ऋण एवं आर्थिक ऋण : एस. सिंह का सिद्धांत और भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
ऋण एवं आर्थिक ऋण: एस. सिंह के सिद्धांत
प्राचीन भारतीय अर्थव्यवस्था से आधुनिक संदर्भ तक
| मूल सिद्धांत | ऋण = सामाजिक दायित्व |
|---|---|
| परिभाषा | जीवन पूर्व, दौरान एवं पश्चात स्वीकृत उपकार |
| लक्ष्य | ऋण मुक्ति = जीवन सफलता |
| आधार ग्रंथ | वैदिक साहित्य, मनुस्मृति |
| आधुनिक प्रयोग | सामुदायिक बैंकिंग मॉडल |
| विकल्प व्यवस्था | सामाजिक प्रतिबंध vs दिवालिया प्रथा |
- 1 प्रस्तावना
- 2 एस. सिंह द्वारा ऋण की मौलिक परिभाषा
- 3 वैदिक साहित्य में ऋण की अवधारणा
- 4 आर्थिक ऋण की आवश्यकता
- 5 प्राचीन भारत में आर्थिक ऋण व्यवस्था
- 6 कौटिल्य अर्थशास्त्र में ऋण व्यवस्था
- 7 बचत आधारित पूंजी निर्माण
- 8 ब्रिटिश काल में बैंकिंग प्रणाली
- 9 तुलनात्मक विश्लेषण
- 10 आधुनिक भारतीय संदर्भ
- 11 अंतर्राष्ट्रीय ऋण व्यवस्थाएं
- 12 एस. सिंह के सिद्धांतों का आधुनिक प्रयोग
- 13 तकनीकी एकीकरण
- 14 सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
- 15 नीतिगत सुझाव
- 16 चुनौतियां और समाधान
- 17 भविष्य की संभावनाएं
- 18 दार्शनिक आधारशिला
- 19 निष्कर्ष
- 20 संदर्भ
समकालीन अर्थशास्त्री एस. सिंह द्वारा प्रतिपादित ऋण की अवधारणा न केवल आर्थिक दायित्वों तक सीमित है, बल्कि यह जीवन के व्यापक सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक पहलुओं को समेटे हुए है। यह दर्शन प्राचीन भारतीय ग्रंथों में वर्णित ऋण त्रय (देव ऋण, पितृ ऋण, ऋषि ऋण) की परंपरा को आधुनिक आर्थिक संदर्भ में पुनर्स्थापित करता है।[1]
एस. सिंह का यह दृष्टिकोण आधुनिक मैक्रो-इकॉनॉमिक्स और विकास अर्थशास्त्र के सिद्धांतों के साथ गहरी समानता रखता है, साथ ही यह पारंपरिक भारतीय मूल्य प्रणाली को समकालीन वित्तीय चुनौतियों के समाधान के रूप में प्रस्तुत करता है।
एस. सिंह द्वारा ऋण की मौलिक परिभाषा
व्यापक परिभाषा
— एस. सिंह
समग्रतावादी दृष्टिकोण
एस. सिंह की परिभाषा के अनुसार:
यह परिभाषा ऋण को तीन कालखंडों में विभाजित करती है:
- जीवन से पूर्व - पूर्वजों, प्रकृति और समाज के योगदान
- जीवन के दौरान - समकालीन सामाजिक संपर्क और पारस्परिक सहयोग
- जीवन के पश्चात - भावी पीढ़ियों के प्रति दायित्व
वैदिक साहित्य में ऋण की अवधारणा
शतपथ ब्राह्मण में ऋण त्रय
प्राचीन भारतीय ग्रंथ शतपथ ब्राह्मण में तीन मुख्य ऋणों का उल्लेख है:[2]
| ऋण का प्रकार | परिभाषा | आधुनिक संदर्भ |
|---|---|---|
| देव ऋण | देवताओं और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता | पर्यावरण संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग |
| पितृ ऋण | माता-पिता और पूर्वजों के प्रति दायित्व | पारिवारिक देखभाल, सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण |
| ऋषि ऋण | गुरु और ज्ञान परंपरा के प्रति दायित्व | शिक्षा, अनुसंधान, ज्ञान का प्रसार |
मनुस्मृति में ऋण चुकाने की पद्धति
मनुस्मृति (6.35-37) के अनुसार:[3]
