संसद की द्विसदनीय संरचना और कार्यप्रणाली | Indian Parliament Structure for UPSC

| जुलाई 16, 2025
संसद - द्विसदनीय विधायिका की संरचना और कार्यप्रणाली | UPSC राजव्यवस्था

🏛️ संसद - द्विसदनीय विधायिका की संरचना और कार्यप्रणाली

UPSC राजव्यवस्था एवं शासन - लेख 6

लेखक: UPSC टीम | प्रकाशन: जुलाई 2025 | समय: 22-28 मिनट

🌟 संसद का परिचय

भारतीय संसद देश की सर्वोच्च विधायी संस्था है। यह द्विसदनीय व्यवस्था पर आधारित है जिसमें लोकसभा (निचला सदन) और राज्यसभा (ऊपरी सदन) शामिल हैं। संसद का मुख्य कार्य कानून बनाना, सरकार पर नियंत्रण और राष्ट्रीय नीतियों पर बहस करना है।
महत्वपूर्ण: भारतीय संसद की स्थापना ब्रिटिश वेस्टमिंस्टर मॉडल पर की गई है। राष्ट्रपति भी संसद का अंग है परंतु वह इसकी बैठकों में भाग नहीं लेता।

🏗️ संसद की संरचना

अनुच्छेद 79 के अनुसार संघ के लिए एक संसद होगी जो राष्ट्रपति और दो सदनों से मिलकर बनेगी।
सदन अधिकतम सदस्य वर्तमान सदस्य कार्यकाल
लोकसभा 552 (530+20+2) 543 5 वर्ष
राज्यसभा 250 (238+12) 245 6 वर्ष (1/3 सदस्य हर 2 वर्ष)
संसद के अंग: राष्ट्रपति + लोकसभा + राज्यसभा = संसद। कोई भी विधेयक कानून बनने के लिए दोनों सदनों से पारित होना आवश्यक है।

🗳️ लोकसभा - जनता का सदन

संरचना और चुनाव

लोकसभा की मुख्य विशेषताएं

  • कुल सदस्य: 543 (राज्यों से 530, केंद्र शासित प्रदेशों से 13)
  • चुनाव: प्रत्यक्ष चुनाव, गुप्त मतदान
  • मतदान प्रणाली: साधारण बहुमत (FPTP)
  • आरक्षण: SC के लिए 84, ST के लिए 47 सीटें
  • अध्यक्ष: सदस्यों द्वारा चुना जाता है

सदस्यता की योग्यताएं

आवश्यक योग्यताएं
  • भारत का नागरिक हो
  • 25 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो
  • मानसिक रूप से स्वस्थ हो
  • दिवालिया न हो
  • सरकारी लाभ के पद पर न हो
अयोग्यताएं
  • दो वर्ष से अधिक कारावास
  • भ्रष्टाचार का दोषी
  • चुनावी अपराध
  • दल-बदल (10वीं अनुसूची)
  • विदेशी नागरिकता

अध्यक्ष और उपाध्यक्ष

लोकसभा अध्यक्ष संसदीय लोकतंत्र में महत्वपूर्ण पद है। वह सदन की कार्यवाही का संचालन करता है और संसदीय मामलों में निष्पक्षता बनाए रखता है।
अध्यक्ष की शक्तियां: सदन की कार्यवाही का संचालन, अनुशासन बनाए रखना, धन विधेयक का प्रमाणीकरण, दल-बदल के मामलों में निर्णय।

🏛️ राज्यसभा - राज्यों की परिषद

संरचना और चुनाव

राज्यसभा की विशेषताएं

  • कुल सदस्य: 245 (राज्यों से 233, केंद्र शासित प्रदेशों से 4, मनोनीत 12)
  • चुनाव: अप्रत्यक्ष चुनाव (विधानसभा सदस्यों द्वारा)
  • मतदान प्रणाली: आनुपातिक प्रतिनिधित्व (STV)
  • कार्यकाल: 6 वर्ष (स्थायी सदन)
  • सभापति: उप-राष्ट्रपति (पदेन)

मनोनीत सदस्य

अनुच्छेद 80(3): राष्ट्रपति 12 सदस्यों को साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या अनुभव के आधार पर मनोनीत करता है।

राज्यसभा की विशेष शक्तियां

केवल राज्यसभा की शक्तियां

  • अनुच्छेद 249: राष्ट्रीय हित में राज्य सूची पर कानून बनाने की शक्ति
  • अनुच्छेद 312: नई अखिल भारतीय सेवा का सृजन
  • उप-राष्ट्रपति का चुनाव: राज्यसभा और लोकसभा दोनों मिलकर
  • राष्ट्रपति पर महाभियोग: दोनों सदनों की आवश्यकता

⚖️ लोकसभा-राज्यसभा तुलना

आधार लोकसभा राज्यसभा
प्रकृति निचला सदन, अस्थायी ऊपरी सदन, स्थायी
प्रतिनिधित्व जनता का राज्यों का
चुनाव प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष
धन विधेयक विशेष शक्ति केवल सिफारिशें
अविश्वास प्रस्ताव हां नहीं
विघटन हो सकता है नहीं हो सकता

