भारतीय संविधान की आधारशिला और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि | UPSC राजव्यवस्था

| जुलाई 16, 2025
भारतीय संविधान की आधारशिला और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि | UPSC राजव्यवस्था

🏛️ भारतीय संविधान की आधारशिला और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

UPSC राजव्यवस्था एवं शासन - लेख 1

🌟 प्रस्तावना

भारतीय संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है और यह भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला है। 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया यह संविधान न केवल एक कानूनी दस्तावेज है, बल्कि यह भारतीय समाज के सपनों, आकांक्षाओं और मूल्यों का प्रतिबिंब भी है।

🎯 इस लेख के मुख्य उद्देश्य:
  • भारतीय संविधान के ऐतिहासिक विकास को समझना
  • संविधान सभा की भूमिका और कार्यप्रणाली का विश्लेषण
  • प्रस्तावना के महत्व और संविधान की विशेषताओं का अध्ययन
  • मूल संरचना सिद्धांत और महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णयों की समझ

UPSC की तैयारी के लिए संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न केवल Prelims बल्कि Mains और Interview में भी बार-बार पूछे जाने वाले टॉपिक्स में से एक है।

📜 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (1773-1950)

ब्रिटिश काल में संवैधानिक विकास

1773
रेग्यूलेटिंग एक्ट: पहला संवैधानिक कदम, बंगाल के गवर्नर को गवर्नर जनरल बनाया गया
1784
पिट्स इंडिया एक्ट: ईस्ट इंडिया कंपनी पर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण स्थापित
1858
गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट: ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त, ब्रिटिश क्राउन का प्रत्यक्ष शासन
1909
मार्ले-मिंटो सुधार: पहली बार भारतीयों को केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों में प्रतिनिधित्व
1919
मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार: प्रांतों में द्वैध शासन (Diarchy) की शुरुआत
1935
गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट: प्रांतीय स्वायत्तता, संघीय व्यवस्था का प्रस्ताव

स्वतंत्रता संग्राम और संवैधानिक मांगें

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा समय-समय पर संवैधानिक सुधारों की मांग की गई। 1928 में नेहरू रिपोर्ट, 1931 में कराची प्रस्ताव और 1946 में कैबिनेट मिशन योजना जैसे महत्वपूर्ण प्रस्ताव भावी संविधान की आधारशिला बने।

महत्वपूर्ण बिंदु: 1935 का गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट भारतीय संविधान के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्रोत था। वर्तमान संविधान के लगभग 250 अनुच्छेद इसी एक्ट से लिए गए हैं।

🏛️ संविधान सभा का गठन और कार्य

संविधान सभा का गठन

कैबिनेट मिशन योजना (1946) के अनुसार संविधान सभा का गठन किया गया। प्रारंभ में इसमें 389 सदस्य थे, जिसमें 292 ब्रिटिश भारत से और 93 देशी रियासतों से चुने जाने थे। पाकिस्तान के अलग होने के बाद यह संख्या 299 रह गई।

पहलू विवरण
गठन की तिथि 9 दिसंबर 1946
पहला अधिवेशन 9 दिसंबर 1946 (नई दिल्ली)
अस्थायी अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा
स्थायी अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद
संवैधानिक सलाहकार B.N. राव
प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर
कुल अधिवेशन 11 अधिवेशन, 166 दिन
संविधान अपनाने की तिथि 26 नवंबर 1949

संविधान सभा की समितियां

संविधान सभा ने अपने कार्य को व्यवस्थित रूप से संपन्न करने के लिए विभिन्न समितियों का गठन किया। मुख्य समितियां निम्नलिखित थीं:

🔑 प्रमुख समितियां और उनके अध्यक्ष
  • प्रारूप समिति (Drafting Committee): डॉ. भीमराव अम्बेडकर
  • संघीय शक्ति समिति: पंडित जवाहरलाल नेहरू
  • प्रांतीय संविधान समिति: सरदार वल्लभभाई पटेल
  • मूल अधिकार समिति: सरदार वल्लभभाई पटेल
  • अल्पसंख्यक समिति: हरेंद्र कुमार मुखर्जी
  • भाषाई प्रांत समिति: जे.वी.पी. समिति (जवाहरलाल, वल्लभभाई, पट्टाभि सीतारमैया)

