Fundamental Rights, Duties & DPSP – Indian Constitution (RPSC PYQ)

भारतीय संविधान - मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्य, राज्य के नीति निर्देशक तत्व

भारतीय संविधान

मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्य और राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का विस्तृत अध्ययन

1. परिचय

भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है जिसमें 448 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां और 25 भाग हैं। संविधान के भाग III में मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 12-35), भाग IV में राज्य के नीति निर्देशक तत्व (अनुच्छेद 36-51) और भाग IVA में मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद 51A) शामिल हैं।

6
मौलिक अधिकार
11
मौलिक कर्तव्य
3
DPSP श्रेणियां
26
नवंबर 1949 संविधान स्वीकृति
संविधान का त्रिकोण: मौलिक अधिकार (व्यक्ति के अधिकार), मौलिक कर्तव्य (व्यक्ति के दायित्व), और राज्य के नीति निर्देशक तत्व (राज्य के दायित्व) मिलकर संविधान का आधार बनते हैं।

2. मौलिक अधिकार

संवैधानिक आधार: भाग III (अनुच्छेद 12-35) - डॉ. बी.आर. अंबेडकर द्वारा "संविधान का हृदय और आत्मा" कहा गया

मौलिक अधिकार भारतीय नागरिकों को प्राप्त वे अधिकार हैं जो व्यक्तित्व के विकास और मानवीय गरिमा के लिए अत्यावश्यक हैं। ये अधिकार न्यायसंगत (Justiciable) हैं और इनका उल्लंघन होने पर न्यायालय से सहायता ली जा सकती है।

2.1 समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)

अनुच्छेद विषय मुख्य प्रावधान
14 कानून के समक्ष समानता राज्य किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा
15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का प्रतिषेध राज्य किसी नागरिक के साथ इन आधारों पर भेदभाव नहीं करेगा
16 लोक नियोजन में अवसर की समानता राज्य के अधीन नियोजन में सभी नागरिकों को समान अवसर प्राप्त होंगे
17 अस्पृश्यता का अंत अस्पृश्यता का उन्मूलन और इसका अभ्यास दंडनीय अपराध
18 उपाधियों का अंत राज्य सेना और विद्या संबंधी सम्मान के अतिरिक्त कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा
महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
  • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): मूल ढांचे का सिद्धांत
  • मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978): अनुच्छेद 21 की व्यापक व्याख्या
  • इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992): आरक्षण पर निर्णय

2.2 स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)

अनुच्छेद 19 - छह स्वतंत्रताएं:

  1. वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता - विचारों को व्यक्त करने का अधिकार
  2. शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन की स्वतंत्रता - बिना हथियार के सभा करने का अधिकार
  3. संगम या संघ बनाने की स्वतंत्रता - संगठन और यूनियन बनाने का अधिकार
  4. भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण की स्वतंत्रता - देश में कहीं भी आने-जाने का अधिकार
  5. भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास और बसने की स्वतंत्रता - कहीं भी रहने का अधिकार
  6. कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने की स्वतंत्रता - व्यवसाय की स्वतंत्रता
44वां संविधान संशोधन (1978): संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों से हटाकर कानूनी अधिकार बनाया गया (अनुच्छेद 300A)।

अन्य स्वतंत्रता अधिकार:

अनुच्छेद विषय प्रावधान
20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण पूर्व-प्रभावी कानून का निषेध, दोहरा दंड निषेध, स्व-अभिशंसा का निषेध
21 प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण कानूनी प्रक्रिया के बिना प्राण और स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा
21A शिक्षा का अधिकार 6-14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा (86वां संशोधन, 2002)
22 गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण गिरफ्तारी के कारण बताना, वकील से मिलने का अधिकार, 24 घंटे में न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत करना

2.3 शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)

  • अनुच्छेद 23: मानव के दुर्व्यापार और बलात्श्रम का प्रतिषेध
  • अनुच्छेद 24: कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध (14 वर्ष से कम)
बंधुआ मजदूर व्यवस्था (उन्मूलन) अधिनियम, 1976: अनुच्छेद 23 के अंतर्गत बंधुआ मजदूरी को समाप्त करने के लिए बनाया गया।

2.4 धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)