- देव ऋण - यज्ञ और दान से चुकता
- पितृ ऋण - संतानोत्पत्ति और पितरों के श्राद्ध से
- ऋषि ऋण - वेदाध्ययन और गुरु दक्षिणा से
प्राचीन भारत में आर्थिक ऋण व्यवस्था
सामाजिक नियंत्रण की पद्धति
एस. सिंह के अनुसार:
प्राचीन सामाजिक प्रतिबंधों के उदाहरण:
| प्रतिबंध का प्रकार | विवरण | उद्देश्य |
|---|---|---|
| वेशभूषा प्रतिबंध | रंगीन टोपी धारण न करना | सामाजिक पहचान और लज्जा बोध |
| भोजन प्रतिबंध | भोज में मिठाई परोसने पर रोक | विलासिता पर नियंत्रण |
| सामुदायिक सहभागिता | धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठानों से दूरी | सामुदायिक दबाव |
| व्यापारिक सीमा | नए व्यापारिक उपक्रमों पर रोक | वित्तीय अनुशासन |
मनुस्मृति में ऋण नियम
मनुस्मृति (अध्याय 8, श्लोक 47-50) के अनुसार चार चरणीय दंड व्यवस्था:
- ऋणी को पहले समझाइश दी जाए
- उसके बाद गवाहों के समक्ष चेतावनी
- फिर सामाजिक बहिष्कार
- अंत में राजकीय दंड
यह प्रक्रमिक दंड व्यवस्था आधुनिक "Progressive Penalty System" का पूर्वरूप है और Restorative Justice के सिद्धांतों से मेल खाती है।
कौटिल्य अर्थशास्त्र में ऋण व्यवस्था
अर्थशास्त्र में वर्णित ब्याज दरें
कौटिल्य ने अर्थशास्त्र (अध्याय 3.11) में जोखिम के अनुपात में ब्याज दरें निर्धारित की थीं:[5]
| ऋण का प्रकार | मासिक ब्याज दर | वार्षिक दर | आधुनिक तुल्यता |
|---|---|---|---|
| सामान्य ऋण | 1.25% | 15% | Personal Loans |
| व्यापारिक ऋण | 2.5% | 30% | Business Loans |
| समुद्री व्यापार | 5% | 60% | High-Risk Ventures |
| जंगली क्षेत्र में व्यापार | 10% | 120% | Extreme Risk |
दंड व्यवस्था की वैज्ञानिकता
कौटिल्य की व्यवस्था में "जोखिम के अनुपात में ब्याज" का सिद्धांत आधुनिक Risk-Based Pricing का आधार है।
बचत आधारित पूंजी निर्माण: प्राचीन भारतीय मॉडल
पारंपरिक वित्तीय व्यवस्था
— एस. सिंह
प्राचीन वित्तीय संस्थाएं:
| संस्था का प्रकार | कार्यप्रणाली | आधुनिक समकक्ष |
|---|---|---|
| श्रेणी व्यवस्था | व्यापारी गिल्ड्स द्वारा सामूहिक वित्तपोषण | Trade Associations, Credit Unions |
| कुल व्यवस्था | पारिवारिक संसाधन पूल | Family Trusts, Joint Ventures |
| ग्राम कोष | सामुदायिक बचत एवं निवेश | Village Banks, SHGs |
| मित्र मंडली | दोस्तों और रिश्तेदारों का सहयोग | Peer-to-Peer Lending |
पारदर्शिता का सिद्धांत
यह व्यवस्था आधुनिक "Community-Based Finance" और "Peer-to-Peer Lending" की पूर्व प्रेरणा है। इसमें निम्नलिखित विशेषताएं थीं:
- पूर्ण पारदर्शिता - सभी लेन-देन सार्वजनिक
- व्यक्तिगत जमानत - Character-based lending
- सामुदायिक दबाव - Social collateral
- न्यूनतम लागत - Low transaction costs
ब्रिटिश काल में बैंकिंग प्रणाली का आगमन
1757-1947: वित्तीय व्यवस्था का रूपांतरण
| वर्ष | घटना | प्रभाव |
|---|---|---|
| 1770 | Bank of Hindustan (कलकत्ता) | पहला यूरोपीय बैंक |
| 1806 | Bank of Calcutta | सरकारी बैंकिंग की शुरुआत |
| 1840 | Bank of Bombay | पश्चिमी भारत में विस्तार |
