राज्य के नीति निदेशक तत्व और मूल कर्तव्य | UPSC राजव्यवस्था की गारंटी गाइड

| जुलाई 16, 2025
राज्य के नीति निदेशक तत्व और मूल कर्तव्य | UPSC राजव्यवस्था

🎯 राज्य के नीति निदेशक तत्व और मूल कर्तव्य

UPSC राजव्यवस्था एवं शासन - लेख 3

लेखक: UPSC विशेषज्ञ टीम | प्रकाशन: जुलाई 2025 | पढ़ने का समय: 30-35 मिनट

🌟 प्रस्तावना

राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (Directive Principles of State Policy) भारतीय संविधान का चौथा भाग हैं (अनुच्छेद 36-51)। ये भारत को एक कल्याणकारी राज्य बनाने की दिशा में मार्गदर्शक सिद्धांत हैं। इसी प्रकार मूल कर्तव्य (अनुच्छेद 51A) नागरिकों के दायित्व निर्धारित करते हैं।
महत्वपूर्ण बात: नीति निदेशक तत्व न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं, परंतु ये देश के शासन में मौलिक हैं और कानून बनाते समय राज्य का कर्तव्य है कि वह इन सिद्धांतों को लागू करे।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने इन्हें "संविधान की नवीन विशेषता" कहा था। ये सिद्धांत सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र स्थापित करने के लिए आवश्यक हैं।

📜 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

विश्व में नीति निदेशक सिद्धांतों का विकास

1919
आयरलैंड का संविधान - पहली बार नीति निदेशक सिद्धांतों की अवधारणा
1931
कराची प्रस्ताव - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा सामाजिक-आर्थिक अधिकारों की मांग
1948
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार घोषणा - सामाजिक-आर्थिक अधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता
1950
भारतीय संविधान में नीति निदेशक तत्वों को शामिल किया गया

भारत में विकास

भारत में नीति निदेशक सिद्धांतों की जड़ें स्वतंत्रता संग्राम के दौरान रखी गईं। 1931 के कराची अधिवेशन में कांग्रेस ने सामाजिक और आर्थिक न्याय के सिद्धांतों को अपनाया था। गांधी जी के ग्राम स्वराज्य, अहिंसा और सर्वोदय के विचारों का भी इन पर गहरा प्रभाव है।
आयरिश प्रभाव: भारतीय संविधान में नीति निदेशक सिद्धांत मुख्यतः आयरलैंड के संविधान से प्रेरित हैं। आयरलैंड में भी ये न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं थे।

🔍 नीति निदेशक तत्वों की प्रकृति और विशेषताएं

मुख्य विशेषताएं

  • गैर-न्यायसंगत (Non-Justiciable): न्यायालय इन्हें लागू करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता
  • सकारात्मक (Positive): राज्य को कुछ करने के लिए निर्देशित करते हैं
  • मौलिक (Fundamental): देश के शासन में मौलिक महत्व
  • व्यापक (Comprehensive): जीवन के सभी क्षेत्रों को कवर करते हैं
  • लचीले (Flexible): समय और परिस्थिति के अनुसार व्याख्या
  • आदर्शवादी (Idealistic): भविष्य के लक्ष्य निर्धारित करते हैं
37 अनुच्छेद 37: "इस भाग में अंतर्विष्ट तत्व किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होंगे किंतु फिर भी ये तत्व देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि बनाने में इन तत्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा।"
अनुच्छेद 37 नीति निदेशक तत्वों की स्थिति को स्पष्ट करता है। ये कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं परंतु नैतिक और राजनीतिक रूप से बाध्यकारी हैं।

📊 नीति निदेशक तत्वों का वर्गीकरण

1. समाजवादी सिद्धांत

अनुच्छेद विषय मुख्य बातें
38 सामाजिक न्याय और कल्याण आय की असमानता कम करना, सामाजिक न्याय को बढ़ावा
39 राज्य की नीति के निदेशक तत्व समान आजीविका, संपत्ति का केंद्रीकरण रोकना
39A समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करना
41 काम, शिक्षा और सहायता का अधिकार बेरोजगारी, बुढ़ापा और बीमारी में सहायता
42 उचित और मानवोचित कार्य दशाएं काम के घंटे, मातृत्व राहत
43 जीविकोपार्जन मजदूरी न्यूनतम मजदूरी, जीवन स्तर में सुधार
43A उद्योगों के प्रबंध में कामगारों की भागीदारी औद्योगिक लोकतंत्र

2. गांधीवादी सिद्धांत

अनुच्छेद विषय गांधीवादी तत्व
40 ग्राम पंचायतों का संगठन ग्राम स्वराज्य की अवधारणा
43 ग्रामोद्योग को बढ़ावा स्वदेशी और कुटीर उद्योग
47 मादक द्रव्यों का निषेध नशा निषेध
48 गो-वध का निषेध अहिंसा की भावना

