चुनावी व्यवस्था और राजनीतिक दलों का विनियमन | Electoral System & Regulation of Political Parties – UPSC
लेख 11: चुनावी व्यवस्था और राजनीतिक दलों का विनियमन
भारत की चुनावी व्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 तक चुनावों से संबंधित प्रावधान हैं। चुनाव आयोग इस पूरी व्यवस्था की धुरी है, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों का संचालन करता है।
चुनाव आयोग: संरचना, नियुक्ति और स्वतंत्रता
संवैधानिक आधार
संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है। यह संसद, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति के चुनावों का संचालन करता है।
संरचना और नियुक्ति
मुख्य चुनाव आयुक्त: राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त, 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले हो) कार्यकाल।
चुनाव आयुक्त: वर्तमान में दो चुनाव आयुक्त हैं, जो मुख्य चुनाव आयुक्त के समान स्थिति रखते हैं।
स्वतंत्रता की गारंटी
- संसद के सदस्य के समान वेतन और भत्ते
- कार्यकाल की सुरक्षा - केवल न्यायाधीश जैसी प्रक्रिया से हटाया जा सकता है
- सरकारी नियंत्रण से मुक्त निर्णय लेने की शक्ति
मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की भूमिका
मुख्य चुनाव आयुक्त की शक्तियां
- चुनावी कार्यक्रम की घोषणा
- आचार संहिता का प्रवर्तन
- चुनावी विवादों में निर्णय
- राजनीतिक दलों की मान्यता
सामूहिक निर्णय प्रक्रिया
तीनों आयुक्तों में मतभेद की स्थिति में बहुमत का निर्णय मान्य होता है। व्यावहारिक रूप से अधिकांश निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाते हैं।
निर्वाचन की प्रक्रिया: नामांकन से परिणाम तक
चुनावी अधिसूचना
- चुनावी कार्यक्रम की घोषणा
- नामांकन दाखिल करने की तिथि
- नामांकन की जांच और वापसी की तिथि
- मतदान और मतगणना की तिथि
नामांकन प्रक्रिया
योग्यता शर्तें:
- भारतीय नागरिकता
- न्यूनतम आयु सीमा (लोकसभा/विधानसभा: 25 वर्ष, राज्यसभा/विधान परिषद: 30 वर्ष)
- मानसिक स्वास्थ्य और दिवालिया न होना
अयोग्यता के आधार:
- दो वर्ष से अधिक कारावास की सजा
- भ्रष्टाचार के आरोप
- सरकारी लाभ के पद पर होना
मतदान प्रक्रिया
- मतदाता सूची का सत्यापन
- मतदान केंद्रों का निर्धारण
- मतदान दिवस की व्यवस्था
- मतगणना और परिणाम घोषणा
EVM और VVPAT: तकनीकी सुधार और विवाद
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM)
फायदे:
- तीव्र मतगणना
- कागजी मतपत्र की समस्या का समाधान
- पर्यावरण अनुकूल
- बूथ कैप्चरिंग की रोकथाम
तकनीकी सुरक्षा:
- बैटरी संचालित, नेटवर्क कनेक्शन रहित
- एन्क्रिप्शन और सुरक्षा प्रोटोकॉल
- तीन स्तरीय सुरक्षा प्रणाली
VVPAT (Voter Verifiable Paper Audit Trail)
2013 से चरणबद्ध तरीके से लागू यह प्रणाली मतदाताओं को अपने मत का पेपर रिकॉर्ड देखने की सुविधा देती है। यह EVM की विश्वसनीयता बढ़ाने का महत्वपूर्ण कदम है।
विवाद और न्यायिक स्थिति
सुप्रीम कोर्ट ने कई बार EVM की विश्वसनीयता की पुष्टि की है। हालांकि, कुछ राजनीतिक दल इसकी पारदर्शिता पर सवाल उठाते रहते हैं।
NOTA (None of the Above) का विकल्प
कानूनी आधार
2013 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर NOTA विकल्प जोड़ा गया। यह नकारात्मक मतदान का अधिकार है।
प्रभाव और सीमाएं
- NOTA को सबसे ज्यादा वोट मिलने पर भी जीत दूसरे उम्मीदवार की होती है
- यह मतदाताओं की असंतुष्टि का प्रकटीकरण है
- चुनावी सुधार की दिशा में एक कदम
चुनावी सुधार: लागत, अपराधीकरण, पारदर्शिता
चुनावी खर्च नियंत्रण
वर्तमान सीमा (2020):
- लोकसभा: 70-95 लाख रुपए (राज्य के अनुसार)
- विधानसभा: 28-40 लाख रुपए
समस्याएं:
- वास्तविक खर्च सीमा से कई गुना अधिक
- नकद लेनदेन की प्रवृत्ति
- तीसरे पक्ष द्वारा अघोषित व्यय
अपराधीकरण की समस्या
आंकड़े: लगभग 43% सांसदों पर आपराधिक मामले लंबित हैं।
सुधार के प्रयास:
- न्यायिक सुधार की तेज प्रक्रिया
- उम्मीदवारों की पारदर्शी घोषणा
- मतदाता जागरूकता
राजनीतिक दलों का पंजीकरण और मान्यता
पंजीकरण प्रक्रिया
आवश्यक दस्तावेज:
- पार्टी का संविधान
- नियम और कार्यक्रम
- पंजीकृत कार्यालय का पता
- कम से कम 100 सदस्यों की सूची
मान्यता की शर्तें
राष्ट्रीय दल:
- 4 राज्यों में मान्यता प्राप्त राज्य दल का दर्जा
