भारतीय इतिहास – आधुनिक भारत (1857–1947): विद्रोह, कांग्रेस और स्वतंत्रता संग्राम
भारतीय इतिहास - आधुनिक भारत (1857-1947): विद्रोह, कांग्रेस और स्वतंत्रता संग्राम
विषय सूची
परिचय
आधुनिक भारत का इतिहास 1857 से 1947 तक का काल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का स्वर्णिम अध्याय है। इस 90 वर्षों के दौरान भारत ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध निरंतर संघर्ष किया और अंततः 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त की।
• काल: 1857-1947 (90 वर्ष)
• प्रमुख घटना: 1857 का महान विद्रोह
• संगठन: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1885)
• नेतृत्व: महात्मा गांधी युग (1919-1947)
• परिणाम: स्वतंत्रता और विभाजन (1947)
इस काल में भारतीयों ने विभिन्न प्रकार के आंदोलनों - सशस्त्र विद्रोह से लेकर अहिंसक सत्याग्रह तक - के माध्यम से स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। यह काल भारतीय राष्ट्रवाद के उदय, संगठित राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत और अंततः राष्ट्रीय एकता के निर्माण का काल था।
1857 का महान विद्रोह
10 मई 1857 को मेरठ में शुरू हुआ यह विद्रोह भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के विरुद्ध पहला व्यापक और संगठित प्रतिरोध था। इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है:
- सिपाही विद्रोह (ब्रिटिश इतिहासकारों के अनुसार)
- भारतीय विद्रोह या महान विद्रोह (भारतीय इतिहासकारों के अनुसार)
- स्वतंत्रता का पहला युद्ध (विनायक दामोदर सावरकर के अनुसार)
विद्रोह के कारण
राजनीतिक कारण
- व्यपगत सिद्धांत (Doctrine of Lapse): लॉर्ड डलहौजी की नीति
- अधिग्रहीत राज्य: सातारा, जैतपुर, संभलपुर, बाघाट, उदयपुर, झांसी, नागपुर
- सहायक संधि प्रणाली: भारतीय राज्यों पर नियंत्रण
- अवध का विलय (1856): कुशासन के आरोप में
आर्थिक कारण
- भू-राजस्व व्यवस्था: स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी, महालवाड़ी
- शिल्पकारों की दुर्दशा: मशीनी उत्पादन से प्रतिस्पर्धा
- व्यापारिक शोषण: एकतरफा व्यापार
- डाकघर अधिनियम: निःशुल्क डाक सेवा की समाप्ति
सामाजिक और धार्मिक कारण
- ईसाई मिशनरी गतिविधियां: धर्म परिवर्तन की नीति
- सामाजिक सुधार: सती प्रथा, बाल विवाह पर प्रतिबंध
- पाश्चात्य शिक्षा: पारंपरिक शिक्षा प्रणाली पर आघात
- जातीय भेदभाव: यूरोपीयों का श्रेष्ठता भाव
सैन्य कारण
- वेतन में भेदभाव: भारतीय और यूरोपीय सैनिकों के बीच
- पदोन्नति में बाधा: भारतीयों को उच्च पद से वंचित रखना
- विदेशी सेवा भत्ता: समुद्र पार सेवा का विरोध
- चर्बी वाले कारतूस: तात्कालिक कारण
प्रमुख नेता और केंद्र
| केंद्र | नेता | विशेषता |
|---|---|---|
| दिल्ली | बहादुर शाह जफर | अंतिम मुगल सम्राट, विद्रोहियों का नाममात्र नेता |
| कानपुर | नाना साहब (धोंडूपंत) | पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र |
| लखनऊ | बेगम हजरत महल | अवध की शासिका, वाजिद अली शाह की पत्नी |
| झांसी | रानी लक्ष्मीबाई | झांसी की रानी, वीरता की प्रतीक |
| ग्वालियर | तात्या टोपे | गुरिल्ला युद्ध के कुशल नेता |
| बरेली | खान बहादुर खान | पश्तून सेनापति |
| बिहार | कुंवर सिंह | जगदीशपुर के राजा, 80 वर्षीय योद्धा |
मुख्य घटनाएं
10 मई 1857: मेरठ में विद्रोह की शुरुआत
11 मई 1857: दिल्ली पर कब्जा, बहादुर शाह जफर को सम्राट घोषित