⚡ संसद की शक्तियां

📜 विधायी शक्तियां
  • कानून निर्माण
  • संविधान संशोधन
  • विधेयकों पर बहस
  • संघ सूची पर विशेष अधिकार
💰 वित्तीय शक्तियां
  • बजट पारित करना
  • कर लगाने की शक्ति
  • वित्तीय विधेयकों पर नियंत्रण
  • सरकारी खर्च की जांच
🎯 कार्यकारी नियंत्रण
  • अविश्वास प्रस्ताव
  • प्रश्नकाल
  • संसदीय समितियां
  • मंत्रियों की जवाबदेही
⚖️ न्यायिक कार्य
  • राष्ट्रपति पर महाभियोग
  • न्यायाधीशों का हटाना
  • संसदीय विशेषाधिकार
  • सदस्यों का अयोग्यीकरण

📋 विधेयकों के प्रकार

चार प्रकार के विधेयक
भारतीय संसद में चार प्रकार के विधेयक पेश किए जा सकते हैं, जिनकी अपनी अलग प्रक्रिया है।
विधेयक का प्रकार परिभाषा विशेष बातें
साधारण विधेयक सामान्य विषयों पर कानून किसी भी सदन में पेश हो सकता है
धन विधेयक कराधान और सरकारी व्यय केवल लोकसभा में पेश, अनुच्छेद 110
वित्त विधेयक वित्तीय मामले (धन विधेयक से व्यापक) दो प्रकार - 117(1) और 117(3)
संविधान संशोधन विधेयक संविधान में बदलाव अनुच्छेद 368, विशेष बहुमत
धन विधेयक की पहचान: लोकसभा अध्यक्ष तय करता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं। राज्यसभा केवल 14 दिन तक रख सकती है और सिफारिशें दे सकती है।

🔄 संसदीय प्रक्रिया

विधेयक की पारित प्रक्रिया

चरण 1: पहला वाचन
विधेयक का पेश किया जाना, केवल शीर्षक पढ़ा जाता है
चरण 2: दूसरा वाचन
सामान्य चर्चा → समिति को भेजना → समिति की रिपोर्ट → खंडवार चर्चा
चरण 3: तीसरा वाचन
अंतिम चर्चा और मतदान, केवल भाषा सुधार की अनुमति
चरण 4: दूसरे सदन में भेजना
समान प्रक्रिया दोहराई जाती है
चरण 5: राष्ट्रपति की स्वीकृति
विधेयक कानून बनने के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी आवश्यक

संसदीय उपकरण

संसदीय नियंत्रण के साधन

  • प्रश्नकाल: तारांकित, अतारांकित और अल्प सूचना प्रश्न
  • शून्यकाल: तत्काल सार्वजनिक महत्व के मामले
  • स्थगन प्रस्ताव: तत्काल सार्वजनिक महत्व के मामले पर बहस
  • ध्यानाकर्षण प्रस्ताव: मंत्री का ध्यान आकर्षित करना
  • निंदा प्रस्ताव: सरकार की नीति की आलोचना

🔄 दल-बदल निरोधक कानून

52वें संविधान संशोधन (1985) द्वारा 10वीं अनुसूची जोड़ी गई जो दल-बदल को रोकने के लिए बनाई गई थी। इसका उद्देश्य राजनीतिक स्थिरता लाना था।

दल-बदल की परिस्थितियां

सदस्य अयोग्य घोषित हो सकता है यदि:

  • स्वेच्छा से दल छोड़ना: अपने राजनीतिक दल की सदस्यता त्यागना
  • व्हिप का उल्लंघन: दल के निर्देश के विपरीत मतदान
  • मनोनीत सदस्य: 6 महीने बाद किसी दल में शामिल होना
  • निर्दलीय सदस्य: चुनाव के बाद किसी दल में शामिल होना
2/3 नियम: यदि दल के 2/3 सदस्य विलय का समर्थन करें तो यह दल-बदल नहीं माना जाता। यह नियम राजनीतिक दलों के विलय को वैधता प्रदान करता है।
निर्णय प्राधिकरण: लोकसभा में अध्यक्ष और राज्यसभा में सभापति दल-बदल के मामलों में अंतिम निर्णय लेते हैं। उनका निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन है।

📝 अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1: लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या कितनी है?

प्रश्न 2: राज्यसभा में कितने सदस्य मनोनीत किए जाते हैं?

प्रश्न 3: धन विधेयक की पहचान कौन करता है?

प्रश्न 4: दल-बदल निरोधक कानून किस संविधान संशोधन से जोड़ा गया?

प्रश्न 5: राज्यसभा का पदेन सभापति कौन होता है?

मुख्य परीक्षा प्रश्न 1: भारतीय संसद में द्विसदनीय व्यवस्था की आवश्यकता और महत्व का विश्लेषण करें। (250 शब्द)

मुख्य परीक्षा प्रश्न 2: दल-बदल निरोधक कानून की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करें। क्या यह लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुकूल है? (250 शब्द)

🎯 मुख्य बिंदु

  • संसद में राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा शामिल हैं
  • लोकसभा जनता का प्रतिनिधित्व करती है, राज्यसभा राज्यों का
  • धन विधेयक केवल लोकसभा में पेश हो सकते हैं
  • दल-बदल निरोधक कानून राजनीतिक स्थिरता के लिए आवश्यक है
  • संसदीय समितियां विधायी कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं

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