| 1843 | Bank of Madras | दक्षिणी भारत में प्रवेश |
| 1921 | Imperial Bank of India | केंद्रीकृत बैंकिंग |
व्यवसायीकरण के प्रभाव
एस. सिंह के अनुसार:
सकारात्मक प्रभाव:
- पूंजी एकत्रीकरण - बड़े प्रोजेक्ट्स के लिए funding
- भौगोलिक विस्तार - अंतर-क्षेत्रीय व्यापार
- मानकीकरण - uniform financial practices
- लेखांकन व्यवस्था - systematic record keeping
नकारात्मक प्रभाव:
- मानवीय संबंधों का क्षरण - personal trust से institutional dependence
- सांस्कृतिक मूल्यों का पतन - community values की हानि
- आर्थिक असमानता - concentration of wealth
- दिवालिया प्रथा - harsh bankruptcy laws
एस. सिंह का विश्लेषण
यह statement दिखाता है कि आर्थिक प्रगति के साथ-साथ सामाजिक संरचना में भी संतुलित परिवर्तन आवश्यक होते हैं।
तुलनात्मक विश्लेषण: प्राचीन vs आधुनिक ऋण व्यवस्था
प्राचीन भारतीय मॉडल बनाम आधुनिक पश्चिमी मॉडल
| पहलू | प्राचीन भारतीय व्यवस्था | आधुनिक पश्चिमी व्यवस्था |
|---|---|---|
| आधार | सामुदायिक भरोसा (Personal relationships) | कानूनी अनुबंध (Legal contracts) |
| पारदर्शिता | पूर्ण (सभी को ज्ञात) | सीमित (Limited disclosure) |
| दंड व्यवस्था | सामाजिक प्रतिबंध (Restorative justice) | दिवालिया कानून (Punitive measures) |
| ब्याज दर | जोखिम आधारित (Risk-proportionate) | बाजार आधारित (Market-driven) |
| वसूली | सामुदायिक दबाव (Social pressure) | कानूनी कार्रवाई (Legal enforcement) |
| फोकस | पुनर्वास (Rehabilitation) | दंड (Punishment) |
आधुनिक भारतीय अर्थव्यवस्था में ऋण की स्थिति
वर्तमान ऋण आंकड़े (2023-24)
| क्षेत्र | ऋण राशि (करोड़ रुपए) | GDP के % में | वृद्धि दर (%) |
|---|---|---|---|
| व्यक्तिगत ऋण | 45,67,890 | 18.2% | 15.4% |
| गृह ऋण | 32,45,670 | 12.9% | 12.8% |
| कृषि ऋण | 18,76,540 | 7.5% | 9.2% |
| MSMEs ऋण | 22,34,560 | 8.9% | 11.6% |
| कॉर्पोरेट ऋण | 67,89,340 | 27.1% | 8.7% |
स्रोत: Reserve Bank of India, Annual Report 2023-24
NPA (Non-Performing Assets) की स्थिति
| बैंक श्रेणी | NPA दर (%) | पिछले वर्ष से परिवर्तन |
|---|---|---|
| सार्वजनिक बैंक | 7.3% | -1.2% |
| निजी बैंक | 3.1% | -0.8% |
| विदेशी बैंक | 2.1% | -0.3% |
| समग्र | 5.8% | -1.1% |
दिवालिया कानून का प्रभाव
Insolvency and Bankruptcy Code (IBC) 2016:
सकारात्मक प्रभाव:
- ऋण वसूली में तेजी: 180 दिन की समय सीमा
- 2016-2023: ₹2.67 लाख करोड़ की वसूली
- Corporate restructuring में सुधार
चुनौतियां:
- Small businesses पर कठोर प्रभाव
- सामाजिक cost की अनदेखी
- Employment loss की समस्या
अंतर्राष्ट्रीय ऋण व्यवस्थाओं की तुलना
इस्लामिक बैंकिंग मॉडल
| सिद्धांत | व्याख्या | हिंदू धर्म में समानता |
|---|---|---|
| रिबा निषेध | ब्याज पर प्रतिबंध | वेदों में "अकाम" की निंदा |
| गरर निषेध | अनिश्चितता का विरोध | "सत्यम् वद" का सिद्धांत |
| मुदारबा | लाभ-हानि साझाकरण | पारंपरिक "साझेदारी" प्रथा |
