RBSE Class 12 Philosophy (SS-85) 2024 | Complete Question Paper with Answers with PDF download
RBSE Senior Secondary Philosophy (SS-85) 2024
परीक्षा विवरण | |
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विषय | दर्शनशास्त्र (Philosophy) |
Paper Code | SS-85 |
कक्षा | 12वीं (उच्च माध्यमिक) |
समय | 3 घंटे 15 मिनट |
पूर्णांक | 80 |
प्रश्नों की संख्या | 22 |
परीक्षा वर्ष | 2024 |
RBSE Senior Secondary Philosophy (SS-85) राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित कक्षा 12 की दर्शनशास्त्र की परीक्षा है। यह पेपर भारतीय दर्शन (आस्तिक-नास्तिक), पाश्चात्य दर्शन, धर्म दर्शन और तत्वमीमांसा जैसे महत्वपूर्ण विषयों को कवर करता है।
खंड - अ (Section A)
1. बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ) [15×1=15 अंक]
i) चार्वाक दर्शन है - [1]
चार्वाक दर्शन भारतीय दर्शन की नास्तिक परंपरा है जो केवल भौतिक जगत को मानता है।
ii) भारतीय दार्शनिकों ने किसके उन्मूलन के लिए दर्शन को आधार बनाया?
भारतीय दर्शन का मुख्य उद्देश्य दुःख निवृत्ति और मोक्ष प्राप्ति है।
iii) आस्तिक दर्शन वे हैं -
आस्तिक = वेद प्रमाण मानना (न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा, वेदांत)
iv-xv) शेष MCQs के उत्तर:
- iv) (C) ज्ञानयोग - शंकराचार्य ने गीता में सर्वाधिक महत्व
- v) (A) पुनर्जन्म हो जाना - बौद्ध दर्शन में 'भव' का अर्थ
- vi) (B) नियम - योग में शरीर, मन, वाणी का संयम
- vii) (B) प्रत्यय (Ideas) - प्लेटो के काल्पनिक ज्ञान का विषय
- viii) (C) डेकार्त (Descartes) - "Cogito, ergo sum"
- ix) (C) चार - धर्म के 4 भाग: सामान्य, विशेष, साधारण, आपद्
- x) (A) प्रारब्ध कर्म - जो फल देना शुरू हो गए
- xi) (D) संवर - जैन धर्म में कर्म परमाणुओं का रोकना
- xii) (C) प्रार्थना से (Prayer) - इस्लाम में सलात = नमाज
- xiii) (C) लाओत्सी (Laozi) - ताओ धर्म के संस्थापक
- xiv) (B) मूसा संहिता (Code of Moses) - यहूदियों का मापदंड
- xv) (A) धर्म सहिष्णुता (Religious tolerance)
2. रिक्त स्थानों की पूर्ति [7×1=7 अंक]
i) अज्ञान - जीव को तत्वज्ञान नहीं होता
ii) तुरीय - आत्मा का चतुर्थ चरण (जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, तुरीय)
iii) अपरिग्रह - संग्रह प्रवृत्ति का त्याग
iv) बुद्धिवादी (Rationalist) - डेकार्त तर्क पर बल
v) सम्यक् ज्ञान - जीव-अजीव का भेद ज्ञान (जैन धर्म)
vi) मध्यमार्गी (Moderate) - बौद्ध धर्म अतिवाद से बचता है
vii) शिष्य (Disciple) - सिख = शिष्य से
3. अति लघूत्तरात्मक प्रश्न [10×1=10 अंक]
i) सत्कार्यवाद को परिभाषित करें।
सत्कार्यवाद: कार्य पहले से ही कारण में सूक्ष्म रूप से विद्यमान रहता है। (सांख्य दर्शन)
उदाहरण: तेल तिल में, दही दूध में पहले से मौजूद
ii) उपनिषद् शब्द का क्या अर्थ है?
उपनिषद्: उप (निकट) + नि (नीचे) + षद् (बैठना) = गुरु के निकट बैठकर प्राप्त ज्ञान
iii) त्रिपिटक क्या है?
त्रिपिटक: बौद्ध धर्म के तीन पवित्र ग्रंथ - विनय पिटक, सुत्त पिटक, अभिधम्म पिटक
iv) त्रिरत्न के नाम लिखें।
त्रिरत्न (जैन धर्म):
- सम्यक् दर्शन (Right Faith)
- सम्यक् ज्ञान (Right Knowledge)
- सम्यक् चरित्र (Right Conduct)
v) शंकराचार्य कौन थे?
