सूर्यग्रहण: कारण, प्रकार, प्रभाव और संपूर्ण जानकारी | Solar Eclipse Guide 2025

प्रकार | खगोलीय घटना |
---|---|
कारण | चंद्रमा द्वारा सूर्य का अवरोध |
मुख्य प्रकार | पूर्ण, आंशिक, वलयाकार, संकर |
अवधि | कुछ मिनट से घंटों तक |
आवृत्ति | वर्ष में 2-5 बार (पृथ्वी पर) |
अगला पूर्ण ग्रहण | 12 अगस्त 2026 (भारत में) |
सूर्य ग्रहण
सूर्य ग्रहण (अंग्रेज़ी: Solar Eclipse) एक खगोलीय घटना है जो तब घटित होती है जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के बीच आ जाता है और सूर्य के प्रकाश को पूर्ण या आंशिक रूप से अवरुद्ध कर देता है।[1] यह घटना केवल अमावस्या के दिन ही संभव है जब चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी लगभग एक सीध में होते हैं। सूर्य ग्रहण प्रकृति की सबसे अद्भुत और दुर्लभ खगोलीय घटनाओं में से एक है जो मानव सभ्यता को प्राचीन काल से मंत्रमुग्ध करती आई है।
सूर्य ग्रहण के दौरान चंद्रमा की छाया पृथ्वी की सतह पर पड़ती है, जिससे दिन के समय अस्थायी अंधकार छा जाता है। यह घटना कुछ सेकंड से लेकर सात मिनट तक चल सकती है।[2] प्राचीन काल में सूर्य ग्रहण को अपशकुन माना जाता था, लेकिन आधुनिक विज्ञान ने इसे एक प्राकृतिक खगोलीय घटना के रूप में स्थापित किया है जो गणितीय सटीकता के साथ पूर्वानुमानित की जा सकती है।
- 1. सूर्य ग्रहण का वैज्ञानिक आधार
- 1.1 ग्रहण की भौतिकी
- 1.2 चंद्रमा की छाया
- 1.3 सरोस चक्र
- 2. सूर्य ग्रहण के प्रकार
- 2.1 पूर्ण सूर्य ग्रहण
- 2.2 आंशिक सूर्य ग्रहण
- 2.3 वलयाकार सूर्य ग्रहण
- 2.4 संकर सूर्य ग्रहण
- 3. ग्रहण की आवृत्ति और भूगोल
- 4. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
- 5. वैज्ञानिक महत्व और अनुसंधान
- 6. सूर्य ग्रहण का सुरक्षित अवलोकन
- 7. प्रमुख ऐतिहासिक सूर्य ग्रहण
- 8. भारत में आगामी सूर्य ग्रहण
- 9. मिथक और वास्तविकता
- 10. संदर्भ
[संपादित करें]सूर्य ग्रहण का वैज्ञानिक आधार

सूर्य ग्रहण एक सीधी ज्यामितीय घटना है जो तब घटित होती है जब तीन खगोलीय पिंड - सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी - एक सीधी रेखा या लगभग सीधी रेखा में संरेखित हो जाते हैं।[3] यह संरेखण केवल अमावस्या की स्थिति में संभव है। हालांकि, हर अमावस्या को सूर्य ग्रहण नहीं होता क्योंकि चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा के तल से लगभग 5 डिग्री झुकी हुई है।
सूर्य और चंद्रमा के आकार और पृथ्वी से उनकी दूरी में एक अद्भुत संयोग है। सूर्य का व्यास चंद्रमा के व्यास से लगभग 400 गुना बड़ा है, लेकिन सूर्य पृथ्वी से चंद्रमा की तुलना में लगभग 400 गुना अधिक दूर भी है।[4] इस कारण दोनों पिंड पृथ्वी से लगभग समान कोणीय आकार के दिखाई देते हैं, जो पूर्ण सूर्य ग्रहण को संभव बनाता है।
ग्रहण की भौतिकी
जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच आता है, तो वह अपनी छाया पृथ्वी पर डालता है। यह छाया दो भागों में विभाजित होती है - उपच्छाया (Penumbra) और प्रच्छाया (Umbra)। प्रच्छाया वह गहरी, शंकु के आकार की छाया है जहाँ सूर्य पूरी तरह से अवरुद्ध हो जाता है। उपच्छाया एक हल्की छाया है जहाँ सूर्य आंशिक रूप से दृश्य रहता है।
छाया का प्रकार | विशेषता | ग्रहण का प्रकार | सूर्य की दृश्यता |
---|---|---|---|
प्रच्छाया (Umbra) | पूर्ण छाया | पूर्ण ग्रहण | 0% (पूर्ण अवरोध) |
उपच्छाया (Penumbra) | आंशिक छाया | आंशिक ग्रहण | 1-99% दृश्य |
प्रतिच्छाया (Antumbra) | विस्तारित छाया | वलयाकार ग्रहण | वलय रूप में दृश्य |
चंद्रमा की छाया
चंद्रमा की प्रच्छाया पृथ्वी की सतह पर लगभग 160 किलोमीटर चौड़ी होती है और यह पृथ्वी के घूर्णन और चंद्रमा की कक्षीय गति के कारण पश्चिम से पूर्व की ओर लगभग 1,700 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलती है।[5] यही कारण है कि किसी एक स्थान पर पूर्ण सूर्य ग्रहण की अवधि बहुत कम (अधिकतम 7 मिनट 32 सेकंड) होती है।
सरोस चक्र
सरोस (Saros) एक 18 वर्ष, 11 दिन और 8 घंटे का खगोलीय चक्र है जिसके बाद सूर्य ग्रहण की स्थिति दोहराती है।[6] यह चक्र प्राचीन बेबीलोन के खगोलविदों द्वारा खोजा गया था। एक सरोस चक्र में लगभग 70-85 ग्रहण होते हैं। इस चक्र का उपयोग भविष्य के ग्रहणों की भविष्यवाणी करने के लिए किया जाता है।
[संपादित करें]सूर्य ग्रहण के प्रकार

सूर्य ग्रहण मुख्य रूप से चार प्रकार के होते हैं, जो चंद्रमा की पृथ्वी से दूरी और संरेखण की सटीकता पर निर्भर करते हैं।[7] प्रत्येक प्रकार की अपनी विशिष्ट खगोलीय और दृश्य विशेषताएँ होती हैं।
ग्रहण का प्रकार | आवृत्ति (%) | अधिकतम अवधि | मुख्य विशेषता |
---|---|---|---|
पूर्ण सूर्य ग्रहण | 26.7% | 7 मिनट 32 सेकंड | सूर्य पूर्णतः अवरुद्ध, कोरोना दृश्य |
वलयाकार सूर्य ग्रहण | 33.2% | 12 मिनट 30 सेकंड | "आग की अंगूठी" प्रभाव |
आंशिक सूर्य ग्रहण | 35.3% | विभिन्न | सूर्य का केवल एक भाग ढका |
संकर सूर्य ग्रहण | 4.8% | विभिन्न | पूर्ण और वलयाकार का मिश्रण |
पूर्ण सूर्य ग्रहण
पूर्ण सूर्य ग्रहण (Total Solar Eclipse) सबसे नाटकीय और दुर्लभ प्रकार का ग्रहण है। यह तब होता है जब चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से ढक लेता है, जिससे दिन के समय अंधेरा छा जाता है।[8] पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य का बाहरी वातावरण, जिसे कोरोना (Corona) कहते हैं, दिखाई देता है। यह एक मोती-सफेद प्रभामंडल है जो अत्यंत उच्च तापमान (2 मिलियन डिग्री सेल्सियस से अधिक) पर होता है।
पूर्ण ग्रहण की अवस्थाएँ
अवस्था | नाम | विवरण | अवधि |
---|---|---|---|
1 | प्रथम स्पर्श (C1) | चंद्रमा सूर्य को छूना शुरू करता है | — |