👥 संविधान निर्माताओं का योगदान

डॉ. भीमराव अम्बेडकर - संविधान के मुख्य वास्तुकार

"संविधान कितना भी अच्छा हो, यदि उसे लागू करने वाले लोग अच्छे नहीं हैं तो वह बुरा साबित होगा। संविधान कितना भी बुरा हो, यदि उसे लागू करने वाले लोग अच्छे हैं तो वह अच्छा साबित होगा।"

- डॉ. भीमराव अम्बेडकर

डॉ. अम्बेडकर का योगदान केवल प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में ही नहीं था। उन्होंने मूल अधिकारों, विशेषकर समानता के अधिकार और अस्पृश्यता के उन्मूलन के प्रावधानों को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अन्य प्रमुख व्यक्तित्व

व्यक्तित्व मुख्य योगदान
पंडित जवाहरलाल नेहरू उद्देश्य प्रस्ताव (Objective Resolution), संघीय व्यवस्था की रूपरेखा
सरदार वल्लभभाई पटेल मूल अधिकार, अल्पसंख्यक सुरक्षा, देशी रियासतों का एकीकरण
डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष, कुशल नेतृत्व
आचार्य कृपलानी शिक्षा और सांस्कृतिक मामलों में योगदान
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद धर्मनिरपेक्षता और शिक्षा नीति
के.एम. मुंशी मूल कर्तव्यों की अवधारणा, राष्ट्रीय भाषा नीति
रोचक तथ्य: संविधान सभा में 15 महिला सदस्य थीं, जिनमें सरोजिनी नायडू, हंसा मेहता, दुर्गाबाई देशमुख प्रमुख थीं। इन्होंने महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता के प्रावधानों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

📖 प्रस्तावना का महत्व और विकास

प्रस्तावना का मूल रूप (1950)

"हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ई. को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।"

- मूल प्रस्तावना (1950)

42वां संविधान संशोधन (1976) और प्रस्तावना में परिवर्तन

1976 में आपातकाल के दौरान 42वें संविधान संशोधन द्वारा प्रस्तावना में तीन महत्वपूर्ण शब्द जोड़े गए: "समाजवादी", "धर्मनिरपेक्ष" और "अखंडता"

पहलू मूल प्रस्तावना (1950) संशोधित प्रस्तावना (1976)
गणराज्य का प्रकार प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य प्रभुत्व संपन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य
राष्ट्रीय एकता राष्ट्र की एकता राष्ट्र की एकता और अखंडता

प्रस्तावना के मुख्य तत्व

🎯 प्रस्तावना के छह मुख्य तत्व
  • न्याय: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय
  • स्वतंत्रता: विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता
  • समानता: प्रतिष्ठा और अवसर की समता
  • बंधुता: व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता व अखंडता
  • समाजवाद: आर्थिक न्याय और संसाधनों का न्यायसंगत वितरण
  • धर्मनिरपेक्षता: सभी धर्मों के प्रति समान आदर

🔍 भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं

1. विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान

भारतीय संविधान में मूल रूप से 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 8 अनुसूचियां थीं। वर्तमान में यह 470 अनुच्छेद, 25 भाग और 12 अनुसूचियों तक विस्तृत हो गया है।

संविधान अनुच्छेदों की संख्या (लगभग)
भारत 470+
दक्षिण अफ्रीका 243
अमेरिका 7
ऑस्ट्रेलिया 128
कनाडा 147

2. कठोर और लचीला संविधान

भारतीय संविधान की संशोधन प्रक्रिया तीन प्रकार की है:

⚖️ संशोधन की प्रक्रिया
  • साधारण बहुमत (अनुच्छेद 368): कुछ प्रावधानों के लिए
  • विशेष बहुमत: संसद के दोनों सदनों का 2/3 बहुमत
  • विशेष बहुमत + राज्यों की सहमति: संघीय ढांचे से संबंधित प्रावधान

3. संघीय व्यवस्था

भारत का संविधान संघीय है परंतु एकात्मक झुकाव के साथ। K.C. व्हीयर ने इसे "अर्ध-संघीय" (Quasi-Federal) कहा है।