आदि शंकराचार्य (788-820 CE): अद्वैत वेदांत के प्रवर्तक, चार मठों की स्थापना की
vi) ज्ञानमीमांसा की परिभाषा दें।
ज्ञानमीमांसा (Epistemology): ज्ञान की प्रकृति, स्रोत और सीमाओं का अध्ययन
vii) सुकरात का परिचय दें।
सुकरात (469-399 BCE): यूनानी दार्शनिक, "Know thyself", प्रश्नोत्तर पद्धति के जनक
viii) सामान्य धर्म से क्या तात्पर्य?
सामान्य धर्म: सभी मनुष्यों के लिए समान आचरण - सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा आदि
ix) धर्म के दस आदर्शों का उल्लेख किसने किया?
मनुस्मृति: धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रियनिग्रह, धी, विद्या, सत्य, अक्रोध
x) ईसा ने जॉन से कौनसी दो दीक्षाएं प्राप्त की?
दो दीक्षाएं: (1) बपतिस्मा (Baptism) - जल में डुबकी, (2) पश्चाताप का उपदेश
खंड - ब (Section B) [12 प्रश्न]
लघूत्तरीय प्रश्न (2 अंक)
4. भारतीय दर्शन की कोई दो विशेषताएं बताइए। [2]
- आध्यात्मिक उन्मुखता: दुःख निवृत्ति और मोक्ष प्राप्ति मुख्य लक्ष्य है।
- व्यावहारिक: केवल सिद्धांत नहीं, जीवन में लागू करने योग्य। योग, ध्यान आदि व्यावहारिक साधन।
अन्य: कर्म और पुनर्जन्म में विश्वास, गुरु-शिष्य परंपरा, सहिष्णुता
5. आस्तिक व नास्तिक दर्शनों में क्या अंतर है? [2]
आस्तिक दर्शन | नास्तिक दर्शन |
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वेद को प्रमाण मानते हैं | वेद को प्रमाण नहीं मानते |
6 दर्शन: न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा, वेदांत | 3 दर्शन: चार्वाक, बौद्ध, जैन |
आत्मा और मोक्ष में विश्वास | चार्वाक में आत्मा नहीं, बौद्ध-जैन में अलग व्याख्या |
6. ब्रह्म के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। [2]
ब्रह्म का स्वरूप (वेदांत दर्शन):
- सच्चिदानंद: सत् (सत्ता), चित् (चेतना), आनंद (परम आनंद)
- निर्गुण: गुणों से रहित, निराकार
- निर्विकार: परिवर्तनरहित, शाश्वत
- सर्वव्यापी: सभी में व्याप्त
"सर्वं खल्विदं ब्रह्म" - सब कुछ ब्रह्म ही है
7. अष्टांगिक मार्ग के अवयवों का नाम लिखिए। [2]
अष्टांगिक मार्ग (बौद्ध धर्म):
- सम्यक् दृष्टि (Right View)
- सम्यक् संकल्प (Right Intention)
- सम्यक् वाक् (Right Speech)
- सम्यक् कर्मांत (Right Action)
- सम्यक् आजीव (Right Livelihood)
- सम्यक् व्यायाम (Right Effort)
- सम्यक् स्मृति (Right Mindfulness)
- सम्यक् समाधि (Right Concentration)
8. पंच महाव्रतों के नाम लिखें। [2]
पंच महाव्रत (जैन धर्म):
- अहिंसा - किसी को न मारना
- सत्य - झूठ न बोलना
- अस्तेय - चोरी न करना
- ब्रह्मचर्य - इंद्रिय संयम
- अपरिग्रह - संग्रह न करना
9. योग के अंतरंग साधनों की व्याख्या कीजिए। [2]
योग के अंतरंग साधन (3 अंग):
- धारणा: चित्त को एक स्थान पर स्थिर करना (जैसे हृदय में)
- ध्यान: एकाग्रता, निरंतर चिंतन
- समाधि: ध्येय में तल्लीन होना, आत्म-साक्षात्कार
बहिरंग: यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार
10. तत्वमीमांसा को स्पष्ट करें। [2]
तत्वमीमांसा (Metaphysics):
वास्तविकता की मूल प्रकृति का अध्ययन - क्या वास्तविक है? ब्रह्म, आत्मा, जगत की प्रकृति क्या है?