2 | द्वितीय स्पर्श (C2) | पूर्ण ग्रहण शुरू, बेली के मोती | कुछ सेकंड |
3 | पूर्णता (Maximum) | पूर्ण अंधकार, कोरोना दृश्य | 0-7.5 मिनट |
4 | तृतीय स्पर्श (C3) | पूर्ण ग्रहण समाप्त, हीरे की अंगूठी | कुछ सेकंड |
5 | चतुर्थ स्पर्श (C4) | ग्रहण पूर्णतः समाप्त | — |
आंशिक सूर्य ग्रहण
आंशिक सूर्य ग्रहण (Partial Solar Eclipse) तब होता है जब चंद्रमा सूर्य के केवल एक भाग को ढकता है। यह ग्रहण उन क्षेत्रों में दिखाई देता है जो चंद्रमा की उपच्छाया में आते हैं।[9] आंशिक ग्रहण पूर्ण या वलयाकार ग्रहण की पट्टी के बाहर के क्षेत्रों में भी दिखाई देता है। लगभग 35% सूर्य ग्रहण केवल आंशिक होते हैं, अर्थात पृथ्वी पर कहीं भी पूर्ण या वलयाकार ग्रहण नहीं दिखता।
वलयाकार सूर्य ग्रहण
वलयाकार सूर्य ग्रहण (Annular Solar Eclipse) तब होता है जब चंद्रमा अपनी कक्षा में पृथ्वी से अधिक दूरी पर होता है और सूर्य को पूरी तरह ढक नहीं पाता।[10] इस स्थिति में चंद्रमा की स्पष्ट व्यास सूर्य की तुलना में छोटा होता है, जिससे सूर्य की एक उज्ज्वल वलय (अंगूठी) चंद्रमा के चारों ओर दिखाई देती है। इसे "आग की अंगूठी" (Ring of Fire) भी कहते हैं।
संकर सूर्य ग्रहण
संकर सूर्य ग्रहण (Hybrid Solar Eclipse), जिसे कभी-कभी वलयाकार-पूर्ण ग्रहण भी कहा जाता है, एक दुर्लभ प्रकार का ग्रहण है।[11] यह ग्रहण अपने पथ के कुछ भागों में पूर्ण और अन्य भागों में वलयाकार के रूप में प्रकट होता है। यह तब होता है जब चंद्रमा की दूरी और पृथ्वी की वक्रता के कारण प्रच्छाया की शंकु पृथ्वी की सतह को केवल कुछ स्थानों पर ही छूती है।
[संपादित करें]ग्रहण की आवृत्ति और भूगोल

पृथ्वी पर प्रत्येक वर्ष न्यूनतम दो और अधिकतम पाँच सूर्य ग्रहण होते हैं, हालांकि औसतन लगभग 2.4 सूर्य ग्रहण प्रतिवर्ष घटित होते हैं।[12] पूर्ण सूर्य ग्रहण किसी विशिष्ट स्थान पर औसतन हर 375 वर्षों में एक बार दिखाई देता है, हालांकि यह अवधि बहुत भिन्न हो सकती है।
भौगोलिक वितरण
समय अवधि | पूर्ण ग्रहण | वलयाकार ग्रहण | आंशिक ग्रहण | संकर ग्रहण | कुल |
---|---|---|---|---|---|
1901-2000 | 78 | 73 | 78 | 6 | 235 |
2001-2100 | 68 | 72 | 84 | 7 | 224 |
2101-2200 | 72 | 80 | 69 | 7 | 228 |
औसत प्रति वर्ष | 0.7 | 0.7 | 0.8 | 0.07 | 2.3 |
ग्रहण पथ की चौड़ाई
पूर्ण सूर्य ग्रहण का पथ (Path of Totality) आमतौर पर केवल 100-160 किलोमीटर चौड़ा होता है, हालांकि कुछ दुर्लभ मामलों में यह 250 किलोमीटर तक चौड़ा हो सकता है।[13] यह पथ हजारों किलोमीटर लंबा होता है और पश्चिम से पूर्व की ओर यात्रा करता है। इस संकीर्ण पथ के बाहर, लोग केवल आंशिक ग्रहण देख सकते हैं।
उदाहरण: पथ की गणना
यदि चंद्रमा की छाया 1,700 किमी/घंटा की गति से चल रही है और पूर्ण ग्रहण की अवधि 3 मिनट है, तो:
पथ की लंबाई = गति × समय
= 1,700 किमी/घंटा × (3/60) घंटा
= 85 किलोमीटर