🏛️ संघीय विशेषताएं
  • दोहरी शासन व्यवस्था (केंद्र और राज्य)
  • शक्तियों का विभाजन
  • लिखित संविधान
  • स्वतंत्र न्यायपालिका
  • द्विसदनीय विधायिका
एकात्मक झुकाव के कारण: मजबूत केंद्र, राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356), एकल संविधान, एकल न्यायपालिका, अखिल भारतीय सेवाएं।

🌍 विदेशी संविधानों से प्रभाव

भारतीय संविधान निर्माताओं ने विश्व के विभिन्न संविधानों का अध्ययन करके उनकी बेहतरीन विशेषताओं को अपनाया। यहाँ प्रमुख स्रोत और उनसे लिए गए तत्व हैं:

देश/स्रोत प्रभाव/उधार ली गई विशेषताएं
ब्रिटेन संसदीय शासन प्रणाली, कानून का शासन, द्विसदनीय व्यवस्था, मंत्रिमंडलीय व्यवस्था
अमेरिका मौलिक अधिकार, न्यायिक समीक्षा, राष्ट्रपति का पद, संविधान की सर्वोच्चता
कनाडा संघीय व्यवस्था, केंद्र-राज्य संबंध, अवशिष्ट शक्तियां केंद्र के पास
आयरलैंड राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत, राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया
ऑस्ट्रेलिया समवर्ती सूची, व्यापार एवं वाणिज्य की स्वतंत्रता
जर्मनी आपातकाल के दौरान मूल अधिकारों का निलंबन
दक्षिण अफ्रीका संविधान में संशोधन की प्रक्रिया
सोवियत संघ (पूर्व USSR) मूल कर्तव्य, सामाजिक न्याय
फ्रांस गणराज्य, स्वतंत्रता-समानता-बंधुत्व
जापान विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया (Due Process of Law)
भारतीय मौलिकता: इन सभी प्रभावों के बावजूद, भारतीय संविधान की अपनी मौलिकता है। पंचायती राज, एकल नागरिकता, हिंदी को राजभाषा का दर्जा, और अनुसूचित जातियों-जनजातियों के लिए विशेष प्रावधान जैसी विशेषताएं विशुद्ध रूप से भारतीय हैं।

⚖️ मूल संरचना सिद्धांत

मूल संरचना सिद्धांत का उद्भव

मूल संरचना सिद्धांत (Basic Structure Doctrine) भारतीय संविधान न्यायशास्त्र की सबसे महत्वपूर्ण देन है। यह सिद्धांत 1973 के केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में स्थापित हुआ।

📚 केशवानंद भारती केस (1973)

पृष्ठभूमि: केरल सरकार द्वारा भूमि सुधार कानून के विरोध में दायर की गई याचिका

मुख्य प्रश्न: क्या संसद संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है?

निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने 7:6 के बहुमत से निर्णय दिया कि संसद संविधान की मूल संरचना में परिवर्तन नहीं कर सकती

महत्व: यह निर्णय संविधान की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच बना

मूल संरचना के तत्व

🏛️ मूल संरचना के मुख्य तत्व
  • संविधान की सर्वोच्चता
  • गणराज्यात्मक और लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था
  • संविधान का धर्मनिरपेक्ष चरित्र
  • शक्तियों का पृथक्करण
  • संघीय चरित्र
  • राष्ट्र की एकता और अखंडता
  • कल्याणकारी राज्य
  • न्यायिक समीक्षा
  • मौलिक अधिकार और नीति निदेशक तत्वों के बीच संतुलन
  • संसदीय व्यवस्था
  • कानून का शासन
  • व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा

मूल संरचना सिद्धांत के महत्वपूर्ण मामले

1967
गोलकनाथ केस: मूल अधिकारों में संशोधन की शक्ति पर प्रश्न
1973
केशवानंद भारती केस: मूल संरचना सिद्धांत की स्थापना
1975
इंदिरा नेहरू गांधी केस: चुनावी मामलों में न्यायिक समीक्षा
1980
मिनर्वा मिल्स केस: मूल अधिकार और नीति निदेशक तत्वों के बीच संतुलन
1993
एस.आर. बोम्मई केस: धर्मनिरपेक्षता मूल संरचना का हिस्सा