मुख्य प्रश्न:
- जगत की उत्पत्ति कैसे हुई?
- ईश्वर है या नहीं?
- आत्मा का स्वरूप क्या है?
- मन-शरीर संबंध क्या है?
11. सुकरात की पद्धति की दो विशेषताओं को समझाइए। [2]
- प्रश्नोत्तर विधि (Socratic Method):
- प्रश्न पूछकर ज्ञान प्राप्त करना
- बातचीत द्वारा सत्य की खोज
- आत्म-ज्ञान पर बल:
- "अपने आप को जानो" (Know Thyself)
- "अज्ञान की स्वीकृति ज्ञान की शुरुआत"
12. अरस्तू ने कौनसे चार कारणों की स्थापना की है? [2]
अरस्तू के चार कारण (Four Causes):
- उपादान कारण (Material Cause): किस चीज से बना? (मिट्टी से घड़ा)
- निमित्त कारण (Efficient Cause): किसने बनाया? (कुम्हार)
- रूप कारण (Formal Cause): किस रूप में? (घड़े का आकार)
- प्रयोजन कारण (Final Cause): क्यों बनाया? (जल रखने के लिए)
13. अर्थक्रियाकारित्व को समझाइये। [2]
अर्थक्रियाकारित्व (Causal Efficiency):
किसी वस्तु का वास्तविक होने का प्रमाण उसकी कार्य करने की क्षमता है।
- बौद्ध दर्शन: जो कार्य कर सके वह सत् (वास्तविक)
- उदाहरण: अग्नि जलाती है → अग्नि वास्तविक। स्वप्न में देखा घोड़ा दौड़ नहीं सकता → अवास्तविक
14. ईसाई धर्म के संप्रदायों के बारे में बताइए। [2]
ईसाई धर्म के मुख्य संप्रदाय:
- कैथोलिक (Catholic):
- रोम का पोप प्रमुख
- सबसे बड़ा संप्रदाय
- प्रोटेस्टेंट (Protestant):
- 16वीं शताब्दी में मार्टिन लूथर द्वारा
- बाइबिल को सर्वोच्च मानते हैं
- ऑर्थोडॉक्स (Orthodox): पूर्वी यूरोप में
15. पारसी धर्म के तीन मूल सिद्धांत कौनसे हैं? [2]
पारसी धर्म (Zoroastrianism) के मूल सिद्धांत:
- हुमत (Good Thoughts): अच्छे विचार
- हुख्त (Good Words): अच्छे शब्द
- हुवर्ष्त (Good Deeds): अच्छे कर्म
अन्य: अहुर मज्दा (सत्य का देवता), अंगरा मैन्यु (असत्य), अग्नि पूजा
खंड - स (Section C)
दीर्घउत्तरीय प्रश्न (3 अंक)
16. मोक्ष की अवधारणा पर टिप्पणी लिखें। [3]
मोक्ष (Moksha/Salvation):
परिभाषा: जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति, दुःख की पूर्ण निवृत्ति
विभिन्न दर्शनों में मोक्ष:
- अद्वैत वेदांत:
- ब्रह्म के साथ एकाकार होना
- "तत् त्वम् असि" - तुम वही हो
- अज्ञान का नाश = मोक्ष
- सांख्य-योग:
- पुरुष-प्रकृति का विवेक ज्ञान
- कैवल्य (एकाकीपन)
- बौद्ध:
- निर्वाण = तृष्णा का नाश
- दीपक का बुझ जाना
- जैन:
- कर्मों का पूर्ण नाश
- आत्मा की शुद्धि
साधन: ज्ञान, ध्यान, भक्ति, कर्म योग
भारतीय दार्शनिक संप्रदायों के वर्गीकरण को स्पष्ट करें।
भारतीय दर्शन का वर्गीकरण