यह वह दूरी है जो छाया 3 मिनट में तय करेगी।
[संपादित करें]ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
सूर्य ग्रहण ने मानव इतिहास और संस्कृति में गहरा प्रभाव डाला है। प्राचीन सभ्यताओं में ग्रहण को अक्सर अलौकिक घटनाओं या देवताओं के क्रोध से जोड़ा जाता था।[14] विभिन्न संस्कृतियों में ग्रहण से संबंधित अनेक मिथक और किंवदंतियाँ प्रचलित हैं।
प्राचीन सभ्यताओं में
सभ्यता/संस्कृति | मान्यता/व्याख्या | प्रतिक्रिया |
---|---|---|
प्राचीन चीन | एक विशाल अजगर सूर्य को निगल रहा है | शोर मचाना, ढोल बजाना |
प्राचीन भारत | राहु-केतु द्वारा सूर्य का ग्रास | पवित्र नदियों में स्नान, उपवास |
वाइकिंग | स्कोल और हाटी भेड़िये सूर्य को खा रहे हैं | सूर्य को बचाने के लिए प्रार्थना |
प्राचीन ग्रीस | देवताओं का क्रोध या चेतावनी | बलिदान और प्रार्थना |
माया सभ्यता | जगुआर द्वारा सूर्य पर आक्रमण | धार्मिक अनुष्ठान |
भारतीय ज्योतिष और धर्म में
भारतीय संस्कृति में सूर्य ग्रहण को एक महत्वपूर्ण खगोलीय और धार्मिक घटना माना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, राहु और केतु नामक दो छाया ग्रह सूर्य को ग्रस लेते हैं।[15] ग्रहण के समय कई धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं:
- सूतक काल: ग्रहण से 12 घंटे पहले से शुरू होने वाला अपवित्र समय
- स्नान: ग्रहण से पहले और बाद में पवित्र नदियों में स्नान
- उपवास: ग्रहण के दौरान भोजन वर्जित
- मंत्र जाप: विशेष मंत्रों का जाप
- दान: ग्रहण के बाद दान और पुण्य कार्य
वैज्ञानिक इतिहास में महत्वपूर्ण ग्रहण
कुछ सूर्य ग्रहणों ने वैज्ञानिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सबसे प्रसिद्ध 29 मई 1919 का ग्रहण है जिसने आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत की पुष्टि की।[16] ब्रिटिश खगोलशास्त्री सर आर्थर एडिंगटन ने इस ग्रहण के दौरान तारों की स्थिति में विचलन को मापा, जो सूर्य के गुरुत्वाकर्षण द्वारा प्रकाश के मुड़ने की पुष्टि करता था।
[संपादित करें]वैज्ञानिक महत्व और अनुसंधान

सूर्य ग्रहण वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए अत्यंत मूल्यवान अवसर प्रदान करते हैं। पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान, खगोलविद सूर्य के बाहरी वातावरण का अध्ययन कर सकते हैं जो सामान्यतः सूर्य के तीव्र प्रकाश के कारण दिखाई नहीं देता।[17]
सौर कोरोना का अध्ययन
सूर्य का कोरोना एक रहस्यमय क्षेत्र है जिसका तापमान सूर्य की सतह (फोटोस्फीयर) से लगभग 200 गुना अधिक है। पूर्ण ग्रहण के दौरान वैज्ञानिक निम्नलिखित का अध्ययन करते हैं:
- कोरोनल मास इजेक्शन (CME): सूर्य से निकलने वाली विशाल प्लाज्मा लहरें
- सौर पवन: सूर्य से निकलने वाले आवेशित कणों का प्रवाह
- चुंबकीय क्षेत्र: कोरोना की संरचना और गतिविधि