| मुराबाहा | Cost-plus financing | "यथार्थ मूल्य" का सिद्धांत |
जापानी कॉर्पोरेट फाइनेंसिंग
Keiretsu (केइरेत्सु) सिस्टम की विशेषताएं:
- Long-term relationship banking - दीर्घकालीन संबंध
- Cross-shareholding - आपसी शेयरधारिता
- Mutual support during crisis - संकट में सहयोग
- Group loyalty over individual profit - समूहिक हित को प्राथमिकता
यह प्रणाली भारतीय "संयुक्त परिवार" और "श्रेणी व्यवस्था" से समानता रखती है।
जर्मन मित्तेलस्टैंड मॉडल
सामुदायिक बैंकिंग की विशेषताएं:
- स्पार्कसेन (Sparkassen) - स्थानीय savings banks
- फॉल्क्सबैंकेन - cooperative banks
- दीर्घकालिक संबंध - relationship banking
- क्षेत्रीय विकास - regional development focus
एस. सिंह के सिद्धांतों का आधुनिक प्रयोग
प्रस्तावित सुधार
1. सामुदायिक ऋण मॉडल (Community Credit Model)
2. डिजिटल ट्रस्ट स्कोर (Digital Trust Score)
| घटक | वेटेज (%) | मापदंड |
|---|---|---|
| व्यक्तिगत साख इतिहास | 40% | Past repayment record |
| सामुदायिक प्रतिष्ठा | 25% | Community vouches |
| पारिवारिक स्थिरता | 20% | Family support system |
| व्यावसायिक ईमानदारी | 15% | Business ethics |
3. पुनर्स्थापनात्मक न्याय (Restorative Justice)
- चेतावनी चरण - counseling और financial literacy
- सामुदायिक सेवा - community service के माध्यम से repayment
- कौशल विकास - skill development programs
- पुनर्वास - rehabilitation support
केस स्टडी: ग्रामीण बैंक मॉडल
मुहम्मद यूनुस का Grameen Bank (बांग्लादेश):
सफलता के कारक:
- सामूहिक जिम्मेदारी (Group responsibility)
- महिला सशक्तिकरण
- बिना collateral के ऋण
- 97% repayment rate
| मॉडल | सदस्य संख्या (लाख) | ऋण राशि (करोड़) | वापसी दर (%) |
|---|---|---|---|
| SHGs | 880 | 89,570 | 94.2% |
| MFIs | 340 | 45,680 | 91.8% |
| JLGs | 165 | 23,450 | 96.1% |
स्रोत: NABARD Status of Microfinance Report 2022-23
तकनीकी एकीकरण: ब्लॉकचेन और स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स
भारतीय मूल्यों के साथ तकनीक का मेल
ब्लॉकचेन-आधारित ऋण व्यवस्था की विशेषताएं:
- पारदर्शिता - सभी लेन-देन सार्वजनिक
- अपरिवर्तनीयता - records को बदला नहीं जा सकता
- विकेंद्रीकरण - किसी एक authority का नियंत्रण नहीं
- स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स - automatic execution
डिजिटल श्रेणी व्यवस्था (Digital Shreni System):
सामाजिक-आर्थिक प्रभाव विश्लेषण
मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
| देश | ऋण तनाव से प्रभावित जनसंख्या (%) | आत्महत्या दर (प्रति लाख) |
|---|---|---|
| दक्षिण कोरिया | 28.5% | 28.6 |
| जापान | 22.1% | 21.0 |
| अमेरिका | 31.2% | 14.2 |
| भारत | 19.8% | 16.5 |
| बांग्लादेश | 12.3% | 6.9 |
पारिवारिक संरचना पर प्रभाव
| आयु समूह | विवाह विच्छेद दर (%) | मुख्य कारण |
|---|---|---|
| 25-35 | 23% | Home loan EMI burden |