A. आस्तिक दर्शन (वेद प्रमाण मानते हैं) - 6:
दर्शन | प्रवर्तक | मुख्य सिद्धांत |
---|---|---|
न्याय | गौतम | तर्क, 16 पदार्थ |
वैशेषिक | कणाद | परमाणुवाद, 7 पदार्थ |
सांख्य | कपिल | पुरुष-प्रकृति द्वैतवाद |
योग | पतंजलि | चित्तवृत्तिनिरोध, अष्टांग योग |
मीमांसा | जैमिनी | वेद कर्मकांड, धर्म |
वेदांत | बादरायण | ब्रह्म, उपनिषद् ज्ञान |
B. नास्तिक दर्शन (वेद नहीं मानते) - 3:
दर्शन | प्रवर्तक | मुख्य सिद्धांत |
---|---|---|
चार्वाक | चार्वाक | भौतिकवाद, प्रत्यक्ष प्रमाण |
बौद्ध | गौतम बुद्ध | चार आर्य सत्य, अष्टांगिक मार्ग |
जैन | महावीर | अहिंसा, अनेकांतवाद, स्याद्वाद |
17. उपनिषदों के अनुसार आत्मा की चार अवस्थाओं का संक्षिप्त वर्णन। [3]
आत्मा की चार अवस्थाएं (माण्डूक्य उपनिषद):
- जाग्रत (Waking State):
- बाहरी जगत का अनुभव
- इंद्रियों द्वारा ज्ञान
- विश्व (स्थूल शरीर)
- स्वप्न (Dream State):
- मानसिक जगत का अनुभव
- आंतरिक छवियां
- तैजस (सूक्ष्म शरीर)
- सुषुप्ति (Deep Sleep):
- न बाहरी न आंतरिक अनुभव
- अज्ञान की अवस्था
- प्राज्ञ (कारण शरीर)
- तुरीय (Transcendental State):
- चौथी अवस्था, शुद्ध चेतना
- ब्रह्म-साक्षात्कार
- न जागना, न स्वप्न, न सुषुप्ति
- मोक्ष की अवस्था
"ॐ" इन चारों का प्रतीक: अ+उ+म+तुरीय
गीता दर्शन के कर्मयोग की अवधारणा को स्पष्ट करें।
कर्मयोग (Karma Yoga - भगवद् गीता):
मुख्य सिद्धांत:
- निष्काम कर्म:
- "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन"
- कर्म करने का अधिकार, फल की इच्छा नहीं
- कर्तव्य पालन:
- स्वधर्म का पालन
- बिना आसक्ति के कर्म
- समत्व बुद्धि:
- "समत्वं योग उच्यते"
- सफलता-असफलता में समान भाव
- ईश्वरार्पण:
- सभी कर्म ईश्वर को समर्पित
- यज्ञ की भावना से कर्म
महत्व: कर्म से मुक्ति नहीं, कर्म की आसक्ति से मुक्ति
18. शंकराचार्य के अद्वैतवाद को स्पष्ट करें। [3]
अद्वैत वेदांत (Advaita Vedanta):
मूल सिद्धांत:
"ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः"
(ब्रह्म सत्य है, जगत मिथ्या है, जीव ब्रह्म ही है और कुछ नहीं)
- ब्रह्म एक है:
- केवल एक ही तत्व - ब्रह्म
- द्वैत (दोत्व) माया का भ्रम
- जगत मिथ्या:
- रज्जु-सर्प न्याय (रस्सी में सांप का भ्रम)
- व्यावहारिक सत्ता, पारमार्थिक नहीं
- जीव-ब्रह्म एकता:
- आत्मा = ब्रह्म
- "तत् त्वम् असि" (तुम वही हो)
- माया सिद्धांत:
- अज्ञान से भ्रम
- ज्ञान से नाश
मोक्ष: ब्रह्म-ज्ञान से, "अहं ब्रह्मास्मि" की अनुभूति
प्लेटो की द्वंद्वात्मक पद्धति के चार चरण कौनसे हैं?