अनुच्छेद विषय मुख्य प्रावधान
25 अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता
26 धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता धार्मिक संस्थानों की स्थापना और प्रबंधन का अधिकार
27 किसी धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रता किसी को धर्म विशेष के लिए कर देने को बाध्य नहीं किया जाएगा
28 कुछ शिक्षा संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता राज्य संस्थानों में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी

2.5 सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार (अनुच्छेद 29-30)

  • अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण - भाषा, लिपि और संस्कृति का संरक्षण
  • अनुच्छेद 30: शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक-वर्गों का अधिकार

2.6 संवैधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32)

अनुच्छेद 32: डॉ. बी.आर. अंबेडकर द्वारा "संविधान का हृदय और आत्मा" कहा गया। यह मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए उच्चतम न्यायालय में सीधे जाने का अधिकार देता है।

रिट (Writs) के प्रकार:

रिट अर्थ प्रयोग
बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) "शरीर को प्रस्तुत करो" गैरकानूनी हिरासत के विरुद्ध
परमादेश (Mandamus) "हम आदेश देते हैं" सार्वजनिक कर्तव्य के निष्पादन के लिए
प्रतिषेध (Prohibition) "निषेध करना" निचली अदालत को अधिकार क्षेत्र से बाहर काम करने से रोकना
उत्प्रेषण (Certiorari) "सूचित करना" निचली अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करना
अधिकार पृच्छा (Quo Warranto) "किस अधिकार से" सार्वजनिक पद पर नियुक्ति की जांच करना

3. मौलिक कर्तव्य

3.1 42वां संविधान संशोधन (1976)

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर 1976 में 42वें संविधान संशोधन द्वारा मौलिक कर्तव्य जोड़े गए। ये सोवियत संविधान से प्रेरित हैं।
संवैधानिक आधार: भाग IVA में अनुच्छेद 51A - मूल रूप से 10 कर्तव्य, 86वें संशोधन (2002) द्वारा 11वां कर्तव्य जोड़ा गया।

3.2 कर्तव्यों की सूची

भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह:

  1. संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे
  2. स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे
  3. भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे
  4. देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे
  5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करे
  6. हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे
  7. प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करे
  8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे
  9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे
  10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे
  11. 6-14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करे (86वां संशोधन, 2002 द्वारा जोड़ा गया)
महत्वपूर्ण तथ्य: मौलिक कर्तव्य न्यायसंगत (Justiciable) नहीं हैं, अर्थात् इनका उल्लंघन करने पर न्यायालय से कोई कानूनी सहायता नहीं मिल सकती। ये नैतिक और राजनीतिक दायित्व हैं।

4. राज्य के नीति निर्देशक तत्व (DPSP)

संवैधानिक आधार: भाग IV (अनुच्छेद 36-51) - आयरिश संविधान से प्रेरित, गांधी जी के आदर्शों को मूर्त रूप देना

राज्य के नीति निर्देशक तत्व राज्य को शासन चलाने में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। ये न्यायसंगत नहीं हैं लेकिन देश के शासन में मूलभूत हैं

4.1 समाजवादी सिद्धांत

मुख्य समाजवादी सिद्धांत:

  • अनुच्छेद 38: लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना
  • अनुच्छेद 39: राज्य की नीति के निदेशक तत्व
    • आजीविका के पर्याप्त साधन का अधिकार
    • संपत्ति का समान वितरण
    • आर्थिक व्यवस्था में धन और उत्पादन साधनों का संकेंद्रण रोकना
  • अनुच्छेद 39A: समान न्याय और निःशुल्क कानूनी सहायता (42वां संशोधन)
  • अनुच्छेद 41: काम, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता का अधिकार
  • अनुच्छेद 42: काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का उपबंध
  • अनुच्छेद 43: जीवन निर्वाह मजदूरी आदि
  • अनुच्छेद 43A: उद्योगों के प्रबंध में श्रमिकों की भागीदारी (42वां संशोधन)

4.2 गांधीवादी सिद्धांत

महात्मा गांधी के आदर्शों पर आधारित:

  • अनुच्छेद 40: ग्राम पंचायतों का संगठन
  • अनुच्छेद 43: कुटीर उद्योगों को बढ़ावा
  • अनुच्छेद 46: अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि
  • अनुच्छेद 47: पोषाहार स्तर, जीवन स्तर को ऊंचा करना और लोक स्वास्थ्य में सुधार
  • अनुच्छेद 48: कृषि और पशुपालन का संगठन (गो-हत्या पर प्रतिबंध)