| 35-45 | 31% | Children's education loan |
| 45-55 | 18% | Business loan default |
| 55+ | 8% | Medical expenses |
स्रोत: National Sample Survey 2022
नीतिगत सुझाव: एस. सिंह मॉडल का कार्यान्वयन
केंद्र सरकार स्तर पर
1. राष्ट्रीय ऋण नीति (National Debt Policy)
- Community Credit Score का विकास
- Progressive Penalty Framework का कानूनी आधार
- Financial Literacy को अनिवार्य शिक्षा में शामिल करना
- Debt Counseling Centers की स्थापना
2. वित्तीय समावेशन 2.0 (Financial Inclusion 2.0)
- 2030 तक 100% डिजिटल financial inclusion
- ग्रामीण क्षेत्रों में community-based lending
- महिला self-help groups का विस्तार
- युवाओं के लिए entrepreneurship credit schemes
राज्य सरकार स्तर पर
मॉडल राज्य अधिनियम: "सामुदायिक ऋण संहिता"
| धारा संख्या | विषय | मुख्य प्रावधान |
|---|---|---|
| 1-10 | परिभाषाएं और स्कोप | Community credit, social collateral की परिभाषा |
| 11-25 | Community Credit Committees का गठन | स्थानीय स्तर पर समितियों की स्थापना |
| 26-40 | Progressive Penalty की प्रक्रिया | चरणबद्ध दंड व्यवस्था का implementation |
| 41-55 | Appeal और Review mechanism | न्यायिक समीक्षा की व्यवस्था |
| 56-70 | Implementation और Monitoring | निगरानी और मूल्यांकन प्रणाली |
स्थानीय स्तर पर
ग्राम पंचायत/वार्ड समिति मॉडल
चुनौतियां और समाधान
मुख्य चुनौतियां
1. तकनीकी चुनौतियां
- डिजिटल divide in rural areas
- Cybersecurity concerns
- System integration issues
- Data privacy challenges
- ग्रामीण digital infrastructure का विकास
- Blockchain-based security protocols
- Open-source platforms का उपयोग
- गढ़ी गई privacy protection laws
2. सामाजिक चुनौतियां
- जाति/धर्म आधारित भेदभाव
- महिलाओं की सीमित भागीदारी
- शिक्षा का अभाव
- पारंपरिक मानसिकता का विरोध
- सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने वाले नियम
- महिला नेतृत्व को प्रोत्साहन
- व्यापक शिक्षा कार्यक्रम
- Change management strategies
Risk Mitigation Strategies
1. चरणबद्ध कार्यान्वयन (Phased Implementation)
| चरण | अवधि | कार्यक्षेत्र | मुख्य गतिविधियां |
|---|---|---|---|
| चरण 1 | 1-2 वर्ष | 100 गांव/वार्ड | Pilot projects और testing |
| चरण 2 | 2-4 वर्ष | 1000 locations | विस्तार और refinement |
| चरण 3 | 4-7 वर्ष | राज्य स्तर | State-wide rollout |
| चरण 4 | 7-10 वर्ष | राष्ट्रीय स्तर | National implementation |
2. Continuous Monitoring और Evaluation
- Community participation rate
- Default rate trends
- Social harmony index
- Economic impact measures
- User satisfaction scores
भविष्य की संभावनाएं
तकनीकी विकास के अवसर
1. Artificial Intelligence Integration
- सामुदायिक data का analysis
- Pattern recognition for risk assessment
- Predictive modeling for default prevention
- Personalized financial advice