3. उदारवादी/बौद्धिक सिद्धांत

अनुच्छेद विषय उद्देश्य
44 समान नागरिक संहिता व्यक्तिगत कानूनों का एकीकरण
45 6-14 वर्ष के बच्चों की शिक्षा शिक्षा का सार्वभौमिकरण
46 SC/ST के शैक्षणिक और आर्थिक हित सामाजिक न्याय
49 राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों का संरक्षण सांस्कृतिक विरासत
50 न्यायपालिका और कार्यपालिका का पृथक्करण सत्ता का विकेंद्रीकरण
51 अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा विदेश नीति के सिद्धांत

📋 महत्वपूर्ण अनुच्छेदों का विस्तृत विश्लेषण

अनुच्छेद 39 - राज्य की नीति के निदेशक तत्व

39 राज्य अपनी नीति का विशेषतः इस प्रकार संचालन करेगा कि सुनिश्चित रूप से:

अनुच्छेद 39 की छह शाखाएं

  • 39(a): सभी नागरिकों (पुरुष और स्त्री) को समान रूप से आजीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो
  • 39(b): समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार बांटा जाए कि सामूहिक हित का सर्वोत्तम रूप से साधन हो
  • 39(c): आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार चले कि धन और उत्पादन-साधनों का केंद्रीकरण सामान्य हित के लिए अहितकारी न हो
  • 39(d): पुरुषों और स्त्रियों दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन मिले
  • 39(e): पुरुष और स्त्री कामगारों के स्वास्थ्य और शक्ति का दुरुपयोग न हो
  • 39(f): बच्चों को स्वतंत्र और गरिमामय वातावरण में विकास के अवसर और सुविधाएं दी जाएं

अनुच्छेद 44 - समान नागरिक संहिता

44 राज्य भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।
समान नागरिक संहिता (UCC) का मतलब है कि सभी धर्मों के लोगों के लिए विवाह, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार आदि के मामलों में एक समान कानून हो। वर्तमान में गोवा में UCC लागू है।
शाह बानो केस (1985): सुप्रीम कोर्ट ने UCC लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया था, परंतु राजनीतिक दबाव के कारण मुस्लिम पर्सनल लॉ एक्ट बनाया गया।

अनुच्छेद 48A - पर्यावरण संरक्षण

48A राज्य पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन का और देश के वनों तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
42वां संशोधन (1976): यह अनुच्छेद 42वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया। इसके साथ ही अनुच्छेद 51A(g) में पर्यावरण संरक्षण को मूल कर्तव्य भी बनाया गया।

⚖️ मूल अधिकार बनाम नीति निदेशक तत्व

आधार मूल अधिकार नीति निदेशक तत्व
प्रकृति नकारात्मक (राज्य को रोकते हैं) सकारात्मक (राज्य को कार्य करने को कहते हैं)
न्यायसंगतता न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं
उद्देश्य राजनीतिक लोकतंत्र सामाजिक-आर्थिक लोकतंत्र
संशोधन कठिन (मूल संरचना का हिस्सा) अपेक्षाकृत आसान
समय सीमा तुरंत लागू क्रमशः लागू (संसाधनों पर निर्भर)
स्रोत अमेरिकी संविधान आयरिश संविधान

न्यायिक दृष्टिकोण का विकास

1951
चंपकम दोरैराजन केस: मूल अधिकार सर्वोपरि, नीति निदेशक तत्व गौण
1967
गोलकनाथ केस: मूल अधिकारों में संशोधन की सीमा
1973
केशवानंद भारती केस: दोनों के बीच संतुलन की आवश्यकता
1980
मिनर्वा मिल्स केस: "संविधान का हृदय और आत्मा" - दोनों का संतुलन
मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मूल अधिकार और नीति निदेशक तत्व संविधान के दो पहिए हैं। इनके बीच संतुलन आवश्यक है।

🇮🇳 मूल कर्तव्य (अनुच्छेद 51A)

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

मूल कर्तव्य मूल संविधान में नहीं थे। 1976 में 42वें संविधान संशोधन द्वारा 10 मूल कर्तव्य जोड़े गए। बाद में 86वें संशोधन (2002) द्वारा एक और कर्तव्य जोड़ा गया। ये सोवियत संघ के संविधान से प्रेरित हैं।
स्वर्ण सिंह समिति (1976): आपातकाल के दौरान इस समिति ने मूल कर्तव्यों को जोड़ने की सिफारिश की थी।

11 मूल कर्तव्य

अनुच्छेद 51A के तहत प्रत्येक भारतीय नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह:

  • (a) संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे
  • (b) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे
  • (c) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे
  • (d) देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे
  • (e) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे
  • (f) हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे
  • (g) प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और संवर्धन करे (42वां संशोधन)
  • (h) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे
  • (i) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे
  • (j) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे
  • (k) 6-14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करे (86वां संशोधन, 2002)

मूल कर्तव्यों की विशेषताएं

प्रमुख विशेषताएं

  • गैर-न्यायसंगत: इन्हें न्यायालय द्वारा प्रवर्तित नहीं कराया जा सकता
  • नैतिक बाध्यता: ये नैतिक और राजनीतिक दायित्व हैं
  • व्यापक परिप्रेक्ष्य: राष्ट्रीय, सामाजिक, सांस्कृतिक सभी पहलू शामिल
  • शिक्षाप्रद मूल्य: नागरिक चेतना और जिम्मेदारी विकसित करते हैं
  • संवैधानिक स्थिति: संविधान के भाग IVA में वर्णित