जून 1857: कानपुर में नाना साहब का नेतृत्व
30 मई 1857: लखनऊ में विद्रोह
जून 1857: झांसी में रानी लक्ष्मीबाई का नेतृत्व
सितंबर 1857: दिल्ली पर अंग्रेजों का पुनः कब्जा
मार्च 1858: लखनऊ का पतन
जून 1858: ग्वालियर में अंतिम संघर्ष
प्रमुख युद्ध क्षेत्र
- दिल्ली की घेराबंदी: मई-सितंबर 1857
- कानपुर का संघर्ष: जून-जुलाई 1857
- लखनऊ की घेराबंदी: सितंबर 1857 - मार्च 1858
- झांसी का युद्ध: मार्च-अप्रैल 1858
- ग्वालियर का अंतिम संघर्ष: जून 1858
परिणाम और प्रभाव
तत्कालिक परिणाम
- कंपनी शासन का अंत: भारत सरकार अधिनियम 1858
- ब्रिटिश राज की स्थापना: प्रत्यक्ष शाही शासन
- गवर्नर जनरल से वायसराय: लॉर्ड कैनिंग प्रथम वायसराय
- महारानी विक्टोरिया की घोषणा (1858): इलाहाबाद में
प्रशासनिक सुधार
- भारत मंत्री का पद: लंदन में भारतीय मामलों का मंत्री
- भारत परिषद: 15 सदस्यीय सलाहकार परिषद
- प्रांतीय प्रशासन: केंद्रीकृत नियंत्रण
- न्यायपालिका: स्वतंत्र न्यायिक व्यवस्था
सैन्य पुनर्गठन
- अनुपात परिवर्तन: यूरोपीय सैनिकों की संख्या में वृद्धि
- शस्त्रागार नियंत्रण: महत्वपूर्ण हथियार यूरोपीयों के पास
- फूट डालो राज करो: जाति और धर्म के आधार पर रेजिमेंट
- मार्शल रेस थ्योरी: कुछ जातियों को योद्धा घोषित
दीर्घकालिक प्रभाव
- राष्ट्रीय चेतना: अखिल भारतीय एकता की भावना
- राजनीतिक जागरूकता: संगठित प्रतिरोध की आवश्यकता
- शिक्षा का प्रसार: पश्चिमी शिक्षा को बढ़ावा
- सामाजिक सुधार: धार्मिक और सामाजिक परंपराओं में परिवर्तन
• केंद्रीय नेतृत्व का अभाव
• स्पष्ट राजनीतिक दृष्टिकोण का अभाव
• आधुनिक हथियारों की कमी
• सभी क्षेत्रों में एक साथ विद्रोह नहीं
• कुछ भारतीय शासकों का ब्रिटिश समर्थन
• सिख और गोरखाओं का तटस्थ रुख
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
28 दिसंबर 1885 को बंबई में एलन ऑक्टेवियन ह्यूम के प्रयासों से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। यह एशिया और अफ्रीका में ब्रिटिश साम्राज्य में उभरने वाला पहला आधुनिक राष्ट्रवादी आंदोलन था।
• स्थान: गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज, बंबई
• दिनांक: 28-30 दिसंबर 1885
• प्रथम अध्यक्ष: व्योमेश चंद्र बनर्जी
• प्रतिनिधि: 72 प्रतिनिधि
• संस्थापक: ए.ओ. ह्यूम (सेवानिवृत्त ICS अधिकारी)
स्थापना के सिद्धांत
सेफ्टी वाल्व थ्योरी
इस सिद्धांत के अनुसार कांग्रेस की स्थापना का उद्देश्य शिक्षित भारतीयों के असंतोष को एक सुरक्षित माध्यम प्रदान करना था, ताकि वे 1857 जैसे हिंसक विद्रोह न करें।
लाइटनिंग कंडक्टर थ्योरी
लॉर्ड डफरिन के अनुसार कांग्रेस एक "बिजली चालक" की तरह काम करती थी, जो भारतीयों की राजनीतिक ऊर्जा को नियंत्रित दिशा में मोड़ती थी।
प्रारंभिक चरण (1885-1905) - उदारवादी काल
प्रमुख नेता
- दादाभाई नौरोजी - "भारत के ग्रैंड ओल्ड मैन"
- फिरोजशाह मेहता - बंबई के "अताज बादशाह"
- गोपाल कृष्ण गोखले - गांधी के राजनीतिक गुरु
- सुरेंद्रनाथ बनर्जी - "भारतीय राष्ट्रवाद के जनक"
- व्योमेश चंद्र बनर्जी - प्रथम कांग्रेस अध्यक्ष
उदारवादियों की मांगें
- नागरिक अधिकार: भाषण, प्रेस और सभा की स्वतंत्रता
- प्रशासनिक सुधार: भारतीयों की सरकारी नौकरियों में नियुक्ति
- आर्थिक सुधार: भारी करों में कमी, देशी उद्योगों को संरक्षण
- शिक्षा विकास: तकनीकी और उच्च शिक्षा का विस्तार
- संवैधानिक सुधार: विधान परिषदों में भारतीयों का प्रतिनिधित्व