प्लेटो की द्वंद्वात्मक पद्धति (Dialectical Method):
- कल्पना (Imagination/Eikasia):
- परछाइयों और प्रतिबिंबों का ज्ञान
- सबसे निम्न स्तर
- भ्रामक ज्ञान
- विश्वास (Belief/Pistis):
- भौतिक वस्तुओं का ज्ञान
- इंद्रियों द्वारा
- अस्थायी ज्ञान
- तर्क (Reasoning/Dianoia):
- गणितीय और तार्किक ज्ञान
- मानसिक क्रिया
- सार्वभौम सत्य की खोज
- बोध (Understanding/Noesis):
- प्रत्ययों (Ideas/Forms) का ज्ञान
- सर्वोच्च ज्ञान
- Good (शुभ) का बोध
गुफा का रूपक: अंधेरे से प्रकाश की यात्रा
19. धर्म एवं रिलीजन में अंतर स्पष्ट करें। [3]
धर्म (Dharma) | रिलीजन (Religion) |
---|---|
व्यापक अर्थ - कर्तव्य, नीति, आचरण | संकुचित - ईश्वर, उपासना, संप्रदाय |
जीवन पद्धति (Way of Life) | विश्वास प्रणाली (Belief System) |
सार्वभौमिक सिद्धांत | विशेष मत या पंथ |
व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों | मुख्यतः व्यक्तिगत आस्था |
संस्थापक आवश्यक नहीं | संस्थापक होता है |
उदाहरण: सत्य, अहिंसा सभी का धर्म | उदाहरण: हिंदू, मुस्लिम, ईसाई धर्म |
संबंध: Religion धर्म का एक रूप है, लेकिन धर्म Religion से व्यापक
पुरुषार्थ-विचार को स्पष्ट करें।
चार पुरुषार्थ (Four Goals of Life):
- धर्म (Righteousness):
- कर्तव्य पालन, नैतिकता
- सामाजिक और व्यक्तिगत धर्म
- आधार है अन्य तीनों का
- अर्थ (Wealth):
- भौतिक संपत्ति, धन
- जीवन यापन के लिए
- धर्म के अनुसार अर्जन
- काम (Desire):
- इच्छाओं की पूर्ति
- सुख, प्रेम, सौंदर्य
- मर्यादा में रहकर
- मोक्ष (Liberation):
- परम लक्ष्य
- जन्म-मृत्यु से मुक्ति
- आत्म-साक्षात्कार
संतुलन: चारों का संतुलित विकास ही पूर्ण जीवन
खंड - द (Section D)
निबंधात्मक प्रश्न (4 अंक)
20. चार्वाक दर्शन की जड़वादी नीतिमीमांसा की समीक्षा करें। [4]
चार्वाक की नीति (Materialistic Ethics):
मूल सिद्धांत:
- सूत्र: "यावज्जीवेत् सुखं जीवेत्, ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत्"
- (जब तक जियो सुख से जियो, कर्ज लेकर भी घी पियो)
विशेषताएं:
- भोगवाद (Hedonism):
- सुख ही जीवन का लक्ष्य
- दुःख से बचना
- वर्तमान में जीना
- पुनर्जन्म नहीं:
- मृत्यु के बाद कुछ नहीं
- स्वर्ग-नरक काल्पनिक
- कर्मफल का सिद्धांत झूठा
- नैतिकता की आलोचना:
- धर्म पाखंड
- यज्ञ व्यर्थ
- ब्राह्मणों की चालाकी
- व्यावहारिक नीति:
- सुख में दुःख मिश्रित
- मछली की तरह - कांटे छोड़, मांस खाओ
- बुद्धिमत्ता से सुख चुनो
समीक्षा:
गुण:
- अंधविश्वास का विरोध
- तर्कसंगत दृष्टिकोण
- वर्तमान को महत्व
दोष:
- अति भोगवाद
- नैतिकता की उपेक्षा
- आध्यात्मिक पक्ष नकारना
- समाज विरोधी हो सकता है
बौद्ध दर्शन के चार आर्य सत्यों का वर्णन कीजिए।
चार आर्य सत्य (Four Noble Truths - बौद्ध धर्म):
- दुःख (Dukkha - Suffering exists):
सिद्धांत: जीवन दुःखमय है
प्रकार:
- दुःख-दुःख: जन्म, बुढ़ापा, बीमारी, मृत्यु
- विपरिणाम-दुःख: सुख का नाश होना
- संस्कार-दुःख: परिवर्तनशीलता
प्रिय से वियोग, अप्रिय से संयोग = दुःख
- दुःख समुदाय (Samudaya - Origin of Suffering):
सिद्धांत: तृष्णा (इच्छा) दुःख का कारण
तीन प्रकार की तृष्णा:
- काम-तृष्णा: भोग की इच्छा