📚 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय

केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)

मुद्दा: संसद की संविधान संशोधन की शक्ति की सीमा
निर्णय: मूल अधिकार और नीति निदेशक तत्व दोनों संविधान के आवश्यक तत्व हैं
महत्व: मूल संरचना सिद्धांत की स्थापना, दोनों के बीच संतुलन की आवश्यकता

एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (पर्यावरण केसेस)

गंगा प्रदूषण केस: अनुच्छेद 48A और 51A(g) के आधार पर गंगा सफाई के आदेश
ताज महल केस: आगरा में प्रदूषण कम करने के लिए उद्योगों को हटाने का आदेश
महत्व: पर्यावरण संरक्षण को मूल अधिकार से जोड़ना

उन्नीकृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1993)

मुद्दा: शिक्षा का अधिकार
निर्णय: अनुच्छेद 45 के आधार पर 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा का अधिकार
परिणाम: बाद में 86वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 21A जोड़ा गया

AIIMS बनाम भारत संघ (2017) - सामाजिक सुरक्षा

मुद्दा: स्वास्थ्य सेवाओं में गुणवत्ता और पहुंच
आधार: अनुच्छेद 41 और 47
निर्णय: राज्य का दायित्व स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना

🚀 क्रियान्वयन और वर्तमान स्थिति

सफल क्रियान्वयन के उदाहरण

महत्वपूर्ण उपलब्धियां

  • अनुच्छेद 45: RTE Act 2009, सर्व शिक्षा अभियान
  • अनुच्छेद 41: MNREGA, पेंशन योजनाएं, आयुष्मान भारत
  • अनुच्छेद 47: कई राज्यों में शराबबंदी
  • अनुच्छेद 48: गो-हत्या पर प्रतिबंध
  • अनुच्छेद 40: 73वां और 74वां संशोधन (पंचायती राज)
  • अनुच्छेद 39A: Legal Services Authority Act

चुनौतियां

मुख्य बाधाएं

  • संसाधनों की कमी: वित्तीय संसाधन सीमित
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति: UCC जैसे संवेदनशील मुद्दे
  • केंद्र-राज्य विवाद: कार्यान्वयन में समन्वय की कमी
  • न्यायसंगतता का अभाव: कानूनी बाध्यता नहीं
  • जागरूकता की कमी: जनता में इनके बारे में जानकारी कम

भविष्य की दिशा

नीति निदेशक तत्वों और मूल कर्तव्यों का भविष्य उज्ज्वल है। सरकार की विभिन्न योजनाएं इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित हैं। डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, स्वच्छ भारत जैसी योजनाएं इन्हीं का प्रतिफल हैं।
नई चुनौतियां: जलवायु परिवर्तन, डिजिटल विभाजन, वृद्धावस्था की समस्याएं आदि नए नीति निदेशक तत्वों की मांग कर रही हैं।

📝 अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1: नीति निदेशक तत्व किस देश के संविधान से प्रेरित हैं?

प्रश्न 2: मूल कर्तव्य किस संविधान संशोधन द्वारा जोड़े गए?

प्रश्न 3: अनुच्छेद 44 में क्या प्रावधान है?

प्रश्न 4: समान नागरिक संहिता वर्तमान में किस राज्य में लागू है?

प्रश्न 5: 11वां मूल कर्तव्य कब जोड़ा गया?

प्रश्न 6: "संविधान का हृदय और आत्मा" किस केस में कहा गया?

मुख्य परीक्षा प्रश्न 1: नीति निदेशक तत्वों और मूल अधिकारों के बीच संबंध का विश्लेषण करें। न्यायपालिका ने इन दोनों के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया है? (250 शब्द)

मुख्य परीक्षा प्रश्न 2: मूल कर्तव्यों की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा करें। क्या इन्हें न्यायसंगत बनाया जाना चाहिए? (250 शब्द)

विश्लेषणात्मक प्रश्न: "नीति निदेशक तत्व भारत को कल्याणकारी राज्य बनाने का खाका हैं।" इस कथन की समीक्षा करें और इनके क्रियान्वयन की चुनौतियों का विश्लेषण करें। (400 शब्द)

🎯 मुख्य बिंदु (Key Takeaways)

  • नीति निदेशक तत्व कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत हैं
  • ये न्यायसंगत नहीं हैं परंतु शासन में मौलिक महत्व रखते हैं
  • मूल अधिकार और नीति निदेशक तत्व संविधान के दो पहिए हैं
  • मूल कर्तव्य नागरिकों के दायित्व निर्धारित करते हैं
  • न्यायपालिका ने इन सिद्धांतों को मूल अधिकारों से जोड़कर प्रवर्तनीय बनाया है
  • आधुनिक कल्याणकारी योजनाएं इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित हैं

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