4.3 उदारवादी सिद्धांत

उदारवादी और लोकतांत्रिक आदर्श:

  • अनुच्छेद 44: समान नागरिक संहिता
  • अनुच्छेद 45: बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा (86वें संशोधन द्वारा संशोधित)
  • अनुच्छेद 48A: पर्यावरण की सुरक्षा और संवर्धन (42वां संशोधन)
  • अनुच्छेद 49: राष्ट्रीय स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण
  • अनुच्छेद 50: कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण
  • अनुच्छेद 51: अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि

5. परस्पर संबंध

पहलू मौलिक अधिकार मौलिक कर्तव्य DPSP
प्रकृति न्यायसंगत न्यायसंगत नहीं न्यायसंगत नहीं
उद्देश्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता राष्ट्रीय एकता सामाजिक न्याय
प्रवर्तन न्यायालय द्वारा नैतिक दबाव कानून द्वारा
लक्ष्य राजनीतिक लोकतंत्र अनुशासित नागरिकता आर्थिक लोकतंत्र
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि मौलिक अधिकार और DPSP के बीच संतुलन होना चाहिए। दोनों संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं।
त्रिकोणीय संबंध: मौलिक अधिकार व्यक्ति की सुरक्षा करते हैं, DPSP राज्य को दिशा देते हैं, और मौलिक कर्तव्य नागरिकों को जिम्मेदार बनाते हैं।
6. महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी - UPSC स्तरीय
प्रश्न 1: मौलिक अधिकारों की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर: मौलिक अधिकारों की प्रमुख विशेषताएं:
  • न्यायसंगत: इनका उल्लंघन होने पर न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है
  • संविधान में निहित: संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12-35) में वर्णित
  • मूल अधिकार: व्यक्तित्व विकास के लिए अत्यावश्यक
  • नकारात्मक अधिकार: राज्य को कुछ न करने का निर्देश
  • असीमित नहीं: राष्ट्रीय सुरक्षा, लोक व्यवस्था आदि के आधार पर प्रतिबंध
  • आपातकाल में निलंबन: अनुच्छेद 19 राष्ट्रीय आपातकाल में स्वतः निलंबित
प्रश्न 2: अनुच्छेद 21 की व्यापक व्याख्या न्यायपालिका ने कैसे की है?
उत्तर: न्यायपालिका ने अनुच्छेद 21 की व्यापक व्याख्या की है:
  • मेनका गांधी मामला (1978): "विधि की उचित प्रक्रिया" का सिद्धांत स्थापित
  • मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार शामिल किया गया
  • निम्नलिखित अधिकार शामिल:
    • स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार
    • स्वास्थ्य का अधिकार
    • शिक्षा का अधिकार
    • आजीविका का अधिकार
    • एकांतता का अधिकार
    • तीव्र न्याय का अधिकार
प्रश्न 3: मौलिक कर्तव्यों का महत्व और आलोचना बताएं।
उत्तर: महत्व:
  • नागरिकों में राष्ट्रीय चेतना का विकास
  • अधिकार और कर्तव्य के बीच संतुलन
  • सामाजिक अनुशासन में वृद्धि
  • राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बल
आलोचना:
  • न्यायसंगत नहीं हैं - कानूनी बाध्यता नहीं
  • अस्पष्ट और व्यापक भाषा का प्रयोग
  • केवल नैतिक दायित्व, कानूनी दायित्व नहीं
  • कुछ कर्तव्य व्यावहारिक रूप से कठिन
प्रश्न 4: राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का वर्गीकरण करें।
उत्तर: DPSP का त्रिविध वर्गीकरण:
1. समाजवादी सिद्धांत:
  • अनुच्छेद 38 - लोक कल्याणकारी राज्य
  • अनुच्छेद 39 - आर्थिक न्याय
  • अनुच्छेद 41 - काम, शिक्षा का अधिकार
  • अनुच्छेद 42 - काम की न्यायसंगत दशाएं
2. गांधीवादी सिद्धांत:
  • अनुच्छेद 40 - ग्राम पंचायत
  • अनुच्छेद 43 - कुटीर उद्योग
  • अनुच्छेद 48 - गो-हत्या निषेध
3. उदारवादी सिद्धांत:
  • अनुच्छेद 44 - समान नागरिक संहिता
  • अनुच्छेद 50 - न्यायपालिका का पृथक्करण
प्रश्न 5: रिट (Writ) के प्रकार और उनका प्रयोग बताएं।
उत्तर: भारतीय संविधान में पांच प्रकार की रिट का प्रावधान:
  • बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus): गैरकानूनी गिरफ्तारी या हिरासत के विरुद्ध
  • परमादेश (Mandamus): सार्वजनिक अधिकारी को अपना कर्तव्य निभाने के लिए बाध्य करना