प्रमुख उपलब्धियां
- भारतीय परिषद अधिनियम 1892: अप्रत्यक्ष चुनाव का सिद्धांत
- भारतीय सिविल सेवा: भारत और इंग्लैंड दोनों में परीक्षा
- आर्थिक राष्ट्रवाद: दादाभाई नौरोजी का ड्रेन थ्योरी
- प्रेस की स्वतंत्रता: समाचारपत्रों के अधिकारों की सुरक्षा
उग्रवादी चरण (1905-1919)
लाल-बाल-पाल की तिकड़ी
- लाला लाजपत राय - "पंजाब का शेर"
- बाल गंगाधर तिलक - "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है"
- बिपिन चंद्र पाल - बंगाल के उग्रवादी नेता
उग्रवादियों की विचारधारा
- स्वराज (स्वशासन): पूर्ण स्वतंत्रता का लक्ष्य
- स्वदेशी: विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार
- राष्ट्रीय शिक्षा: भारतीय संस्कृति आधारित शिक्षा
- निष्क्रिय प्रतिरोध: सरकारी संस्थानों का बहिष्कार
बंग-भंग आंदोलन (1905)
• कारण: लॉर्ड कर्जन की फूट डालो राज करो नीति
• विभाजन: पूर्वी बंगाल (मुस्लिम बहुल) और पश्चिमी बंगाल (हिंदू बहुल)
• प्रतिक्रिया: व्यापक स्वदेशी आंदोलन
• परिणाम: 1911 में विभाजन रद्द
होम रूल आंदोलन (1916-1918)
- एनी बेसेंट की होम रूल लीग: सितंबर 1916, मद्रास
- बाल गंगाधर तिलक की होम रूल लीग: अप्रैल 1916, पूना
- उद्देश्य: ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत स्वशासन
- नारा: "होम रूल इज बर्थ राइट"
लखनऊ समझौता (1916)
कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच साझा कार्यक्रम। इसमें पृथक निर्वाचन और मुस्लिमों के लिए सीटों का आरक्षण स्वीकार किया गया।
गांधी युग (1919-1947)
जनवरी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद मोहनदास करमचंद गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया अध्याय शुरू किया। उन्होंने सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों को अपनाकर एक जन आंदोलन का रूप दिया।
प्रारंभिक सत्याग्रह (1917-1919)
चंपारण सत्याग्रह (1917)
• स्थान: चंपारण, बिहार
• कारण: नील की खेती की समस्या, तिनकठिया प्रथा
• प्रेरणा: राजकुमार शुक्ल का आमंत्रण
• परिणाम: चंपारण कृषि जांच समिति का गठन
• सफलता: तिनकठिया प्रथा की समाप्ति
खेड़ा सत्याग्रह (1918)
- स्थान: खेड़ा जिला, गुजरात
- कारण: फसल की हानि के बावजूद लगान वसूली
- मांग: लगान में राहत या स्थगन
- सहयोगी: वल्लभभाई पटेल, इंदुलाल याज्ञिक
- परिणाम: लगान में राहत
अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन (1918)
- कारण: प्लेग बोनस की समाप्ति
- मांग: 35% वेतन वृद्धि
- विधि: हड़ताल और अनशन
- परिणाम: 35% वेतन वृद्धि स्वीकार
रॉलेट एक्ट सत्याग्रह (1919)
• रॉलेट एक्ट: बिना मुकदमे की गिरफ्तारी
• सत्याग्रह दिवस: 6 अप्रैल 1919
• हर्ताल: पूरे देश में बंद
• जलियांवाला बाग हत्याकांड: 13 अप्रैल 1919
• परिणाम: रॉलेट एक्ट वापस लिया गया
असहयोग आंदोलन (1920-1922)
पृष्ठभूमि
- जलियांवाला बाग हत्याकांड: अमृतसर, 13 अप्रैल 1919
- हंटर कमिशन: अपर्याप्त न्याय
- खिलाफत आंदोलन: तुर्की के खलीफा का समर्थन
- आर्थिक कारण: प्रथम विश्वयुद्ध के बाद महंगाई
• घोषणा: 1 अगस्त 1920
• कांग्रेस स्वीकृति: सितंबर 1920 (कलकत्ता अधिवेशन)
• अंतिम स्वीकृति: दिसंबर 1920 (नागपुर अधिवेशन)
• नेतृत्व: महात्मा गांधी
आंदोलन के तत्व
- सरकारी सम्मान और पदवियों का त्याग
- सरकारी स्कूल, कॉलेज और न्यायालयों का बहिष्कार
- विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार
- राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना
- चरखा और खादी का प्रचार
- सरकारी नौकरियों का बहिष्कार
आंदोलन की घटनाएं
| तारीख | घटना | स्थान |
|---|---|---|
| 17 नवंबर 1921 | प्रिंस ऑफ वेल्स का बहिष्कार | बंबई |
| दिसंबर 1921 | स्वयंसेवकों की गिरफ्तारी | पूरे देश में |
| 5 फरवरी 1922 | चौरी चौरा कांड | गोरखपुर, उत्तर प्रदेश |
| 12 फरवरी 1922 | आंदोलन स्थगन | बारदोली |
आंदोलन की समाप्ति
5 फरवरी 1922 को चौरी चौरा (गोरखपुर) में हिंसक घटना के बाद गांधी जी ने एकतरफा आंदोलन स्थगित कर दिया। 22 पुलिसकर्मियों की हत्या से व्यथित होकर उन्होंने अहिंसा के सिद्धांत को बनाए रखने के लिए यह निर्णय लिया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-1934)
पूर्ण स्वराज की घोषणा
• अध्यक्ष: जवाहरलाल नेहरू
• घोषणा: पूर्ण स्वराज का लक्ष्य
• स्वतंत्रता दिवस: 26 जनवरी 1930
• अल्टीमेटम: एक वर्ष का समय डोमिनियन स्टेटस के लिए
दांडी मार्च (नमक सत्याग्रह)
• प्रारंभ: 12 मार्च 1930, साबरमती आश्रम
• दूरी: 241 मील (388 किमी)
• समयावधि: 24 दिन
• साथी: 78 आश्रमवासी
• समापन: 6 अप्रैल 1930, दांडी समुद्र तट
• कार्य: समुद्री जल से नमक बनाकर नमक कानून का उल्लंघन
आंदोलन का विस्तार
- नमक कानून उल्लंघन: समुद्री तटों पर नमक बनाना
- विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार: स्वदेशी का प्रचार
- शराब की दुकानों की पिकेटिंग: मद्य निषेध
- वन कानूनों का उल्लंघन: गुजरात और महाराष्ट्र में
- चौकीदारी कर का विरोध: बिहार और बंगाल में
गांधी-इर्विन समझौता (5 मार्च 1931)
| गांधी जी की शर्तें | सरकार की शर्तें |
|---|---|
| सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगन | राजनीतिक कैदियों की रिहाई |
| द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग | नमक कानून में शिथिलता |
| संवैधानिक सुधार पर चर्चा | जुर्माने की वापसी |
द्वितीय चरण (1932-1934)
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की असफलता के बाद गांधी जी ने पुनः आंदोलन शुरू किया। इस बार सरकारी दमन अधिक कठोर था और आंदोलन धीरे-धीरे कमजोर पड़ गया।
भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
पृष्ठभूमि
- द्वितीय विश्वयुद्ध: बिना सहमति भारत को युद्ध में शामिल
- क्रिप्स मिशन (1942): डोमिनियन स्टेटस का वादा
- कांग्रेस का विरोध: तत्काल स्वतंत्रता की मांग
- जापानी खतरा: बर्मा और बंगाल की खाड़ी में
• प्रस्ताव पारित: 8 अगस्त 1942, बंबई
• नारा: "अंग्रेजों भारत छोड़ो"
• गांधी का भाषण: "करो या मरो"
• तत्काल गिरफ्तारी: 9 अगस्त 1942
• गांधी का कारावास: आगा खां पैलेस, पूना
आंदोलन की विशेषताएं
- नेतृत्वहीन आंदोलन: शीर्ष नेताओं की गिरफ्तारी
- भूमिगत गतिविधियां: युवाओं और छात्रों का नेतृत्व
- समानांतर सरकारें: बलिया, सतारा, तमलुक में
- तोड़फोड़: रेल पटरी, टेलीफोन लाइन, डाकघर
- हड़तालें: कारखाने और सरकारी कार्यालय
प्रमुख घटनाएं और नेता
| स्थान | नेता/घटना | विशेषता |
|---|---|---|
| बलिया (उत्तर प्रदेश) | चित्तू पांडे | समानांतर सरकार की स्थापना |
| सतारा (महाराष्ट्र) | नाना पाटिल | प्रति सरकार का गठन |
| तमलुक (बंगाल) | सतीश चंद्र सामंत | जातीय सरकार |
| धरसाना (गुजरात) | सरोजिनी नायडू | नमक कानून उल्लंघन |
आंदोलन का प्रभाव
- ब्रिटिश नीति में परिवर्तन: स्वतंत्रता की अनिवार्यता स्वीकार
- राष्ट्रीय एकता: जनता की व्यापक भागीदारी