- भव-तृष्णा: अस्तित्व की इच्छा, पुनर्जन्म
- विभव-तृष्णा: नाश की इच्छा
अज्ञान (अविद्या) → तृष्णा → दुःख
- दुःख निरोध (Nirodha - Cessation of Suffering):
सिद्धांत: दुःख का नाश संभव है
- तृष्णा का पूर्ण विनाश = निर्वाण
- दीपक का बुझ जाना
- शांति, मुक्ति
तृष्णा नष्ट → कर्म नष्ट → पुनर्जन्म नहीं
- दुःख निरोध का मार्ग (Magga - Path to end Suffering):
सिद्धांत: अष्टांगिक मार्ग
तीन भाग:
- प्रज्ञा (Wisdom): सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प
- शील (Morality): सम्यक् वाक्, कर्मांत, आजीव
- समाधि (Meditation): सम्यक् व्यायाम, स्मृति, समाधि
महत्व:
चार आर्य सत्य बौद्ध धर्म की नींव हैं। ये रोग-निदान की तरह हैं:
- दुःख = रोग
- तृष्णा = कारण
- निर्वाण = स्वास्थ्य
- अष्टांगिक मार्ग = उपचार
21. डेकार्त की दार्शनिक विधि की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए। [4]
डेकार्त की पद्धति (Cartesian Method):
पृष्ठभूमि:
डेकार्त (1596-1650) आधुनिक दर्शन के जनक, बुद्धिवाद के समर्थक
चार नियम (Four Rules):
- संदेह का नियम (Rule of Doubt):
- सभी चीजों पर संदेह करो
- जो स्पष्ट और सुनिश्चित न हो, उसे स्वीकार न करो
- पद्धतिगत संदेह (Methodological Doubt)
- विश्लेषण का नियम (Rule of Analysis):
- जटिल समस्या को सरल भागों में बांटो
- प्रत्येक भाग को अलग समझो
- संश्लेषण का नियम (Rule of Synthesis):
- सरल से जटिल की ओर बढ़ो
- क्रमबद्ध तरीके से
- गणना का नियम (Rule of Enumeration):
- पूर्ण समीक्षा करो
- कुछ छूटे नहीं
मुख्य विशेषताएं:
- "Cogito, ergo sum" (मैं सोचता हूं अतः मैं हूं):
- सब पर संदेह संभव
- लेकिन संदेह करने वाले पर नहीं
- सोचना = अस्तित्व का प्रमाण
- स्पष्ट और सुनिश्चित विचार (Clear and Distinct Ideas):
- सत्य की कसौटी
- गणित की तरह निश्चितता
- बुद्धिवाद (Rationalism):
- इंद्रियों पर विश्वास नहीं
- तर्क और बुद्धि सर्वोच्च
- जन्मजात प्रत्यय (Innate Ideas)
- द्वैतवाद (Dualism):
- मन (Res Cogitans - Thinking substance)
- शरीर (Res Extensa - Extended substance)
- दोनों स्वतंत्र तत्व
योगदान:
- आधुनिक दर्शन की नींव
- विज्ञान को दार्शनिक आधार
- गणितीय निश्चितता का प्रयास
आलोचना:
- इंद्रिय अनुभव की उपेक्षा
- मन-शरीर संबंध अस्पष्ट
- पूर्ण संदेह असंभव
जैन धर्म की तत्वमीमांसा की व्याख्या करें।
जैन दर्शन की तत्वमीमांसा (Jain Metaphysics):
सात तत्व (Sapta Tattva):
- जीव (Soul/Jiva):
- चेतन तत्व, संख्या में अनंत
- ज्ञान, दर्शन, सुख का स्वभाव
- कर्मों से बंधा हुआ
- अजीव (Non-Soul):
- जड़ पदार्थ - पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल
- चेतनारहित
- आस्रव (Influx):
- कर्म परमाणुओं का आत्मा में प्रवेश
- इंद्रियों और मन द्वारा
- बंध (Bondage):
- कर्मों का आत्मा से चिपकना
- 8 प्रकार के कर्म
- संवर (Stoppage):
- नए कर्मों का रोकना
- संयम, तप द्वारा
- निर्जरा (Shedding):
- पुराने कर्मों का क्षय
- तपस्या से
- मोक्ष (Liberation):
- कर्मों से पूर्ण मुक्ति
- आत्मा की शुद्ध अवस्था
- सिद्ध अवस्था
अनेकांतवाद (Non-Absolutism):
- सत्य के अनेक पक्ष
- कोई एक दृष्टिकोण पूर्ण नहीं