  • प्रतिषेध (Prohibition): निचली अदालत को अधिकार क्षेत्र से बाहर काम करने से रोकना
  • उत्प्रेषण (Certiorari): निचली अदालत के मामले को उच्च अदालत में स्थानांतरित करना
  • अधिकार पृच्छा (Quo Warranto): सार्वजनिक पद पर नियुक्ति की वैधता की जांच
जारीकर्ता: उच्चतम न्यायालय (अनुच्छेद 32) और उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 226)
प्रश्न 6: समानता के अधिकार में शामिल प्रावधानों का विस्तार से वर्णन करें।
उत्तर: समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18):
अनुच्छेद 14:
  • कानून के समक्ष समानता (Law before Law)
  • कानूनों का समान संरक्षण (Equal Protection of Laws)
अनुच्छेद 15:
  • धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव निषेध
  • महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान की अनुमति
अनुच्छेद 16: लोक नियोजन में अवसर की समानता
अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का उन्मूलन
अनुच्छेद 18: उपाधियों का अंत (सेना और विद्या संबंधी सम्मान को छोड़कर)
प्रश्न 7: 86वें संविधान संशोधन का महत्व बताएं।
उत्तर: 86वां संविधान संशोधन (2002) का महत्व:
  • अनुच्छेद 21A जोड़ा गया: 6-14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का मौलिक अधिकार
  • अनुच्छेद 45 संशोधित: अब 6 वर्ष से कम बच्चों की प्रारंभिक देखभाल और शिक्षा का प्रावधान
  • अनुच्छेद 51A में 11वां कर्तव्य जोड़ा गया: माता-पिता/अभिभावक का कर्तव्य कि वे 6-14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करें
  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009: इस संशोधन के बाद RTE Act लागू किया गया
प्रश्न 8: मौलिक अधिकार और DPSP के बीच संबंध और संघर्ष का विश्लेषण करें।
उत्तर: संबंध:
  • दोनों संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा
  • व्यक्ति के कल्याण के लिए आवश्यक
  • पूरक संबंध - एक-दूसरे के सहायक
संघर्ष:
  • चम्पकम दोरायराजन मामला (1951): मौलिक अधिकार प्राथमिक
  • गोलकनाथ मामला (1967): संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती
  • केशवानंद भारती मामला (1973): संतुलन का सिद्धांत - दोनों महत्वपूर्ण
समाधान:
  • न्यायिक पुनरावलोकन का सिद्धांत
  • संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत
  • 42वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 31C में परिवर्तन
प्रश्न 9: धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की सीमाओं का वर्णन करें।
उत्तर: धर्म की स्वतंत्रता की सीमाएं:
  • लोक व्यवस्था: धार्मिक प्रथाएं सार्वजनिक शांति भंग न करें
  • नैतिकता: अनैतिक धार्मिक प्रथाओं पर रोक
  • स्वास्थ्य: स्वास्थ्य के लिए हानिकारक प्रथाओं का निषेध
  • धर्मांतरण पर नियंत्रण: बल, प्रलोभन या धोखाधड़ी से धर्मांतरण पर रोक
  • समाज सुधार: हिंदू धर्म में सामाजिक सुधार के लिए कानून बना सकते हैं
  • धर्मनिरपेक्षता: राज्य द्वारा संचालित संस्थानों में धार्मिक शिक्षा निषेध
प्रश्न 10: संविधान में मौलिक अधिकारों के निलंबन के प्रावधान का वर्णन करें।
उत्तर: मौलिक अधिकारों का निलंबन:
राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) में:
  • अनुच्छेद 19: स्वतः निलंबित हो जाता है
  • अन्य अधिकार: राष्ट्रपति के आदेश से निलंबित हो सकते हैं
  • अनुच्छेद 20 और 21: केवल इन्हें निलंबित नहीं किया जा सकता (44वां संशोधन)
सशस्त्र विद्रोह के मामले में:
  • केवल अनुच्छेद 19 निलंबित होता है
  • जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार बना रहता है
44वां संशोधन (1978):
  • अनुच्छेद 20 और 21 को आपातकाल में भी निलंबित नहीं किया जा सकता
  • न्यायालयों की शक्ति बहाल की गई
7. निबंधात्मक प्रश्न
निबंध प्रश्न 1: भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों का महत्व, विशेषताएं और वर्तमान चुनौतियों का विस्तृत विश्लेषण करें। (400 शब्द)
उत्तर:

मौलिक अधिकार भारतीय संविधान के सबसे महत्वपूर्ण भागों में से एक हैं। डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने इन्हें "संविधान का हृदय और आत्मा" कहा है। ये अधिकार व्यक्ति की गरिमा और स्वतंत्रता की सुरक्षा करते हैं तथा लोकतांत्रिक शासन का आधार प्रदान करते हैं।

महत्व: मौलिक अधिकार भारतीय लोकतंत्र की आत्मा हैं। ये व्यक्ति को राज्य की निरंकुशता से बचाते हैं और व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक स्वतंत्रता प्रदान करते हैं। समानता का अधिकार सामाजिक न्याय स्थापित करता है, स्वतंत्रता का अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है, और संवैधानिक उपचार का अधिकार इन सभी अधिकारों को प्रभावी बनाता है।

विशेषताएं: मौलिक अधिकार न्यायसंगत हैं, अर्थात् इनका उल्लंघन होने पर न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। ये मुख्यतः नकारात्मक अधिकार हैं जो राज्य को कुछ कार्य न करने का निर्देश देते हैं। हालांकि, ये असीमित नहीं हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा, लोक व्यवस्था, और नैतिकता के आधार पर इन पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।

न्यायिक विकास: न्यायपालिका ने मौलिक अधिकारों की व्यापक व्याख्या की है। मेनका गांधी मामले में अनुच्छेद 21 की विस्तृत व्याख्या करके जीवन के अधिकार में गरिमामय जीवन, स्वास्थ्य, शिक्षा, और स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार शामिल किया गया। इससे मौलिक अधिकारों का दायरा व्यापक हुआ है।

वर्तमान चुनौतियां: आज के युग में मौलिक अधिकारों के समक्ष नई चुनौतियां हैं। साइबर सुरक्षा, निजता का अधिकार, सूचना की स्वतंत्रता, और तकनीकी विकास के साथ उत्पन्न नई समस्याएं इसके उदाहरण हैं। आतंकवाद की चुनौती के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर प्रतिबंध भी एक मुद्दा है।

संतुलन की आवश्यकता: व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामुदायिक हितों के बीच संतुलन आवश्यक है। न्यायपालिका इस संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

निष्कर्ष: मौलिक अधिकार भारतीय संविधान की सफलता के मापदंड हैं। इनका संरक्षण और संवर्धन न केवल व्यक्ति के कल्याण बल्कि राष्ट्र की प्रगति के लिए भी आवश्यक है। समय के साथ इनकी पुनर्व्याख्या और विकास जारी रहना चाहिए।

निबंध प्रश्न 2: राज्य के नीति निर्देशक तत्वों (DPSP) का महत्व, वर्गीकरण और मौलिक अधिकारों के साथ संबंध का विस्तृत विवरण दें। (350 शब्द)
उत्तर:

राज्य के नीति निर्देशक तत्व (DPSP) भारतीय संविधान के भाग IV में निहित हैं और राज्य को शासन चलाने में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। ये आयरिश संविधान से प्रेरित हैं और गांधी जी के सामाजिक-आर्थिक दर्शन को मूर्त रूप देते हैं।

महत्व: DPSP का मूल उद्देश्य एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। ये तत्व राज्य को सामाजिक और आर्थिक न्याय स्थापित करने की दिशा में कार्य करने का निर्देश देते हैं। यद्यपि ये न्यायसंगत नहीं हैं, तथापि अनुच्छेद 37 में स्पष्ट कहा गया है कि ये "देश के शासन में मूलभूत हैं और कानून बनाने में इनका ध्यान रखना राज्य का कर्तव्य है।"