- युवा नेतृत्व: नई पीढ़ी का उदय
- अंतर्राष्ट्रीय समर्थन: विश्व जनमत का पक्ष
अन्य महत्वपूर्ण आंदोलन
क्रांतिकारी आंदोलन
बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियां
- खुदीराम बोस - प्रथम शहीद क्रांतिकारी
- प्रफुल्ल चाकी - मुजफ्फरपुर बम कांड
- बागा जतिन - युगांतर दल के नेता
- मास्टर दा सूर्य सेन - चटगांव शस्त्रागार आक्रमण
पंजाब में क्रांतिकारी गतिविधियां
- सरदार अजीत सिंह - भरत माता सोसायटी
- भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु - हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी
- चंद्रशेखर आजाद - काकोरी कांड
- रामप्रसाद बिस्मिल - अर्जुन संघ
गदर आंदोलन (1913-1918)
• संस्थापक: लाला हरदयाल
• केंद्र: सैन फ्रांसिस्को, अमेरिका
• पत्रिका: 'गदर' (उर्दू और गुरुमुखी में)
• उद्देश्य: सशस्त्र विद्रोह द्वारा स्वतंत्रता
• प्रमुख नेता: सोहन सिंह भाखना, करतार सिंह सराभा
आजाद हिंद फौज (1942-1945)
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नेतृत्व
- स्थापना: सिंगापुर में जापानी सहयोग से
- नारा: "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा"
- संगठन: तीन ब्रिगेड - गांधी, नेहरू, आजाद
- महिला रेजिमेंट: रानी लक्ष्मी रेजिमेंट
- अभियान: इंफाल और कोहिमा
मजदूर और किसान आंदोलन
प्रमुख किसान आंदोलन
- चंपारण आंदोलन (1917): नील की खेती के विरुद्ध
- खेड़ा आंदोलन (1918): लगान के विरुद्ध
- बारदोली सत्याग्रह (1928): वल्लभभाई पटेल का नेतृत्व
- तेभागा आंदोलन (1946): बंगाल में भूमि सुधार
मजदूर आंदोलन
- अहमदाबाद मिल हड़ताल (1918): गांधी का नेतृत्व
- अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (1920): लाला लाजपत राय
- रेलवे हड़ताल (1974): जॉर्ज फर्नांडिस
स्वतंत्रता प्राप्ति और विभाजन
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की स्थिति
- ब्रिटेन की कमजोर स्थिति: आर्थिक संकट
- भारतीय राष्ट्रीय सेना का मुकदमा: जनविरोध
- नौसेना विद्रोह (1946): बंबई में
- कैबिनेट मिशन (1946): संघीय योजना
माउंटबेटन योजना (3 जून 1947)
• दो राष्ट्र सिद्धांत: हिंदू और मुस्लिम राष्ट्र
• विभाजन की आधार: धर्म के आधार पर
• भारत: धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र
• पाकिस्तान: इस्लामिक राष्ट्र
• स्वतंत्रता तिथि: 15 अगस्त 1947
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947
- दो अधिराज्य: भारत और पाकिस्तान
- संविधान सभा: दोनों देशों के लिए अलग
- गवर्नर जनरल: प्रत्येक अधिराज्य के लिए
- देशी रियासतें: भारत या पाकिस्तान में विलय की स्वतंत्रता
15 अगस्त 1947 - स्वतंत्रता दिवस
• प्रथम प्रधानमंत्री: जवाहरलाल नेहरू
• प्रथम गवर्नर जनरल: लॉर्ड माउंटबेटन
• नेहरू का ऐतिहासिक भाषण: "ट्रिस्ट विद डेस्टिनी"
• तिरंगा फहराना: लाल किले पर
• जश्न और त्रासदी: खुशी के साथ विभाजन की पीड़ा
प्रतियोगी परीक्षा प्रश्नोत्तरी
प्रश्न 1: 1857 के विद्रोह की शुरुआत कब और कहां हुई?
प्रश्न 2: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब और कहां हुई?
प्रश्न 3: "लाल-बाल-पाल" की तिकड़ी में कौन से नेता शामिल थे?
प्रश्न 4: गांधी जी का भारत में पहला सत्याग्रह कौन सा था?
प्रश्न 5: दांडी मार्च कब से कब तक चला और इसकी दूरी कितनी थी?
प्रश्न 6: "करो या मरो" का नारा किस आंदोलन के साथ जुड़ा है?
प्रश्न 7: भारत की स्वतंत्रता के समय प्रथम प्रधानमंत्री कौन थे?