- तापमान वितरण: कोरोना के विभिन्न भागों का तापमान
अन्य वैज्ञानिक अनुप्रयोग
अनुसंधान क्षेत्र | अध्ययन का विषय | महत्व |
---|---|---|
सापेक्षता सिद्धांत | गुरुत्वाकर्षण द्वारा प्रकाश का मुड़ना | आइंस्टीन के सिद्धांत की पुष्टि |
वायुमंडलीय विज्ञान | पृथ्वी के वायुमंडल पर प्रभाव | तापमान और आयनोस्फीयर में परिवर्तन |
जीव विज्ञान | जीवों का व्यवहार परिवर्तन | सर्कैडियन लय पर प्रभाव |
एक्सोप्लैनेट खोज | ग्रहण तकनीक का विकास | अन्य सौर मंडलों में ग्रहों की खोज |
[संपादित करें]सूर्य ग्रहण का सुरक्षित अवलोकन
सूर्य ग्रहण को देखना रोमांचक है, लेकिन यह अत्यंत खतरनाक भी हो सकता है यदि उचित सावधानियां न बरती जाएं।[18] सूर्य को सीधे देखना, चाहे ग्रहण के दौरान हो या सामान्य समय में, आँखों को गंभीर और स्थायी क्षति पहुँचा सकता है।
सुरक्षित देखने के तरीके
विधि | विवरण | सुरक्षा स्तर | लागत |
---|---|---|---|
सौर फिल्टर चश्मे | ISO 12312-2 प्रमाणित ग्रहण चश्मे | बहुत सुरक्षित | ₹50-200 |
वेल्डिंग ग्लास | शेड नंबर 14 या उच्चतर | सुरक्षित | ₹100-300 |
पिनहोल प्रोजेक्टर | अप्रत्यक्ष देखने की विधि | बहुत सुरक्षित | मुफ्त |
सौर दूरबीन | विशेष सौर फिल्टर के साथ | सुरक्षित (यदि सही उपयोग) | ₹10,000+ |
खतरनाक तरीके (कभी न करें)
- ❌ नग्न आँखों से सीधे सूर्य को देखना
- ❌ सामान्य धूप के चश्मे का उपयोग
- ❌ काले कांच, एक्स-रे फिल्म या स्मोक्ड ग्लास
- ❌ बिना फिल्टर की दूरबीन या टेलीस्कोप
- ❌ कैमरे के व्यूफाइंडर के माध्यम से देखना
- ❌ पानी में प्रतिबिंब देखना
पिनहोल प्रोजेक्टर बनाने की विधि
घर पर पिनहोल प्रोजेक्टर बनाएं
आवश्यक सामग्री:
- दो सफेद कार्डबोर्ड या कागज
- एक पिन या सुई
विधि:
- एक कार्डबोर्ड में पिन से एक छोटा छेद करें
- सूर्य की ओर पीठ करके खड़े हों
- छिद्र वाले कार्डबोर्ड को सूर्य की ओर ऊपर उठाएं
- दूसरे कार्डबोर्ड को नीचे जमीन की ओर पकड़ें
- छिद्र से गुजरने वाला प्रकाश नीचे के कागज पर सूर्य की छवि बनाएगा
- ग्रहण की प्रगति को इस प्रतिबिंब में सुरक्षित रूप से देखें
लाभ: पूर्णतः सुरक्षित, कम लागत, शैक्षिक
सौर रेटिनोपैथी
सूर्य को सीधे देखने से सौर रेटिनोपैथी (Solar Retinopathy) हो सकती है, जो रेटिना को स्थायी क्षति पहुँचाती है।[19] इस स्थिति में कोई दर्द नहीं होता क्योंकि रेटिना में दर्द रिसेप्टर्स नहीं होते। लक्षणों में धुंधली दृष्टि, अंधे धब्बे, और रंग दृष्टि में परिवर्तन शामिल हैं। यह क्षति अक्सर अपरिवर्तनीय होती है।
[संपादित करें]प्रमुख ऐतिहासिक सूर्य ग्रहण
मानव इतिहास में कुछ सूर्य ग्रहणों ने विशेष महत्व प्राप्त किया है, चाहे वैज्ञानिक खोजों के कारण, ऐतिहासिक घटनाओं से संबंध के कारण, या अपनी दुर्लभता के कारण।[20]
तिथि | प्रकार | महत्व/विशेषता | दृश्यता क्षेत्र |
---|---|---|---|
