सा सुविधा का अधिकार
  • आपातकालीन चिकित्सा सेवा का अधिकार

3. पर्यावरण का अधिकार:

  • रूरल लिटिगेशन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1985): स्वच्छ पर्यावरण
  • एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ: प्रदूषण नियंत्रण
  • सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य (1991): स्वच्छ पानी और हवा

4. आजीविका का अधिकार:

  • ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (1985): आजीविका जीवन का आधार
  • शंकर दास बनाम भारत संघ: रोजगार की सुरक्षा
  • फुटपाथ विक्रेताओं के अधिकार

5. आश्रय का अधिकार:

  • शंकर लाल बनाम भारत संघ: मानवीय गरिमा के साथ जीवन
  • बेघरों के पुनर्वास का अधिकार
  • झुग्गी-झोपड़ी निवासियों की सुरक्षा

6. गोपनीयता का अधिकार:

  • के.एस. पुत्तस्वामी बनाम भारत संघ (2017): ऐतिहासिक निर्णय
  • 9 जजों की संविधान पीठ का निर्णय
  • व्यक्तिगत स्वायत्तता और गरिमा
  • आधार योजना पर प्रभाव

7. कानूनी सहायता का अधिकार:

  • एम.एच. हुसैनआरा खातून बनाम बिहार राज्य (1979): निःशुल्क कानूनी सहायता
  • सुकदास बनाम अरुणाचल प्रदेश: त्वरित न्याय का अधिकार
  • गरीबों के लिए न्याय तक पहुंच

8. महिलाओं के विशेष अधिकार:

  • विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997): कार्यक्षेत्र में यौन उत्पीड़न से सुरक्षा
  • गीता हरिहरन बनाम आरबीआई: मातृत्व अधिकार
  • घरेलू हिंसा से सुरक्षा

समसामयिक विकास:

1. डिजिटल अधिकार:

  • इंटरनेट पहुंच का अधिकार
  • डिजिटल गोपनीयता
  • डेटा संरक्षण

2. यौन अभिविन्यास के अधिकार:

  • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018): धारा 377 का निरसन
  • LGBTQ+ समुदाय के अधिकार
  • यौन स्वायत्तता

3. मानसिक स्वास्थ्य:

  • मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017
  • आत्महत्या का अपराधीकरण समाप्त
  • मानसिक रोगियों के अधिकार

न्यायिक सिद्धांत और परीक्षणकर्ता:

  1. आवश्यकता की परीक्षा: निर्बंधन आवश्यक हो
  2. आनुपातिकता: साधन और साध्य में संतुलन
  3. कम प्रतिबंधात्मक विकल्प: अन्य उपाय उपलब्ध न हों
  4. प्रक्रियागत सुरक्षा: निष्पक्ष प्रक्रिया

चुनौतियां और सीमाएं:

  • न्यायिक सक्रियता बनाम संयम: विधायी कार्य में हस्तक्षेप
  • संसाधन की कमी: सभी अधिकारों का क्रियान्वयन
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: व्यक्तिगत अधिकार बनाम राष्ट्रीय हित
  • तकनीकी चुनौतियां: डिजिटल युग की समस्याएं

भविष्य की दिशाएं:

  1. जलवायु न्याय: पर्यावरणीय अधिकारों का विस्तार
  2. कृत्रिम बुद्धिमत्ता: AI युग में अधिकारों की सुरक्षा
  3. बुजुर्गों के अधिकार: वृद्धावस्था में गरिमापूर्ण जीवन
  4. विकलांगों के अधिकार: समावेशी समाज का निर्माण

निष्कर्ष: अनुच्छेद 21 का न्यायिक विकास भारतीय न्यायपालिका की सबसे बड़ी उपलब्धि है। यह दिखाता है कि संविधान एक जीवंत दस्तावेज है जो समय के साथ नागरिकों के बदलते अधिकारों को समायोजित कर सकता है। यह केवल कानूनी अधिकार नहीं बल्कि मानवीय गरिमा और जीवन की गुणवत्ता का प्रतीक बन गया है।

प्रश्न 4: मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति निदेशक तत्वों के बीच संबंध और संघर्ष का विश्लेषण करें। न्यायपालिका ने इस संघर्ष को कैसे सुलझाया है?
उत्तर:

मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निदेशक तत्व भारतीय संविधान के दो महत्वपूर्ण भाग हैं जो संविधान निर्माताओं के अलग-अलग दर्शन को दर्शाते हैं। इनके बीच निरंतर तनाव और संघर्ष रहा है, जिसे न्यायपालिका ने समय-समय पर सुलझाने का प्रयास किया है।