प्रश्न 8: चौरी चौरा कांड के कारण कौन सा आंदोलन स्थगित किया गया?
प्रश्न 9: "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा" - यह कथन किसका है?
प्रश्न 10: आजाद हिंद फौज का गठन किसने किया था?
निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1: 1857 के महान विद्रोह के कारणों और परिणामों का विस्तृत वर्णन करें।
1857 का महान विद्रोह भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध पहला व्यापक और संगठित प्रतिरोध था।
विद्रोह के कारण:
राजनीतिक कारण: लॉर्ड डलहौजी की व्यपगत नीति के तहत झांसी, नागपुर, सातारा जैसे राज्यों का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय। सहायक संधि प्रणाली द्वारा भारतीय राज्यों की स्वतंत्रता का हनन। अवध का अकारण विलय (1856) स्थानीय शासकों में व्यापक असंतोष का कारण बना।
आर्थिक कारण: भारी भू-राजस्व व्यवस्था ने किसानों को तबाह कर दिया। ब्रिटिश मशीनी उत्पादन ने स्थानीय शिल्पकारों को बेरोजगार बना दिया। एकतरफा व्यापार नीति से भारतीय अर्थव्यवस्था का शोषण हुआ।
सामाजिक और धार्मिक कारण: ईसाई मिशनरियों की धर्म परिवर्तन गतिविधियां, सामाजिक सुधार कानून, और पाश्चात्य शिक्षा का थोपा जाना भारतीयों की पारंपरिक मान्यताओं के विपरीत था।
सैन्य कारण: भारतीय सैनिकों के साथ भेदभाव, कम वेतन, पदोन्नति में बाधा और चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग तात्कालिक कारण बना।
विद्रोह के परिणाम:
प्रशासनिक परिवर्तन: भारत सरकार अधिनियम 1858 के द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर ब्रिटिश क्राउन का प्रत्यक्ष शासन स्थापित हुआ। महारानी विक्टोरिया की घोषणा (1858) में धार्मिक सहिष्णुता और समानता का वादा किया गया।
सैन्य पुनर्गठन: "फूट डालो राज करो" की नीति अपनाई गई। सेना में यूरोपीय सैनिकों का अनुपात बढ़ाया गया और महत्वपूर्ण शस्त्रागार उनके नियंत्रण में रखे गए।
दीर्घकालिक प्रभाव: इस विद्रोह ने भारतीयों में राष्ट्रीय चेतना का संचार किया और भविष्य के स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी। यह साबित कर दिया कि संगठित प्रयासों से ब्रिटिश शक्ति को चुनौती दी जा सकती है।
प्रश्न 2: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विकास में उदारवादी और उग्रवादी चरणों की भूमिका का मूल्यांकन करें।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का विकास दो प्रमुख चरणों में हुआ - उदारवादी काल (1885-1905) और उग्रवादी काल (1905-1919)।
उदारवादी चरण (1885-1905):
नेतृत्व: दादाभाई नौरोजी, गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता, सुरेंद्रनाथ बनर्जी जैसे शिक्षित मध्यम वर्गीय नेताओं का नेतृत्व था।
विचारधारा: ये संवैधानिक तरीकों में विश्वास रखते थे। इनका मानना था कि ब्रिटिश न्याय और उदारता से भारत को धीरे-धीरे स्वशासन मिल जाएगा।
कार्यप्रणाली: याचिका, प्रार्थना, प्रतिनिधान और प्रदर्शन की नीति अपनाई। सालाना अधिवेशनों में संकल्प पारित कर सरकार को भेजते थे।
उपलब्धियां: भारतीय परिषद अधिनियम 1892, सिविल सेवा में भारतीयों की भर्ती, और राजनीतिक चेतना का प्रसार।
उग्रवादी चरण (1905-1919):
नेतृत्व: लाल-बाल-पाल (लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल) की तिकड़ी का नेतृत्व।
विचारधारा: स्वराज की मांग, ब्रिटिश न्याय में अविश्वास, और प्रत्यक्ष कार्रवाई में विश्वास।
कार्यप्रणाली: स्वदेशी, बहिष्कार, राष्ट्रीय शिक्षा और निष्क्रिय प्रतिरोध की चौकड़ी नीति।
प्रेरणा स्रोत: भारतीय दर्शन, धर्म और इतिहास से प्रेरणा। शिवाजी और गणेश उत्सव का आयोजन।
योगदान:
जन आंदोलन का रूप: उग्रवादियों ने कांग्रेस को एक सीमित संगठन से जन आंदोलन में बदला।
आर्थिक राष्ट्रवाद: स्वदेशी आंदोलन से देशी उद्योगों को बढ़ावा मिला।
सांस्कृतिक जागरण: भारतीय संस्कृति और गौरव की भावना का विकास।
निष्कर्ष: दोनों चरणों ने मिलकर भारतीय राष्ट्रवाद की मजबूत नींव रखी। उदारवादियों ने राजनीतिक चेतना जगाई और उग्रवादियों ने उसे जन आंदोलन का रूप दिया।