28 मई 585 ईसा पूर्व | पूर्ण | थेल्स का ग्रहण - पहला भविष्यवाणित ग्रहण, मीडिया-लिडिया युद्ध समाप्त किया | पूर्वी भूमध्यसागर |
29 मई 1919 | पूर्ण | आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत की पुष्टि | दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका |
11 अगस्त 1999 | पूर्ण | 20वीं सदी का अंतिम पूर्ण ग्रहण, यूरोप में व्यापक दृश्यता | यूरोप, मध्य पूर्व, भारत |
21 अगस्त 2017 | पूर्ण | "महान अमेरिकी ग्रहण" - संयुक्त राज्य को coast-to-coast पार किया | संयुक्त राज्य अमेरिका |
26 दिसंबर 2019 | वलयाकार | "आग की अंगूठी" - भारत में व्यापक रूप से देखा गया | भारत, दक्षिण पूर्व एशिया |
8 अप्रैल 2024 | पूर्ण | उत्तरी अमेरिका में सबसे लंबी पूर्णता अवधि (4 मिनट 28 सेकंड) | मेक्सिको, अमेरिका, कनाडा |
भारत में ऐतिहासिक ग्रहण
भारत में कुछ महत्वपूर्ण सूर्य ग्रहण जो पिछली शताब्दी में दिखाई दिए:
- 16 फरवरी 1980: पूर्ण सूर्य ग्रहण जो दक्षिण भारत से होकर गुजरा, वैज्ञानिकों के लिए महत्वपूर्ण अवलोकन का अवसर
- 24 अक्टूबर 1995: पूर्ण सूर्य ग्रहण, भारत के उत्तरी क्षेत्रों में दृश्य
- 11 अगस्त 1999: सदी का अंतिम पूर्ण ग्रहण, भारत के पूर्वी तट से दिखा
- 15 जनवरी 2010: वलयाकार ग्रहण, सबसे लंबी अवधि (11 मिनट 8 सेकंड) का रिकॉर्ड
- 26 दिसंबर 2019: वलयाकार ग्रहण, दक्षिण भारत में व्यापक रूप से देखा गया
[संपादित करें]भारत में आगामी सूर्य ग्रहण
भारत में आने वाले वर्षों में कई महत्वपूर्ण सूर्य ग्रहण दिखाई देंगे। यहाँ 2025-2040 के बीच भारत से दृश्य प्रमुख ग्रहणों की सूची है:[21]
तिथि | प्रकार | भारत में दृश्यता | अधिकतम अवधि | मुख्य नगर |
---|---|---|---|---|
29 मार्च 2025 | आंशिक | उत्तर-पूर्व भारत | — | गुवाहाटी, इंफाल |
12 अगस्त 2026 | पूर्ण | उत्तर और पूर्वी भारत | 2 मिनट 18 सेकंड | दिल्ली, लखनऊ, पटना, गुवाहाटी |
2 अगस्त 2027 | पूर्ण | दक्षिण भारत | 6 मिनट 23 सेकंड | बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद |
22 जुलाई 2028 | आंशिक | पूर्वी भारत | — | कोलकाता, भुवनेश्वर |
1 जून 2030 | वलयाकार | मध्य और पूर्वी भारत | 5 मिनट 21 सेकंड | जयपुर, भोपाल, कोलकाता |
ग्रहण पर्यटन
सूर्य ग्रहण ने एक विशेष प्रकार के पर्यटन को जन्म दिया है जहाँ लोग दुनिया भर में पूर्ण ग्रहण देखने के लिए यात्रा करते हैं। भारत में 2026 और 2027 के पूर्ण ग्रहणों के दौरान लाखों पर्यटकों के आने की उम्मीद है। सरकार और पर्यटन संगठन इन घटनाओं के लिए विशेष व्यवस्थाएं और शैक्षिक कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं।
[संपादित करें]मिथक और वास्तविकता
सूर्य ग्रहण के बारे में कई मिथक और भ्रांतियां प्रचलित हैं। आधुनिक विज्ञान ने इन मिथकों का खंडन किया है, फिर भी कुछ मान्यताएं आज भी समाज में प्रचलित हैं।[22]
मिथक | वास्तविकता | वैज्ञानिक स्पष्टीकरण |