📊 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय और मामले

1. मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980)

⚖️ मिनर्वा मिल्स केस का विश्लेषण

मुख्य मुद्दा: 42वें संविधान संशोधन की वैधता, विशेषकर अनुच्छेद 31C

न्यायालय का निर्णय: मूल अधिकार और नीति निदेशक तत्वों के बीच संतुलन आवश्यक

महत्वपूर्ण सिद्धांत: "संविधान का हृदय और आत्मा" - मूल अधिकार और नीति निदेशक तत्वों का संतुलन

प्रभाव: अनुच्छेद 368 में "असीमित संशोधन शक्ति" को खारिज किया गया

2. एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994)

🏛️ बोम्मई केस और धर्मनिरपेक्षता

पृष्ठभूमि: अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग और राज्य सरकारों की बर्खास्तगी

महत्वपूर्ण निर्णय: धर्मनिरपेक्षता संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है

दिशा-निर्देश: राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए सख्त शर्तें

प्रभाव: राज्य स्वायत्तता की सुरक्षा, राजनीतिक दुरुपयोग पर रोक

3. I.R. कोएल्हो बनाम तमिलनाडु राज्य (2007)

इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 24 अप्रैल 1973 (केशवानंद भारती निर्णय) के बाद नौवीं अनुसूची में शामिल किए गए कानून भी न्यायिक समीक्षा के दायरे में आएंगे यदि वे मूल संरचना का उल्लंघन करते हैं।

📝 अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1: संविधान सभा में कुल कितने सदस्य थे और पाकिस्तान के अलग होने के बाद कितने रह गए?

प्रश्न 2: प्रारूप समिति में कुल कितने सदस्य थे और इसके अध्यक्ष कौन थे?

प्रश्न 3: 42वें संविधान संशोधन द्वारा प्रस्तावना में कौन से तीन शब्द जोड़े गए?

प्रश्न 4: केशवानंद भारती केस में मूल संरचना सिद्धांत कितने न्यायाधीशों के बहुमत से स्थापित हुआ?

प्रश्न 5: भारतीय संविधान की कौन सी विशेषता कनाडा के संविधान से ली गई है?

प्रश्न 6: "संविधान का हृदय और आत्मा" किस न्यायिक निर्णय में कहा गया और इसका क्या तात्पर्य था?

मुख्य परीक्षा प्रश्न: भारतीय संविधान की मूल संरचना सिद्धांत की उत्पत्ति और विकास का वर्णन करते हुए इसके महत्व पर चर्चा करें। (250 शब्द)

🎯 मुख्य बिंदु (Key Takeaways)
  • भारतीय संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है
  • संविधान सभा ने 2 साल 11 महीने 18 दिन में संविधान तैयार किया
  • डॉ. अम्बेडकर को संविधान का मुख्य वास्तुकार माना जाता है
  • मूल संरचना सिद्धांत संविधान की रक्षा का महत्वपूर्ण उपकरण है
  • भारतीय संविधान में विश्व के विभिन्न संविधानों की बेहतरीन विशेषताएं हैं

📚 संपूर्ण श्रृंखला

UPSC राजव्यवस्था एवं शासन की संपूर्ण तैयारी के लिए हमारी 12-लेख श्रृंखला का अनुसरण करें

संपूर्ण योजना देखें

लेबल: भारतीय संविधान, संविधान सभा, प्रस्तावना, मूल संरचना, केशवानंद भारती, UPSC राजव्यवस्था, डॉ अम्बेडकर, संविधान निर्माता, मूल संरचना सिद्धांत, भारतीय लोकतंत्र, संसदीय व्यवस्था, संघीय संरचना

© 2025 SarkariServicePrep.com | सभी अधिकार सुरक्षित

📚 संबंधित विषय पढ़ें | Explore More on Indian Polity:

📌 हर UPSC अभ्यर्थी को इन सभी लेखों का अध्ययन अवश्य करना चाहिए।

Telegram Join Link: https://t.me/sarkariserviceprep


📥 Download Zone:


📌 Useful for Exams:

  • UPSC | RPSC | SSC | REET | Patwar | LDC
  • All India Competitive Exams

Note: Don’t forget to share this post with your friends and join our Telegram for regular updates.