प्रश्न 3: महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न चरणों का विश्लेषण करें।
1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद महात्मा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।
प्रारंभिक सत्याग्रह (1917-1919):
चंपारण सत्याग्रह (1917): बिहार के चंपारण में नील की जबरन खेती के विरुद्ध। इससे गांधी को 'महात्मा' की उपाधि मिली।
खेड़ा सत्याग्रह (1918): गुजरात के खेड़ा में फसल नष्ट होने पर भी लगान की मांग के विरुद्ध।
अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन (1918): मजदूरों के वेतन की समस्या का समाधान।
असहयोग आंदोलन (1920-1922):
पृष्ठभूमि: जलियांवाला बाग हत्याकांड, खिलाफत आंदोलन और आर्थिक समस्याएं।
कार्यक्रम: सरकारी सम्मान का त्याग, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, सरकारी संस्थानों का बहिष्कार।
समाप्ति: चौरी चौरा कांड के बाद गांधी जी ने अहिंसा के सिद्धांत को बनाए रखने के लिए आंदोलन स्थगित किया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-1934):
दांडी मार्च: 12 मार्च से 6 अप्रैल 1930 तक 241 मील की यात्रा कर नमक कानून का उल्लंघन।
व्यापक प्रभाव: देशभर में नमक सत्याग्रह, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, वन कानून उल्लंघन।
महिला भागीदारी: पहली बार महिलाओं की व्यापक भागीदारी।
भारत छोड़ो आंदोलन (1942):
पृष्ठभूमि: द्वितीय विश्वयुद्ध में बिना सहमति भारत को शामिल करना।
नारा: "अंग्रेजों भारत छोड़ो" और "करो या मरो"।
विशेषताएं: नेतृत्वहीन आंदोलन, भूमिगत गतिविधियां, समानांतर सरकारों का गठन।
गांधी जी के योगदान की विशेषताएं:
अहिंसा और सत्याग्रह: हिंसा के बिना प्रतिरोध की नई पद्धति।
जन आंदोलन: स्वतंत्रता संग्राम को जनसाधारण तक पहुंचाया।
सर्वधर्म समभाव: हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रयास।
रचनात्मक कार्यक्रम: चरखा, खादी, अस्पृश्यता निवारण, शिक्षा प्रसार।
प्रश्न 4: भारत की स्वतंत्रता में क्रांतिकारी आंदोलन की भूमिका का मूल्यांकन करें।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी आंदोलन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
क्रांतिकारी आंदोलन के चरण:
प्रथम चरण (1905-1918):
बंगाल में: अनुशीलन समिति और युगांतर दल की स्थापना। खुदीराम बोस, प्रफुल्ल चाकी जैसे युवा क्रांतिकारियों का बलिदान।
पंजाब में: भरत माता सोसायटी और गदर पार्टी का गठन। अजीत सिंह और लाला हरदयाल का नेतृत्व।
द्वितीय चरण (1919-1935):
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन: राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान का नेतृत्व।
काकोरी कांड (1925): सरकारी खजाना लूटकर क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन संग्रह।
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी: भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव का नेतृत्व।
तृतीय चरण (1935-1947):
आजाद हिंद फौज: सुभाष चंद्र बोस का नेतृत्व। जापानी सहयोग से सशस्त्र संघर्ष।
क्रांतिकारी आंदोलन के सिद्धांत:
हिंसक प्रतिरोध: शक्ति ही शक्ति को परास्त कर सकती है का सिद्धांत।
प्रत्यक्ष कार्रवाई: संवैधानिक तरीकों में अविश्वास।
बलिदान की भावना: मातृभूमि के लिए प्राण न्योछावर करने की भावना।
योगदान:
राष्ट्रीय चेतना: युवाओं में देशभक्ति की भावना जगाई।
ब्रिटिश दमन: सरकार को कठोर कदम उठाने पर मजबूर किया।
अंतर्राष्ट्रीय ध्यान: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को विश्व पटल पर लाया।
सैन्य विद्रोह: आजाद हिंद फौज ने ब्रिटिश सेना में विद्रोह की भावना पैदा की।
सीमाएं:
जनसमर्थन का अभाव: केवल शिक्षित युवाओं तक सीमित।
संगठन की कमी: केंद्रीकृत नेतृत्व और समन्वय का अभाव।
निष्कर्ष: क्रांतिकारी आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम को गति प्रदान की और युवाओं में त्याग एवं बलिदान की भावना विकसित की।
प्रश्न 5: भारत के विभाजन के कारणों और परिस्थितियों का विश्लेषण करें।