---|---|---|
ग्रहण के दौरान भोजन नहीं करना चाहिए | कोई वैज्ञानिक आधार नहीं | ग्रहण का भोजन पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं है |
ग्रहण से गर्भवती महिलाओं को खतरा | पूर्णतः निराधार | ग्रहण केवल एक खगोलीय घटना है, शरीर पर कोई विशेष प्रभाव नहीं |
ग्रहण के बाद स्नान अनिवार्य | धार्मिक परंपरा, वैज्ञानिक आवश्यकता नहीं | सामान्य स्वच्छता के अलावा कोई विशेष आवश्यकता नहीं |
ग्रहण के दौरान हानिकारक किरणें निकलती हैं | गलत | सूर्य की किरणें वही रहती हैं, केवल सूर्य ढका होता है |
ग्रहण के दौरान बने भोजन में विष | निराधार | कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं |
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
आधुनिक विज्ञान ने स्पष्ट किया है कि सूर्य ग्रहण एक प्राकृतिक, भविष्यवाणी योग्य खगोलीय घटना है जो नियमित रूप से घटित होती है। इसका कोई अलौकिक या रहस्यमय पहलू नहीं है। यह घटना न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियमों और केप्लर के ग्रहीय गति के नियमों पर आधारित है। वैज्ञानिक सैकड़ों वर्ष पहले से ग्रहणों की सटीक भविष्यवाणी कर सकते हैं।
[संपादित करें]चंद्र ग्रहण से तुलना
सूर्य ग्रहण की तुलना में चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse) अधिक सामान्य और सुरक्षित रूप से देखा जा सकता है। दोनों के बीच महत्वपूर्ण अंतर हैं:
विशेषता | सूर्य ग्रहण | चंद्र ग्रहण |
---|---|---|
घटना | चंद्रमा सूर्य को ढकता है | पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है |
चंद्र दशा | अमावस्या | पूर्णिमा |
आवृत्ति | 2-5 प्रति वर्ष (पृथ्वी पर) | 2-3 प्रति वर्ष |
दृश्यता क्षेत्र | संकीर्ण पथ (100-200 km) | पृथ्वी के आधे भाग से |
अवधि | कुछ मिनट (अधिकतम 7.5 मिनट) | कई घंटे (3-4 घंटे) |
देखने की सुरक्षा | विशेष सुरक्षा आवश्यक | पूर्णतः सुरक्षित, नग्न आँखों से देखा जा सकता है |
रंग | काला (पूर्ण), उज्ज्वल वलय (वलयाकार) | लाल/तांबे का रंग |
[संपादित करें]भविष्य में सूर्य ग्रहण
लाखों वर्षों के समय पैमाने पर, सूर्य ग्रहण की प्रकृति बदल जाएगी। चंद्रमा पृथ्वी से धीरे-धीरे दूर जा रहा है (प्रति वर्ष लगभग 3.8 सेंटीमीटर)।[23] इस कारण भविष्य में पूर्ण सूर्य ग्रहण असंभव हो जाएंगे क्योंकि चंद्रमा इतना छोटा दिखाई देगा कि वह सूर्य को पूरी तरह नहीं ढक पाएगा। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि लगभग 600 मिलियन वर्षों बाद अंतिम पूर्ण सूर्य ग्रहण घटित होगा, उसके बाद केवल वलयाकार ग्रहण ही संभव होंगे।
[संपादित करें]संदर्भ
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श्रेणियाँ: खगोल विज्ञान | सूर्य ग्रहण | खगोलीय घटनाएं | सौर मंडल | चंद्रमा | खगोलीय यांत्रिकी | भारतीय ज्योतिष | वैज्ञानिक अनुसंधान | आकाशीय घटनाएं