मौलिक अधिकार और नीति निदेशक तत्वों की प्रकृति:

मौलिक अधिकारों की विशेषताएं:

  • न्यायसंगत: न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय
  • नकारात्मक: राज्य को कुछ न करने का निर्देश
  • व्यक्तिवादी: व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर जोर
  • तत्काल प्रभावी: संविधान लागू होते ही प्रभावी

नीति निदेशक तत्वों की विशेषताएं:

  • गैर-न्यायसंगत: न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं
  • सकारात्मक: राज्य को कुछ करने का निर्देश
  • समाजवादी: सामाजिक न्याय पर जोर
  • प्रगतिशील कार्यान्वयन: संसाधन की उपलब्धता के अनुसार

प्रारंभिक संघर्ष और न्यायिक रुख:

1. चंपकम दोराईराजन मामला (1951):

  • मौलिक अधिकारों की सर्वोच्चता स्थापित
  • नीति निदेशक तत्व मौलिक अधिकारों को प्रभावित नहीं कर सकते
  • प्रथम संविधान संशोधन का कारण

2. गोलकनाथ मामला (1967):

  • संसद नीति निदेशक तत्वों के कार्यान्वयन हेतु मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती
  • मौलिक अधिकारों की निरपेक्ष सुरक्षा
  • संविधान के मूल ढांचे की अवधारणा का बीज

संतुलन की तलाश:

3. केशवानंद भारती मामला (1973):

  • मूल ढांचे का सिद्धांत: संविधान की आत्मा अपरिवर्तनीय
  • संतुलित दृष्टिकोण: दोनों के बीच सामंजस्य
  • सामाजिक न्याय: नीति निदेशक तत्वों का महत्व स्वीकार
  • न्यायिक समीक्षा: संसद की शक्ति पर नियंत्रण

4. मिनर्वा मिल्स मामला (1980):

  • सामंजस्य का सिद्धांत: दोनों परस्पर पूरक
  • संतुलन आवश्यक: एक के बिना दूसरा अधूरा
  • न्यायिक संयम: विधायी विवेक का सम्मान

व्यावहारिक संघर्ष के क्षेत्र:

1. संपत्ति का अधिकार:

  • समस्या: भूमि सुधार और संपत्ति अधिकार में टकराव
  • समाधान: 9वीं अनुसूची का निर्माण
  • परिणाम: 44वें संशोधन द्वारा संपत्ति अधिकार को मौलिक अधिकार से हटाना

2. शिक्षा का अधिकार:

  • नीति निदेशक तत्व: अनुच्छेद 45 - 14 वर्ष तक निःशुल्क शिक्षा
  • न्यायिक हस्तक्षेप: मोहिनी जैन और उन्नीकृष्णन मामले
  • संवैधानिक समाधान: 86वां संशोधन - अनुच्छेद 21A

3. स्वास्थ्य का अधिकार:

  • नीति निदेशक तत्व: अनुच्छेद 47 - स्वास्थ्य में सुधार
  • न्यायिक विकास: अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार
  • व्यावहारिक समस्या: संसाधन की कमी

न्यायपालिका के सुलझाने के सिद्धांत:

1. सामंजस्य का सिद्धांत (Doctrine of Harmonious Construction):

  • दोनों को परस्पर पूरक मानना
  • संविधान को समग्रता में देखना
  • टकराव की स्थिति में संतुलन खोजना

2. प्रगतिशील व्याख्या:

  • समय के साथ अधिकारों का विस्तार
  • नीति निदेशक तत्वों को मौलिक अधिकारों में रूपांतरण
  • न्यायिक सक्रियता का सकारात्मक उपयोग

3. आनुपातिकता की परीक्षा:

  • निर्बंधन की आवश्यकता
  • साधन और साध्य में संतुलन
  • कम प्रतिबंधात्मक विकल्प

महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:

1. फ्रांसिस कोराली मुलिन बनाम दि एडमिनिस्ट्रेटर (1981):

  • जीवन के अधिकार में आजीविका शामिल
  • नीति निदेशक तत्व 39(a) का उपयोग
  • मौलिक अधिकार और नीति निदेशक तत्व का मेल

2. बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत संघ (1984):

  • अनुच्छेद 21, 23 और 39(e) का संयुक्त प्रयोग
  • न्यूनतम मजदूरी का अधिकार
  • सामाजिक न्याय की व्यापक व्याख्या

3. ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (1985):

  • आवास का अधिकार
  • अनुच्छेद 21 और 39(a) का मेल
  • सामाजिक सुरक्षा का विस्तार

समकालीन विकास:

1. पर्यावरण संरक्षण:

  • अनुच्छेद 21 और 48A का संयोजन
  • पर्यावरण न्यायालयों की स्थापना
  • प्रदूषक भुगते सिद्धांत

2. महिला अधिकार:

  • विशाखा गाइडलाइन्स
  • अनुच्छेद 15(3) और 39(a) का प्रयोग
  • कार्यस्थल पर सुरक्षा

चुनौतियां और भविष्य की दिशा:

समस्याएं:

  • संसाधन की कमी: सभी अधिकारों का कार्यान्वयन कठिन
  • न्यायिक अतिक्रमण: विधायी कार्य में हस्तक्षेप की आशंका
  • प्राथमिकता का संकट: किन अधिकारों को पहले लागू करें
  • केंद्र-राज्य विवाद: कार्यान्वयन की जिम्मेदारी

भावी दिशा:

  1. स्मार्ट गवर्नेंस: तकनीक का उपयोग
  2. न्यायिक संयम: विधायी विवेक का सम्मान
  3. सहयोगी न्याय: सभी अंगों का समन्वय
  4. जन भागीदारी: नागरिक समाज की भूमिका

निष्कर्ष: मौलिक अधिकार और नीति निदेशक तत्वों के बीच का संघर्ष भारतीय संवैधानिक विकास की एक निरंतर प्रक्रिया है। न्यायपालिका ने सामंजस्य के सिद्धांत के माध्यम से इस संघर्ष को सुलझाने का सराहनीय कार्य किया है। आज दोनों को परस्पर पूरक माना जाता है और संविधान के लक्ष्य - न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व - की प्राप्ति के लिए दोनों आवश्यक हैं। भविष्य में इस संतुलन को बनाए रखना और मजबूत बनाना भारतीय लोकतंत्र की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।

भारतीय राजनीति – मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)

Articles 12–35 | For RPSC, UPSC & other competitive exams

Quick Facts

  • कुल संख्या: 6 (मूलतः 7, 44वें संशोधन 1978 में संपत्ति का अधिकार हटाकर कानूनी अधिकार बनाया)
  • अवधि: संविधान के भाग III में वर्णित (Articles 12–35)
  • लागू: नागरिकों/गैर-नागरिकों पर अलग-अलग
  • न्यायालय संरक्षण: अनुच्छेद 32 (सुप्रीम कोर्ट) और 226 (हाई कोर्ट)
  • सीमाएँ: उचित प्रतिबंध; आपातकाल में कुछ अधिकार निलंबित

मौलिक अधिकारों की सूची

  1. समानता का अधिकार (Art. 14–18)
  2. स्वतंत्रता का अधिकार (Art. 19–22)
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (Art. 23–24)
  4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (Art. 25–28)
  5. सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार (Art. 29–30)
  6. संवैधानिक उपचार का अधिकार (Art. 32)

PYQ-Style MCQs

  1. अनुच्छेद 14–18 किस अधिकार से संबंधित हैं?
    Answer: समानता का अधिकार

    Art. 14 – समानता; 15 – भेदभाव निषेध; 16 – अवसर की समानता; 17 – अस्पृश्यता उन्मूलन; 18 – उपाधियों का उन्मूलन।

  2. संविधान का कौन-सा अनुच्छेद सीधे सुप्रीम कोर्ट जाने का अधिकार देता है?
    Answer: Art. 32

    संवैधानिक उपचार का अधिकार, डॉ. आंबेडकर ने इसे संविधान की आत्मा कहा।

  3. ‘रिट’ का अधिकार किस अनुच्छेद में वर्णित है?
    Answer: Art. 32 और 226

    Art. 32 – Supreme Court; Art. 226 – High Court को रिट जारी करने का अधिकार।

  4. संपत्ति का अधिकार किस संशोधन से मौलिक अधिकार की सूची से हटाया गया?
    Answer: 44वां संशोधन, 1978

    अब यह Art. 300A के अंतर्गत कानूनी अधिकार है।

  5. कौन-सा अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को प्राप्त नहीं है?
    Answer: समानता का अधिकार (Art. 14)

    Art. 14 सभी व्यक्तियों पर लागू; जबकि Art. 15, 16, 19 केवल नागरिकों पर।

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