1947 में भारत का विभाजन 20वीं सदी की सबसे दुखदायक घटनाओं में से एक थी।
विभाजन के कारण:
द्विराष्ट्र सिद्धांत:
मुहम्मद अली जिन्नाह और मुस्लिम लीग का मानना था कि हिंदू और मुस्लिम दो अलग राष्ट्र हैं और एक साथ नहीं रह सकते। 1940 के लाहौर प्रस्ताव में पहली बार पाकिस्तान की मांग की गई।
ब्रिटिश नीति:
"फूट डालो राज करो" की नीति के तहत ब्रिटिश सरकार ने हिंदू-मुस्लिम एकता में दरार डालने का प्रयास किया। पृथक निर्वाचन प्रणाली (1909) से सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा मिला।
धार्मिक कट्टरता:
हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग दोनों ने धर्म के आधार पर राजनीति को बढ़ावा दिया। सांप्रदायिक दंगों ने स्थिति को और भी गंभीर बना दिया।
राजनीतिक नेतृत्व की असफलता:
कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच समझौता नहीं हो सका। कैबिनेट मिशन योजना (1946) की असफलता ने विभाजन को अपरिहार्य बना दिया।
द्वितीय विश्वयुद्ध का प्रभाव:
युद्ध के बाद ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई। जल्दी सत्ता हस्तांतरण के लिए विभाजन को स्वीकार करना पड़ा।
विभाजन की प्रक्रिया:
माउंटबेटन योजना (3 जून 1947):
अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत के विभाजन की घोषणा की। धर्म के आधार पर दो अधिराज्य - भारत और पाकिस्तान का गठन।
रेडक्लिफ आयोग:
सर सिरिल रेडक्लिफ की अध्यक्षता में सीमा निर्धारण आयोग का गठन। पंजाब और बंगाल का विभाजन।
विभाजन के परिणाम:
जनसंख्या विस्थापन:
लगभग 1.4 करोड़ लोगों का विस्थापन। सबसे बड़ा मानवीय पलायन।
सांप्रदायिक दंगे:
व्यापक सांप्रदायिक हिंसा में लगभग 10 लाख लोगों की मृत्यु। महिलाओं के साथ अत्याचार।
आर्थिक नुकसान:
संपत्ति का भारी नुकसान। औद्योगिक और कृषि उत्पादन में गिरावट।
राजनीतिक समस्याएं:
कश्मीर समस्या का उदय। भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव।
निष्कर्ष:
विभाजन अपरिहार्य था लेकिन इसकी कीमत बहुत भारी थी। यह धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद की पराजय और सांप्रदायिक राजनीति की जीत थी।
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भारतीय इतिहास – आधुनिक भारत (1857–1947)
Revolt of 1857, Indian National Congress, Freedom Movements
Quick Facts
- 1857 का विद्रोह: मेरठ से प्रारंभ; मुख्य नेता – मंगल पांडे, झाँसी की रानी, तात्या टोपे, बहादुर शाह जफर।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस: स्थापना 1885; ए.ओ. ह्यूम; प्रथम अधिवेशन – बॉम्बे, अध्यक्ष – डब्ल्यू.सी. बनर्जी।
- असहयोग आंदोलन: 1920–22; नेता – महात्मा गांधी; चौराचौरा कांड के बाद समाप्त।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन: 1930–34; नमक सत्याग्रह से शुरुआत।
- भारत छोड़ो आंदोलन: 1942; "करो या मरो" नारा।
- स्वतंत्रता: 15 अगस्त 1947; प्रथम प्रधानमंत्री – जवाहरलाल नेहरू।
PYQ-Style MCQs
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1857 के विद्रोह की शुरुआत कहाँ से हुई?
Answer: मेरठ
10 मई 1857 को सिपाहियों ने बगावत की; इसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है।
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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन कब और कहाँ हुआ?
Answer: 1885, बॉम्बे
अध्यक्ष – डब्ल्यू.सी. बनर्जी।
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चौराचौरा कांड किस आंदोलन से संबंधित है?
Answer: असहयोग आंदोलन
1922 में हिंसा के बाद गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया।
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"करो या मरो" नारा किसने दिया?
Answer: महात्मा गांधी
भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के दौरान।
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भारत के प्रथम प्रधानमंत्री कौन थे?
Answer: जवाहरलाल नेहरू
15 अगस्त 1947 को शपथ ग्रहण की।
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