- हाथी का दृष्टांत
स्याद्वाद (May-be-ism):
7 प्रकार के कथन:
- स्याद् अस्ति (शायद है)
- स्याद् नास्ति (शायद नहीं है)
- स्याद् अस्ति च नास्ति च (शायद है और नहीं भी)
- स्याद् अवक्तव्यम् (शायद अवर्णनीय)
- स्याद् अस्ति च अवक्तव्यम्
- स्याद् नास्ति च अवक्तव्यम्
- स्याद् अस्ति च नास्ति च अवक्तव्यम्
22. धार्मिक सहिष्णुता से क्या तात्पर्य है? विवेचना कीजिए। [4]
धार्मिक सहिष्णुता (Religious Tolerance):
परिभाषा:
अन्य धर्मों के प्रति द्वेष और विरोध का भाव न रखना, सभी धर्मों का सम्मान करना।
मुख्य तत्व:
- स्वीकृति (Acceptance):
- धार्मिक विविधता को मान्यता
- किसी को बलपूर्वक न बदलना
- सम्मान (Respect):
- अन्य धर्मों की मान्यताओं का आदर
- पूजा स्थलों का सम्मान
- समझ (Understanding):
- अन्य धर्मों को जानने का प्रयास
- पूर्वाग्रहों से मुक्ति
- सह-अस्तित्व (Co-existence):
- शांतिपूर्वक साथ रहना
- सामाजिक सद्भाव
भारतीय परंपरा में:
- वेद: "एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति" (सत्य एक, ज्ञानी अनेक नाम देते हैं)
- गीता: "ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्"
- अशोक: सभी संप्रदायों का आदर
- अकबर: सुलह-ए-कुल (सार्वभौम शांति)
आवश्यकता:
- शांति:
- धार्मिक संघर्ष से बचाव
- सामाजिक स्थिरता
- मानवता:
- मानव एकता
- भेदभाव का अंत
- विकास:
- संसाधनों का सदुपयोग
- सहयोग और प्रगति
- नैतिक:
- सभी धर्म प्रेम, करुणा सिखाते हैं
- मूल सिद्धांत समान
बाधाएं:
- कट्टरता और अज्ञान
- राजनीतिक स्वार्थ
- ऐतिहासिक द्वेष
उपाय:
- धार्मिक शिक्षा में सहिष्णुता
- अंतर-धार्मिक संवाद
- कानूनी संरक्षण
- मीडिया की जिम्मेदारी
विभिन्न धर्मों में सार्वभौमिक जीवन दृष्टि के तत्वों की समीक्षा करें।
सार्वभौमिक जीवन दृष्टि (Universal Vision):
समान मूल्य (Common Values):
- अहिंसा/प्रेम:
- हिंदू: अहिंसा परमो धर्मः
- बौद्ध: मेत्ता (मैत्री), करुणा
- जैन: अहिंसा सर्वोपरि
- ईसाई: "Love thy neighbor"
- इस्लाम: रहमत (दया)
- सत्य:
- हिंदू: सत्यमेव जयते
- बौद्ध: सम्यक् वाक्
- ईसाई: Ten Commandments में सत्य
- इस्लाम: सिद्क (सच्चाई)
- दया/करुणा:
- सभी धर्म दुखियों की सहायता सिखाते हैं
- दान, सेवा का महत्व
- न्याय:
- सभी के साथ निष्पक्ष व्यवहार
- समानता का सिद्धांत
आध्यात्मिक समानता:
धर्म | परम सत्य | लक्ष्य |
---|---|---|
हिंदू | ब्रह्म | मोक्ष |
बौद्ध | शून्य/तथता | निर्वाण |
जैन | शुद्ध आत्मा | कैवल्य |
ईसाई | God | Heaven/Salvation |
इस्लाम | अल्लाह | जन्नत |
नैतिक समानता:
- दस आज्ञाएं (ईसाई) ≈ यम-नियम (योग) ≈ पंच शील (बौद्ध)
- स्वर्ण नियम: जैसा तुम चाहो, वैसा दूसरों के साथ करो
निष्कर्ष:
सभी धर्म एक ही पर्वत के विभिन्न मार्ग हैं। मूल में सत्य, प्रेम, करुणा और आत्म-साक्षात्कार समान है।
परीक्षा तैयारी टिप्स
📚 महत्वपूर्ण सुझाव:
- दर्शनों की तुलना: आस्तिक-नास्तिक, भारतीय-पाश्चात्य की तुलना करें
- संस्कृत श्लोक: प्रमुख श्लोक और सूक्तियां याद करें
- दार्शनिकों के नाम: भारतीय और पाश्चात्य दोनों के योगदान
- धर्म के सिद्धांत: प्रत्येक धर्म के मूल सिद्धांत स्पष्ट रखें
- परिभाषाएं: तत्वमीमांसा, ज्ञानमीमांसा, नीतिमीमांसा स्पष्ट