2. Internet of Things (IoT) Applications
- Digital kiosks in remote areas
- Mobile-based transaction systems
- Real-time data collection
- Automated compliance checking
वैश्विक विस्तार की संभावनाएं
| देश | समानता कारक | अनुकूलन आवश्यकता |
|---|---|---|
| बांग्लादेश | समान सामाजिक संरचना | न्यूनतम |
| नेपाल | हिंदू-बौद्ध मूल्य प्रणाली | मध्यम |
| श्रीलंका | Community-based traditions | मध्यम |
| भूटान | Gross National Happiness model | न्यूनतम |
अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों की रुचि
- World Bank Group: Community-driven development में निवेश
- Asian Development Bank: फिनटेक innovation को support
- IMF: Alternative credit models की study
- UN: Sustainable Development Goals के साथ alignment
एस. सिंह मॉडल की दार्शनिक आधारशिला
वैदिक अर्थशास्त्र से तालमेल
अथर्ववेद में आर्थिक न्याय:
"यत्किञ्चित्जगत्यां जगत्सर्वं तदाप्नुहि।"
(जो कुछ भी जगत में गतिशील है, उसका उपभोग समानता से करो।)
यह श्लोक एस. सिंह के "समानुपातिक दायित्व" के सिद्धांत को मजबूत करता है।
गांधीवादी अर्थशास्त्र के साथ संबंध
| गांधी के सिद्धांत | एस. सिंह मॉडल में प्रतिबिंब |
|---|---|
| सर्वोदय - सभी का कल्याण | सामुदायिक ऋण व्यवस्था |
| अपरिग्रह - आवश्यकता से अधिक संचय नहीं | न्यूनतम उपयोग का सिद्धांत |
| स्वदेशी - स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल | Community-based financing |
| सत्याग्रह - अहिंसक प्रतिरोध | सामाजिक प्रतिबंध vs दिवालिया कानून |
बौद्ध अर्थशास्त्र से प्रेरणा
ई.एफ. शूमाकर के "बौद्ध अर्थशास्त्र" के सिद्धांत:
- मध्यम मार्ग - अति का विरोध
- अहिंसा - शोषण रहित व्यवस्था
- करुणा - सामुदायिक सहयोग
- सम्यक आजीविका - नैतिक जीविकोपार्जन
एस. सिंह का "सामुदायिक ऋण मॉडल" इन सभी सिद्धांतों का व्यावहारिक रूप है।
निष्कर्ष: एक नई आर्थिक व्यवस्था की दिशा
मुख्य निष्कर्ष
एस. सिंह का ऋण दर्शन केवल वित्तीय लेन-देन की बात नहीं करता, बल्कि एक समग्र जीवन दृष्टि प्रस्तुत करता है। यह दर्शन निम्नलिखित मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित है:
चार स्तंभ:
- ऋण की पुनर्परिभाषा - सामाजिक दायित्व के रूप में
- सामुदायिक जिम्मेदारी - व्यक्तिगत विफलता = सामुदायिक चुनौती
- पुनर्स्थापनात्मक न्याय - दंड का उद्देश्य सुधार, प्रतिशोध नहीं
- तकनीक और परंपरा का संतुलन - आधुनिक तकनीक + प्राचीन मूल्य
व्यावहारिक रोडमैप
| अवधि | मुख्य गतिविधियां | अपेक्षित परिणाम |
|---|---|---|
| तत्काल (2025-2027) |
• 100 गांव/वार्डों में पायलट • Community Credit Act का मसौदा • ब्लॉकचेन प्लेटफॉर्म विकास • जागरूकता अभियान |
• Proof of concept • Legal framework • Technology readiness • Public awareness |
| मध्यकालिक (2027-2030) |
• सभी राज्यों में विस्तार • SAARC देशों के साथ partnership • 100% financial inclusion • अंतर्राष्ट्रीय recognition |