- लोकसभा में 2% सीटें या 6% मत
राज्य दल:
- विधानसभा में 3% सीटें या 6% मत
- लोकसभा में 1 सीट या 6% मत
सुविधाएं
- चुनाव चिन्ह का आवंटन
- मुफ्त समय रेडियो/दूरदर्शन पर
- आयकर में छूट
चुनावी बांड: पारदर्शिता बनाम गुमनामी
चुनावी बांड योजना (2018-2024)
उद्देश्य: चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाना और काले धन को रोकना।
व्यवस्था:
- SBI के माध्यम से बांड की खरीद
- दाता की पहचान गुप्त
- केवल पंजीकृत राजनीतिक दल ही प्राप्त कर सकते हैं
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (2024)
कोर्ट ने योजना को असंवैधानिक घोषित करते हुए पारदर्शिता के महत्व पर जोर दिया। अब सभी दाताओं की जानकारी सार्वजनिक करनी होगी।
दल-बदल निरोधक कानून और न्यायिक व्याख्या
52वां संशोधन (1985)
मुख्य प्रावधान:
- दल-बदल पर सदस्यता खत्म होना
- विधायक/सांसद की अयोग्यता
- दल के नाम पर चुनाव जीतने वाले का दायित्व
न्यायिक व्याख्या
किहोतो होलोहन बनाम जाचिल्लू मामला (1992):
- दल-बदल की परिभाषा
- अध्यक्ष की भूमिका
- न्यायिक समीक्षा की सीमा
समसामयिक चुनौतियां:
- होर्स ट्रेडिंग की समस्या
- अध्यक्ष की निष्पक्षता के सवाल
- न्यायिक निर्णयों में देरी
मतदाता सूची और EPIC कार्ड
मतदाता सूची का निर्माण
वार्षिक संशोधन:
- 1 जनवरी को अंतिम प्रकाशन
- मृत्यु, स्थानांतरण के आधार पर नाम काटना
- नए मतदाताओं का पंजीकरण
EPIC (Election Photo Identity Card)
महत्व:
- मतदान में पहचान का प्रमाण
- फर्जी मतदान की रोकथाम
- डिजिटल प्रारूप में उपलब्धता
वैकल्पिक पहचान दस्तावेज:
- आधार कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस
- बैंक पासबुक, पैन कार्ड
- सरकारी कर्मचारी पहचान पत्र
चुनावी अपराध और दंड
मुख्य अपराध
भ्रष्ट आचरण:
- रिश्वतखोरी
- अनुचित प्रभाव
- झूठे शपथ पत्र
चुनावी अपराध:
- बूथ कैप्चरिंग
- फर्जी मतदान
- मतदाताओं को डराना-धमकाना
दंड व्यवस्था
तत्काल दंड:
- 6 वर्ष तक का कारावास
- चुनाव लड़ने से अयोग्यता
- जुर्माना
न्यायिक प्रक्रिया:
- त्वरित न्यायाधिकरण
- विशेष न्यायालय
- अपील की सुविधा
चुनाव पेट्रिशन और न्यायिक समीक्षा
चुनाव पेट्रिशन
दाखिल करने की शर्तें:
- चुनाव में उम्मीदवार होना
- 45 दिन के भीतर दाखिल करना
- उच्च न्यायालय में प्रस्तुत करना
आधार:
- अनुचित तरीके से चुनाव जीतना
- गलत घोषणाएं
- चुनावी कानून का उल्लंघन
न्यायिक समीक्षा की सीमाएं
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि चुनाव आयोग के प्रशासनिक निर्णयों में न्यायपालिका हस्तक्षेप नहीं कर सकती, लेकिन संवैधानिक और कानूनी उल्लंघन के मामलों में समीक्षा संभव है।
डिजिटल चुनाव प्रचार और नियम
सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव
नए आयाम:
- फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब पर प्रचार
- डिजिटल विज्ञापन की भूमिका
- वायरल कंटेंट का प्रभाव
नियामक चुनौतियां
फेक न्यूज और दुष्प्रचार:
- गलत जानकारी का तीव्र प्रसार
- डीपफेक तकनीक का दुरुपयोग
- साइबर सेना का प्रयोग
चुनाव आयोग के नए नियम
डिजिटल प्रचार नियम (2018):
- सोशल मीडिया प्रचार की घोषणा
- डिजिटल खर्च की सीमा
- तत्काल हटाने के निर्देश
भविष्य की चुनौतियां और सुधार
तकनीकी सुधार
ब्लॉकचेन वोटिंग:
- छेड़छाड़ रोधी व्यवस्था
- पारदर्शिता में वृद्धि
- दूरस्थ मतदान की संभावना
व्यापक सुधार
एक साथ चुनाव:
- लागत में कमी
- नीति निर्माण में निरंतरता
- प्रशासनिक सुविधा
राज्य निर्वाचन आयोग:
- स्थानीय निकाय चुनावों की स्वतंत्रता
- एकरूप चुनावी प्रक्रिया
- बेहतर समन्वय
निष्कर्ष
भारत की चुनावी व्यवस्था निरंतर विकसित हो रही है। तकनीकी प्रगति के साथ-साथ पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग बढ़ रही है। चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता भारतीय लोकतंत्र की मजबूती का आधार है। भविष्य में डिजिटल चुनाव प्रचार, साइबर सुरक्षा और तकनीकी सुधार मुख्य चुनौतियां होंगी।
चुनावी सुधार एक सतत प्रक्रिया है जिसमें कानूनी, तकनीकी और सामाजिक सभी आयामों पर काम करना आवश्यक है। एक मजबूत चुनावी व्यवस्था ही लोकतांत्रिक मूल्यों को कायम रख सकती है और जनता की आकांक्षाओं को पूरा कर सकती है।
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