वर्गीकरण: DPSP को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है। समाजवादी सिद्धांत (अनुच्छेद 38, 39, 41-43) में आर्थिक न्याय, रोजगार की सुरक्षा, और श्रमिकों के कल्याण के प्रावधान हैं। गांधीवादी सिद्धांत (अनुच्छेद 40, 43, 46-48) में ग्राम पंचायत, कुटीर उद्योग, गो-हत्या निषेध जैसे विषय शामिल हैं। उदारवादी सिद्धांत (अनुच्छेद 44, 45, 49-51) में समान नागरिक संहिता, शिक्षा, और अंतर्राष्ट्रीय शांति के प्रावधान हैं।

मौलिक अधिकारों के साथ संबंध: प्रारंभ में DPSP और मौलिक अधिकारों के बीच संघर्ष देखा गया। चम्पकम दोरायराजन मामले में न्यायालय ने मौलिक अधिकारों को प्राथमिकता दी। गोलकनाथ मामले में यह स्थिति और स्पष्ट हुई। हालांकि, केशवानंद भारती मामले (1973) में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि दोनों पूरक हैं और दोनों के बीच संतुलन होना चाहिए।

व्यावहारिक कार्यान्वयन: भारत सरकार ने DPSP के अनुसार कई महत्वपूर्ण कानून बनाए हैं जैसे न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, मातृत्व लाभ अधिनियम, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, और शिक्षा का अधिकार अधिनियम।

आलोचना और सीमाएं: DPSP की मुख्य आलोचना यह है कि ये न्यायसंगत नहीं हैं और इनके उल्लंघन पर कोई कानूनी उपचार उपलब्ध नहीं है। कुछ सिद्धांत परस्पर विरोधी भी हैं।

निष्कर्ष: DPSP भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। ये राज्य को एक कल्याणकारी और न्यायसंगत समाज के निर्माण की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

निबंध प्रश्न 3: मौलिक कर्तव्यों की संवैधानिक स्थिति, महत्व और भारतीय नागरिकता के संदर्भ में इनकी भूमिका का विश्लेषण करें। (300 शब्द)
उत्तर:

मौलिक कर्तव्य भारतीय संविधान में 1976 के 42वें संशोधन द्वारा जोड़े गए। ये सोवियत संविधान से प्रेरित हैं और स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर शामिल किए गए। वर्तमान में अनुच्छेद 51A में 11 मौलिक कर्तव्य निर्धारित हैं।

संवैधानिक स्थिति: मौलिक कर्तव्य संविधान के भाग IVA में निहित हैं। ये न्यायसंगत नहीं हैं, अर्थात् इनका उल्लंघन करने पर कोई कानूनी दंड नहीं है। ये मूलतः नैतिक और राजनीतिक दायित्व हैं जो नागरिकों से अपेक्षित व्यवहार को परिभाषित करते हैं।

महत्व और उद्देश्य: मौलिक कर्तव्यों का प्राथमिक उद्देश्य नागरिकों में राष्ट्रीय चेतना और अनुशासन की भावना विकसित करना है। ये अधिकार और कर्तव्य के बीच संतुलन स्थापित करते हैं। इंदिरा गांधी के आपातकाल के दौरान जब व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर प्रश्न उठे तो यह महसूस किया गया कि अधिकारों के साथ कर्तव्यों का भी होना आवश्यक है।

मुख्य कर्तव्य: इनमें संविधान का सम्मान, राष्ट्रीय प्रतीकों का आदर, देश की एकता-अखंडता की रक्षा, पर्यावरण संरक्षण, वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास, और सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण शामिल है। 86वें संशोधन द्वारा 6-14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा प्रदान करना भी कर्तव्य बनाया गया।

भारतीय नागरिकता में भूमिका: मौलिक कर्तव्य भारतीय नागरिकता की गुणवत्ता में सुधार लाते हैं। ये नागरिकों को केवल अधिकार मांगने वाला व्यक्ति न बनाकर जिम्मेदार नागरिक बनाते हैं। ये राष्ट्रीय एकता, सामाजिक सद्भावना और सांस्कृतिक संरक्षण में योगदान देते हैं।

आलोचना: मुख्य आलोचना यह है कि ये न्यायसंगत नहीं हैं और केवल नैतिक बंधन हैं। कुछ कर्तव्य अस्पष्ट हैं और इनका व्यावहारिक प्रवर्तन कठिन है।