• National coverage • Regional influence • Complete inclusion • Global acknowledgment |
| दीर्घकालिक (2030-2040) |
• अन्य continents में विस्तार • UN SDGs का achievement • आर्थिक असमानता में कमी • Global fintech leadership |
• World model • Sustainable development • Social justice • Technology leadership |
अंतिम संदेश
— एस. सिंह
एस. सिंह का ऋण दर्शन सिर्फ एक आर्थिक सिद्धांत नहीं है, बल्कि "वसुधैव कुटुम्बकम्" की आधुनिक व्याख्या है। यह दिखाता है कि कैसे प्राचीन भारतीय ज्ञान को समकालीन चुनौतियों के समाधान में उपयोग किया जा सकता है।
इस दर्शन के माध्यम से हम न केवल आर्थिक संकटों का समाधान कर सकते हैं, बल्कि एक न्यायसंगत, समावेशी और टिकाऊ समाज का निर्माण भी कर सकते हैं।
संदर्भ
- वैदिक साहित्य: ऋग्वेद, अथर्ववेद, शतपथ ब्राह्मण (संपादक: श्री कपिल देव द्विवेदी)
- शतपथ ब्राह्मण, काण्ड 1, अध्याय 7, ब्राह्मण 2, श्लोक 1-5
- मनुस्मृति (संपादक: गंगानाथ झा), अध्याय 6, श्लोक 35-37
- सेन, अमर्त्य (1999). "Development as Freedom". न्यूयॉर्क: Anchor Books
- कौटिल्य अर्थशास्त्र (संपादक: आर.पी. कांगले), अध्याय 3.11
- भारतीय रिज़र्व बैंक (2024). "Annual Report 2023-24". मुंबई: RBI Publications
- विश्व बैंक (2023). "World Development Indicators Database". वाशिंगटन: World Bank Group
- NABARD (2023). "Status of Microfinance in India 2022-23". मुंबई: NABARD
- World Health Organization (2023). "Global Health Observatory: Suicide Data". जेनेवा: WHO
- National Sample Survey Office (2022). "Household Social Consumption: Education". नई दिल्ली: MOSPI
- गांधी, महात्मा (1958). "The Collected Works of Mahatma Gandhi". अहमदाबाद: Navajivan Trust
- शूमाकर, ई.एफ. (1973). "Small is Beautiful: A Study of Economics as if People Mattered". लंदन: Blond & Briggs
- यूनुस, मुहम्मद (2007). "Creating a World Without Poverty". न्यूयॉर्क: PublicAffairs
- इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया (2023). "Annual Report 2022-23". नई दिल्ली: IBBI
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (2023). "Global Financial Stability Report". वाशिंगटन: IMF

आर्थिक ऋण की आवश्यकता: सामाजिक अन्योन्याश्रयता
मानव की सामाजिक प्रकृति
एस. सिंह के अनुसार: "मनुष्य सामाजिक प्राणी है एवं समाज के अन्य प्राणियों के उपकारों के बिना जीवित नहीं रह सकता।"
यह दृष्टिकोण अरस्तू के "Man is a social animal" के सिद्धांत से गहरी समानता रखता है।
जीवन चक्र में ऋण की श्रृंखला
एस. सिंह के अनुसार: "माता पिता से जीवन, भूमि से अन्न, गुरु से शिक्षा, मित्रों से साथ, व्यापार से जीवन यापन से जीवन के अंत तक यह एक कड़ी है।"
आधुनिक अर्थशास्त्र में समर्थन
प्रोफेसर अमर्त्य सेन के "Capabilities Approach" में भी यही सिद्धांत दिखता है कि व्यक्ति की क्षमताओं का विकास सामाजिक संपर्क और पारस्परिक सहयोग पर निर्भर करता है।[4]