निष्कर्ष: मौलिक कर्तव्य भारतीय संविधान के त्रिकोणीय ढांचे का महत्वपूर्ण अंग हैं। ये एक जिम्मेदार और अनुशासित नागरिक समाज के निर्माण में सहायक हैं।

परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण तथ्य:

  • मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे, अब 6 हैं (संपत्ति का अधिकार हटाया गया)
  • 44वां संशोधन (1978): संपत्ति के अधिकार को अनुच्छेद 300A में कानूनी अधिकार बनाया
  • 86वां संशोधन (2002): शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21A) जोड़ा गया
  • 42वां संशोधन (1976): मौलिक कर्तव्य और DPSP में नए प्रावधान जोड़े गए
  • अनुच्छेद 32 को "संविधान का हृदय और आत्मा" कहा जाता है
  • केशवानंद भारती मामला (1973): मूल ढांचे का सिद्धांत स्थापित
ठीक है बॉस ✅ नीचे सबकुछ अलग‑अलग दिया है — 1. Meta (Heading/Permalink/Description/Labels), 2. सिर्फ प्रश्नोत्तरी (HTML)। इसके बाद अगली मैसेज में English visual banner (with Sarkari Service Prep™ watermark) भेजूँगा। --- 1) Meta (Blogger‑ready inline HTML)

Fundamental Rights, Duties & DPSP – Indian Constitution (RPSC PYQ)

Permalink: indian-constitution-fundamental-rights-duties-dpsp-rpsc-pyq

Short Description: RPSC पूर्व परीक्षाओं में पूछे गए मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्य और डीपीएसपी से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (वर्ष सहित)।

Labels: Indian Polity, RPSC Previous Year Questions, Fundamental Rights, DPSP, Constitution of India


2) केवल प्रश्नोत्तरी (Blogger‑ready inline HTML)
  1. प्रश्न: मौलिक अधिकार संविधान के किस भाग में निहित हैं?

    उत्तर: भाग III (अनुच्छेद 12–35)

    पूछा गया: RAS/RTS Prelims 2018

  2. प्रश्न: ‘समान कार्य के लिए समान वेतन’ किस प्रावधान से संबंधित है?

    उत्तर: डीपीएसपी – अनुच्छेद 39(d)

    पूछा गया: RAS/RTS Prelims 2016

  3. प्रश्न: मौलिक कर्तव्य किस संशोधन द्वारा जोड़े गए?

    उत्तर: 42वां संविधान संशोधन, 1976 (अनुच्छेद 51A)

    पूछा गया: RAS/RTS Prelims 2018/2021

  4. प्रश्न: अनुच्छेद 32 का संबंध किससे है?

    उत्तर: संवैधानिक उपचार का अधिकार (रिट का अधिकार)

    पूछा गया: RAS/RTS Prelims

  5. प्रश्न: डीपीएसपी संविधान के किस भाग में हैं?

    उत्तर: भाग IV (अनुच्छेद 36–51)

    पूछा गया: RAS/RTS Prelims 2016/2018

  6. प्रश्न: अनुच्छेद 21A किस अधिकार से जुड़ा है?

    उत्तर: 6–14 वर्ष के लिए निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा (86वां संशोधन, 2002)

    पूछा गया: RAS/RTS Prelims 2018

  7. प्रश्न: मौलिक अधिकारों का प्रवर्तन कहाँ किया जा सकता है?

    उत्तर: उच्चतम न्यायालय (अनु. 32) व उच्च न्यायालय (अनु. 226)

    पूछा गया: RAS/RTS Prelims 2021

  8. प्रश्न: मौलिक कर्तव्यों की वर्तमान संख्या कितनी है?

    उत्तर: 11

    पूछा गया: RAS/RTS Prelims

  9. प्रश्न: जनस्वास्थ्य सुधार व पोषणस्तर बढ़ाने का निदेश किस अनुच्छेद में?

    उत्तर: अनुच्छेद 47

    पूछा गया: RAS/RTS Prelims

  10. प्रश्न: आपातकाल में कौन‑से मौलिक अधिकार निलंबित नहीं किए जा सकते?

    उत्तर: अनुच्छेद 20 और 21

    पूछा गया: RAS/RTS Prelims 2016/2018

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